हम अपने प्रिय चिट्ठाकार समीर लाल जी की चर्चा में जुटे हैं ! कहाँ तक कहा जाय ,वे ब्लॉग जगत के लिविंग लीजेंड बन चुके हैं ! लिविंग फासिल तो कदापि नही ! यहाँ उनकी विरुदावली पेश करने की मेरी जरा भी मंशा नहीं है और न ही मैं किसी चारण ( भांट ) परम्परा का वहन ही कर रहा हूँ ! मैं अपनी सामर्थ्य और सीमा के तहत चिट्ठाकारों के बारे में कुछ कह सुन रहा हूँ -वह चाहे उनके अच्छे कार्यों /कारणों से हो या बुरे ! अल्पज्ञात ,कुख्यात और समीर जी जैसे विख्यात सभी ब्लॉगर मेरी हिट लिस्ट में हैं ! और अभी तो बहुत कुछ आना बाकी है ! ठण्ड रख बादशाहों !
अब जब समीर जी की चर्चा यहाँ छेड़ ही दी है तो लगे हाथ उनके बिखरे मोतियों को क्यों न समेटने का उपक्रम कर लिया जाय ! सिद्धार्थ जी ने अतिशय विनम्रता के साथ इस काज से तोबा कर ली है ! मैं उन सरीखा विनम्र नही हूँ ! मैं पूरी उद्धतता के साथ अपनी मूर्खताओं /बेवकूफियों को आपके साथ बाँटने में आनंदित होता हूँ -यह कुछ कुछ आत्मपीडात्मक ही तो है ! पर शायद मेरी यही आत्मपीडा ही है जो समीर सरीखे रचनाकार से कहीं कुछ तादात्म्य बिठा लेती है -जीवन के कुछ पल छिन जहाँ मानों रचनाकार से हिल मिल से जाते हैं ! समीर जी के सद्य प्रकाशित कविता संग्रह को पढ़ते हुए मुझे अनेक स्थलों पर ऐसा ही लगा कि अरे यही तो मेरी भी पीड़ा है ,मेरा भी अनकहा है । एक कुशल रचनाकार का यही लिटमस टेस्ट भी है कि वह अपनी रचनाओं से किस सीमा तक पाठकों से तादाम्य स्थापित कर पाता है ! समीर जी के इस काव्य संग्रह की यही बड़ी विशेषता है कि इसकी तमाम रचनाएँ पाठकों की अपनी अनुभूतियों से सीधे जा जुड़ती हैं ! मैं कोई पेशेवर काव्य समीक्षक तो हूँ नहीं और न ही इस विधा की शास्त्रीय बारीकियों से परिचित हूँ -अतः सुधी ब्लॉगर बन्धु मेरी कुछ धृष्टताओं और अज्ञानता जनित गलतियों को अवश्य माफ़ कर देगें इस आशा और विश्वास के साथ मैं समीर लाल कृत बिखरे मोती काव्य संग्रह की एक पाठकीय समीक्षा यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मुलाहजा फरमाएं !
बिखरे मोती काव्य संग्रह को समीर जी ने अपनी माँ की पुण्य स्मृति को समर्पित किया है -और इस समर्पण में भी एक वेदना ही छुपी है -बिन माँ के उस घर में कैसे रह पाउँगा ? काव्य संग्रह को कई नामचीन साहित्यकारों ने अनुशंसित/अभिस्वीकृत भी किया है जिसमें मेरे प्रिय कवि कुंवर बेचैन भी हैं जिनकी कुछ पंक्तियाँ ( दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना ....) मैं अक्सर गुनगुनाता रहता हूँ ! उन्होंने समीर जी को मूलतः प्रेम का कवि माना है ! जो वे निसंदेह हैं ! सर्वश्री रमेश हठीला ,राकेश खंडेलवाल और पंकज सुबीर प्रभृत रचनाकारों ने भी अपने अपने तई इस काव्य संग्रह के रचना विधान /प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ! पर जैसा मैंने कहा है न समीर जी और उनकी रचनाओं के बारे में बहुत कुछ कह कर भी कितना कुछ अनकहा सा रह जाता है ! ठीक उस बिहारी की नायिका की भांति जिसके सौन्दर्य वर्णन में एक से एक गर्वीले चित्रकार का घमंड धूल धूसरित हो जाता है -चित्रकार है कि उसे अपने कैनवास पर उतारने को उद्यत है और नायिका है कि क्षणे क्षणे यन्न्वतामुपैति ...तदैव रूपं रमणीयताह .....मतलब उसके सौन्दर्य में क्षण क्षण बदलते भावों को चित्रकार अपनी तूलिका में कैद न कर पाने से हताश हो कर अंत में उसके चित्र को अधूरा ही छोड़ हार मान लेता है मैं समझ सकता हूँ सिद्धार्थ भाई की हताशा को ..मगर मैं तो मानूंगा नही अपनी अनाधिकार उद्धत चेष्टा से ...
बिखरे मोती के आरम्भ में ही समीर जी ने मन की बात के तहत अपने प्रस्तुत काव्य कर्म की प्रस्तावना की है ! यह आश्चर्यजनक है कि मात्र कुछ वर्षों के कालखंड ( मात्र १९९९ से अद्यावधि ) में ही समीर लाल की यह प्रत्यक्ष आभा दृष्टिगत हुई है जिनमें उनके ब्लॉग लेखकीय जीवन की बहुत बड़ी भूमिका है ! यह सचमुच एक मीटिओरिक सक्सेस है -शायद ही ऐसा कोई और दृष्टांत कहीं और सम्भव हो ! जाहिर है इस आभामंडल का पार्श्व कोई कम आलोकित नही रहा होगा मगर वह नजरों से ओझल जरूर रहा ! और निश्चित तौर पर हिन्दी ब्लॉग ने इस महान रचनाकार को हमारे सामने ला प्रस्तुत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी है ! और जैसा कि रचनाकार ने ख़ुद स्वीकारा है उसके काव्यकर्म को प्रोत्साहित करने में श्री अनूप शुक्ला फुरसतिया (ई कौन हैं भाई ? ) श्री संजय बेगाणी ( क्या अपने ब्लागर संजय बेगाणी ? ) आदि की महनीय भूमिका रही है ! अपने प्रस्तावना में रचनाकार कुछ गृह विरही ( नोस्टालजिक ) सा हो उठा है ! जो सहज ही है ! उन्होंने ई कविता के याहू ग्रुप को भी श्रेय दिया है जहाँ उनका लावण्या शाह और दीगर किंतु काव्यकर्म के दिग्गजों से मेल जोल हुआ ! काव्य संग्रह का श्रेय अपने पिता श्री को भी देना वे नहीं भूले हैं !
जारी........
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
समीरलाल जी के बारे में आगे लेख का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी!!
जवाब देंहटाएंबाकी तो कविता और काव्य के मामले में हम शून्य!!
समीर लाल की यह प्रत्यक्ष आभा दृष्टिगत हुई है जिनमें उनके ब्लॉग लेखकीय जीवन की बहुत बड़ी भूमिका है ! यह सचमुच एक मीटिओरिक सक्सेस है -शायद ही ऐसा कोई और दृष्टांत कहीं और सम्भव हो ! जाहिर है इस आभामंडल का पार्श्व कोई कम आलोकित नही रहा होगा मगर वह नजरों से ओझल जरूर रहा ! और निश्चित तौर पर हिन्दी ब्लॉग ने इस महान रचनाकार को हमारे सामने ला प्रस्तुत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी है ! और जैसा कि रचनाकार ने ख़ुद स्वीकारा है उसके काव्यकर्म को प्रोत्साहित करने में श्री अनूप शुक्ला फुरसतिया (ई कौन हैं भाई ? ) श्री संजय बेगाणी ( क्या अपने ब्लागर संजय बेगाणी ? ) आदि की महनीय भूमिका रही है ....
जवाब देंहटाएंआप के एक -एक वचन से सहमत . समीर लाल जी है ही ऐसे -
अनुराग वही ,अनुभूति वही ,
वही साधना है ,वही संयम है
और रहे या न रहे जग में
उनकी लेखनी में अब भी दम है .
आगे लिखें अच्छी कड़ियाँ! तीन साल पहले हमने भी सबसे पहले समीरभाई की ”बिन माँ के उस घर में कैसे रह पाउँगा ?” कविता पढ़ी थी।
जवाब देंहटाएंकाव्यात्मक समीक्षा भी उतनी ही सुन्दर और आभादीप्त जितनी साइंटिफ़िक डिस्क्रिप्शन । मोहित हूँ, सम्मोहित भी ।
जवाब देंहटाएंअभी जारी है न ?
हम भी आगे का इंतजार कर रहे हैं. और आप श्रंखला बद्ध लिख कर अच्छा कर रहे हैं. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गत्यात्मक समीक्षा टाइप लग रही है. सुन्दर. आभार
जवाब देंहटाएंसमीर लाल जी को कौन नहीं जानता , उनकी काव्य रचना बिखरे मोती का जवाब नहीं इस काव्य ने उनके एक अलग ही व्यक्तित्व को उजागर किया है.......आगे की श्रंखला का इंतजार है
जवाब देंहटाएंregards
जी हाँ मोती हमारे यहाँ भी बिखरे है....अगले हिस्से के इंतज़ार में ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा समीर जी किताब बिखरे मोती में सच में कई रंग पढने को मिले ..आप की लिखी समीक्षा का आगे भी इन्तजार रहेगा ..
जवाब देंहटाएंअपने यहाँ तो मोती अभी तक नहीं बिखरे है.. और आगे का इन्तेज़ार तो अपने भी है.. वैसे उस घर में कैसा रह पाऊंगा.. इस पंक्ति ने ही झकझोर के रख दिया है..
जवाब देंहटाएंसमीरलाल जी के बारे में आगे लेख का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंसमीर लाल यथा नाम तथा गुण हैं। यह हनुमान जी का एक नाम है।
जवाब देंहटाएंबढि़या, आज पहला संस्करण भी पढ़ा वाकई समीर लाल जी में कुछ नही, बहुत कुछ है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक समीक्षा सराहनीय है.....इसे पढ़ तो पुस्तक पढने की जिज्ञासा और भी बलवती हो उठी है.सुन्दर आलेख हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंसमीर जी के कवि रूप की विस्तृत जानकारी मिली इस पोस्ट से. उन्हें शुभकामनाएं और आपको धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा।
जवाब देंहटाएंइसे मंगवाने का प्रयत्न किया जाता है।
अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंआपके समीक्षा आलेख में समीर भाई की और कई अच्छाइयों का भी पता चला .
आपको और समीर जी की उपलब्धियों के लिए उन्हें भी बधाईयाँ
- विजय
@ठण्ड रख बादशाहों !
जवाब देंहटाएंअरे भाईसाहब! कैसे ठण्ड रखे ? जब बात "समीरजी" की हो तो उन्हे पढने को मन उतावला हो रहा है ।
आप तो बिना इन्टरवेल किये पुरी कि पुरी समीर-लिलाओ का वर्णन करे। हम समीरजी के फैन है। इसमे रुकावट एवम देर हमारे लिऐ आतुरता को बढाने वाला है।
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर का आभार
अच्छी जानकारी। अगली कडी की प्रतीक्षा में-
जवाब देंहटाएंबिखरे मोती को बहुत सहेज कर रखी हूँ ,बाकी आप की समीक्षा के आगे की कड़ी के इन्तजार में , शुक्रिया .......
जवाब देंहटाएंधन्य हुए..इन्तजार कर रहे हैं अगली कड़ी का.
जवाब देंहटाएंअच्छा तो समीर जी प्रेम के कवि हैं!
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