इस बार मुझे आकाश गंगा जो गर्मियों में बेहद खूबसूरत दिखती है को निहारने का खूब आनंद मिला ! रात्रि दो बजे से उत्तर और दक्षिण के मध्य रूई के फाहों या हलके महीन बादलों के आवरण की एक पट्टी दिखती है जो जैसे जैसे समय बीतता जाता है और भी फैलती जाती है ! यह एक अद्भुत दृश्य है जो रोमांच उत्पन्न करता है ! कहते हैं की हमारा सूर्य और ख़ुद यह पृथ्वी इसी मिल्की वे -आकाश गंगा की ही एक कण मात्र के सदस्य/सदस्या हैं .इस आकाश गंगा में जो वर्तुलाकार है करीब १० हजार करोड़ तारे हैं ! और ब्रहमांड में ऐसी ही अनेक मिल्की वे हैं ! अभी तो यह आकाश गंगा अर्ध रात्रि के बाद दिख रही है मगर आगामी माहों में यह रात्रि के आरम्भिक पहरों में भी दिखेगी ! भारतीयों ने सचमुच इस मिल्की वे का कितना सुंदर नामकरण किया है -आकाशगंगा ! मतलब धरती की गंगा के ही समांतर आकाश की गंगा जो इन्द्र सरीखे देवताओं की भी पतित पावनी है !
मैंने देखा कि रात्रि तीन बजे तक अपने बृहस्पति महराज भी आकाश गंगा की झीनी चादर में मुंह छुपा कुछ कुछ निस्तेज हो लिए थे ! जरा ढूँढिये तो गुरू महराज को -
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May is Milky Way month
हां गांवो मे अक्सर ही बिजली नही आती है तो वहां ऐसे नजारे दिखाई दे जाते हैं. यहा शहर मे तो भी नही दिखाई देता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
thoda mushkil hai dhhoondhh pana...
जवाब देंहटाएंआकाशगँगा का पौराणिक नाम क्या होगा ?
जवाब देंहटाएंयाद नहीँ आ रहा
- लावण्या
@ क्या यह पौराणिक नाम नहीं है ? कहीं क्षीर सागर तो ही नहीं ?
जवाब देंहटाएंमुझे तो जब भी ये नजारा देखना होता है कोटा से कम से कम दस किलोमीटर दूर रावतभाटा की तरफ जंगल के बीच सड़क पर जा कर गाड़ी खड़ी करनी पड़ती है। बहुत अच्छा लगता है ऐसे देखना। विश्व कितना विस्तृत है, और हम?
जवाब देंहटाएंहमें तो रात को बिजली न रहने पर जागने की आदत नहीं, हम तो बिजली रहने पर जागते हैं । कारण साफ है अनेकों रातें बिना बिजली के काट देने का अभ्यास है मुझे ।
जवाब देंहटाएंऔर इसीलिये छत पर सोते तो हैं, पर कुछ परिस्थितिजन्य एकरसता और कुछ खगोलीय जानकारियों का अभाव मुझे नींद में ही जाने को प्रेरित करता है ।
मैं न पहचान पाउंगा गुरु महाराज को ।
एक नाम ‘मन्दाकिनी’ भी है।
जवाब देंहटाएंअच्छा तो यह 'मिल्की वे मंथ' भी है!आपके साथ आकाशगंगा की सैर का अभी भी इंतजार है.
जवाब देंहटाएंचित्र में दीखता 'आकाशगंगा 'का दृश्य बहुत ही मनोरम है.
जवाब देंहटाएंयहाँ बिजली जाती नहीं कि कभी अँधेरा हो और आकाश के तारे भी देख सकें.आकाशगंगा तो देख पाना दूर की बात है.
ये वाकई मोहक दृश्य रहा होगा.. मैंने कई बार आसमान में देखते हुए रात बितायी है
जवाब देंहटाएंदिल्ली में अब तारे नहीं होते.
जवाब देंहटाएंबिजली के मामले मे मध्यप्रदेश से अलग होना छत्तीसगढ के लिये फ़ायदेमंद रहा।कम से कम शहरो मे तो बिजली की आंखमिचौली नही होती।रात को खुले आसमान मे चांदनी की बूटेदारी देखने का मौका तो गांव जाने पर ही मिलता है। अब तो गर्मियों मे छतो पर सोने का सिस्ट्म भी खतम हो गया।बचपन मे रोज़ शाम को अपना बिस्तर छत पर लगाना और रात होते-होते उसका ठंडा होना सबसे ज्यादा खुशी देता था वो खुशी अब ठ्ण्डे कमरों मे कंहा मिल सकती है।
जवाब देंहटाएंबिजली जाने का एक फायदा तो पता चला।
जवाब देंहटाएंआकाशगंगा बहुत समय बाद सुनने को ही मिला। गजब का अनुभव होता है जो, बड़े शहरों में तो देखने को नहीं मिलता
जवाब देंहटाएंगाँव जाने पर ये अनुभव हमेशा ही सुखद होता है !
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी, निहारते रहिए अन्तरिक्ष को....उम्मीद करता हूं कि शायद किसी दिन इन ग्रहों, तारों के पार भी कुछ दिखाई दे जाए.
जवाब देंहटाएंमैं भी पिछले हफ्ते निहार रहा था सप्तर्षि मण्डल को!
जवाब देंहटाएंआकाश-गंगाओं की आदत-सी है हमें...जाने कितनी रातें-लगातार रातें इन्हें निहारती बीती हैं, बीतती हैं...
जवाब देंहटाएंजानकारियों का शुक्रिया मिश्र जी !
ब्रह्माण्ड की अनेक आकश गंगाओं में से हमारी एक आकाशगंगा, उस एक आकाशगंगा में हमारा एक सौरमंडल, उस सौरमंडल में हमारी पृथ्वी, उस पृथ्वी में हमारा देश, शहर, मोहल्ला , घर और हम स्वयं. अपनी अकिंचनता का अहसास दिलाने के लिए इतना काफी है.
जवाब देंहटाएंkai shehro me bhi milky way ke darshan bahut hote hai...likha bahut achha hai aapne...
जवाब देंहटाएंwww.pyasasajal.blogspot.com
तारे देखे एक ज़माना बीत गया ..:) अच्छा लगा इस लिए इसको पढना
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