आप किसी सम्मलेन में शरीक तो नही होने जा रहे ? यदि हां तो कृपया गौर फरमाएं ! अभी मुझे एक राष्ट्रीय सम्मेलन -विज्ञान कथा :अतीत ,वर्तमान ऑर भविष्य के आयोजन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमें देश के कोने कोने कोने से १०० से ज्यादा ही प्रतिभागियों ने भाग लिया -अकेले दक्षिण भारत से ही २२ प्रतिभागी आए थे .पूरा कार्यक्रम बनारस में संपन्न हुआ .चूंकि विज्ञान कथा मेरे लिए किसी पैशन से कम नही अतः इस विधा के लिए मैं कोई भी वैयक्तिक असुविधा ,असहजता झेलने को तैयार रहता हूँ .तथापि एक आयोजक के रूप में मुझे ऐसे कुछ ऐसे अनुभव हुए हैं जिन्हें आपसे इसलिए साझा करना चाहता हूँ ताकि यदि आप कभी ख़ुद आयोजक बनें तो ध्यान में रखें ऑर यदि कहीं प्रतिभागी बने तो ऑर भी धयान में रखें -एक समर्पित आयोजक जो अपने सभी प्रतिभागियों के रहने खाने पीने का पूरा इंतजाम रखता है वह भी कुछ ऐसी बातों से क्लांत हो जाता है मसलन -
1-ज़रा मैं कुछ देर के लिए एक वाहन चाहता हूँ -सोच रहा हूँ यहाँ आया हूँ तो फलाने से भी मिल आता .काफी दिनों से उनसे मुलाक़ात नही हुयी ।
२-मैं तो आपके ठहराए स्थान पर नहीं रूकूंगा क्योकि यहाँ तो मेरे रिश्तेदार फलां फलां जगह ,अरे वही बरगद के पास वाली गुमटी के पीछे रहते हैं अतः वहां से मुझे लेने- छोड़ने की व्यवस्था कर दें (अगर ऐसी अपरिहार्यता हो तो पहले से ही बोल कर रखें )
३-जल्दी में मैं अपना पावर पाईंट नही बना सका यह लीजिये यह रहा मैटर ज़रा बना के मंगवा दें प्लीज .
४-भाईआप तो जानते हैं कि मैं गिद्ध भोज (बुफे )नही करता -मेरे लिए कहीं अलग से इंतजाम करा दें (पहले से बोल रखें )
५-मैं तो जहाँ निरामिष भोजन बनता है वहां खाना नही खाता -अगर असुविधा न हो तो मेरे और अपनी भाभी के लिए कचौडी गली से पूडी कचौडी ही मंगा दें !
५.बनारस आया और भोले बाबा का दर्शन नही किया तो जीवन ही निस्सार हो जायेगा -भाई दर्शन का इंतजाम हो जाता तो फिर मजा ही आ जाता -तो ख़ुद न चले जाईये भाई साहब ,आख़िर रोका किसने है ।
६-मैं तो बिना गरम पानी के दाढी नही बनाता अभी तक इंतजाम नही हुआ (नहाने की बात जायज है पर यह दाढी वाली बात .....!)
७-पहले तो मैंने सोचा था कि बाम्बे मेल से चला जाउंगा पर अब ज़रा मैं अपनी एक मौसेरे भाई से मिलने भोपाल होकर जाने का सोच रहा हूँ -सेकंड ऐ सी फेयर तो आप दे ही रहे हैं ,चलिए निरस्तीकरण चार्ज मैं दे दूंगा अंब इस रूट से मेरा टिकट कटवा दीजिये /थोडा किराया अधिक लगेगा .
८-मिश्रा जी दरअसल पराड़कर जी का स्मृति दिवस भी बनारस में १६ से है आपका कार्यक्रम १४ को समाप्त हो रहा है कृपा कर दो दिनों तक और मेरे आवासीय और खाने पीने का खर्चा आयोजन मद से कर दें ।
९-आप मिश्रा जी हैं ? अरे साहब ये मेरे चार स्टुडेंट मान ही नही रहे थे आपके कार्यक्रम मे आने के लिए इतना जिद कर बैठे कि तत्काल कोटे से बंगलौर मेल से टिकट कटा कर आज ही सुबह हम लोग आप पर अहसान करने आ गए हैं बताएं कहाँ रुकना है ? क्षमां करेंमैं आपको पूर्व सूचना नही दे सका {बिना कोई पूर्व सूचना के सदल बल धमक आए लोग ! )
१० .मिश्रा जी मैं प्रोफेस्सर यादव हूँ आपके कार्यक्रम की सूचना देर से मिली मैंने आपको मेल किया था आपका कोई जवाब नही मिला और तत्काल टिकट भी नही मिल सका इसलिए किंग फिशर फ्लाईट से आ गया हूँ मैं वेनूयु भी नही जानता -"पर कार्यक्रम तो १४ को ख़त्म हो गया !" नही मुझे तो मालूम है कि यह १४ से शुरू हो रहा है -बहरहाल आप कहाँ रहते हैं ? वही आ जाता हूँ आपके साथ चाय भी पी लूंगा और टी ए तो आप दे ही देंगे मैंने फलाने से बात कर ली है .
कृपा कर आप किसी आयोजन में शरीक हीन जा रहे हों तो ऐसे आत्याचारियों सरीखे व्यवहार न करें न तो मुझ जैसा समर्पित व्यक्ति भी उन्ही आयोजकों की कतार में जा खडा हो जायेगा जो अपने प्रतिभागियों की तरह तरह से दुर्गति करते है और अपमानित करके विदा करते हैं .मुझे एक राहत है कि मैं कोई पेशेवर आयोजक नही हूँ पर यह पोस्ट इसलिए कि लोग पेशेवर प्रतिभागी बनने से भी बाज आयें !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
aap kitney trast rahey..post bataa rahi hai..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबाबा रे ..क्या क्या नखरे हैं :)..लग रहा है आपको खूब अच्छे से आवभगत करनी पड़ी ..
जवाब देंहटाएंगहरी सहानुभूति है आप से।
जवाब देंहटाएंहमें कुछ आयोजन करना पड़ा तो आपको ही आयोजक बना देंगे ! आख़िर इतना कमाल का अनुभव है आपके पास :-) आपकी परेशानी पर बहुत सहानुभूति है पर क्या करें... कहीं गए तो इन बातों का ध्यान रखेंगे.
जवाब देंहटाएंऐसे-ऐसे नखरे होते हैं, कमाल है...कम्बख्तों को अगर मौका मिले तो जो कपडे आप पहनें हो वह भी मांग ले जाये, यह कहते .....जरा पास ही ससुराल है..होकर आता हूँ :)
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और अनुभवी पोस्ट।
अरे बाप रे !! केसे केसे नमुने है , वो भी पढे लिखे,
जवाब देंहटाएंगहन दुर्भाग्य है कि इस चरित्र के भारतीय प्रचुरता में पाये जाते हैं. आत्मसम्मान जैसी किसी चीज से शायद वास्ता ही नहीं और दूसरे की स्थिति का ख्याल ही नहीं.
जवाब देंहटाएंआपका अनुभव पढ़कर क्षोभ हुआ पर आपने पोस्ट लिखकर अच्छा ही किया.
मिश्राजी आपकी परेशान हालत से गहरी सहानुभूति है ! मुझे आपकी इस पोस्ट से ऐसा लगा की ये आयोजन करना भी बेटी का ब्याह करने जैसा ही है ! सब कुछ ऐसा ही लग रहा है ! और ये की आप इसमे अनुभवी हो गए हैं ! तो अब घर में जब भी बेटी की शादी का आयोजन होगा तो आपको पहले याद किया जायेगा ! :) और बेटो की शादी में भी आपको बुलाया जायेगा ताकि आप ढूंढ़ २ कर अपनी खीज उतार सके ! :) आप निष्णांत आयोजन करता हो गए लगते हैं ! आपकी जगह मैं होता तो वहीं से चलता कर देता !
जवाब देंहटाएंआपकी कमी अखर रही थी ! आप आगये अब मजा आयेगा ! आपके पीछे से क्या क्या नही होते होते रह गया ! :)
जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के दसियों वैज्ञानिक आयोजनों में पंजीकरण-पैसा विभाग मेरे जिम्मे रहा है. 50 से लेकर 500 तक की जनता आई. सब पढेलिखे लोग थे. एमएससी से कम तो कोई नहीं था. लेकिन यही व्यवहार वहां पर दिखता था.
जवाब देंहटाएंग्वालियर में होली के समय हमारे बगल के मुहल्ले में लोगों को डुबाने के लिये गोबर की टंकी बनाई जाती थी. इन आयोजनों के दौरान कई बार लगा कि उन छोकरों को बुला कर एक अवसर दे दिया जाये.
आप तो मनसा राणा सांगा हो लिये होंगे इस आयोजन युद्ध में।
जवाब देंहटाएंअरे ताऊ,
जवाब देंहटाएंयह तो बेटी के विवाह से भी काफी बढ़ कर रहा .बेटी का विवाह तो १-२ दिन में निपट जाता है इसमें तो नॉन स्टाप ५ दिन लग गए पर कुल मिला कर मजा आया !
लिख डालिए एक विज्ञान कथा इन अनुभवों पर भी!
जवाब देंहटाएंaacha post kiyaa aapne janaab good going
जवाब देंहटाएंvisit my site shyari,recipes,jokes and much more visit plz
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जवाब देंहटाएंregards
सही लिखा आपने ! असल में सार्वजनिक जीवन में आयोजन कर्ता को, आगंतुक अथिति, बेटी का बाप समझ कर ही चलता है ! हमारी तो नेतागिरी के आयोजनों में मिट्टी पलीत होती ही रहती है ! आपका लेख पढ़ कर तो जिगर के पुराने छाले हरे हो गए ! मैं तो भगवान् से प्रार्थना करता हूँ की कभी इन अथितियों को आयोजक बनाकर मुझे इनका अथिति बनादे ! फ़िर मैं इनके मजे लूंगा , गिन गिन कर ! बहुत जोरदार लेख लगा आपका ! तिवारीसाहब का सलाम आपको !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। वैसे इन्हें प्रिंट कराकर रख लेना चाहिए, जिससे अगले आयोजन में भाग लेने के इच्छुक लोगों को भेजा जा सके।
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, शीर्षक पढ कर मैं तो डर ही गया था कि कहीं मेरा नाम तो नहीं। यह देख कर सुकून मिला कि मेरा नाम वास्तव में नहीं है।
वैसे इन सबके बावजूद कार्यक्रम बहुत अच्छे ढंग से निपट गया, यह खुशी की बात है। एक बार और बधाई स्वीकारें।
आज के दौर में सीमित संसाधनों में इतनी अच्छी राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन करना निश्चित रूप से कठिन कार्य है ,आप ने जितनी उदारता और लगन के साथ इस महायज्ञ को पूरा किया है वह काबिले तारीफ है.जाकिर जी तो उपस्थित थे और उन्होंने सही कहा है - बहुत अच्छे ढंग से निपट गया, यह खुशी की बात है। एक बार और बधाई स्वीकारें।मेरी तरफ से भी .
जवाब देंहटाएं----फिर भी, जुगाड़ तो करना ही पड़ता है ना...!
जवाब देंहटाएंkya naaz aur nakahre hain/thai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट है अरविन्द जी! कई बड़े कार्यक्रमों में स्वयं एक आयोजक होने के नाते आपकी बातों को बहुत अच्छी तरह से समझ पायी मैं पर आपकी ओर से एक पोस्ट अच्छे प्रतिभागियों के लिए भी होनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंइस हेतु एक input मेरी ओर से भी....
सेमिनार में :---
(१)कुछ प्रतिभागी आयोजकों की पूर्वानुमति से अपने रिश्तेदारों के यहाँ ज़रूर ठहरे पर (एक दो बार को छोड़कर) लगभग हर दिन अपने वाहन से कार्य-स्थल पहुंचे और लौटे भी.
(2)कुछ प्रतिभागी, सारे दिन सेमिनार के क्रिया कलापों में निष्ठापूर्वक लगे रहे. उन कई सेशन्स में भी जबकि हॉल में केवल गिने चुने लोग ही थे.
(३)कुछ प्रतिभागियों ने सेमिनार को विज्ञान का यज्ञ समझ कर, यात्रा-फेलोशिप तक नहीं ली और अपने खर्चे से वाराणसी पहुँच कर प्रतिभागिता की.( कृपया भुगतान लिस्ट से confirm कर लें.)
ऐसे प्रतिभागी आपसे एक प्रोत्साहन-पोस्ट की आशा ज़रूर करते हैं अरविन्द जी !!!!!!!
और हाँ, प्रो. राम देव शुक्ल जैसे विद्वानों से मिलने का जो मौक़ा इस सेमिनार ने दिया उसके लिए हार्दिक धन्यवाद.
शेष शुभ,
मीनू खरे
मीनू जी ,मैं आशंकित था की कही यह पोस्ट आपको क्लांत न कर दे -जबकि आपके ही संदर्भ में मैंने कोष्ठक में यह बात स्पष्ट कर दी थी कि आयोजक को पूर्व जानकारी देकर कोई प्रतिभागी कार्यक्रम प्रोटोकाल से विचलन कर सकता है -तो उस पोस्ट के कोई भी अंश आप पर लागू नही है आप के बनारस के यात्रा कार्यक्रम( ईटीनेरैरी ) की मुझे पूरी जानकारी थी -यद्यपि मैं आपको यथोचित अटेंड नही कर इसका मलाल है .जी आपका कहना बिल्कुल सही है -मुझे ९० फीसदी प्रतिभागियों से जो सहयोग और उत्साह की प्रतिभागिता मिली वह अविस्मर्णीय है -मैं अपनी कृतज्ञता शब्दों में बयान नही कर सकता -काश हनुमान जी की उस दिव्य-अलौकिक कला /क्षमता से मैं युक्त होता तो अपना वक्ष उघाड़ कर दिखा देता कि वे सभी एक एक कर वहां प्रतिष्ठित हैं .
जवाब देंहटाएंयह पूरा कार्यक्रम ही आप जैसे स्वयम स्फूर्त और प्रतिभा संपन्न प्रतिभागियों की बदौलत ही अपना मुकाम पा सका .आपके यात्रा व्यय का तो प्रावधान था ही पर आपने -एकमात्र आपने उसे नही लिया -यह तो आपकी सरासर ज्यादती है -आप जानती हैं कि इन उदात्त कारनामों से सरकारी प्रोसीजर में जटिलताएं आती हैं .आपकी पूर्व स्वीकृत और अग्रिम टी ए राशि अभी भी अवशेष है आप अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकती हैं .
ब्लॉग पोस्ट पढने और निश्छल मन से मुझे लिखने के लियेबहुत आभारी हूँ किवां संकोच्ग्रस्त भी !
कल 31/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!