सोमवार, 15 सितंबर 2008

'काम' पर एक काम की पुस्तक !

स्वागत है इस नए अवतार का
विगत दो दिनों मैं आभासी जगत के इतर की दुनियावी जिंदगी में इतना मसरूफ था कि 'टाईमस आफ इंडिया' में अपनी पसंद की एक ख़बर 'थर्टी ईयर्स आन ,ज्वाय आफ सेक्स बैक इन न्यू इनकार्नेशन ' को आपसे लाख शेयर करने के बावजूद ऐसा ना कर सका .और बात आयी गयी हो गयी .मगर जब आज मैं आभासी जगत में फिर वापस आया तो कुछ हटके ने एक झटका लगा ही दिया -उस पुस्तक पर उनकी पोस्ट पहले से मौजूद थी .और फिर मुझसे भी रहा नहीं गया और कुछ आपसे इस मामलें में बतियाना जरूरी हो गया ।
वात्स्यायन के कामसूत्र की कालजयी क्लासिकी की तो कोई सानी ही नही है मगर जिस एक पुस्तक नें मुझे काम पर काम की बातें बताईं वह थी एलेक्स कम्फर्ट द्वारा लिखी गयी यही किताब -जॉय आफ सेक्स .मैंने १९७२ में आयी प्रथम संस्करण वाली इस काम की पुस्तक को १९८२ में ख़रीदी थी और उन दिनों मैं प्राणीशास्त्र से प्रयाग विश्वविद्यालय में डाक्टरेट कर रहा था -डाक्टरेट बोले तो किसी भी जैव अजैव समस्या के तर्क संगत विवेचन का उन दिनों भूत सर पर चढ़ा रहता -वैज्ञानिकों की जगह हमारे लिए देवता तुल्य थी और उसमें भी जीव विज्ञानी अपने धर्मगुरू ही थे .जॉय ऑफ़ सेक्स के लेखक कोई सेक्स विज्ञानी न होकर कीट विज्ञानी थे .अलेक्स कमफर्ट नामक यह -तितली विज्ञानी सेक्स जगत में क्या कर रहा था ?बस जिज्ञासाओं को लग गए पंख और हमने सिविल लाईन्स जाकर कथित भद्र जनों की यह वर्जित पुस्तक खरीद ही तो ली। और आद्योपांत -कामा हलंत फुलस्टाप सब बांच डाला .और इसके लेखक और पुस्तक का मुरीद हो गया .और यह मेरे सीक्रेट शेल्फ को तब से आज तक सुशोभित कर रही है .और जब सुना कि इसका नया संकरण इतने सालों के बाद आ गया है तो लगा कि जैसे वह बीती जवानी सहसा ही लौट आयी है ।यह काम विषयक मामलों की एक प्रमाणिक वैज्ञानिक नजरिये से लिखी पुस्तक है और लेखक ने बड़े परिश्रम से तथ्यों को जुटाया और सचित्र प्रस्तुत किया है .
यह पुस्तक जिसकी मैं जोरदार सिफारिश करता रहा हूँ दरअसल जब आयी थी तब की पीढी के लिए काम विषयक मामलों के स्तरीय ज्ञान की एक बेड रूम बाईबल मान ली गयी थी .छपने की बाद ही इसकी लाखों प्रतियाँ रातो रात बिक गयी थी.अकेले इसी पुस्तक ने लेखक को अरबपति बनादिया था .अब बताया जा रहा है कि इस पुस्तक में काम रसायनों -फेरोमोन आदि की जानकारी देकर इसे अद्यतन कर दिया गया है .क्योंकि उस समय विज्ञान की दुनिया में ये जानकारियाँ नहीं थीं .इसे सूसन क्विल्लिअम जो एक मनोविज्ञानी हैं ने नए संस्करण में ढाला है .इस किताब को अब दम्पतियों के लिए ख़ास तौर पर तैयार किया गया है .पहले यह पुरुषों की ओर ज्यादा उन्मुख थी .जो नए विषय जुड़े हैं उनमें इन्टरनेट पर सेक्स परामर्श ,फोन और चैट सेक्स ,सेक्स दुकानें ,और गर्भावस्था के दौरान रति क्रिया खास हैं.कुछ पहलू हटा दिए गए हैं जिन्हें अब क़ानून की नजर में प्रतिबंधित कर दिया गया है जैसे घोडे की सवारी के दौरान सेक्स ,चलती मोटर सायिकिल पर सेक्स आदि कई देशों में कानूनन प्रतिबंधित है .अब यह २८८ पृष्ठ की भरी पूरी पुस्तक है .
इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह सेक्स के प्रति समकालीन वैश्विक चिंतन का प्रतिनिधित्व करेगी और काम सम्बन्धों की चुकती रूमानियत और आनंदानुभूति को वापस लायेगी
सेक्स आज भी एक टैबबू है -मैंने यह शिद्दत के साथ महसूस किया है कि यौन शिक्षा की जरूरत बच्चों की बजाय बड़ों को अधिक है .मुझे आश्चर्य होता है कि दो चार बच्चों को जनने के बाद भी लोग कई काम की बातें नही जानते .मैं उन लोगों से सहमत नही हूँ जो सेक्स को केवल संतति वहन का जरिया ही मानते हैं .इससे जुडी मनोग्रंथियाँ कितने ही दम्पति के जीवन में विष घोलती आयी है.और हम समाज में उसे छुपाते ढापते आए हैं क्योंकि हमारी गुडी गुडी इमेज पर कही दाग ना लग जाए .यह एक व्यापक विषय है इस पर देर सवेर यहाँ या साईब्लाग पर चर्चा तो होगी -क्योंकि अभी तो मैं जवान हूँ और जॉय ऑफ़ सेक्स के चलते और भी जवान महसूस कर रहा हूँ ।
कोई दिल्ली वाले मित्र मुझे इसे उपहार में देना चाहेंगे /चाहेंगी प्लीज ! वहाँ यह आ चुकी होगी और बनारस तथा ईलाहाबाद या लखनऊं में आने तक मुझे सब्र नहीं है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. डाक्टर साहब आपने जिस तरह आगाज किया था , हम तो समझे थे
    आप पुस्तक पढ़ कर समीक्षा कर रहे हैं और हम बच्चों को गुरु ज्ञान
    दे रहे हैं ! सोचा आप कभी आन लाइन मिलेंगे तो चुप चाप आपसे
    एक प्रति का बोल देंगे ! और आप तो यहाँ ख़ुद दिल्ली वालों की तरफ़
    देख रहे हैं ! :)

    देखिये साहब आपने सही फरमाया है ! " सेक्स आज भी एक टैबबू है
    -मैंने यह शिद्दत के साथ महसूस किया है कि यौन शिक्षा की जरूरत
    बच्चों की बजाय बड़ों को अधिक है"


    सबके सामने सब नाटक करते हैं बाक़ी तो .... !

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  2. कल हि‍न्‍दी के अखबार में पढ़ा था कि‍ इसके नए संस्‍करण को शायद कि‍सी स्‍त्री ने लि‍खा है। ये बात बताना आप भूल गए शायद।

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  3. समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी।
    वैसे हमारे पास पढ़ने का जो बैकलॉग है, उसके चलते यह कोई प्राथमिकता वाली पुस्तक नहीं लगती। रिव्यू पढ़ना अलग बात है।

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  4. बहुत अच्छा,बाकी बाते हमारे ताऊ ने लिख दी हे, उन्हे हमारी तरफ़ से भी मान ले
    धन्यवाद

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  5. समीक्षा का इन्तजार करें क्या??

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  6. अरे जब आप ही इस काम की पुस्तक तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, तब हम क्या सोचें?

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