क्या यह विज्ञान कविता है ? या फिर महज बकवास है ,पढिये और बताईये !
हाँ यह स्वकीया है -
मैं जानता हूँ !
मैं जानता हूँ हो तुम गहन भावों से परिपूर्ण
इक कोना मगर रह गया है अभी भी तुम्हारा
सर्वथा निर्वात और अपूर्ण ,
अंधकूप की तरह खींचे जा रहा है जो मुझे
हर पल छिन और निरंतर अपनी ओर
मैं चाहता हूँ कि अनिभूतियों का कोई कोना
न रहे तुममें अनछुआ ,अतृप्त और अपूर्ण
इसलिए ही शायद खिंचता ही आ रहा हूँ
हर पल अबस सा बस तुम्हारी ओर
भरने को अधीर उस अंधकूप के तम को और
हो जाने को फिर उस पार अक्षत , अविकार
तुम भी अब बेबस लाचार , देखती चुपचाप
नियति के इस मिलन को निरुपाय
यह भी मैं जानता हूँ !
अंधकूप -तारों की वह स्थिति जब वे अपने ही आकर्षण से उस सीमा तक जा पहुंचते हैं कि प्रकाश की कोई किरण तक उनसे बाहर नहीं आ पाती और वे अदृश्य से हो जाते हैं मगरउनकी आकर्षण शक्ति असीम हो उठती है और अपने परिवेश से कुछ भी अपने में खींच कर समा सकती है -कहते है कि उसमें दिक्काल की सारी सीमायें मिट जाती है -समय रुक जाता है -पर वह ऊर्जा का अजस्र स्रोत भी है !
इस विनम्र प्रयास में कवि अपनी प्रेयसी को अंधकूप के रूप में देखता है और सहज ही उसमें समा जाना चाहता है पर निकलने को भी आशान्वित है !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
ब्लैक होल अपने आप में एक पोयटिक कॉन्सेप्ट है। अत: यह कविता ही है। निश्चय ही।
जवाब देंहटाएंसर जी ये तो कविता के साथ साथ गहन जानकारी भी है !
जवाब देंहटाएंवाकई आ. पांडे जी ने ब्लेक होल को काव्यमयी बताकर
इस कविता का आनंद तो बढ़ा ही दिया ! और ब्लेक होल के
बारे में कम से कम मुझे तो एक नया सोच मिला ! मैंने आज
तक ब्लेकहोल को इस सन्दर्भ में देखा ही नही ! बल्कि एक
तरह का डर ही लगता रहा है की पता नही ये कब लील जायेगा ?
नए अंदाज में भी देख कर सोचेंगे ! आपका बहुत धन्यवाद !
बहुत आभार आदरणीय पाण्डेय जी और रामपुरिया जी ,
जवाब देंहटाएंअआपके अनुमोदन से मैं आश्वस्त हुआ कि निश्चय ही यह कविता है .
अब भविष्य में आपको और झेलनी पड़ सकती हैं ! विज्ञान कवितायें और विज्ञान गल्प काव्य
बहुत अच्छे ! मजा आया !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे ! मजा आया !
जवाब देंहटाएंhttp://www.himwant.blogspot.com
विज्ञान और काव्य का यह अदभुत रंग देखा ..बहुत सुंदर और गहन परिभाषित किया आपने इस कविता में इस विषय को
जवाब देंहटाएंमुझे यह पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आई ..
मैं चाहता हूँ कि अनिभूतियों का कोई कोना
न रहे तुममें अनछुआ ,अतृप्त और अपूर्ण
इसलिए ही शायद खिंचता ही आ रहा हूँ
हर पल अबस सा बस तुम्हारी ओर
बहुत गहरी बात कह जाती है यह .... आगे भी आपकी लिखी कविता का इन्तजार रहेगा
बहुत ही सुन्दर कविता ब्लॆक होल पर , ओर यह होल बढता ही जाता हे, दो साल पहले थोडी तसल्ली हुयी थी, लेकिन यह हम सब (पुरी दुनिया ) की गलती से ही तो बना हे.ओर हां यह एक कविता तो हे लेकिन साथ मे एक गहन जानकारी लिये हे, आप इस बारे जरुर लिखे ,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
विज्ञान और काव्य !!!बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंkavitaa to kad kad me rachi basi hai....aapney bahut sundar likha hai...padhney valey pe nirbhar hai..kaisey aatmsaat karta hai panktiyon ko...
जवाब देंहटाएं" it is really a great experience to read a poetry which reflects emotions in human way and also relates scientifically" great experiement "
जवाब देंहटाएंRegards