शनिवार, 20 सितंबर 2008

कविता :अंधकूप से बाहर !

मेरी पहली विज्ञान कविता को आप सुधी मित्रों का अनुमोदन क्या मिला ,मैं अब आपे से ही नही उस अंधकूप से भी बाहर आ गया ,सो लीजिये झेलिये इस दूसरी को भी !
अब हूँ मैं अंधकूप से बाहर


अब हूँ मैं अंधकूप से बाहर
जिसके आकर्षण से आबद्ध
असहाय सा अप्रतिरोध्य ,
खिंचा था सहसा ही उस ओर
उस गहन गुम्फित क्रोड़ में

मगर आश्चर्यों का आश्चर्य
निकल आया हूँ अब उस पार
अप्रतिहत ,बिना हुए अवशेष
उसकी एकात्म दिक्कालिकता
भी न कर सकी मुझे आत्मसात

जाने क्यूं अनुभव करता तथापि
मैं एक नवीन ऊर्जा का संचार
इक पुनर्ननवीं वजूद का सहकार
हर पल ऊर्जित आवेश से लबरेज
मैं आ गया हूँ अब अंधकूप से बाहर



टिप्पणी -
कहते हैं अंधकूप में काल और समय का कोई वजूद ही नहीं होता ....सब कुछ रूका सा , चिरंतन ठहराव लिए -जो कुछ भी उसमें पहुंचा कालातीत हुआ -पर यदि बचा तो .......वह होगा अंधकूप की ही बिना पर अजस्र ऊर्जा से आवेशित -मेरे इस कवि अस्तित्व की ही तरह !

14 टिप्‍पणियां:

  1. जाने क्यूं अनुभव करता तथापि
    मैं एक नवीन ऊर्जा का संचार
    इक पुनर्ननवीं वजूद का सहकार
    हर पल ऊर्जित आवेश से लबरेज
    मैं आ गया हूँ अब अंधकूप से बाहर
    " fantastic expression, reallity of life, it is also a great experience to read this kind of scientific poetry which relates to different aspects of the life."
    Regards

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  2. मगर आश्चर्यों का आश्चर्य
    निकल आया हूँ अब उस पार
    अप्रतिहत ,बिना हुए अवशेष
    उसकी एकात्म दिक्कालिकता
    भी न कर सकी मुझे आत्मसात

    अच्छी रचना है...

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  3. इक पुनर्ननवीं वजूद का सहकार
    हर पल ऊर्जित आवेश से लबरेज
    मैं आ गया हूँ अब अंधकूप से बाहर
    vah bhut sundar. jari rhe.

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  4. मगर आश्चर्यों का आश्चर्य
    निकल आया हूँ अब उस पार
    अप्रतिहत ,बिना हुए अवशेष
    उसकी एकात्म दिक्कालिकता
    भी न कर सकी मुझे आत्मसात

    बहुत गहरी और सुंदर बात लिखी है आपने अरविन्द जी ...मोह से मुक्ति की राह को सरलता से लिख दिया है आपने ..आपक कविता जरुर लिखा करे ...मुझे आपकी पहली कविता ने भी बहुत प्रभावित किया था ..यह भी बहुत पसंद आई ..|

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  5. मगर आश्चर्यों का आश्चर्य
    निकल आया हूँ अब उस पार
    अप्रतिहत ,बिना हुए अवशेष
    उसकी एकात्म दिक्कालिकता
    भी न कर सकी मुझे आत्मसात

    अद्भुत गहरे भाव ! बहुत धन्यवाद !

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  6. बहुत बढिया!

    जाने क्यूं अनुभव करता तथापि
    मैं एक नवीन ऊर्जा का संचार
    इक पुनर्ननवीं वजूद का सहकार
    हर पल ऊर्जित आवेश से लबरेज
    मैं आ गया हूँ अब अंधकूप से बाहर

    जवाब देंहटाएं
  7. गहन भाव-
    उसकी एकात्म दिक्कालिकता
    भी न कर सकी मुझे आत्मसात

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  8. ओह, आप भौतिकी के सिद्धांतों को याद करने को बाध्य कर रहे हैं।
    ट्रेनें हांकते हुये जमाना गुजर गया उनको भूले!

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  9. जाने क्यूं अनुभव करता तथापि
    मैं एक नवीन ऊर्जा का संचार
    इक पुनर्ननवीं वजूद का सहकार
    हर पल ऊर्जित आवेश से लबरेज
    मैं आ गया हूँ अब अंधकूप से बाहर
    बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

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  10. सच मे अपने आप अद्भुत रचना ,
    मगर आश्चर्यों का आश्चर्य
    निकल आया हूँ अब उस पार.....
    धन्यवाद

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  11. क्या बात है? अब तो आप पूरे कवि हो गये। इस सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकारें।

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