झांसी की यादों की एक खिड़की अब पूरी तरह खुल गयी लगती है। यह मेरा एक बड़ा सौभाग्य था कि मुझे यहाँ बहुत अच्छे सीनियर अधिकारी और सहधर्मी मित्र मिले जिनके साथ ने मेरे पूरे जीवन पर एक चिरस्थायी छाप छोड़ा है। दो मित्रों का साथ और बात व्यवहार आज भी बना हुआ है -एक तो आर एन चतुर्वेदी जी जो इस समय चंदौली जनपद में जिला आपूर्ति अधिकारी हैं और दूसरे ऐ के श्रीवास्तवा जी जो खड़गपुर से आई आई टी पोस्ट ग्रेजुएशन करके प्रादेशिक सेवा में वैकल्पिक ऊर्जा विभाग में आ फंसे और इस समय मुख्यालय लखनऊ में पदस्थ हैं। अगर ईमानदारी, सज्जनता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति देखनी हो तो ऐ के श्रीवास्तवा जी से मिलना चाहिए। भाई आर एन चतुर्वेदी तो मित्रों के मित्र हैं -उनके कहकहों में सारी म्लानता सारा क्लेश मिट जाता है। इन दोनों शख्सियतों से अक्सर बात होती है और ऐसा संवाद जुड़ता है जैसे हम जन्म जन्म के साथी हों।
उन्ही दिनों हमारे इमीडियेट सीनियर अधिकारी/ऐ डी एम, पी सी एस सेवा के श्री कृष्णकांत शुक्ल जी थे जो मेरी सेवा के पहले सबसे ईमानदारी पी सी ऐस अधिकारी थे - सादगी और मनुष्यता के एक उदाहरण। मेरे झासी से आते समय श्रीमती शुक्ल जी ने हमें रास्ते का आहार- पाथेय दिया और यह हम आज भी नहीं भूले हैं। उनके बेटे हारित शुक्ल उन दिनों बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में उभर रहे थे मगर बड़ी कृषकाया थी उनकी।मुझे भी लगता कि एक खिलाड़ी के रूप में उनका विकास उनके साथ ज्यादती थी। हारित को मैं बायलोजी के कुछ पाठ पढ़ाता था और इसके लिए वे खुद मेरे सेलेस्टियल रांडिवू यानी आफिसर्स होस्टल के तीसरे तल तक आते थे। मुझे उनके यहाँ जाना नहीं होता था। आज हारित गुजरात में आई ऐ एस हैं!
इन्ही हारित को एक बार एक बी डी ओ साहब ने एक चाकलेट क्या थमा दिया था कि कृष्णकांत सर जी की नाराजगी झेलनी पडी थी और ईमानदारी की सीख भी। उनके घर का अनुशासन कठोर था। कृष्णकांत सर जी मेरा सम्मान करते थे जबकि मैं उनका मातहत था -एक बार मुझे अपने पैतृक गाँव ले गए थे। उन्हें उन दिनों रविवार को टी वी पर आने वाले महाभारत सीरियल का बड़ा शौक था। हम भी उन्ही के यहाँ यह सीरियल देखने बिना नागा पहुँच लेते थे। एक दिन सीरियल शुरू ही हुआ था कि डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट का बुलावा आ पहुंचा - बड़ा धर्म संकट उत्पन्न हो गया। डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट ठहरे दक्षिण भारतीय और सम्भवतः महाभारत से कम प्रभावित -बहरहाल शुक्ल सर जी ने महाभारत को वरीयता दी थी और डी एम साहब का मनोमालिन्य झेलना स्वीकार किया था। आज भी मैं इस निर्णय पर नहीं पहुँच पाया हूँ कि कृष्णकांत सर का निर्णय सही था या नहीं! कारण कि सबते सेवक धर्म कठोरा।
पता नहीं यह परम्परा आज भी है या नहीं मगर उन दिनों जिला परिषद् द्वारा एक बड़ा सालाना उत्सव -विकास प्रदर्शनी और मेला का आयोजन का होता था जिसमें अखिल भारतीय कवि सम्मलेन भी सम्मिलित था। मुझे यानि पहली बार जिला प्रशासन के किसी अधिकारी को कवि सम्मेलन के समन्वय/संयोजन का जिम्मा दे दिया गया -यह मेरे जीवन का एक अनिर्वचनीय और अविस्मरणीय यादगार पल था। स्थानीय पुरायट कवियों ने इसका विरोध किया था मगर मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और इसके आयोजन में इतना श्रम किया जितना आज तक फिर कभी किसी कार्य में नहीं किया हूँ।
कवि सम्मलेन जिसका नामकरण मैंने बासंती काव्य निशा रख रखा था अभूतपूर्व रहा और इसके चलते मैं भारत के कई महान कवियों का स्नेह सानिध्य भी पा सका जो आज भी मेरे मानस पर अंकित है। श्री उर्मिलेश शंखधार ने कवि सम्मलेन का संचालन किया था और कविवर सोम ठाकुर ने उसमें अपनी जादुई आवाज और रस सिक्त काव्य पाठ से चार चाँद लगाया था। कैलाश गौतम जी का प्रवाहपूर्ण काव्यपाठ मैंने पहली बार उसी समय सुना था। अन्य एक से एक कविगण आये थे जो मेरी मधुर स्मृतियों को आज भी झंकृत करते रहते हैं।
इतने बड़े-बड़े कवियों के साथ मंच का संचालन काफी कठिन काम था। वाकई वह दिन यादगार होगा।
जवाब देंहटाएंसाहित्य सरिता में सेवाकाल का नौका विहार.. अच्छे और अविस्मरणीय अनुभव, प्रेरित करने वाले व्यक्तियों का सान्निध्य.. अब और क्या चाहिये एक संतुष्ट सेवा में!!
जवाब देंहटाएंमजा आता है पुराने दिन याद करने में :) सोम ठाकुर तो वही हुये न जिनकी एक रचना आप अपने स्वर में सुनवा चुके हैं?
जवाब देंहटाएंगज़ब की याददाश्त है आपकी.
जवाब देंहटाएंउर्मिलेश जी की याद दिला दी आपने , वे बदायूं के थे !!
जवाब देंहटाएंबहुधा प्रारम्भिक अनुभव जीवन की दिशा निर्धारित कर जाते हैं।
जवाब देंहटाएं"बचपन में सिखाते हैं यही धाम सत्य है
जवाब देंहटाएंयौवन में स्वयं लगे अर्थ-काम सत्य है ।
जब राम चले जाते हैं तन की अयोध्या से
तो लोग बताते हैं राम-नाम सत्य है ।"
कवि- सोम ठाकुर
ऐसी स्मृतियाँ यकीनन सहेजने योग्य है .....
जवाब देंहटाएंअगर ईमानदारी, सज्जनता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति देखनी हो तो ऐ के श्रीवास्तवा जी से मिलना चाहिए। भाई आर एन चतुर्वेदी तो मित्रों के मित्र हैं -उनके कहकहों में सारी म्लानता सारा क्लेश मिट जाता है। इन दोनों शख्सियतों से अक्सर बात होती है और ऐसा संवाद जुड़ता है जैसे हम जन्म जन्म के साथी हों।
जवाब देंहटाएंश्रीमती शुक्ल जी ने हमें रास्ते का आहार- पाथेय दिया और यह हम आज भी नहीं भूले हैं। उनके बेटे हारित शुक्ल उन दिनों बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में उभर रहे थे मगर बड़ी कृषकाया थी उनकी।मुझे भी लगता कि एक खिलाड़ी के रूप में उनका विकास उनके साथ ज्यादती थी। हारित को मैं बायलोजी के कुछ पाठ पढ़ाता था और इसके लिए वे खुद मेरे सेलेस्टियल रांडिवू यानी आफिसर्स होस्टल के तीसरे तल तक आते थे। मुझे उनके यहाँ जाना नहीं होता था। आज हारित गुजरात में आई ऐ एस हैं!
श्री उर्मिलेश शंखधार ने कवि सम्मलेन का संचालन किया था और कविवर सोम ठाकुर ने उसमें अपनी जादुई आवाज और रस सिक्त काव्य पाठ से चार चाँद लगाया था। कैलाश गौतम जी का प्रवाहपूर्ण काव्यपाठ मैंने पहली बार उसी समय सुना था। अन्य एक से एक कविगण आये थे जो मेरी मधुर स्मृतियों को आज भी झंकृत करते रहते हैं।
एक से एक शख्शियत और पहल छिपाए है संस्मरण की कड़ियाँ।
मधुर स्मृतियाँ सबों को सदा झंकृत करती हैं।
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