अभी पिछले दिनों जब मैंने फेसबुक पर एक अपडेट किया तो अनुमान नहीं था कि उसका एक खौफनाक परिणाम सामने आ जाएगा .अविनाश वाचस्पति जी को लगा कि वह अपडेट मैंने उन पर किया है और उन्होंने अपने ब्लाग्स को हमेशा के लिए ब्लाक कर दिया और मात्र फेसबुक पर बने रहने की घोषणा कर डाली। पहले तो आप मेरे उस अपडेट को पढ़ लें और चाहें तो एक नज़र आई टिप्पणियों पर भी डाल लें। वह कमेन्ट यूं था " एक हिन्दी ब्लॉगर ने डिजिटल मीडिया से शोहरत हासिल की और इस टटकी शोहरत को अब प्रिंट मीडिया में कैश कर रहे हैं -मजे की बात यह कि प्रिंट मीडिया में अपने छपे आलेखों को फिर से डिजिटल मीडिया में मित्रों से साझा कर रहे हैं मानो यह धौंस देना चाह रहे हों कि देखो तुम लोग लल्लू ही बने रहे और मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया ....ये उनकी आत्म विस्मृति के दिन हैं -एक दिन लौट के आना यहीं है! वैसे दोस्तों की मेहरबानी से अभी पूरी तौर से यहाँ से गए भी नहीं हैं ! बूझिये कौन ?"
दिनेश द्विवेदी जी ने अपनी प्रतिक्रिया यूं व्यक्त की थी -"ब्लागिंग
में बहुत तरह के लोग आए और आते रहेंगे। बहुत वे भी हैं जो सरोकार और
प्रतिबद्धता का अर्थ नहीं समझते। बहुत लोग हैं जिन के लिए अपना नाम चित्र
अंतर्जाल पर लिखा, अखबार में छपा देखना और मौका लगे तो दो-चार सौ रुपए रोज
बना लेना ही सरोकार और प्रतिबद्धता है। आप तो ब्लागरों की कहते हैं।
अखबारों के कथित कालमों के कलमघिस्सू बनने के लिए बहुत से अच्छे कलमकार
बरबाद हो चुके हैं......जिस
दिन ब्लागिंग का झण्डा एडियाँ उचका उचका कर ऊँचा किया जा रहा था। हम तब भी
जानते थे कि एडियाँ उचकाने वाले जल्दी ही ब्लागिंग से भाग सकते हैं। वैसे
भी वे ब्लागिंग के जरिए किताबों अखबारों की दुनिया में प्रवेश कर रहे थे।
उद्देश्य तो किताबों और अखबारों की दुनिया
ही था। जो लोग अपने ब्लागों के अखबारों में छपे अंश को ऑस्कर की तरह अपने
ही ब्लाग पर लगा रहे थे उन से भी यही अपेक्षा थी और है। क्यों कि उन के
साध्य का साधन ब्लागिंग बन रही थी।"
पता नहीं आप मित्रों में से कौन अभी भी फेसबुक पर आबाद नहीं हुआ है मगर फेसबुक पर आबाद होने वाले ब्लागरों की संख्या काफी ज्यादा हो चुकी है .वे भी जो कभी पानी पी पी कर फेसबुक को कोसते और उसकी सीमाओं को रेखांकित करते रहते थे अब फेसबुक पर विराजमान ही नहीं काफी सक्रिय हो चले हैं और ब्लागिंग को खुद हाशिये पर डाल चुके हैं .तथापि मैं उन्हें दोष नहीं देता क्योकि यह 'मानवीय भूल ' बहुत स्वाभाविक थी और वे इस डिजिटल मीडिया की अन्तर्निहित संभावनाओं को आंक नहीं पाए थे जबकि मैंने इस विषय पर कई बार मित्र ब्लागरों का ध्यान आकर्षित किया था। आज भी मैं यह बल देकर कहता हूँ कि फेसबुक में ब्लागिंग से ज्यादा फीचर्स हैं और यह ब्लागिंग की तुलना में काफी बेहतर है .बहुत ही यूजर फ्रेंडली है . अदने से मोबाईल से एक्सेस किया जा सकता है .भीड़ भाड़ ,पैदल रास्ते ,बस ट्राम ट्रेन ,डायनिंग -लिविंग रूम से टायलेट तक आप फेसबुक पर संवाद कर सकते हैं . ज़ाहिर है यह सबसे तेज संवाद माध्यम बन चुका है . महज तुरंता विचार ही नहीं आप बाकायदा पूरा विचारशील आलेख लिख सकते हैं और गंभीर विचार विमर्श भी यहाँ कर सकते हैं। आसानी से कोई भी फोटो अपडेट कर सकते हैं . वीडियो और पोडकास्ट कर सकते हैं . ब्लॉगर मित्र तो इसे अपने ब्लॉग पोस्ट को भी हाईलायिट करने के लिए काफी पहले से यूज कर रहे हैं .यह पोस्ट भी वहां दिखेगी ही ....
सचमुच फेसबुक की अब ब्लॉग से कोई तुलना ही नहीं रह गयी है .यह अलग बात है कि मुझ जैसे कई ब्लॉगर अभी भी अपने आब्सेसन के चलते ब्लागिंग का दामन थामे हुए हैं -अब जैसे मुझे तो अभी भी किसी के लौट कर आने का शिद्दत से इंतज़ार है -जिससे यहीं पहली मुलाक़ात हुयी थी तो यह मेरे लिए मुक़द्दस जगहं है -मैं कयामत तक उनका यहीं इंतज़ार करूँगा! अब अनूप शुकुल वगैरह यहाँ क्यों टिके हुए हैं यह तो वही जानें अन्यथा अब इस पुराने शुराने माध्यम में रखा ही क्या रह गया है। वे पिछड़े हैं जो ब्लागिंग तक ही सिमटे हैं!
बहरहाल यह हेतु नहीं था इस पोस्ट का ..मैं एक दूसरी बात कहने आया था। दरअसल ब्लागिंग या सोशल नेटवर्क साईट्स -फेसबुक ,ट्विटर आदि सभी वैकल्पिक मीडिया/सोशल मीडिया /नई मीडिया /डिजिटल मीडिया (नाम अनेक काम एक ) की छतरी में आते हैं और मुद्रण माध्यम की तुलना में आधुनिक और बहुआयामी हो चले हैं .मुझे हैरत है कि लोग यहाँ आकर फिर उसी 'मुग़ल कालीन' युग में क्यूंकर लौट रहे हैं . मुद्रण माध्यमों की पहुँच इतनी सीमित हो चली है कि एक शहर के अखबार /रिसाले में क्या छपता है दूसरे शहर वाला तक नहीं जानता . मतलब मुद्रण माध्यम हद दर्जे तक सीमित भौगोलिक क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गए हैं . मजे की बात देखिये जो मुद्रण माध्यम में अपनी समझ के अनुसार कोई बड़ा तीर मार ले रहे हैं वे उसे भी फेसबुक पर डालने से नहीं चूकते! हाँ अगर मुद्रण माध्यम कुछ मानदेय आदि दे रहे हों तो बात कुछ समझ में आती है। मगर इसके लिए ब्लॉग लेखन को तिलांजलि दे दी जाय बात समझ में नहीं आती .हम केवल चंद पैसों के लिए तो यहाँ नहीं आये थे और यह बात मैंने तभी कही थी जब गुजश्ता ब्लागिंग काल के त्रिदेवों में से एक आर्थिक सम्पन्नता के बाद भी ब्लागिंग से कमाई का जरिया ढूंढते नज़र आते थे .
पैसा कमाना एक आनुषंगिक उपलब्धि हो सकती है मगर वह हमारे सामाजिक सरोकार को भला कैसे धता बता सकता है? हम ब्लागिंग या डिजिटल मीडिया में क्या केवल चंद रुपयों की मोह में आये थे? जो अब यहाँ नहीं पूरा हुआ तो मुद्रण माध्यम की ओर वापस लौट लिए?या फिर डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए किया और फिर इसे भुनाने मुद्रण माध्यम की ओर लौट चले जैसा कि दिनेश जी ने कहा ? मुफ्तखोर मुद्रण मीडिया तो अब खुद डिजिटल मीडिया के भरोसे पल रहा है -यहाँ से हमारी सामग्री बिना पूछे पाछे उठाकर छाप रहा है।
मित्रों आह्वान है कि इस डिजिटल मीडिया को छोड़कर कहीं न जाएँ -यह काउंटर प्रोडक्टिव है! आज का और आने वाले कल का मीडिया यही है, यही है!