किसी एक की पीड़ा जब पूरी कायनात की पीड़ा बन जाय ,करोड़ों आँखें नम हो उठें ,लगे कि कोई अपना ही बीच से उठ चला गया हो,जन जन के मन संवेदित हो उठे हों और ह्रदय क्लांत हो तो कैसे कह सकते हैं इंसानियत मर गयी -यही संवेदनशीलता ही तो मनुष्य को पशुओं से पृथक करती है -आज मानवीय संवेदना के उमड़े घहराते समुद्र ने हमें एक अदृश्य बंधन से जोड़ दिया है -जब तक यह मानवीय संवेदना जीवित है मनुष्य को कोई खतरा नहीं है -चंद नराधम कैसे इंसानियत को दागदार कर सकते हैं?
नराधमों के वहशियाना कृत्य के बाद हमने एक इतिहास को आँखों के सामने से गुजरते देखा है। बर्बरता के विरुद्ध जन सैलाब सड़कों पर उतरा -यह दुष्कृत्य मनुष्य की उसी पशुवीय हिंस्र वृत्ति की परिचायक है जो हमारे पशु -अतीत को बयान करती है और रेखांकित करती है कि बिना उचित संस्कार और नैतिकता के आग्रह के कैसे मनुष्य के भेष में आज भी कुछ आदमखोर हमारे साथ ही रह रहे हैं। इसलिए संस्कारयुक्त शिक्षा, आरम्भिक सही सीख,उचित अनुचित का बोध हर बच्चे को दिया जाना हमारी और राज्य की साझा जिम्मेदारी है . हमारे इसी समाज में कितने नर पिशाच रहते आये हैं, इसके हेतु को संस्कृत का कवि पहले ही स्पष्ट कर गया है -
येषाम न विद्या न तपो न दानम ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः
......ते मृत्युलोके भुविभारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति!
(जो विद्या, तप , दान ज्ञान शील और गुण धर्म से रहित है वह इस मृत्युलोक में धरती पर भार स्वरुप है और मनुष्य के रूप में पशु ही है!)
ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती ही गयी है -ये संस्कारित लोग नहीं है -हिंस्र पशु है बस मनुष्य होने का धोखा हैं -इनसे सावधान रहने की जरुरत है!और यही आत्मरक्षा (सेफ्टी फर्स्ट) के प्रति सतर्क रहने की जरुरत है ,घोर जंगल में बिना होशियारी निर्द्वन्द्व विचरण कोई बुद्धिमानी नहीं है -सहज विश्वास ही विश्वासघात के मूल में है . आज बड़े बड़े शहर भी जंगल सरीखे हैं क्योंकि किसी का किसी से कोई वास्ता नहीं है -सब अजनबी हैं-इम्पर्सनल! अजनबीपन पशुओं में कबीलाई मानसिकता ,आक्रामकता को पोषित करता है . टेरिटोरियलिज्म को बढ़ावा देता है . हिंस्र पशुओं का मनुष्य रूपी झुण्ड बेख़ौफ़ बड़े शहरों में विचरण कर रहा है -हमारे बच्चे इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं? घृणित घटना में वे नरभक्षी जिस वाहन में थे वही उनकी चलती फिरती टेरिटरी थी -नहीं लिफ्ट लेना था उन बच्चों को उसमें! माना कि सहज विश्वास और भरोसा मानवीय गुण हैं मगर हमारे पास एक तर्कशील दिमाग भी तो है . बहरहाल आगे हमारे बच्चे सीख लें।
एक बात और -इस घटना से उमड़े जन आक्रोश में क्या पुरुष क्या नारी सभी समवेत रूप से सम्मिलित थे -जे एन यू के बच्चों ने इस बड़े जन आन्दोलन की अगुयायी की -उन्हें सलाम! युवाओं के उस भीड़ के आर्तनाद में लड़कियों के साथ लड़कों का भी स्वर बुलंद था। लडके भी उतने ही मर्माहत थे। इसे नारी पुरुष के चश्में से देखा जाना मनुष्यता का अपमान है . दिवंगत हुयी दामिनी एक लडकी ही नहीं बेटी, बहन ,मित्र थी हम सभी की -घोर कष्ट सभी को है . ये घटनाएँ हमारी समूची संवेदना को झकझोरती हैं . मनुष्य की संवेदना को नारी पुरुष के खांचे में बाटने का मतलब है हम अपने अभियान को कमजोर कर रहे हैं। इन दोषियों को तो कैपिटल दंड मिलेगा ही -आगे ऐसे क़ानून बनने का रास्ता भी दिख रहा है जिससे ऐसी भर्त्सनीय प्रवृत्तियों पर प्रभावी अंकुश लग सके . अपराध की गहनता को देखते हुए उम्र कैद या फांसी का प्रावधान ही समीचीन लगता है-रंगा बिल्ला काण्ड में ऐसा ही हुआ था . रासायनिक बंध्याकरण आदि के प्रस्ताव हास्यास्पद हैं-इनकी सफलता संदिग्ध है -आपराधिक प्रवृत्तियाँ कई बार जीनिक होती हैं -अतः अंग विशेष के निर्मूलन से कोई फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि रिडाईरेक्टड हिंसकता और भी प्रबल हो सकती है -ऐसे अपराधिक वृत्ति वाले समाज में विचरण न करें तभी बेहतर!
भारत में उमड़े जन सैलाब ने समूचे विश्व में साबित कर दिया है कि मानवीयता जिन्दा है और मनुष्य की कौम सर्वोपरि है -आज साझा सरोकार की हमारी यही खासियत हमें आश्वस्त कर रही है और नए वर्ष में नए आशा और विश्वास के साथ हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है -युवाओं निराश न हो -नया वर्ष आप सभी के स्वागत में बाहें पसारे आ पहुंचा है -जीवन भले ही हार गया हो हमारी जिजीविषा बरकरार है -उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।' 'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।'
स्वाभिमान और शौर्य की प्रतिमूर्ति बन गयी दामिनी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं -नया वर्ष हमें जीवन के प्रति नयी आशा और विश्वास से भरे, यही कामना है!