निरामिष ब्लॉग पर मेरी टिप्पणियाँ विस्तार पाती गयीं तो सोचा क्यों न उन्हें संहत तौर पर यहाँ सहेज लिया जाय ..कई दिनों से कुछ लिख नहीं पाया तो मित्रों के उलाहने मिलने लग गए हैं . यह भी अजीब है कि लिखूं तो वे पढ़ने न आयें और न लिखूं तो लिखने को फरमाएं - :-)
मुझे अपना दृष्टिकोण कुछ और स्पष्ट करना होगा .सबसे पहले यह कि मैं किसी भी तरह की ईशनिंदा या धर्म विरोध का पक्षधर नहीं हूँ -हिन्दू हूँ किन्तु अज्ञेयवादी (अग्नास्टिक) या कह सकते हैं नास्तिक हूँ . दुनिया के सभी धर्म मूलतः श्रेष्ठ हैं ,इस्लाम ने भी मानवता को बहुत सी अच्छी सीखें और विचार दिए हैं .किन्तु सभी धर्म समय के अनुसार बहुत सी नासमझी और गलतियां ओढ़ते गए हैं -अपनी चादर मैली करते गए हैं -हिन्दू धर्म में कभी हजारों अश्वों की एक साथ बलि दे दी जाती थी ,वैदिक काल घोर हिंसा से भरा था ...यहाँ तक कि कालांतर तक लोग उस हिंसा को वैसे ही जस्टीफाई(वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ) करते थे -इसलिए ही हिंसा की प्रतिक्रया स्वरुप एक महान धर्म का उदय हुआ -बौद्ध धर्म और इसने भी दुनिया को अहिंसा ,प्रेम और शान्ति का सन्देश दिया -यह एक नास्तिक धर्म है ,मूर्ति पूजा का यह भी विरोध करता है मगर मजे की बात देखिये कि आज इसके अनुयायी विशाल और भव्य मूर्तियाँ बना रहे हैं -बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं ही तालिबानियों ने पहले तोडीं -धर्मों के बीच के ये सारे आपसी झगड़ें मूर्ख मुल्लों और पंडितों ने रचे बनाए हैं ....इसी में से एक कुर्बानी है जो कुछ और नहीं बस वैदिक काल की वीभत्स पशु हिंसा ही है -मुझे तो कभी कभी लगता है कि कालांतर के कुछ तिरस्कृत वैदिक विचार और परम्पराएं ही इस्लाम में प्रश्रय पा गयी हैं ,
आज पूरी दुनिया में सह अस्तित्व की एक पारिस्थितिकीय सोच परिपक्व हो रही है . यह भी हमारी एक मूल सोच का ही आधुनिक प्रस्फुटन है -"सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया........ कामये दुःख तप्तानाम प्राणिनाम आर्त नाशनं" आज पेटा जैसी संस्थायें -(पीपुल फार एथिकल ट्रीटमेंट टू एनिमल्स) पशु हिंसा का प्रबल विरोध करती हैं -और यह उचित भी है -इस धरती पर सभी प्राणियों का सह अस्तित्व है. सामूहिक पशु हिंसा और वह भी बड़े जानवरों की -अब वो जमाना नहीं रहा -शिकार तक प्रतिबंधित हो गए हैं .दुनिया एक पर्यावरणीय संचेतना (कान्शेंस) से गुजर रही है ..हमें क्या हिन्दू क्या मुस्लिम अनुचित प्रथाओं का विरोध करना ही होगा!
बड़े स्तनपोषी हमारे अधिक जैवीय करीबी है .उन्हें मारने में सहजतः एक विकर्षण भाव होना चाहिए मगर धर्म का लफडा देखिये -इस कृत्य का भी उत्सवीकरण शुरू कर दिया ....यह हमारा ही कर्तव्य है कि हम कठमुल्ले या पोंगा पंडित ही न बने रहें बल्कि अपने धर्मों का निरंतर परित्राण करते रहें . हिन्दुओं ने समय के साथ अपने रीति रिवाजों में बहुत से सामयिक परिवर्तन किये हैं -बलि अब मात्र क्षौर कर्म -मुंडन आदि तक सीमित होकर रह गयी है और "बड़ा" भोज केवल उड़द के 'बड़े' तक सिमट चुकी है -अश्वमेध तो अब किताबों में ही हैं .....समय देश और काल का तकाजा है कि मुसलमान दिशा दर्शक अब आगे आयें और अपने यहाँ सामूहिक पशुवेध की परंपरा को बंद करें -ऊंटों की कुर्बानी तो अत्यंत वीभत्स दृश्य उत्पन्न करती है -कुर्बानी का मूल अर्थ जो है उसका अनुसरण क्यों नहीं किया जाय? त्याग और आत्म बलिदान की -बिचारे निरीह पशु क्यों इस सनक के शिकार बनें! .
कुर्बानी का अर्थ तो पशु अत्याचार कतई नहीं हो सकता -यह विकृत सिम्बोलिक परम्परा इतनी पुरानी होती गयी ,आश्चर्य है! समाज की कुरीतियों पर क्या हिंदू क्या मुस्लमान सभी को आगे बढ़कर सकारात्मक कदम उठाना चाहिए -तभी हम एक बेहतर भविष्य और रहने योग्य धरती की कल्पना कर सकते हैं!दुनिया के लगभग सभी धर्मों में एक अपरिहार्य सी बुराई घर कर गयी है -सभी बेहद जड़ हैं -कोई गति नहीं हैं उनमें -बस लकीर का फ़कीर बने हुए हैं जबकि विज्ञान कितना गतिशील है -आज आवश्यकता इस बात की है कि हम विज्ञान के नजरिये को अपना कर अपने धर्मों की कालिख और बुरी परम्पराओं का प्रक्षालन करें -यह मानवता का एक साझा कर्तव्य है -यहाँ धर्मों की श्रेष्ठता की कोई लड़ाई नहीं है -मैं हिन्दू धर्म की अनेक बुराईयों को सुनने और प्रतिकार करने को तैयार हूँ .
मैं देख रहा हूँ कि बस बहस के लिए ही अब बहस हो रही है जो अनर्गल और अनुत्पादक है -ठीक है पेड़ पौधों में भी जान है और मनुष्य में भी जान है -तो क्या मनुष्य भी भोज्य बन जाना चाहिए? कुछ धर्म नरमेध को भी उचित मानते रहे -शुक्र है अब आख़िरी साँसे ले रहे हैं . किसी भी धर्म को अगर अपने श्रेष्ठ मूल्यों को बचाए रखना है तो उसे समय के साथ आ रही बुराईयों को पहचानना और प्रतिकार भी करना होगा .....और यह जितना ही शीघ्र हो उतना ही अच्छा .आज यह कितना दुखद है कि मानवता के बीच की कितनी ही खाइयां धर्मों ने तैयार की है -जहां हम अच्छे मित्र हैं ,सहपाठी हैं ,एक जगह काम करने वाले सहकर्मी हैं ,ब्लॉगर हैं -सब ठीक है मगर जैसे ही हम हिन्दू और मुसलमान होते हैं परले दर्जे के अहमक बन जाते हैं ....आखों के आगे पर्दा पड़ जाता है - अगर धर्मों का यही उत्स है तो ऐसा कोई धर्म भी मुझे स्वीकार नहीं है. आईये हम सभी यहाँ धर्मों की बजाय अपने स्वतंत्र विचारों को प्रस्फुटित होने का मौका दें!
* मुझे वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर का खिताब अता किया है अनूप शुक्ल 'फुरसतिया' जी ने और उतने ही ख़ुलूस और प्यार से मैं उन्हें ब्लॉग व्यंग विधा शिरोमणि की उपाधि से नवाजता हूँ! :-)
* मुझे वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर का खिताब अता किया है अनूप शुक्ल 'फुरसतिया' जी ने और उतने ही ख़ुलूस और प्यार से मैं उन्हें ब्लॉग व्यंग विधा शिरोमणि की उपाधि से नवाजता हूँ! :-)