इन दिनों एक पोस्ट पर जबरदस्त विलाप प्रसंग चल रहा है. भारतीय वांगमय और लोक जीवन में विलाप की बहुत गाथायें हैं. अभी जो चर्चा में हैं वह है विधवा विलाप ....कुछ ज्ञानी जन इस पर अलग अलग प्रकाश डालते भये हैं और अपने ज्ञान का पूरा कटोरा उड़ेल चुके हैं . मैं साहित्य का आदमी नहीं हूँ ,कोई विशिष्ट साहित्यिक बोध भी नहीं है बस सामान्य बोध से काम चला लेता हूँ .इतना जानता हूँ कि शाब्दिक और अलंकारिक अर्थों में फर्क होता है .कई बार उद्धरण सीधे शाब्दिक या अभिधामूलक न होकर लक्षणा या व्यंजना का भाव लिए रहते हैं. शाब्दिक अर्थ में तो पति के दिवंगत होने के बाद नारी का क्रंदन ही विधवा विलाप होता है .मगर अपने लाक्षणिक और व्यंजनात्मक अर्थों में यह एकदम अलग भाव संप्रेषित करता है -वहां कोई जरुरी नहीं है कि नारी का ही विधवा विलाप हो -कोई पुरुष ,कोई राजनीतिक पार्टी भी किसी मुद्दे को लेकर ध्यानाकर्षण के मकसद से विधवा विलाप कर सकती है . यहाँ विधवा विलाप का मतलब ध्यानाकर्षण के लिए अत्यधिक और बहुधा निरर्थक प्रयास से है -जैसे लोग घडियाली आंसू बहाते हैं -उसी तरह विधवा विलाप भी कर सकते हैं! समझ में नहीं आता इस सामान्य सी बात को न समझ कर इन दिनों कुछ ख़ास लोग ब्लॉग जगत में क्यों विधवा विलाप/ किये जा रहे हैं .
एक और विलाप है -अरण्य विलाप ..मतलब चिल्लाते जाईये कोई सुनने वाला नहीं ....बहरे बन जाते हैं सब .....यह असहायता और घोर निराशा का क्रन्दन है -और इसी अर्थ में अक्सर प्रयुक्त होता है -अब कोई जंगल में जाकर थोड़े ही विलाप करता है! :-) इसी तरह विधवा विलाप कह देने का मतलब यही नहीं कि किसी का पति गोलोकवासी हो गया है और विधवा का विलाप हो रहा है . मगर हे मूढ़ बुद्धे बात कहां की कहाँ पहुंचा दी गयी और गोल जुटा कर विधवा विलाप को ही चरितार्थ कर दिया गया . एक और शब्द युग्म है रति विलाप -जब शंकर जी ने कामदेव को भस्म किया था तो उसकी पत्नी ने बहुत ही भयावह क्रंदन -रोना पीटना आरम्भ किया था -शंकर भी सुन निरीह -असहाय हो गए और कामदेव को सर्वव्यापी मगर अनंग बना दिया ......रति विलाप का भी लाक्षणिक प्रयोग साहित्य में ख़ास मामलों में होता आया है .
एक विलाप सीता का भी था जब रावण उन्हें जबरदस्ती लेकर भाग चला था -ज्यों विलपति कुररी की नाईं -जिसने भी कुररी पक्षी (टर्न ) का चिल्लाना सुना होगा वह अंदाज लगा सकता है कि सीता का वह असहाय क्रंदन कैसा रहा होगा? और फिर तो सुलोचना मंदोदरी विलाप भी हैं ..हे अब कोई मुझ पर यह न आरोपण कर दे कि मैं अमुक अमुक और अमुक को यह दर्जा दे रहा हूँ ..मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा हूँ -बड़े सात्विक विचार से विलाप साहित्य का अनुशीलन करना ही यहाँ मेरा ध्येय है ....हाँ आप को कोई और विलाप की श्रेणी पता हो तो आप भी विलाप साहित्य की श्री वृद्धि कर सकते हैं .साहित्यिक चर्चा और सत्संग से कैसा परहेज भाई? स्वयं भगवान् कृष्ण ने गीता में कह रखा है -वादः प्रवदताम अहम् ...मैं तत्व निर्णय के लिए परस्पर विवाद करने वालों द्वारा किये जाने वाला वाद हूँ! अर्थात उन्हें भी वाद बहुत प्रिय हैं और कहा भी गया है कि वादे वादे जायते तत्वबोधः....क्या ब्लॉग जगत के नारीवादियों की वाद प्रियता शून्य हो चली है?
अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंबात विधवा विलाप की नहीं थी
जिस शब्द पर आपत्ति हैं वो हैं "रंडापा टॉइप स्यापा "
उसको बजाये हटाने के मुद्दा मोड़ कर विधवा विलाप कर दिया हैं
क्या "रंडापा" शब्द हिंदी का हैं और हैं तो इस का प्रयोग आम भाषा में किस लिये किया जाता हैं
क्या "रांड " और "विधवा " शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं
रचना जी की टिप्पणी उचित है
जवाब देंहटाएंShastri JC Philip Says:
जवाब देंहटाएंJuly 30th, 2011 at 7:50 pm
समस्या यह है अरविंद जी कि रांड और रंडी दोनो के ही अर्थ अलगअलग इलाकों में अलग है. मेरे इलाके (ग्वालियर) में रांड और छिनाल का मतलब लगभग एक जैसा है जबकि वहां रंडी शब्द हिजडे के लिये प्रयुक्त होता है. खैरे मेरे आलेख द्वारा यह स्पष्ट हो गया है कि स्लट-वॉक बला है क्या!
http://sarathi.info/archives/2685
जवाब देंहटाएं2012/9/19 arvind mishra
Rachana ji,Rural women are very quarrelsome and often indulge in what
is called 'Radahu Putahu'-they often wish opponent women to become
'Raand' i.e. Widow-Vidhwa!
अरविन्द जी
मेल ना देकर ब्लॉग पर ही बात हो
गाँव में स्त्री को क्या कहा जाता हैं , कौन सी स्त्री किस स्त्री को क्या कह कर बात करती हैं मुद्दा ना ये हैं ना था
मुद्दा हैं की क्या जिस कमेन्ट में " रंडापा टॉइप स्यापा " शब्द क्या हिंदी का शब्द हैं और अगर ये हैं तो क्या ये विधवा का पर्याय वाची हैं और क्या ये शब्द गाली नहीं माना जाता हैं आम भाषा में .
और जो आप कह रहे हैं की गाव में वो कामना करती हैं की दूसरी रांड हो जाए यानी विधवा हो जाए तो वही आप ऊपर खुद ही लिख रहे हैं @ इसी तरह विधवा विलाप कह देने का मतलब यही नहीं कि किसी का पति गोलोकवासी हो गया है और विधवा का विलाप हो रहा है .
जब तक पति मरता नहीं हैं क़ोई विधवा नहीं होता
एक बात तो ये है, जो रचना जी ने कही कि वहाँ 'विधवा' नहीं 'रांड' शब्द का प्रयोग हुआ था.
जवाब देंहटाएंऔर दूसरी बात ये है कि जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य और सुशिक्षित होता जाता है, वैसे-वैसे उसकी शब्दावली बदलती जाती है. एक सभ्य समाज में वे शब्द या अपशब्द स्वीकार्य नहीं होते, जो ग्राम्य-समाज में होते हैं. जहाँ तक मुझे मालूम है, आप स्वयं 'भाषा की शिष्टता' को पर्याप्त महत्त्व देते हैं. आज के युग में बहुत से ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता, जिन्हें आज से दो या तीन दशक पहले किया जाता था क्योंकि जिन तबकों के लिए उन शब्दों का प्रयोग किया जाता था, वे अपेक्षित रूप से शक्त ना होने के कारण उन्हें सहन कर लेते थे और जब से उन्हें राजनीतिक शक्ति प्राप्त हुयी है, वे उसका विरोध करने लगे हैं.
आप ये कह रहे हैं कि उक्त प्रसंग में लोग शब्द के अर्थ को ना जानकर व्यर्थ विवाद कर रहे हैं, तो मैं ये कह रही हूँ कि प्रतिपक्ष भी भावनाओं को ना समझकर शब्द मात्र पर ज़ोर देकर कुतर्क कर रहा है. 'विधवा-विलाप' शब्द, यदि एक पुरुष के लिए प्रयुक्त होता है, तो उसे व्यंग्य माना जा सकता है, लेकिन यदि यही शब्द एक महिला के लिए प्रयुक्त होता है, तो आपत्तिजनक है, यदि वह महिला विवाहित है, तब तो यह अपशब्द ही हुआ.
जब स्त्रियाँ बहुत अधिक पढ़ी-लिखीं नहीं थी, तब साहित्य में भी ऐसे बहुत से शब्द प्रयुक्त होते थे, लेकिन पढ़ी-लिखी और जागरूक महिलाओं ने जब विरोध शुरू किया तो संवेदनशील लोगों ने उन सब्दों का प्रयोग बंद कर दिया.
हाँ, कुछ लोग जबरन ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, और दूसरों को अपमानित करने के लिए ही करते हैं, तो मैं उन्हें असंवेदनशील कहूँगी.
हे भगवान क्यूं नही ऐसे लेखों और शब्दों को अनदेखा किया जाता ।
जवाब देंहटाएंअरविंद जी आप ने कभी सोचा है कि हमारे यहां गालियां या निगेटिव शब्द सिर्फ स्त्रीवाचक क्यूं होते हैं ?
हमारी यह सोच आज भी क्यूं नही बदलती ।
@आशा जोगेलकर जी
जवाब देंहटाएंहमारे यहां गालियां या निगेटिव शब्द सिर्फ स्त्रीवाचक क्यूं होते हैं ?
क्या गालियाँ सचमुच 'सिर्फ' स्त्रीवाचक होती हैं ?
मुझे तो नहीं लगता! और भले ही ज्यादातर में महिला सीधी तौर पर संबोधित हो प्रभाव तो पुरुष को भी समेटता है!
माँ बहन की गाली लक्षित भले ही कहीं हो हत करती पुरुष को ही है .......
और ज्यादातर गालियाँ भी लाक्षणिक होती है !
लम्पट कमीना पाजी हरामी कुत्ता लंठ बकलोल ये तो बिल्कुल शिष्ट गालियाँ हैं और अश्लील गालियाँ यहाँ मैं देना नहीं चाहता
मैं केवल इस बात का प्रतिवाद कर रहा हूँ कि गालियाँ सिर्फ स्त्रीवाचक होती हैं !
रचना जी,
जवाब देंहटाएंकल पी सी पर न होने से मोबाईल से यहाँ टिप्पणी नहीं हो पा रही थी तो एक आपको मेल पर भेज दी -आपने याहन प्रकाशित किया -शुक्रिया !
ग्राम्य जीवन में मैंने प्रायः घोर झगडालू औरतों को देखा है -और लगता है यह उनका प्रिय शगल है और समय काटने का एक बेहतर जरिया...
अब यह नारियों की मूल प्रवृत्ति है ऐसा मैं नहीं कह सकता -अध्ययन का अभाव है!
गावों के गलचौर को प्रायः "रणहू पुतहू" कहते हैं. यहाँ भी रांड का अर्थ विधवा होने से ही है .....कोई महिला सुबह जिसे रांड होने की आप्त कामना करती है शाम ढलते ढलते उसी की दीदी बहिनी भौजी कहकर खुशामद में भी लग जाती है .... वे इस ब्लॉग जगत से ज्यादा सहिष्णु ,उदार हृदया हैं .....वहां गाली एक संस्कृति का हिस्सा है!
रांड शब्द से रंडापा है -मतलब विधवापन जिसमें विधवा विलाप भी शामिल है !
संतोष त्रिवेदी ने रंडापा स्यापा का प्रयोग किया -भावावेश में ही किया मगर शाब्दिक अर्थ में नहीं भाव-अर्थ में, श्लेषार्थ में! तो इसे लेकर यहाँ इतना बवंडर मनाया जाना ठीक नहीं लगता -आपने तो मुझे इतना कुछ ज्यादा आपत्तिजनक कह डाला है अब तक कि उसका विस्तार करूं तो बात बहुत लम्बी हो जायेगी -चरित्र तक पर भी उंगली उठा दी गयी है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है -मगर मैं बस मुस्कुरा कर या तो उपेक्षा कर देता हूँ या फिर एक पोस्ट लिखकर जनता की अदालत में ले जाता हूँ!
मुझे लगता है हमें सहिष्णुता से रहने की आदत डालनी होगी -अब तक कौन कैसा है सब जानने लगे हैं -अब परसोना का कोई और प्रोजेक्शन मायने नहीं रखता -सबमें गुण दुर्गुण है -हम गुणों को ज्यादा तवज्जो दें यही शायद ठीक है !
बहरहाल यह पोस्ट केवल विलाप साहित्य पर केन्द्रित थी मगर विषयांतर हो गया है !
बाई शब्द, मराठी में साभ्रांत महिलाओं के लिए इस्तेमाल होता है और यही लक्षणा में उत्तरप्रदेश में बाई/बाईजी अलग अर्थ दे देता है, अधिकतर हिंदी पट्टी में आजकल बाई मतलब मेट-काम वाली बाई से होता है, जैसे भैया, उत्तरप्रदेश वालों के लिए या दूध वाले भैया के लिए रूढ़ हो रहा है. सेठ का आशय कुछ क्षेत्रों में शोषक के लिए और अपमानजनक अर्थ में प्रयुक्त होता है.
जवाब देंहटाएंथोड़ी कसरत-कवायद के लिए अच्छी चर्चा.
गुरूजी, आपने उचित किया कि विधवा-विलाप की विशद व्याख्या कर दी .
जवाब देंहटाएंप्रवीण शाह जी के यहाँ जिस कहावत या शब्द-युग्म का प्रयोग मैंने किया था वह ठेठ देसी लहजे में था और उसके अर्थ को वहाँ फ़िर से चरितार्थ करते हुए गोलबंदी कर,छाती पीट-पीट कर हुजूम बनाकर वैसा भाव प्रस्तुत किया गया जैसा मैं संकेत देना चाहता था.
मेरे कहे हुए को नारीवाद से जोड़ दिया गया,जबकि मैंने अपने कथन में 'कुछ' शब्द का प्रयोग किया था. संविधान,नारी व पुरुषों के व्यक्तिगत जीवन को लेकर लगातार की जा रही टिप्पणियों पर तथाकथित नारीवादी और उदारवादी लोग आँख मूँद लेते हैं.वे अपने यहाँ आलोचना से बचने के लए ताले भी लगा देते हैं,ऐसे में हमसे मीठी बात की अपेक्षा रखना क्या सही है ?
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.हमारा कहा हुआ शब्द हमारा ईजाद किया हुआ नहीं है,पर कुछ लोगों की ऐसी दुष्प्रवृत्तियों की वज़ह से यह बोलचाल के रूप में खूब प्रचलित है.
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दूसरों के यहाँ ज्ञान बघारने वाले अपने इतिहास को भी देख लें,उनके द्वारा कही गई स्त्री-पुरुष के आपसी संबंधों के बारे में अभद्र और अशालीन टिप्पणियाँ संरक्षित हैं,लोग भूले नहीं हैं !
...बहरहाल स्यापे का ताज़ा उदाहरण प्रवीण शाह जी की पोस्ट है,बहुत संभव है कि यहाँ भी शुरू हो जाय !
मुक्ति: "सब्दों" -यह क्या है? आगे से ऐसी भूल आपसे नहीं होनी चाहिए!
जवाब देंहटाएंखैर आप तो केवल अभिधा की बातें ही समझती हैं,जैसा कि आपही अक्सर कहती हैं -यह आपकी अपनी सीमा है -
क्या आप सचमुच ऐसा समझती हैं कि प्रश्नगत संदर्भ में रानापा स्यापा शाब्दिक अर्थ में प्रयुक्त हुआ था ?
और वह तब भी अगला चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि उसकी ऐसी मंशा नहीं थी ..
धन्य हो आप भी -अच्छा बहनापा निभा रही हैं :-)
अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंमेरा मूल प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं
क्या रंडवा शब्द विधवा शब्द का पर्याय वाची हैं
आप बार बार जो ये गाँव की औरतो के संबोधनों की बात कर रहे हैं इस का क्या तात्पर्य हैं ? क्या आप कहना चाह रहे हैं की ये "औरतो की बाते हैं " और इस लिये इस को "रंडवा टाइप स्यापा " कह कर मुस्कुराना उचित हैं कुछ वैसे ही जैसे सास बहू या पड़ोसन की लड़ाई में लोग कहते हैं "औरतो के बीच की बात हैं "
मुद्दा क्या हैं अरविन्द जी वो देखे हम गाँव या देहात की चौपाल पर नहीं बैठे हैं , हम उस से बहुत आगे इन्टरनेट पर विमर्श कर रहे हैं क्या इस विमर्श को रंडवा - टाइप स्यापा आप खुद कहना चाहते हैं
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मुझे लगता है हमें सहिष्णुता से रहने की आदत डालनी होगी -अब तक कौन कैसा है सब जानने लगे हैं -अब परसोना का कोई और प्रोजेक्शन मायने नहीं रखता -सबमें गुण दुर्गुण है -हम गुणों को ज्यादा तवज्जो दें यही शायद ठीक है !
बहरहाल यह पोस्ट केवल विलाप साहित्य पर केन्द्रित थी मगर विषयांतर हो गया है !-------
अगर ये पोस्ट विलाप साहित्य से सम्बंधित थी तो प्रवीण शाह की पोस्ट का लिंक ना होता और उसके अलावा हेअडिंग भी ये ना होती
एक विषय पर बात हो रही थी , आप ने भी की पर लिंक दिया और हेअडिंग भी दी लेकिन रंडापा - टाइप स्यापा को सौजन्य बना कर विधवा विलाप कर दिया और जो मूल आपत्ति थी उसको "क्या ब्लॉग जगत के नारी वादियों की वाद प्रियता शून्य हो चली है?"" कह कर आपत्ति दर्ज करने वालो से प्रश्न किया . प्रश्न किया तो उत्तर की अपेक्षा भी होंगी इस लिये क्युकी सबसे पहले आपत्ति मैने की जवाब भी मैने दिया और घूमी हुई पोस्ट को सीधा सरल कर दिया .
सहिष्णुता का पाठ एक तरफ़ा नहीं हो सकता हैं . आज कल तो परिवार टूटते हैं और लोग कहते हैं औरतो में अब उतनी सहिष्णुता नहीं रह गयी हैं
क्या करना हैं सहिष्णुता का जब वो केवल किसी एक के जिम्मे हो .
मूल प्रश्न का उत्तर दे आप से आग्रह हैं जो मेरा पहला कमेन्ट हैं
@रचना जी ,
जवाब देंहटाएंबता तो दिया जितना बता सकता था .
रांड मतलब विधवा और रंडापा मतलब विधवापन (विलाप समाहित)
मगर इंगित स्थान पर इसे फिगरेटिव सेन्स में ,श्लेषार्थ में प्रयुक्त किया गया !
संदर्भित लिंक और यहाँ आए कमेंट नहीं पढ़ा। विलाप पर लिखा यह आलेख रोचक लगा। फुर्सत में संदर्भ,कमेंट सहित बांचने का प्रयास करूँगा।
जवाब देंहटाएंफिगरेटिव इसको हिंदी में क्या कहते हैं
जवाब देंहटाएं@देवेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंमुझे पता है आप मान सरोवर के हंस हैं -मगर आपकी प्रेरणा से कुछ वनमुर्गे भी हंस होने की राह चल पड़े हैं :-)
@फिगरेटिव बोले तो प्रतीकात्मक लाक्षणिक रूप से !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
देव [...;)],
संतोष त्रिवेदी जी ने कहा था...
"...कुछ लोग नारीवादी लेखन के नाम पर महज रंडापा टॉइप स्यापा करते हैं.अपन तो ऐसों से बहुत दूर हैं ।"
'रंडापा' का अर्थ है 'वैधव्य' यानी Widowhood देखें यहाँ पर...
http://dsal.uchicago.edu/cgi-bin/philologic/contextualize.pl?p.4.platts.1504682
और स्यापा यानी विलाप...
यानी 'रंडापा टाईप स्यापा' माने विधवा विलाप... अब अगर संतोष त्रिवेदी जी यह कह रहे हैं कि ' कुछ लोग नारीवादी लेखन के नाम पर महज 'विधवा विलाप' करते हैं। और 'विधवा विलाप' एक मान्य-प्रचलित शब्द युग्म है, देखिये यहाँ...
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6110772/
http://dalitrefugees.blogspot.in/2010/07/blog-post_19.html
तो मैं उनकी इस टीप में कुछ गलत नहीं मानता और किसी में कुछ भी प्रलाप करने या मेरे प्रति दुष्प्रचार करने से भी मेरा उनकी टीप को न हटाने का निर्णय नहीं बदलेगा...
लिखा जा रहा है...
'क्युकी ये जो बार बार नारी को "उसका सही स्थान दिखाते हैं " किस कोख से आये हैं भूल जाते हैं'
मुद्दे को भुला यह प्रलाप क्या उचित है... शब्दों में थोड़ा हेर फेर कर मैं भी लिख सकता हूँ...
'क्युकी ये जो बार बार पुरूष को 'उसका सही स्थान दिखाते हैं' किसी पु्रूष के कारण ही किसी की कोख में आये हैं भूल जाते हैं' और इसी तरह के दो चार और डायलॉग शामिल कर ब्लॉगवुड के पुरूषों को लामबंद करती पोस्ट भी बना सकता हूँ... पर मैं यह करूँगा नहीं... क्योंकि मेरा यह कृत्य भी विधवा विलाप ही कहलायेगा...
...
""'क्युकी ये जो बार बार पुरूष को 'उसका सही स्थान दिखाते हैं' किसी पु्रूष के कारण ही किसी की कोख में आये हैं भूल जाते हैं' और इसी तरह के दो चार और डायलॉग शामिल कर ब्लॉगवुड के पुरूषों को लामबंद करती पोस्ट भी बना सकता हूँ... पर मैं यह करूँगा नहीं... क्योंकि मेरा यह कृत्य भी विधवा विलाप ही कहलायेगा...""
जवाब देंहटाएंHats off! You rock!
प्रवीण शाह और रचना के ही व्यक्ति हैं अलग अलग नाम से ब्लॉग लिखते हैं और ये बात आप खुद भी जानते हैं सब अटेंशन सीकर हैं
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंये लोग अपने कार्य के प्रति इतने समर्पित होते हैं कि हर बार पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त कर देते हैं ।
एक खबर यह भी है कि जील और रचना दोनों एक हैं !
जवाब देंहटाएंताजा खबर यह भी है कि दोनों में से कोई नहीं रही।
हटाएंधन्य हुआ ||
जवाब देंहटाएंबढ़िया घटिया पर बहस, बढ़िया जाए हार |
घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार |
छाती रहा उभार, दूर की लाया कौड़ी |
करे सटीक प्रहार, दलीले भौड़ी भौड़ी |
तर्कशास्त्र की जीत, हारता मूर्ख गड़रिया |
बढ़िया बढ़िया किन्तु, तर्क से हारे बढ़िया ||
बहुत बढ़िया बेहतरीन चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंआभार .
नारी ब्लौग से यहाँ आया तो ...
जवाब देंहटाएंकाम की बात जाने दें, उसे तब करेंगे जब फालतू के काम निपट जावेंगे.
फालतू की तिकड़म यह है कि अरविन्द मिश्र और जील एक नहीं हैं, कभी एक हो नहीं पाए आगे हो जाएँ पता नहीं.
परबीन साह , जील और रचना कल साँय तक अलग विलग देखे गए हैं. रात में एक हो गए हों तो अपुन को पता नक्को रे बाबा .
बेनामी का जवाब अनामी द्वारा .
हाँ इतना जरुर है के राजन ही जील है. जिस ब्लौग पर जील की जन्म कुण्डली उधेड़ कर डाल दी जाती है, उस पोस्ट पर राजन बनकर जील आती है और पोस्ट मिटाने के लिए अनुनय विनय करती है. ईमेल भी करती है.
जवाब देंहटाएंइसके चक्कर में आकर पोस्ट मिटाने वाले एक बन्दे को बाद में पता चला के वह छला गया .
धोखा खा कर वह ब्लौग जगत से ही चला गया.
नारी के छल की घटनाएं इतिहास मात्र नहीं है ...
देखा न ,
एक और फालतू फंड की बात पर सहित उड़ा दी .
@ हम गाँव या देहात की चौपाल पर नहीं बैठे हैं , हम उस से बहुत आगे इन्टरनेट पर विमर्श कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंएलीटनेस के नाम से नाक भौं सिकोंड़ती महिला यहां श्रेष्ठता सिखाने चली है. हुंह.
और सिखाये भी क्यों नहीं, एक वही तो समझदार हैं बाकी लोग तो मूर्ख हैं न
जानबूझकर बिना किसी मुद्दे को मुद्दा बनाना कोई इस महिला से सीखे, सीखे कि कैसे तिल का ताड़ बनाया जाता है और फिर उस ताड़ पर चढ़कर बिना ताड़ी पिये ही मदांध हो आवाज लगाई जाती है-
"देखो उसने ये कहा, देखो उसने वो कहा, अरे तुम्हारी आंखे फूट गई क्या, मैं इतनी उंचाई पर क्यों चढ़ी हूं, तुम्हारे लिये ही, मुझे यहां ताड़ के पेड़ से सबकुछ साफ साफ दिख रहा है, उसने ये कहा, उसने वो कहा, तुम लोगों को क्यों नहीं दिख रहा, मैं तुम्हारे लिये ही उंचाई पर चढ़ी हूं"
अरविंद जी, आपकी एक पंक्ति से मेरी असहमति है - "यहाँ विधवा विलाप का मतलब ध्यानाकर्षण के लिए अत्यधिक और बहुधा निरर्थक प्रयास से है"। विधवा विलाप का अर्थ अत्यधिक रोना हो सकता है, परंतु ध्यानाकर्षण के लिए या निरर्थक प्रयास नहीं क्योंकि आप यह तो मानेंगे कि इस लाक्षणिक अर्थ का स्रोत तो उसका शाब्दिक अर्थ ही है, तो जिस समाज में स्त्री को पूर्णत: पति पर निर्भर बना दिया जाता था और उसकी मृत्यु पश्चात उससे जीने के सामान्य अधिकार भी छीन लिए जाते थे, उस समाज में पति की मृत्यु के बाद पत्नी का विलाप सिर्फ ध्यानाकर्षण हेतु या निरर्थक प्रयास नहीं हो सकता। उसे पति से प्रेम हो या नहीं, वह अपने भविष्य को अनिश्चित जानकर विलाप करती है या कहें, थी। तो कारण जो भी हो, उसका विलाप हृदय से होता था। इसी कारण अत्यधिक शिकायत करने को विधवा विलाप भी कह दिया जाता है, जो सही शब्द भले हो, लेकिन स्त्रियों को डाउनग्रेड करने वाला शब्द है और पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता दर्शाता है। .... कृपया सिर्फ इस स्पष्टीकरण के लिए मुझे नारीवादी की श्रेणी में मत रख दीजिएगा क्योंकि आजकल ब्लॉग जगत में इस प्रकार का चलन है कि किसी चीज पर आपत्ति उठाने पर उसे वाद से जोड़ दिया जाता है।
जवाब देंहटाएंविधवा विलाप का सटीक अर्थ प्रतुल वशिष्ठ जी ने प्रवीण शाह जी के ब्लॉग पर दिया है -
जवाब देंहटाएं'संवेदना को झकझोर देने वाला विलाप' .. इतना मार्मिक कि कठोर ह्रदय भी पिघल जाए.
हम्म....
जवाब देंहटाएंसंदर्भ पोस्ट पढ़ा। उस पर आये कमेंट पढ़ते-पढ़ते थक/खीझ गया। न पढ़ता तो अच्छा था। एक वाहियात पोस्ट जिसे पढ़ा जाना भी जरूरी न था पढ़कर विरोध के नाम पर संदर्भ सहित एक पोस्ट बना दिया गया! राजनैतिक विरोध छोड़ दीजिए तो एक महिला के रूप में सोनिया जी को लेकर इतने भद्दे वाक्यों का प्रयोग घोर निंदनीय है। जब पोस्ट बना दी गई तो वही होना था जो हुआ। बुरे काम का बुरा नतीजा।
कमेंट भी गंदे आने शुरू हो गये। संतोष जी के मन में चाहे जो हो लेकिन शब्द तो अपना अर्थ कहेंगे ही। शब्दों के अर्थ लेखक के हृदय के मनोभावों को पढ़कर नहीं लगाये जाते। वह भी तब जब पहले से ही पूर्वाग्रह विद्यमान हो। रचना जी का विरोध जायज है। रण्डापा टॉइप स्यापा.. विधवा विलाप ही सही। आम बोलचाल की भाषा में किसी को(पुरूष को भी) आद्र होकर रोते देख कहा जाता है लेकिन जब यह किसी महिला के लिए कहा जाय तो अर्थ वही नहीं रह जाता जिसकी व्याख्या आपने बड़ी कुशलता से की है..आगे बढ़ जाता है। किसी सधवा महिला (विधवा के लिए भी क्यों न हो!)ऐसे शब्दों का सभ्य समाज में जायज या अच्छा नहीं ठहराया जा सकता।
अब लगता है यह कमेंट लिखकर मैं अपना अहित कर रहा हूँ। बहुत से मित्रों को एक साथ नाराज! लेकिन आपके पोस्ट को पढ़कर रहा नहीं गया। फसति फसत: फसंति...एक के बाद एक उलझता ही चला गया। खुदा खैर करे... :)
थोड़ा बहुत विवाद तो होते रहना चाहिये...जीवन्तता बनी रहती है।
जवाब देंहटाएं@देवेन्द्र जी ,
जवाब देंहटाएंअभी ब्लागिंग के आपके रोमांस के दिन हैं -ऐसी टिप्पणी आपकी बनती है! :-)
@दीपिका रानी जी ,
जवाब देंहटाएंफिर विधवा विलाप और रति विलाप का अंतर क्या रह जाएगा ?
रति विलाप ह्रदय को कम्पित कर देने वाला विलाप है मगर विधवा विलाप में कुछ स्टंट की भी इन्गिति है बाकी तो प्रतुल वशिष्ठ जी भाषा और व्याकरण के धनी हैं -उनकी व्याख्या का खंडन करने की मेरी योग्यता नहीं है !
देवेन्द्र जी,हर संवेदनशील व्यक्ति को ऐसे शब्द कचोटेंगे पर यह भी महत्वपूर्ण है कि यह सब असामान्य परिस्थिति व दुश्प्रवृत्तियों के खिलाफ़ लिखा गया है.
जवाब देंहटाएं..आपको अफसोस करने की ज़रूरत नहीं है और न ही मुझे क्योंकि अकसर ऐसा नहीं लिखता हूँ.जिनके कहे को आप सही ठहरा रहे हैं उनकी सारी कारगुज़ारियाँ आपको मेल कर दूँगा ताकि आपका भरम दूर हो सके ।
टाइपिंग की भूल से छपे एक शब्द को लेकर आपने मेरी पूरी टिप्पणी का ही रुख दूसरी ओर मोड दिया. आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं संस्कृत काव्यशास्त्र की विद्यार्थी रही हूँ और मुझे सिर्फ अभिधा, लक्षणा और व्यंजना ही नहीं, तात्पर्या शक्ति के विषय में अच्छा ज्ञान है और मैं इन सभी प्रकार के अर्थों को जानती हूँ. हाँ, मुझे बात को घुमा-फिराकर ना कहना अच्छा लगता है और ना ही सुनना.
जवाब देंहटाएंऔर जहाँ तक बहनापा निभाने की बात है, तो वो तो हम 'नारीवादियाँ' हर उस जगह निभाएंगे, जहाँ औरतों के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाएगा, तो हमारा बहनापा मुद्दों का है, किसी व्यक्ति को दोस्त या दुश्मन मानने का नहीं.
मैं आँख मूंदकर किसी को सही या गलत मानने के पक्ष में नहीं रहती, वहीं बोलती हूँ, जहाँ मुझे लगता है कि बोलना चाहिए.
गनीमत है यहाँ ब्लॉग विमर्श है ब्लॉग फतवा किसी ने ज़ारी नहीं किया है भगवान् वह दिन न दिखाए .
जवाब देंहटाएं"रंडी -रांड "गाली गलौंच की भाषा में प्रयुक्त होते हमने अपने बचपन में देखा है बृज -मंडल के बुलंदशहर में .
किसी को बेवा या विधवा कहना ,किसी को फला की बेवा कहना अब संविधानेतर भाषा क्या अपभाषा में ही गिना जाना चाहिए .
रांड का विलोम होता है रंडुवा (रंडुवा )न कि रंडवा जैसा रचना जी ने इस्तेमाल किया है ."स्यापा" अपने आप में यथेष्ट होता है उसमें अतिरिक्त विशेषण लगाना शब्द अपव्यय ही कहलायेगा .
रंडापा और स्यापा शब्द का बहुबिध कैसा भी गठजोड़ थेगलिया(थे -गडी - नुमा ,पैबंद नुमा ) सरकारों सा अशोभन प्रयोग है .
जो आग खायेगा वह अंगारे हगेगा .शब्द बूमरांग करतें हैं .
शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव .
रांड का अर्थ तो विधवा ही होता है ... यह शब्द राजस्थान में आत्मीय गालियों के रूप में अक्सर नारियां ही प्रयोग करती है , जिस पर मेरी कई बार लडाई हो चुकी है .
जवाब देंहटाएं@वीरेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंगाली गलौच या गाली गलौज -आप चूंकि शिक्षा विभाग से रहे हैं -सही शब्द बतायें -ब्लॉग जगत में कितनो से पूछ चुका हूँ!
@मुक्ति-
जवाब देंहटाएंनिरस्त पादपे देशे एरंडोपि द्रुमायते :-) आप से ही उस समूह की शोभा है :-)
...अफ़सोस है कि कुछ लोगों को केवल 'रंडापा' शब्द दिख रहा है जबकि यह स्यापा के लिए प्रयुक्त हुआ है.
जवाब देंहटाएं.
.क्या हम किसी के कृत्यों को इसलिए ओवरलुक कर दें कि ऐसा करने वाली नारी है?
...कोई उसूल क्या लैंगिक भेद युक्त होता है ?
...हमने सभी नारीवादियों के लिए नहीं बल्कि कुछ के लिए कहा था.क्या सीता और सूपनखा को हम एक ही पलड़े पर तौलेंगे?
'एरंड' ये अब तक का दिया आपका सबसे अच्छा संबोधन है. thanks !
जवाब देंहटाएंOh really!?:-(
हटाएं@anti virus,
जवाब देंहटाएंमेरी आईडी को फर्जी बताकर जो काम तुमने किया है उसका जवाब तो बस मेरे पंच ही दे सकते हैं पर तुम ठहरे बेनामी।जब यहीं अपनी पहचान छुपा रहे हो तो मुझसे मिलने सामने तो क्या आओगे।पर तुम्हारे बाकी सवालों के जवाब देने जरूरी है क्योंकि जो थोड़े ही लोग यहाँ मुझे जानते है उन्हें सचमुच ये लग सकता है कि मैं जील के विरोध में आई पोस्ट को हटाने के लिए अनुनय विनय करता हूँ।जहाँ तक मुझे याद है ऐसा मैंने केवल एक बार किया है ब्लॉग संसद नामक एक ब्लॉग पर।और वो भी केवल इसलिए क्योंकि मुझे लगा कि पोस्ट लेखक और जील के मध्य वाक्युद्ध वहाँ मेरी ही वजह से शुरू हुआ क्योकि मैंने पोस्ट लेखक से ये सवाल कर लिया था कि जब आपने पहले बहुत से कमेन्ट ये कहकर रोक लिए थे कि इनसे विवाद हो जाएगा तो फिर अचानक प्रकाशित क्यों कर दिए फिर उन्होंने क्षमा माँगते हुए कहा कि ऐसा तकनीकी गडबडी से हुआ।लेकिन इसी बात पर जील का कहना था कि उन्होंने जान बूझकर ये कमेन्ट प्रकाशित किए मुझे नीचा दिखाने के लिए ।बस इसके बाद दोनों में पंगा शुरू हो गया अतः मैं खुद को दोषी मान रहा था सो पोस्ट हटाने की गुजारिश की और केवल मैंने नहीं दूसरों ने भी की।
जारी...
मैंने आज तुम्हारा कमेन्ट पढने के बाद वो पोस्ट खोजनी चाही तो मिली नहीं।शायद ब्लॉग हटा लिया गया है लेकिन ये ब्लॉग अभी कुछ समय पहले तक भी था और उन पोस्ट लेखक की टिप्पणीयाँ भी अक्सर पढ़ने को मिल जाती थी।इसलिए अगर तुम्हारा इशारा उनके ब्लॉगजगत छोडने की तरफ है वो भी उस पोस्ट की वजह से तो ये आरोप बिल्कुल गलत है।उस पोस्ट को एक लम्बा समय बीत चुका है और उस पोस्ट का शीर्षक कुछ ऐसा था-'ब्लॉगजगत के महारथी द्रोपदी के अपमान पर चुप क्यो है'।अभी भी सबको याद होगा जो वहाँ पर थे।
जवाब देंहटाएं@@ जील , मैंने भी यही कहा है कि
हटाएंदेखा न ,
एक और फालतू फंड की बात पर सहित उड़ा दी .
अब तुमने भी कह दिया है कि मेरी बात गलत है. प्रकारांतर से तुमने मेरी बात को सत्य प्रमाणित कर दिया है.
तुम भी न बड़े भोले हो जी, जो अनामियों की बात दिल पे ले बैठे. जब जील ने स्पष्टीकरण न दिया तो तुम भी न देते.
सभी ब्लौगर गण मेरी बात को गलत समझें जैसा कि जील चाहती है.
और तुम्हारा दूसरा आरोप की मैं जहाँ भी जील की कुडली खोली जाती है वहाँ जाता हूँ ये भी बिल्कुल गलत आरोप है क्योंकि मैं केवल ऐसी पोस्ट पर जहां कोई विशेष मुद्दा उठाया गया हो जाता हूँ फिर चाहें वह पोस्ट जील के विरोधस्वरूप ही हो और वहाँ भी केवल समर्थन नहीं करता ।गोहत्या और लव जेहाद जैसे मुद्दो पर जब उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ लिखा और उनके जवाब में पोस्ट आने लगी तो साफ कहा कि पूरे समुदाय विशेष के बारे में उन्होंने गलत बात लिखी है मुद्दा चाहे सही हो इसी तरह जब उन्होंने अपनी किसी पोस्ट मे असहमति जताने पर किसी दूसरे ब्लॉगर के लिए गलत शब्द कहे तब भी मैंने उनका विरोध किया और जमकर किया।पर हाँ जहाँ लगा कि उनकी गलती नहीं है वहाँ अपनी बात तो रखी कि क्या सही है लेकिन उनका पक्ष वहाँ भी नहीं लिया सिर्फ ये कहा कि विवाद खड़ा करने में गलती उनकी नहीं थी।
जवाब देंहटाएंपर ब्लॉगजगत को आगे के लिए आगाह जरूर कर दूँ कि किसी भी अच्छे महिला या पुरुष ब्लॉगर के खिलाफ मेरे नाम से कोई अपमानजनक या गाली गलौच वाली टिप्पणी दिखे तो समझिएगा वह किसी फर्जी का ही काम है।हाँ कुछ है जिन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देना पड़ता है।
@राजन जी ,
जवाब देंहटाएंअहो भाग्य! अभी अभी आपने तीन तीन टिप्पणियाँ इस पोस्ट पर उतार दीं -स्वागत है!
वैसे तो एक भी नहीं और आज तीन तीन -खुदा मेहरबान है :-)
आप जब मेरा नाम लेकर मिथ्या आरोपो वाली टिप्पणी आने दे रहे हैं तो सफाई देने तो मुझे ही आना पड़ेगा न ।ये काम आप थोडे ही करेंगे।आपका ब्लॉग पढ़ता ही रहता हूँ।
जवाब देंहटाएंतुम भी न बड़े भोले हो जी, जो अनामियों की बात दिल पे ले बैठे. जब जील ने स्पष्टीकरण न दिया तो तुम भी न देते.
हटाएंरंडापा टाइप स्यापा
जवाब देंहटाएंहंसी आ रही है
इतनी सच्चाई कौन लिख गया
इतनी टिप्पणियां हैं कि
मालूम ही नहीं चल रहा
फिर भी मेरा मानना है
सच्चाई ही कही गई है।
समय पास करने के लिए
आजकल ऐसी ही पोस्टें
लगाई जाती हैं
अपनी ऊर्जा इसी में
बहाई जाती है।
चल कलम तू कहीं और चल
लिखने को रही है मचल तो
कुछ सकारात्मक लिख, पर
इनमें न उलझ, इनसे न उलझ
निकल ले, कट ले
हलकट जवानी उबाल दिखाएगी
पर न हो तो बवाल ही मचाएगी।
यहां पर आई हूं कलम बन
यहां भी रंडापा की ही है धुन
रंडापा स्यापा में आने लगे हैं
मजे नारियों को सुन सुन।
एक बात और कहना चाहूँगा।इस anti virus को गजनी वाले डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए क्योंकि मुझे तो ये short term memory loss का शिकार लगता है वर्ना हालिया प्रकरण में अपनी हर जगह मौजूदगी के बाद इसने ये बात जरूर नोट की होगी कि जब प्रवीण शाह जी ने ये पूछा कि जील का विरोध क्यों नहीं किया जाता तो वहाँ सिर्फ मैंने एक कारण ये भी जोडा कि असहमति के प्रति जील की असहिष्णुता भी एक कारण है।और ये बात मैंने एक बार नहीं दो बार कही है एक बार प्रवीण जी के ब्लॉग पर और एक बार नारी ब्लॉग पर।और मेरे अलावा अभी तक ये बात किसीने नहीं कही है(बस एक ने मुझसे सहमति जताई) और मैं इस बात पर अभी भी कायम।अतः मैं जील का या किसीका भी अन्ध समर्थक नहीं हूँ वैसे ही जैसे अन्ध विरोधी भी नहीं हूँ।जो सही लगता है कहता हूँ तो कई बार इग्नोर भी करता हूँ।
जवाब देंहटाएंबाप रे! यहाँ तो मुद्दा ही मुद्दा है.. मजेदार भी..
जवाब देंहटाएंirendra Kumar Sharma veerubhai1947@gmail.com
जवाब देंहटाएं8:44 AM (0 minutes ago)
to arvind
भाई साहब सही भाषिक प्रयोग गाली -गलौंच ही है अभी -अभी डॉ .वागीश जी ,डी .लिट से बात हुई जो वैयाकरण के माहिर हैं वैयाकरण चारी हैं .शब्दों पर ही इनका सारा काम है .अरे हाँ !भाई साहब आपका स्पैम बोक्स टिपण्णी -दर-टिपण्णी खा रहा है .अभी तक इसका पेट नहीं भरा .
आदर एवं नेहासे -
वीरू भाई .
वीरेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंमानक हिन्दी शब्द कोशों में गाली गलौज शब्द ही है या फिर गाली गुफ़्ता(र)
कुछ नी ओ सक्ता
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जवाब देंहटाएं....दरअसल कुछ शब्द प्रचलन में इस तरह आ जाते हैं कि उनका प्रयोग लैंगिक आधार पर न होकर ख़ास तरह की प्रवृत्ति या शैली को लेकर होता है।रंडापा टॉइप स्यापा भी ऐसी देसज कहावत है और इसमें स्त्री,पुरुष दोनों शामिल हैं।कहने के पीछे संदर्भ और भाव देखना ज़रूरी है,पर कुछ निहित स्वार्थी लोग समग्रता में इसे लागू करने का कुत्सित अभियान चलाते हैं वो भी कथित नारीवादी बैनर के साथ । अब इस बैनर से जो नारी नहीं जुड़ी वह बिरादरी से बाहर मानी जाती है।यदि कोई मुद्दा वाज़िब है तो ऐसे बैनर की क्या ज़रूरत ?
....इसलिए ऐसे कड़वे बोल केवल दुष्प्रवृत्तियों के लिए ही हैं,पूरे समाज के लिए नहीं जिसमें नारी भी शामिल है । हाँ,ऐसे शब्दों से बचने की ज़रूरत तो फिर भी है !