शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

आज क्यों उद्विग्न मन है

 कविता का प्रणयन एक दुसह वेदना से गुजरना है ....गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इसे प्रसव वेदना की तरह माना और जानकी वल्लभ शास्त्री ने "कुंद छुरी से दिल को रेते जाने'  जैसी अनुभूति माना ...कविता में मेरी गति नहीं है ..जबकि ब्लागजगत कविताओं गजलों की एक से बढ़ कर एक नायाब अभिव्यक्तियों से भरा है ...खासकर प्रवीण पाण्डेय जी और सतीश सक्सेना जी की कवितायें/गीत  मुझे लुभाते रहे हैं ..और भी कई नए और पुराने नाम और प्रतिमान हैं ....कुछ भाव मन में आज सुबह ही आ गए जबकि मैं इलाहाबाद का अधूरा संस्मरण आज पूरा करने वाला था ..मगर यह कविता बाजी मार गयी ...इलाहाबाद अगले दिनों ...
आज क्यों  उद्विग्न मन है  
 विगत की स्मृति  घनेरी 
प्रात से ही उमड़ आयी,
रहेगी अब साथ ही क्या 
दिवस के अवसान तक?
 या कहीं यह शेष जीवन 
तक बनी अब संगिनी 
याद क्षण क्षण कराती 
प्रीति जो  अविछिन्न है  
आज फिर  उद्विग्न मन है

यदि है यही अब नियति तो 
शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है ..
स्नेह तो था उसी का 
अब त्याग भी अवधार्य है ..
याद वह पल भी है 
जब पुलकित गात था ..
मान था सम्मान था 
नित नूतन गान था 
 आज की यह वेदना भी 
 उसी की  सौगात है.. 
 रहेगी यह साथ  पल छिन    
 आज क्यों उद्विग्न मन है?
आप के उत्साह वर्धन और मार्गदर्शन की प्रतीक्षा रहेगी !  

33 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावों को उकेरती और पूरे मनोयोग से लिखी गयी बेहतरीन रचना.

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  2. क्या शिकवा है क्या हुआ तुम्हे
    क्यों आँख पे पट्टी बाँध रखी,
    क्यों नफरत लेकर, तुम दिल में
    रिश्ते, परिभाषित करती हो,
    अपने जख्मों को दिखलाते , वेदना अन्य की क्या समझें !
    हम पुरूष ह्रदय, सम्मान सहित, कुछ याद दिलाने बैठे हैं !

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  3. दर्द को साथ लेकर जीना सीख लिया,
    अमिय के साथ-साथ गरल पी लिया !!

    वह मनुज नहीं है देवता है,
    असली सुख तो दर्द ही देता है !

    मन उद्विग्न न करें ,कुहासा जल्द छटेगा,
    बादलों ने रोका है रवि को,वह चमकेगा !!

    कविता दर्द के साथ ही निकलती है,अच्छी अभिव्यक्ति !

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  4. यदि है यही अब नियति तो
    शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है ..
    स्नेह तो था उसी का
    अब त्याग भी अवधार्य है .

    यह सत्य स्थापित हो गया ...
    वियोगी होगा पहला कवि
    आह से उपजा होगा गान
    उमड़ कर आँखों से चुपचाप
    बही होगी कविता अनजान ..

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  5. बहुत सुन्दर.

    सक्सेना जी की टिप्पणी आपकी इस कविता को और सुन्दर बनती है.

    बधाई.

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  6. @मान था सम्मान था
    नित नूतन गान था
    आज की यह वेदना भी
    जब उसी की सौगात है..

    आज कविता माध्यम से सत्य के दर्शन हुए, आभार आर्य.

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  7. वियोगी होगा पहला कवि
    आह से उपजा होगा गान
    सुन्दर कविता.

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  8. ह्रदय है तो उद्विग्न होगा ही ,वेदना है ( कैसी भी ) तो कविता फूटेगी ही . बस जरा उसको भी सुना जाय और यूँ ही शब्द दे दिया जाय. निस्संदेह ह्रदय तक आएगी ही .

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  9. बेहतरीन रचना है, पर कवियों में हमारा नाम शामिल नही करके आपने अच्छा नही किया, हमसे बडा कवि आज तक पैदा ही नही हुआ.:) यकिन ना हो तो यह रचना पढ लिजिये.

    रामराम.

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  10. कछुए के खोल के भीतर जिस तरह एक मुलायम जीव निवास करता है ठीक उसी तरह विज्ञानियों का हृदय भी सम्वेदना से भरा होता कशी हिंदू विश्व विद्यालय का कुल गीत महान वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर जी ने लिखा है महामहिम राष्ट्रपति और वैज्ञानिक कलाम भी संगीत के प्रेमी हैं |मुझे यकीन था की डॉ० अरविन्द मिश्र जी के हृदय में भी कविता अवश्य निवास करती है |आज उनकी इस प्रतिभा की शानदार झलक मिली |बधाई सर

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  11. पंडित जी! जय हो!!
    इस विधा पर आपकी
    चलती कलम की धार तो देखी नहीं थी.
    किन्तु मन को छू गयी
    ये आपकी कविता सलोनी.
    आज इस कविता के संग-संग
    देख लो सारे ही जन हैं
    आज क्यों उद्विग्न मन है!!
    हमारे जैसे अकवि भी कवि बन गए!! बहुत अच्छे!!

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  12. उद्विग्न मन ही कविता का सशक्त स्रोत है, आपकी मानसिक स्थिति पीड़ा का संदोहन कर रही है।

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  13. आज की कविता में दर्द अधिक प्रभावी हो रहा है ... अब ऐसे में दर्द को बहुत अच्छा दिखा भी तो नहीं कह सकते ........

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  14. यदि है यही अब नियति तो
    शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है ..
    स्नेह तो था उसी का
    अब त्याग भी अवधार्य है ..
    Badee gazab kee panktiyan hain!

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  15. अरविन्द जी , कविता का प्रयास बहुत अच्छा है । कविता के भाव कविता लिखने लायक हैं ।
    बस कविता में सरल शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो सबको ज्यादा समझ आएगी ।
    शुभकामनायें ।

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  16. प्रत्येक लेखक के भीतर एक कवि रहता है। कोई कविता लिखता है कोई दूसरों की कविता पढ़कर,खुद को उससे जोड़कर संतुष्ट होता है। उपन्यासकार, समीक्षक, निबंध लेखक या पत्रकार... कहते हैं कि मैं कविता नहीं लिखता लेकिन खंगालने पर उनकी डायरी से कविता झड़ ही जाती है। वैसे ही आज आपने अपनी कविता पोस्ट की तो मेरा विश्वास और भी दृढ़ हुआ।

    प्रस्तुत कविता मन की उद्विग्नता को बखूबी दर्शाती है। जब मन करे तो कविता लिखिए ब्लॉग जगत में कोई महाकवि नहीं देखता..कुछ ही हैं जो अत्यधिक प्रभावित करते हैं शेष तो मन की अभिव्यक्ति को ऐसे ही अभिव्यक्त करते हैं जैसे कि आप ने अभिव्यक्त किया है।

    कवि को शुभकामनाएं दूं कि आभार प्रकट करूं समझ में नहीं आ रहा।

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  17. याद क्षण क्षण कराती
    प्रीति जो अविछिन्न है
    आज फिर उद्विग्न मन है
    कविता तो मन की तरलता है और तारल्य तो रचना में कूट कूट भरा है .ऊर्जित मन की रचना .

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  18. पता नहीं क्यों ? कविता में आत्मग्लानि और क्षमायाचना जैसे भाव उभर रहे हैं !

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  19. कविता समझ में कम आती है। लेकिन यह तो अच्छी ही लग रही है। हालांकि साफ कहूँ, तो शुरू में जो लय रही, वो आगे बिगड़ी …बढ़िया तो लिखते हैं फिर यह सब क्या……इलाहाबाद के पथ पर…लिखी कविता बेहतर है……मुझे माफ़ किया जाय कुछ धृष्टता करने के लिए।

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  20. @चन्दन जी
    "तो शुरू में जो लय रही, वो आगे बिगड़ी -"

    सहमत आपकी निगाह अचूक है ! आभार !

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  21. @ताऊ साब ,
    क्या बात है ,क़यामत की नज़र है

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  22. आदरणीय अरविंद जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आहाऽऽ… !
    पहले गायक बने … अब कविता का मोर्चा भी सम्हाल लिया …
    इरादे तो नेक हैं प्रभु ? … या हम नई विधा तलाशलें … :))

    आज क्यों उद्विग्न मन है
    विगत की स्मृति घनेरी
    प्रात से ही उमड़ आयी,
    यह रहेगी साथ ही क्या
    दिवस के अवसान तक?


    वाकई आनन्द आ गया जी …
    अच्छा लगा । कभी कभी आते रहा करें हमारी जमात में भी :)


    पुनः हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  23. आपकी ही एक पोस्ट में कविताओं की खूब चीरफाड़ देखी थी ...उसके बाद इस नियति , प्रेम , प्रतीक्षा पर इस कविता को पढना अच्छा लगा , सिद्ध यही हुआ कि कविता लिखी नहीं जाती , भावनाएं लिखवा लेती हैं , स्वयं की या दूसरों की भी!

    यदि है यही अब नियति तो शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है...
    स्नेह तो था उसी का अब त्याग भी अवधार्य है ...

    क्या बात है!

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  24. trust me half of it went above my head... but still I enjoyed reading it...
    coz sometimes the sound of word gives more pleasure than meaning.

    Fantastic read !!!!

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  25. कितनी भी तारीफ़ कि जाये वह कम है इससे ज्यादा कुछ कहने के लायक हम नहीं हैं ......
    ..

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  26. हम चाहे कितनी भी लंबी और भारी-भरकम पोस्ट्स आर्टिकल्स लिख लें मगर कहीं कुछ भावनाएं ऐसी उत्पन्न हो ही जाती हैं, जो बाहर आने के लिए कविता का ही मार्ग ढूंढती हैं. उद्विग्न मन को शीतलता तभी मिल पाती है. कविता के मामले में हाथ मेरा भी तंग है इसलिए इसपर ज्यादा कुछ कह नहीं पाउँगा, मगर कभी-कभी इसके ज्वार का सामना मुझे भी करना पड़ा है.

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  27. मन उद्विग्न है , मेरी रचना पढ़िए एक दूसरी तरह की उद्विग्नता की ओर ले जाएगी. वैसे बहुत अच्छी लगी आपकी रचना.

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  28. सुंदर प्रयास!
    चन्दन भाई से सहमति!
    .
    भाव का क्या कहना, वही है, जिस नीलकंठत्व - स्वरूप का दर्शन संतोष जी ने किया है।

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  29. आपने सही कहा , कोई बाद्ध्यता भी नहीं है . आगे परेशान नहीं करुँगी. क्षमा करें.

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  30. "त्याग भी अवधार्य है .."
    अरविन्द जी प्रणाम !
    इस कविता की विशिष्टता यह है की आपने "मन के मंथन " को जस का तस शब्दों में ढाल दिया ...इसी में ही इस कविता की उपलब्धि है.....

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