tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post7485027255277431005..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: आज क्यों उद्विग्न मन हैArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-18730218597357253102016-09-23T09:18:55.709+05:302016-09-23T09:18:55.709+05:30बहुत बढ़िया मन की उलझन कहते शब्द ....बहुत बढ़िया मन की उलझन कहते शब्द .... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-70339585941766410542011-09-26T01:30:58.025+05:302011-09-26T01:30:58.025+05:30"त्याग भी अवधार्य है .."
अरविन्द जी प्रण..."त्याग भी अवधार्य है .."<br />अरविन्द जी प्रणाम !<br />इस कविता की विशिष्टता यह है की आपने "मन के मंथन " को जस का तस शब्दों में ढाल दिया ...इसी में ही इस कविता की उपलब्धि है.....Pradeephttps://www.blogger.com/profile/11889016060575376117noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-47687317743699576122011-09-25T13:49:11.814+05:302011-09-25T13:49:11.814+05:30आपने सही कहा , कोई बाद्ध्यता भी नहीं है . आगे पर...आपने सही कहा , कोई बाद्ध्यता भी नहीं है . आगे परेशान नहीं करुँगी. क्षमा करें.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14612724763281042484noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-9381279296086015692011-09-24T22:52:41.332+05:302011-09-24T22:52:41.332+05:30सुंदर प्रयास!
चन्दन भाई से सहमति!
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भाव का क्या ...सुंदर प्रयास! <br />चन्दन भाई से सहमति! <br />.<br />भाव का क्या कहना, वही है, जिस नीलकंठत्व - स्वरूप का दर्शन संतोष जी ने किया है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-40712249893836528102011-09-24T15:49:53.664+05:302011-09-24T15:49:53.664+05:30मन उद्विग्न है , मेरी रचना पढ़िए एक दूसरी तरह की उ...मन उद्विग्न है , मेरी रचना पढ़िए एक दूसरी तरह की उद्विग्नता की ओर ले जाएगी. वैसे बहुत अच्छी लगी आपकी रचना.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14612724763281042484noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-60123165649864303432011-09-24T12:43:37.979+05:302011-09-24T12:43:37.979+05:30हम चाहे कितनी भी लंबी और भारी-भरकम पोस्ट्स आर्टिकल...हम चाहे कितनी भी लंबी और भारी-भरकम पोस्ट्स आर्टिकल्स लिख लें मगर कहीं कुछ भावनाएं ऐसी उत्पन्न हो ही जाती हैं, जो बाहर आने के लिए कविता का ही मार्ग ढूंढती हैं. उद्विग्न मन को शीतलता तभी मिल पाती है. कविता के मामले में हाथ मेरा भी तंग है इसलिए इसपर ज्यादा कुछ कह नहीं पाउँगा, मगर कभी-कभी इसके ज्वार का सामना मुझे भी करना पड़ा है.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-40358839281348007802011-09-24T09:16:27.992+05:302011-09-24T09:16:27.992+05:30कितनी भी तारीफ़ कि जाये वह कम है इससे ज्यादा कुछ क...कितनी भी तारीफ़ कि जाये वह कम है इससे ज्यादा कुछ कहने के लायक हम नहीं हैं ......<br />..Sunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-77388095545389861012011-09-24T08:14:11.023+05:302011-09-24T08:14:11.023+05:30trust me half of it went above my head... but stil...trust me half of it went above my head... but still I enjoyed reading it... <br />coz sometimes the sound of word gives more pleasure than meaning. <br /><br />Fantastic read !!!!Jyoti Mishrahttps://www.blogger.com/profile/01794675170127168298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-23206096621511825172011-09-24T07:15:15.146+05:302011-09-24T07:15:15.146+05:30आपकी ही एक पोस्ट में कविताओं की खूब चीरफाड़ देखी ...आपकी ही एक पोस्ट में कविताओं की खूब चीरफाड़ देखी थी ...उसके बाद इस नियति , प्रेम , प्रतीक्षा पर इस कविता को पढना अच्छा लगा , सिद्ध यही हुआ कि कविता लिखी नहीं जाती , भावनाएं लिखवा लेती हैं , स्वयं की या दूसरों की भी! <br /><br />यदि है यही अब नियति तो शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है... <br />स्नेह तो था उसी का अब त्याग भी अवधार्य है ...<br /><br />क्या बात है!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4289595445936433062011-09-24T02:37:33.472+05:302011-09-24T02:37:33.472+05:30♥
आदरणीय अरविंद जी
सादर सस्नेह...<b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">♥</a></b> <br /><br /><b><i> </i></b> <br /><b> </b><br /><b><i>आदरणीय अरविंद जी </i></b> <br />सादर सस्नेहाभिवादन !<br /> <br />आहाऽऽ… ! <br />पहले गायक बने … अब कविता का मोर्चा भी सम्हाल लिया … <br />इरादे तो नेक हैं प्रभु ? … या हम नई विधा तलाशलें … :))<br /><br /><b>आज क्यों उद्विग्न मन है <br />विगत की स्मृति घनेरी <br />प्रात से ही उमड़ आयी,<br />यह रहेगी साथ ही क्या <br />दिवस के अवसान तक? </b> <br /><b> </b> <br /><b> </b> वाकई आनन्द आ गया जी … <br />अच्छा लगा । कभी कभी आते रहा करें हमारी जमात में भी :) <br /><br /><br />पुनः हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! <br />- राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-56139957114240988982011-09-23T22:09:32.033+05:302011-09-23T22:09:32.033+05:30@ताऊ साब ,
क्या बात है ,क़यामत की नज़र है@ताऊ साब ,<br />क्या बात है ,क़यामत की नज़र हैArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-17415968919150907082011-09-23T22:06:58.376+05:302011-09-23T22:06:58.376+05:30@चन्दन जी
"तो शुरू में जो लय रही, वो आगे बिग...@चन्दन जी <br />"तो शुरू में जो लय रही, वो आगे बिगड़ी -" <br /><br />सहमत आपकी निगाह अचूक है ! आभार !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-34126600595832748082011-09-23T21:35:23.146+05:302011-09-23T21:35:23.146+05:30सविता सी कविता. प्यारी लगी.सविता सी कविता. प्यारी लगी.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-36814129209492809542011-09-23T20:33:12.056+05:302011-09-23T20:33:12.056+05:30कविता समझ में कम आती है। लेकिन यह तो अच्छी ही लग र...कविता समझ में कम आती है। लेकिन यह तो अच्छी ही लग रही है। हालांकि साफ कहूँ, तो शुरू में जो लय रही, वो आगे बिगड़ी …बढ़िया तो लिखते हैं फिर यह सब क्या……इलाहाबाद के पथ पर…लिखी कविता बेहतर है……मुझे माफ़ किया जाय कुछ धृष्टता करने के लिए।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-88526891191722274692011-09-23T19:39:55.604+05:302011-09-23T19:39:55.604+05:30पता नहीं क्यों ? कविता में आत्मग्लानि और क्षमायाचन...पता नहीं क्यों ? कविता में आत्मग्लानि और क्षमायाचना जैसे भाव उभर रहे हैं !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-85313847032506990042011-09-23T19:11:31.237+05:302011-09-23T19:11:31.237+05:30याद क्षण क्षण कराती
प्रीति जो अविछिन्न है
आज फ...याद क्षण क्षण कराती <br />प्रीति जो अविछिन्न है <br />आज फिर उद्विग्न मन है<br />कविता तो मन की तरलता है और तारल्य तो रचना में कूट कूट भरा है .ऊर्जित मन की रचना .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-74962914564085135192011-09-23T18:46:49.145+05:302011-09-23T18:46:49.145+05:30प्रत्येक लेखक के भीतर एक कवि रहता है। कोई कविता लि...प्रत्येक लेखक के भीतर एक कवि रहता है। कोई कविता लिखता है कोई दूसरों की कविता पढ़कर,खुद को उससे जोड़कर संतुष्ट होता है। उपन्यासकार, समीक्षक, निबंध लेखक या पत्रकार... कहते हैं कि मैं कविता नहीं लिखता लेकिन खंगालने पर उनकी डायरी से कविता झड़ ही जाती है। वैसे ही आज आपने अपनी कविता पोस्ट की तो मेरा विश्वास और भी दृढ़ हुआ।<br /> <br />प्रस्तुत कविता मन की उद्विग्नता को बखूबी दर्शाती है। जब मन करे तो कविता लिखिए ब्लॉग जगत में कोई महाकवि नहीं देखता..कुछ ही हैं जो अत्यधिक प्रभावित करते हैं शेष तो मन की अभिव्यक्ति को ऐसे ही अभिव्यक्त करते हैं जैसे कि आप ने अभिव्यक्त किया है।<br /><br />कवि को शुभकामनाएं दूं कि आभार प्रकट करूं समझ में नहीं आ रहा।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-35950295103317469542011-09-23T18:31:22.819+05:302011-09-23T18:31:22.819+05:30अरविन्द जी , कविता का प्रयास बहुत अच्छा है । कविता...अरविन्द जी , कविता का प्रयास बहुत अच्छा है । कविता के भाव कविता लिखने लायक हैं ।<br />बस कविता में सरल शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो सबको ज्यादा समझ आएगी ।<br />शुभकामनायें ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67194245030396115342011-09-23T16:07:19.533+05:302011-09-23T16:07:19.533+05:30यदि है यही अब नियति तो
शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है...यदि है यही अब नियति तो <br />शिरोधार्य है ,स्वीकार्य है ..<br />स्नेह तो था उसी का <br />अब त्याग भी अवधार्य है ..<br />Badee gazab kee panktiyan hain!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-56140920003745130992011-09-23T15:59:29.687+05:302011-09-23T15:59:29.687+05:30आज की कविता में दर्द अधिक प्रभावी हो रहा है ... अब...आज की कविता में दर्द अधिक प्रभावी हो रहा है ... अब ऐसे में दर्द को बहुत अच्छा दिखा भी तो नहीं कह सकते ........निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52821257669369568372011-09-23T15:30:12.229+05:302011-09-23T15:30:12.229+05:30उद्विग्न मन ही कविता का सशक्त स्रोत है, आपकी मानसि...उद्विग्न मन ही कविता का सशक्त स्रोत है, आपकी मानसिक स्थिति पीड़ा का संदोहन कर रही है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-163096616693107932011-09-23T15:13:38.051+05:302011-09-23T15:13:38.051+05:30पंडित जी! जय हो!!
इस विधा पर आपकी
चलती कलम की धार...पंडित जी! जय हो!!<br />इस विधा पर आपकी <br />चलती कलम की धार तो देखी नहीं थी.<br />किन्तु मन को छू गयी <br />ये आपकी कविता सलोनी.<br />आज इस कविता के संग-संग <br />देख लो सारे ही जन हैं<br />आज क्यों उद्विग्न मन है!!<br />हमारे जैसे अकवि भी कवि बन गए!! बहुत अच्छे!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-89659058158655418722011-09-23T15:11:04.598+05:302011-09-23T15:11:04.598+05:30कछुए के खोल के भीतर जिस तरह एक मुलायम जीव निवास कर...कछुए के खोल के भीतर जिस तरह एक मुलायम जीव निवास करता है ठीक उसी तरह विज्ञानियों का हृदय भी सम्वेदना से भरा होता कशी हिंदू विश्व विद्यालय का कुल गीत महान वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर जी ने लिखा है महामहिम राष्ट्रपति और वैज्ञानिक कलाम भी संगीत के प्रेमी हैं |मुझे यकीन था की डॉ० अरविन्द मिश्र जी के हृदय में भी कविता अवश्य निवास करती है |आज उनकी इस प्रतिभा की शानदार झलक मिली |बधाई सरजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-80819151803691521882011-09-23T15:08:39.882+05:302011-09-23T15:08:39.882+05:30बेहतरीन रचना है, पर कवियों में हमारा नाम शामिल नही...बेहतरीन रचना है, पर कवियों में हमारा नाम शामिल नही करके आपने अच्छा नही किया, हमसे बडा कवि आज तक पैदा ही नही हुआ.:) यकिन ना हो तो <a href="http://taau.taau.in/2011/08/blog-post_09.html" rel="nofollow">यह रचना</a> पढ लिजिये.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-60405740960212187812011-09-23T15:01:59.152+05:302011-09-23T15:01:59.152+05:30ह्रदय है तो उद्विग्न होगा ही ,वेदना है ( कैसी भी )...ह्रदय है तो उद्विग्न होगा ही ,वेदना है ( कैसी भी ) तो कविता फूटेगी ही . बस जरा उसको भी सुना जाय और यूँ ही शब्द दे दिया जाय. निस्संदेह ह्रदय तक आएगी ही .Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.com