गुरुवार, 10 मार्च 2011

कहीं टिप्पणी -दरिद्रता तो कहीं टिप्पणी दरिया दिली!

कल की संजीदगी भरी चर्चा के बाद आज कुछ हल्का फुल्का हो जाय.. जो लोग वहां खुलकर चर्चा नहीं कर पाए यहाँ आमंत्रित हैं.  मेरे एक मित्र ने सुबह सुबह फोन करके बताया कि इग्नू  में कोई शोध गाईड हिन्दी ब्लॉग टिप्पणियों में जेंडर भेद रुझानों पर किसी स्टुडेंट को एक प्रोजेक्ट सौंपे हैं ....उन्होंने कुछ आरम्भिक नतीजों का जिक्र भी किया जो मुझे बहुत रोचक लगे ..सोचता हूँ आपसे साझा करूँ ...इस जोखिम को उठाकर कि इस तरह के लेखन से कुछ मित्र गण नाराज होंगें जैसा कि पहले भी हो चुके हैं ...मगर सच बताऊँ ये बातें केवल कहने के लिए ही होती है मन से नहीं होतीं ..लोग बाग़ अनायास ही बुरा मान जाते हैं ....इस बार तो मैं यह भी दावा त्याग कर देता हूँ कि किसी भी ब्लॉगर से इसका कोई सम्बन्ध है -यह शोध अध्ययन महज मानवीय प्रवृत्ति का एक अध्ययन भर है -किसी के प्रति कोई असम्मान ,कटाक्ष अभिप्रेत नहीं है ...

 हिन्दी ब्लागजगत में टिप्पणियाँ बहुत पक्षपात पूर्ण होती ज़ा रही हैं -पुरुष ब्लागों पर एक दो शब्दों में ही बात निपटा देने वाले सुधी जन नारी ब्लागों पर कई कई पैराग्राफ की टिप्पणियाँ दे आ  रहे हैं....कभी कभी तो ऐसा लगता है कि वे अपने  जीवन ज्ञान का समस्त निचोड़ ही वही दे आये हैं ...कई मामलों में तो यह भी लगने लगता है कि टिप्पणी मूल पोस्ट से भी अधिक जगह घेरने का रुख अख्तियार कर रही है ... टिप्पणीकर्ता को जब अचानक यह महसूस होता है तो वह उसी पोस्ट पर दूसरी तीसरी टिप्पणी भी कर देता है ..एक बार तो एक टिप्पणीकर्ता ने एक  पोस्ट पर ७ टिप्पणियाँ की जिन्हें पढने पर लगा कि वे अभी भी पूरी तरह से व्यक्त /निचुड़ नहीं पाए हैं ...तो फिर उन्होंने उसी ब्लॉग की अगली पोस्ट पर  विषय को देखे बिना ही अपनी अधूरी भड़ांस पूरी की -पुराने विषय की ही टिप्पणी पहले की ..फिर नए पोस्ट की सुध ली ! 

यह प्रवृत्ति अब इतना विस्फोटक रूप लेती जा रही है कि गाढी मित्रता भी छोड़कर लोग बाग़ अपने मित्रों की पोस्ट पर एक लाईन की टिप्पणी दे रहे हैं तो अपने प्रिय  ब्लागरों की पोस्ट पर  पूरी काव्य गाथा  ...क्या सचमुच पुरुष ब्लॉगर इन दिनों बहुत घटिया लिख रहे हैं ? .. वैसे मैंने खुद यह देखा है कि यह अंतर तो है और इन दिनों ....सचमुच कुछ नारी ब्लॉगर बहुत अच्छा लिख रही हैं और उन्हें प्रोत्साहन की उतनी जरुरत भी नहीं है जितना उदात्त  प्रोत्साहन उन्हें मित्र गण दे रहे हैं ...मेरे एक मित्र को तो पिछले दिनों यह भ्रम भी हो गया था कि कहीं कुछ कमनीय ब्लॉगर प्रेत लेखन के शरण में तो नहीं चले गए हैं -मतलब उनके लिए कोई और कुर्बानी दे रहा है -एक शायर की बात याद हो आयी -भौरों से गीत लेकर कलियाँ गुनगुना रही हैं ,दाद देने वाले दाद दे रहे हैं ....

इन्ही प्रवृत्तियों से दुखी होकर कुछ मित्रों ने टेम्पररी सुसाईड भी कर लिया मतलब अपने ब्लॉग की खिड़कियाँ ही बंद कर ली जहाँ से विचारों के नए झोंके आते जाते थे मतलब टिप्पणियों का आदान प्रदान होता था ...भले ही हमारे वेद कहते रहें कि आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु  विश्वतः -लेट नोबल आयिडियाज कम टू  मी फ्राम आल सायिड्स आफ द वर्ल्ड ....दुनियाँ के सभी कोनों से सद्विचार मेरे पास आयें -- भैया मेरे ,अगर टिप्पणी बक्सा परमानेंटली बंद ही कर लिए तो क्या ख़ाक आयेगें विचार - तेरे ब्लॉग की  टेम्पोरेरी सुसाईड की गति हो गयी मेरे भाई! तूने सुना नहीं -घूंघट के पट खोल तुझे राम मिलेगें ....पुरुष ब्लॉगर मित्रों की गति यह हो चली  है और नारी ब्लागों में टिप्पणियों की बहार है -कहीं खुशी तो कहीं गम!अब यह सब देख समझ कर दुःख होता है मित्रों .....यह कौन सी सम्यक दृष्टि है ? कैसी समदर्शिता है ? टिप्पणियों में भी पक्षपात! कहीं टिप्पणी -दरिद्रता  तो कहीं टिप्पणी दरिया दिली! 


 भैया टिप्पणियों की दरियादिली का तो यह आलम है कि अकबर इलाहाबादी का वो शेर याद आ गया -मेहरबानों  की तबीयत का अजब रंग है आज ,बुलबुलों की ये हसरत  कि वे उल्लू न हुए .....कई बिचारे बोहनी को अगोरे बैठे हैं और कहीं टिप्पणियों की बरसात ....बहुत नाइंसाफी है यह ....और ऐसे में यह बड़ी वाजिब बात है कि-कई दौर चल चुके हैं मुझे क्यों न हो शिकायत, मेरे पास मेरे साकी अब तक न जाम आया .....


49 टिप्‍पणियां:

  1. अब क्या टिप्पणी करें? आप 'नारी ब्लॉगर' होते तो करते लम्बी चौड़ी टिप्पणी। अभी तो यही कहेंगे- उम्दा प्रस्तुति ;) :)

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. @ वे अपने जीवन ज्ञान का समस्त निचोड़ ही वही दे आये हैं ....
    यह तो सरासर जलने की बू आ रही है गुरुदेव , खुद करते हो तो कोई बात नहीं और करें तो पुरुष और नारी का मामला :-))
    ........

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  4. @
    "पुरुष ब्लॉगर मित्रों की गति यह हो चली है और नारी ब्लागों में टिप्पणियों की बहार है -कहीं खुशी तो कहीं गम!अब यह सब देख समझ कर दुःख होता है मित्रों .....यह कौन सी सम्यक दृष्टि है ? कैसी समदर्शिता है ? टिप्पणियों में भी पक्षपात! कहीं टिप्पणी -दरिद्रता तो कहीं टिप्पणी दरिया दिली! ..."

    आज का दुखी लेख पढ़ कर दिल भर आया कम से कम मैं तो आपका ध्यान रखूंगा :-)))
    यह रही दूसरी टिप्पणी ...

    अगली रात में पक्की रही !


    मज़ा आ गया आज लगता है फागुन की मस्ती शुरू कर दी आपने .....
    हंसाने के लिए आभार

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  5. @सतीश भाई ....आज की बात करिए हुजूर ..बीते दिनों की नहीं ..
    वे दिन बीत गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाया करते थे......

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  6. वे उनकी पोस्ट पे टिप्पणी करें तो शिकायत करता है ज़माना
    आप उनकी टिप्पणियों पे पोस्ट लिख डालें तो भी ज़िक्र नहीं होता॥
    (~ खुशदिल खुशाल सिंह "बदायूँनी")

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  7. पता नहीं किस नारी के ब्लॉग पर आपको ईर्ष्या करने लायक कमेंट्स मिल गए ...

    अच्छा लिखेंते तो कमेंट्स मिलेंगे ही , बहुत से पुरुष ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर भी ढेर सारे कमेंट्स नजर आते हैं , किसी नारी ने तो आज तक शिकायत नहीं की , अब मेरे ब्लॉग पर इतने कम कमेंट्स है , कभी शिकायत की मैंने :):)

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  8. @ हमने भी नहीं की इस तरह शिकायत कभी :) समीर लाल जी के ब्लॉग की कोई पोस्ट देख लीजिये :)

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  9. @रंजू जी,
    समीरलाल जी अपवाद हैं .... :)

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  10. @ "अलि कली ही सो बंध्यो आगे कौन हवाल" कविवर भूषण की ये पंक्ति मुझे बरबस याद आयी .
    -- आप विद्वान जैसे दिखते हैं तब भी ऐसी गलती, यह पंक्ति तो बिहारी की लिखी है न कि कविवर भूषण की।

    @ भौरों से गीत लेकर कलियाँ गुनगुना रही हैं ,दाद देने वाले दाद दे रहे हैं ...
    -- कुछ रस लंपट भौरे अंत तक मछिहर लगाये रहते हैं, उदाहरण कई हैं, पर जो नसीहत-शुदा हो गया वह भौंरा योनि से मुक्त हो जाता है और तब उसके किसी भी दिलफ़रेब कली से धोखित होने की संभावना नहीं रहती। वैसे समस्या तो कलियों की भी है जिन्हें बैशाखियाँ ( जिसमें टीप भी है ) लिये बिना यात्रा मुनासिब नहीं लगती और फ़िर बैशाखियों का बदलाव देखते बनता है। कैथनिक्‌ डोला!

    अच्छा लिखने से अच्छी/अधिक टीपें आयेंगी, यह हिन्दी ब्लोग्बुड का कमनीय झूठ है!

    मजा आया पढकर। आभार।

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  11. मुझे तो टिप्पणियाँ सिर्फ लेन-देन का हिसाब लगती हैं....नारी-पुरुष का भेदभाव मुझे नहीं दिखता...

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  12. भौरों से गीत लेकर कलियाँ गुनगुना रही हैं ,दाद देने वाले दाद दे रहे हैं ....

    "अलि कली ही सो बंध्यो आगे कौन हवाल" कविवर बिहारी की ये पंक्ति मुझे बरबस याद आयी .
    आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः -

    अब अगर कोई सर्वज्ञानी हो तो ?

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  13. अमरेन्द्र जी
    मैंने अपने कमेन्ट में गलती से भूषण लिख दिया था , ठीक कर दिया है .

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  14. हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते
    मरते हैं वले उन की तमन्ना नहीं करते

    दर पर्दा उन्हें ग़ैर से है रब्त-ए-निहानी
    ज़ाहिर का ये पर्दा है कि पर्दा नहीं करते

    यह बाइस-ए-नौमीदि-ए-अर्बाब-ए-हवस है
    "ग़ालिब" को बुरा कहते हो अच्छा नहीं करते



    एक पोस्ट हो जाए इस पर भी क्यूँ महिला ब्लोगर जो महिला के ब्लॉग पर कभी टीप देती ही नहीं यहाँ जरुर आती हैं व्यथा कि कथा कह जाती हैं , अश्क अपने बहा जाती हैं । आप टिप्पणी कि गिनती करते हैं हम आप के यहाँ आये टिप मे टिप्पणी वाली को गिनते हैं

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  15. @धन्य हो अनाम महराज ,:)
    कैसे कैसे शगल हैं हुजूरों के
    नाम से ही होते तो कितना अच्छा लगता ना !

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  16. aisi koi baat nahi hai........lekin ab aap kah rahe hain.....to thora bahut man lete hain................

    kal tak tha tippani kum ka rona...
    aaj hai kahin kum kahin jyada ka hona
    ane wale kal me phir jyada ka rona...

    7 blogs
    7 padhadhikari
    7 lekh
    7 tippani
    7 samarthan me
    7 virodh me
    7 - 7 oh...ho...sath-sath chalne wale link by link mairath click karte gush khakar hosh kho baith ta hai......

    oh kya bak gaye....kshama parth'

    pranam.

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  17. आपकी पोस्ट पढते पढते ना जाने कहाँ कहाँ धुआं निकलता दिखाई दिया ...शोध के भी छांट छांट कर विषय लिए जाते हैं ... लगता है दूसरों की टिप्पणियों पर लोगों की ज्यादा नज़र रहती है ...

    और रही लेन - देन की बात तो यह तो भगवान भी कहते हैं जब तक दोगे नहीं तो मिलेगा कैसे ...रेकी में यही सिखाया जाता है ...चैनल चलता रहना चाहिए ...जहाँ आपने देना बंद किया ब्लोकेज आ जाता है और मिलना बंद हो जाता है ...इस बात की पुष्टि आप किसी भी रेकी जानकार से ले सकते हैं ... मेरी टिप्पणी तो हो गयी न काफी बड़ी ...निचुड गयी सारी बुद्धि :):)

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  18. अंशतः ही सही लेकिन सच्चाई तो है इसमें...:)

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  19. हिन्दी ब्लाग इस बात को पुष्ट करते हैं कि हिन्दी में परिष्कृत रुचि वाले प्रबुद्ध पाठकों का अभाव है।

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  20. कुछ भी कहिये... मज़ा आ गया पोस्ट पढ़ कर...

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  21. अच्छा लिखने से अच्छी/अधिक टीपें आयेंगी, यह हिन्दी ब्लोग्बुड का कमनीय झूठ है!

    अमरेन्द्र जी की ये बात पक्की है :)

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  22. टिप्पणी अपने विचारों के आदान प्रदान का जरिया है परंतु टिप्पणी को उपस्थिती लगाने और लोकप्रियता के पैमाने से जोड़कर देखा जाता है।

    वैसे ’नारी ब्लॉगर’ को ज्यादा टिप्पणी मिलना, क्योंकि यह भारत है और ब्लॉगर जगत में भी ५० प्रतिशत टिप्पणियों पर नारी का आरक्षण तो होना ही चाहिये।

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  23. नाचीज सी लेकिन हाजिरी टिप्‍पणी लगा देते हें हैं हम यहां.

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  24. टिप्पणियों में भी जेंडर बायस !
    इतना फ़र्ज़ तो बनता है अरविन्द जी ।

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  25. वैसे होली/फागुन का महिना है। पर स्त्रियों से कैसी डाह?

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  26. अब तो ध्यान देकर ही टिप्पणी देनी पड़ेगी।

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  27. गनीमत है अपवाद बताया..हा हा!!

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  28. मज़ा आ गया पोस्ट पढ़ कर| धन्यवाद|

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  29. वाह! क्या खूब कहा आपने....
    घूंघट के पट खोल तुझे राम मिलेगें ....पुरुष ब्लॉगर मित्रों की गति यह हो चली है और नारी ब्लागों में टिप्पणियों की बहार है -कहीं खुशी तो कहीं गम!अब यह सब देख समझ कर दुःख होता है मित्रों .....यह कौन सी सम्यक दृष्टि है ? कैसी समदर्शिता है ? टिप्पणियों में भी पक्षपात!
    मेरी पूरी सहानुभूति है आपके साथ ...

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  30. अजी काहे को पंगा ले रहे हे:) वेसे ताडने वाले क्यामत की मजर रखते हे... इस लिये सावधान अगली बार कोई आ धमेगी आप का हाल चाल पुछने:)

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  31. टिप्पणियां लेन देन का ही हिसाब लगती हैं..... मुझे भी यही लगता है इसमें महिला पुरुष का भेद शायद नहीं होता....
    महिला ब्लोग्गेर्स की भी ऐसी पोस्ट मिल जायेंगीं जिनमे सच में कुछ पढने लायक लिखा होता है.... पर टिप्पणियां नदारद होती हैं....

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  32. अली जी की बात से सहमत हूँ , अबलाओं से डाह कैसी ?

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  33. ये चर्चा भी खूब की आपने....मैंने कभी शोध नहीं किया इस पर....टिप्पणी करने लायक कोई बात हो तो जरूर होनी चाहिए....
    बहरहाल, इस शोध छात्र की थीसिस में रिपोर्ट क्या है वो जानना जरूरी है....

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  34. मैं भी कोई दूध का धुला नहीं ...

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  35. १.पुरुष ब्लागों पर एक दो शब्दों में ही बात निपटा देने वाले सुधी जन नारी ब्लागों पर कई कई पैराग्राफ की टिप्पणियाँ दे आ रहे हैं.हमारी तो ज्यादातर लंबी टिप्पणियां पुरुष ब्लागर की पोस्टों पर हुई हैं। ( ब्लाग पुरुष या स्त्री नहीं होता बाबा, ब्लागर होता है स्त्री या पुरुष)
    २. टिप्पणी के बारे में अपनी राय विस्तार से यहां दे चुके हैं। सार ये रहा:बहुत दिन के अपने अनुभव से बताते हैं कि टिप्पणी किसी पोस्ट पर आयें या न आयें लिखते रहें। टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है। मित्रों के साथ और तमाम तरह के अन्याय करने के लिये होते हैं। फ़िर यह नया अन्याय किस अर्थ अहो? :)

    हमारे लिये टिप्पणी तो मन की मौज है। जब मन , मौका, मूड होगा -निकलगी। टिप्पणी का तो ऐसा है- टिप्पणी करी करी न करी। :)

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  36. किसी की थाली मे रोटी गिनना असभ्यता हैं

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  37. टिप्पणी "पादने" की तरह होती है, कोई जरुरी नहीं कि आपकी फ़रमाइश पर आये, जब आनी होगी तभी आयेगी :)

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  38. क्या अरविंद भाई इतनी ईर्षा और वह भी नारी दिवस के आस पास । मेरे विचार में तो यह सीधी सी इस हाथ दे उस हाथ ले वाली बात है ।

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  39. हम तो भई, इस्माइली के साथ टिप्पणी करते हैं :)

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  40. हुज़ूर टिप्पणियां तो पाठक कि वैचारिक उत्तेजना का परिणाम होती है. अब ये ब्लॉगर का दम है कि वो अपने पाठकों को कितना उत्तेजित कर पता है.

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  41. @रचना सिंह ,
    असभ्यता या अशिष्टता?
    @अनाम भाई /भौजी ,
    मैं पाद -टिप्पणी नहीं महज टिप्पणी की बात कर रहा था
    @आशा जोगेलकर जी,
    ईर्ष्या उनसे नहीं शिकायत अपने पुरुष समाज से है

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  42. लोग यहाँ जो भी बोल रहे हैं पर यह सबको पता है कि यह कड़वा सच है... पर टिप्पणी देना तो किसी का अपना अधिकार है, वो कहीं भी दे, इसमें सही-गलत क्या.. पर आपने विचार सही किया इसपर...
    अच्छे नारी-ब्लागरों को ज्यादा टिप्पणियाँ मिलती हैं तो समझ में आता है... पर अगर आप बिलकुल ऐसे छिछले नारी ब्लागरों के ब्लॉग खंगालें जिनपर कॉपी-पेस्ट मैटेरियल है, तो वहाँ भी आपको पोस्ट पर २०-२५ कमेन्ट और दसियों फौलोअर्स मिल जाते हैं... इसमें प्रोफाइल का चित्र, उम्र, स्थान, पेशा आदि बिंदु भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं :)

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  43. कुछ नारी ब्लॉगर भी वाकई काफी अच्छा लिखती हैं, मगर सचाई है कि कभी-कभी कुछ अतुकांक कविताओं / शेरों पर भी वाहवाही टिप्पणियों का नॉनस्टॉप सिलसिला शुरू हो जाते भी देखा है.

    अब कोई उदहारण न पूछ ले, वैसे भी 'बरसाने की होली' देखने का जुगाड़ ढूँढ रहा हूँ. :-)

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  44. सात टिप्पणी कहां पर किसने कीं ? और लिंग भेद पे कमेन्ट नहीं ! लेकिन आपको 7 टिप्पणी हम दे रहे हैं ...

    (१) लगता ये है कि जो शोरूम आपके आशीर्वाद से खुले वहीं मजमा ज़्यादा लगता दिखाई देता है :)

    अथवा

    (२) अब इतनी ही शिकायत है तो इतना भी बताइये कि उन दर्शक दीर्घाओं में किस आयु वर्ग के लोग ज़्यादा हैं :)

    अथवा

    (३) आपकी ये अपेक्षा कि पुरुष ( टिप्पणीकार ) अपना सब पुरुष ब्लागर पे निचोड़ दें ? समझ में नहीं आई :)

    अथवा

    (४) आपका आलेख प्रकृति के विरुद्ध है ! अनैसर्गिकता के पक्ष में है :)

    अथवा

    (५) किसी की बढ़ती ग्राहकी से आप चिंतित क्यों हैं :)

    अथवा

    (६) गिरिजेश जी निस्वार्थ भाव से 69/1 और 69/2 लिख रहे हैं और आपको टिप्पणियों की पड़ी है :)

    अथवा

    (७) स्मार्ट इन्डियन की टीप से सहमत :)

    जवाब देंहटाएं

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