बुधवार, 16 सितंबर 2009

जब हो कोई पाषाण निष्ठुर (कविता )....

कविता मानव मन की सशक्त अभिव्यक्ति है ! भावों के झंझावात  की एक संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित प्रस्तुति ! ताऊ अपनी कवितायेँ सीमा जी से जन्चवाते हैं ! इसी  दृष्टांत ने मुझे प्रेरित किया इस कविता को हिमांशु जी से दुरुस्त कराने के लिए ! अब यह आपके सामने सादर साग्रह प्रस्तुत है -कही आपके सवेदना के तंतुओं को झंकृत करे तो ही यह विनम्र प्रयास सार्थक होगा !

जब हो कोई पाषाण निष्ठुर 
 
  जिस प्रेम में प्रतिदान न हो
फिर उसे अवदान क्यों हो ?
जब हो कोई पाषाण निष्ठुर
भावना का दान क्यों हो ?

जब  दर्प गर्हित दृष्टि हर पल
फिर वहाँ मनुहार क्यों हो ?
भाव  हो प्रतिकार का  फिर
याचना का निर्वाह क्यों हो

  निर्मम ह्रदय अभिव्यक्त प्रतिपल
फिर प्रेम का उदगार क्यों हो ?
हो मानिनी का हठ अपरिमित
 तब कभी  अभिसार क्यों हो ? 
 



27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सवाली कविता है जी।
    वैसे प्रतिफल की चाह होते ही प्रेम भाग जाता है।

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  2. जब दर्प गर्हित दृष्टि हर पल
    फिर वहाँ मनुहार क्यों हो ?
    भाव हो प्रतिकार का फिर
    याचना का निर्वाह क्यों हो
    "सारे के सारे शब्द जैसे अंतर्मन को स्पर्श करते गये........बेहद सम्वेदनशील स्तर पर भावनाओ और निर्वाह की अभिव्यक्ति......शब्द नहीं कुछ कहने को..आभार.."
    regards

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  3. भावपूर्ण और गहन!!

    बेहतरीन!!! अब पद्य के मैदान में नियमित दंड पेलिये. शुभकामनाएँ. :)

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  4. "जिस प्रेम में प्रतिदान न हो
    फिर उसे अवदान क्यों हो ?
    जब हो कोई पाषाण निष्ठुर
    भावना का दान क्यों हो ?"

    कविता मन को छू गयी है।
    बधाई!

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  5. सिर्फ प्रश्‍न ही प्रश्‍न .. और रचना तैयार .. वाह !!

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  6. निर्मम ह्रदय अभिव्यक्त प्रतिपल
    फिर प्रेम का उदगार क्यों हो ?
    हो मानिनी का हठ अपरिमित
    तब कभी अभिसार क्यों हो ?
    Bahut Sundar !!

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  7. वाह !अरविन्द जी ,आप तो कविता बहुत अच्छी लिखते हैं.

    -शब्द संयोजन बेहद सुन्दर बन पड़ा है.

    'हो मानिनी का हठ अपरिमित
    तब कभी अभिसार क्यों हो ? '

    सशक्त अभिव्यक्ति!

    हिंमाशु जी का आभार.

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  8. जब दर्प गर्हित दृष्टि हर पल
    फिर वहाँ मनुहार क्यों हो ?
    भाव हो प्रतिकार का फिर
    याचना का निर्वाह क्यों हो
    बहुत सुन्दर और भावमय प्रस्तुती बधाई

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  9. जब  दर्प गर्हित दृष्टि हर पल

    फिर वहाँ मनुहार क्यों हो ?

    भाव  हो प्रतिकार का  फिर

    याचना का निर्वाह क्यों हो
    बहूत सुन्दर कविता

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  10. जिस प्रेम में प्रतिदान न हो वो प्रेम ही क्या,
    बहुत सुंदर, बहुत प्यारी ओर अपनी सी लगी आप की यह कविता.
    धन्यवद

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  11. बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना.....भाव ,शब्द चयन ,प्रवाहमयता और अभिव्यक्ति अतिसुन्दर,हृदयस्पर्शी हैं...

    प्रेम में प्रिय की निष्ठुरता पर ऐसे भाव स्वाभाविक ही उभरते हैं,परन्तु ये ही प्रेम के उद्दीपक भी हैं....प्रेम केवल प्रतिदान के लिए कहाँ होता है....

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  12. जब दर्प गर्हित दृष्टि हर पल
    फिर वहाँ मनुहार क्यों हो ?

    वाह बहुत सही सुन्दर कहा ..ऐसे ही द्रष्टान्त आपको इस रास्ते पर और भी आगे बढाते चले और हमारी सवेदना के तंतुओं को झंकृत करे..शुक्रिया

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  13. hamare khayal se prem mein pratifal (Consideration) hota hi hai. Pahli baar jana ki taoo khud kavita likhte bhi hain.

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  14. मुझे इन प्रश्नों का जवाब बताने के लिए केन्ट एम कीथ साहब के पैराडॉक्सिकल उक्तियों का सहारा लेना पड़ेगा। इस लिंक पर जाकर पढ़ लें। बहुत रोचक और विचारने लायक बातें हैं। http://www.kentmkeith.com/commandments.html


    जहाँ तक मेरा विचार है
    प्रेम में प्रतिदान की कोई शर्त नहीं हो सकती,
    निष्ठुर पाषाण से कोई प्रीति नहीं हो सकती,
    भावना का दान सायास नहीं हो सकता,
    दर्प गर्हित दृष्टि मनुहार से बदल नहीं सकती,
    याचना का निर्वाह निःस्वार्थ नहीं हो सकता,
    प्रतिकार का भाव लेकर प्रेम नहीं हो सकता,
    मनुहार किसी निर्मम ह्रदय के समक्ष अभिव्यक्त नहीं हो सकता,
    मानिनी का अपरिमित हठ उसे भी चैन से रहने नहीं देता।
    अभिसार का प्रयोग प्रेम का उदगार व्यक्त करने वाले से नहीं हो सकता।

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  15. @अद्भुत ,सिद्धार्थ जी आपने तो ब्रह्मज्ञान और मोक्ष ही दिला दिया ,आप सच्चे गुरु है !

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  16. @@इतना और सिद्धार्थ जी ,
    कीथ की माने तो प्रेमी भले ही वैसा व्यवहार करे मगर फिर भी उससे प्रेम करो ही ! बल्कि सच्चा प्रेमी परित्यक्त होने पर भी प्रेम करेगा ही !

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  17. जब हो कोई पाषाण निष्ठुर
    भावना का दान क्यों हो ?...बिलकुल नहीं होना चाहिए
    निर्मम ह्रदय अभिव्यक्त प्रतिपल
    फिर प्रेम का उदगार क्यों हो ?...सत्य वचन
    कविता पर हिमांशु की छाप स्पष्ट परिलक्षित है ..आपका काव्य लेखन भी श्रेष्ठ है ..बहुत शुभकामनायें ..!!

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  18. "जिस प्रेम में प्रतिदान न हो
    फिर उसे अवदान क्यों हो ?
    जब हो कोई पाषाण निष्ठुर
    भावना का दान क्यों हो ?"
    भावों की सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
    मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  19. भावों की सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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  20. क्वचिदन्यतोऽपि पर इस कविता का आना इस नाम की सार्थकता भी सिद्ध करता है ।
    भावना के अनेक सम्पुट हैं । भाव के अनगिन व्यापार । कवित उनमें से कुछ काम के सूत्र पकड़ती है, और अभिव्यक्ति की राह चल पड़ती है ।

    नाम तो बेवजह ही दे दिया आपने मेरा । संवेदना आपकी, अनुभूति आपकी, अभिव्यक्ति आपकी - हमने तो रसास्वादन किया - हाँ बाहर रह कर नहीं, शामिल हो गये ।

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  21. SUNDAR PRASTUTI HAI BHAVON KI ... PATHHAR DIL WAALE SACH MEIN BHAAVNA KI KADR NAHI KARTE ... LAJAWAAB LIKHA HAI

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  22. बहुत सुंदर, भावपूर्ण और लाजवाब रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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  23. अरविंद जी की लेखनी और हिमांशु जी का सहयोग तो अप्रतिम होना ही है।
    "हो मानिनी का हठ अपरिमित / तब कभी अभिसार क्यों हो ?"
    इस सवाल ने और इसके अंदाज़े-बयां ने मन मोह लिया।

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  24. "हो मानिनी का हठ अपरिमित / तब कभी अभिसार क्यों हो ?"

    अच्छा जी। तो क्या तमाम जनता बेवकूफ़ है, जो सबसे ज्यादा नखरे दिखाने वाली मानिनी के पीछे सबसे ज्यादा प्रत्याशी उम्मीद लगाये बैठे हैं..

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  25. इसकी फ़ीड आज मिली. सो आज पढ पाया हूं. बहुत ही सुंदर भाव और शब्द संयोजन भी लाजवाब. यानि कि सोने पे सुहागा.

    रामराम.

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