सोमवार, 22 दिसंबर 2008

अथ श्री चिट्ठाकार चर्चा -कुछ स्पष्टीकरण !

अंगरेजी की वह मशहूर कहावत है न कि मूर्ख वहाँ तक बेधड़क चले जाते हैं जहाँ विद्वान् जाने के पहले कम से कम दो बार सोचते हैं -सो मैंने भी ऐसी ही करतूत एक सनक में कर डाली और चिट्ठाकार चर्चा छेड़ दी ! पहली चर्चा में जाहिर है मेरे प्रिय कन्टेम्पोरेरी क्लासिक ब्लागरों- सारथी के शास्त्री जी और उन्मुक्त जी जो कई बात व्यवहार में दो विपरीत ध्रुव् सरीखे हैं का ही उल्लेख होना था और वे मेरे बेसऊरपने की जद में आ ही गए ! बहरहाल ,उस पोस्ट पर जो टिप्पणियाँ आयी उससे मेरी आँखें अकस्मात खुल गयीं ! मैं कोई बड़ा तीर नही मारने जा रहा था -अनूप शुक्ल जी ऐसी वैसी चर्चाएँ n जाने कब की कर के छोड़ चुके हैं और वह भी बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से ! अब वे भी ठहरे एक पुरातन-चिर नवीन /चिर प्राचीन जमे जमाये चिट्ठाकार और कभी कभी तो लगता है कि यहाँ ब्लॉग जगत की कितनी बातें उन्ही से शुरू हुयी हैं और वही जाकर विराम /पनाह मांग रही हैं .और एक प्रयास यह भी है जो चिट्ठाकार चर्चा ही है हाँ थोडा चिट्ठा और चिट्ठाकार का घाल मेल जरूर हैं यहाँ पर ,पर है तो यह चिट्ठाकार चर्चा ही.
पिछली पोस्ट पर मित्रों ,सुधीजनों की इतनी उत्साहजनक टिप्पणियाँ आयीं कि मैं सहसा ही गंभीर हो गया कि लो यह मुआमला तो गले ही पड़ गया -लोगों को मुंह दिखाने लायक काम चाहिए -कोई कैजुअल वैजुअल चर्चा नही लोग बिजनेस मांगता है ,फिर कुछ टिप्पणियों ने तो दिल पूरी तरह बैठा ही दिया -रचना जी ने इतने गर्मजोशी से इस विचार को लिया और उत्साह्भरी प्रतिक्रया दे डाली कि मैं थोडा अचकचा सा गया कि कही कोई गलती तो नही हो गयी -क्योंकि वे मुझे पहले एक बार तगडे हड़का चुकी हैं -अब बेसऊर बुडबक सीधे साधे गवईं मानसिकता वाले मनई को कोई एक बार जम के हड़का ले तो उससे तो वह आजीवन हड्कता रहता है .और जी में संशय भी बना रहता है कि फिर ससुरा कउनो लफडा न हो जाय -इसलिए उनकी सकारात्मक टिप्पणी को भी मैं सशंकित सा ही देखता रहा .फिर कुश भाई ने सहज ही पूंछ लिया कि मैंने चिट्ठाकार चर्चा के बाबत कुछ योजना तो बनायी होगी ! अब तो मैं पूरी तरह अर्श से फर्श पे आ गया .ऐसी तो कोई योजना मैंने वस्तुतः बनायी ही नही थी ,वह तो एक सहज आवेग था बस बह चला -मगर आज का युवा तो प्रबंधन युग का है -कुश के इस सहज से सवाल ने मुझे और भी असहज बना दिया .हिमांशु जी ने भी कुछ अपनी अवधारणा प्रगट की और कहा कि मैं लोगों के प्रोफाईल से भी कुछ मैटर उडाऊं .डॉ अनुराग जी ने निष्पक्षता की आकांक्षा की , लावण्या जी ने बकलम ख़ुद की ओरइशारा कर इस दिशा में पहले से हो रहे उल्लेखनीय योगदान की ओर ध्यान दिलाया .
अब मेरा पशोपेश में पढ़ना लाजिमी ही हैं न मित्रों /आर्यपुत्रों ? क्या करुँ ,कैसे करुँ ? अब करुँ भी या न करुँ ! और करुँ भी तो किस किस की करुँ ? कस्मै देवाय हविषा विधेम ?? यहाँ तो एक से बढ़ कर एक हैं ? नर पुंगव ! पिशाच और भूत वैताल तक भी ! भूत भावन भी हैं तो भूत भंजक भी ! परम ज्ञानी हैं, केवल ज्ञानी हैं तो अपने ज्ञानदत्त जी भी हैं !
लेकिन मैं मैदान छोड़ कर भागने वाला भी नही हूँ -बोले तो आई ऍम नोट ए क्विटर ! आप सभी विद्वतजनों के विचार सर माथे .मगर अपनी भी एक बात कहनी है -कहनी क्या दुहरानी भर है कि ब्लॉग तो अपनी निजी डायरी है और अंततोगत्वा इसके नियम कायदे तो ख़ुद मुझे ही तय करने हैं -हाँ आप सभी लोगों के विचारों और सुझावों को मैंने गहरे हृदयंगम कर लिया है .पर लिखना तो मुझे वही है जो मुझे मन भाए -स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ! हां पूरी कोशिश यह जरूर रहेगी कि किसी का दिल ना दुखे और बात भी कह ली जाय .यह है तो बड़ा मुश्किल काम मगर असम्भव थोड़े है और आप इतने जनों की शुभकामनाएं भी तो मेरे साथ हैं .मैं अपनी चिट्ठाकार चर्चा में -
१-सम्बन्धित चिट्ठाकार के बारे में अपना परसेप्शन रखूंगा .
२-अपने दोसाला अत्यल्प ब्लागकाल में मैं अपने नजरिये से उसके व्यक्तित्व और माईंड सेट की तहकीकात करूंगा -सरकारी सेवकों की चरित्र प्रविष्टि देने के लिए चरित्र प्रविष्टि कर्ता अधिकारी को महज तीन माह का ही समय अंग्रेजों ने तय किया था -मै तो अब दो साल से यहाँ हूँ ! पर यहाँ तो कोई चरित्र प्रविष्टि देने जैसी कोई बात नही है -बस मेरे पसंदीदा /गैर पसंदीदा ब्लागर के बारे में मेरे विचार यहाँ व्यक्त होने हैं और आपके नीर क्षीर विवेक की कसौटी पर उसे देखा जाना है -प्रकारांतर से यह मेरा भी एक परीक्षण ही होगा कि मैं कितना सही हूँ या ग़लत .
३-यह किसी ब्लागर का जीवन चरित लेखन का कतई प्रयास नही है .और नही कोई ठकुर सुहाती ही !
४-पर यह चर्चा होगी व्यक्तिनिष्ठ ही ,विज्ञान सेवी होने के बावजूद भी मैं ऐसा कोई दंभ नही पालना चाहता कि मैं वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण में दक्ष हूँ .मैं एक साधारण सा मनुष्य हूँ और कई राग विराग और मानवीय कमजोरियों से ऊपर नही उठ सकाहूँ .तो गलती भी सहज संभाव्य है . इसलिए भावी चयनित-चर्चित चिट्ठाकारों से अग्रिम क्षमां मांग लेता हूँ -कुछ अंट शंट निकल जाय तो प्लीज उसे ईंटेनशनल न माने .
५-चिट्ठा कार चर्चा का उद्द्येश्य महज एक दर्पण हो सकता है - हम अपने साथियों की छवि को एक दूसरे /तीसरे की आंख में देखें .
६-यह कोई आधिकारिक चिट्ठाकार चर्चा कदापि नही है मन का फितूर भर है .उससे ज्यादा कुछ नही अतः इसे गंभीरता से बिल्कुल न लिया जाय .
अब किसकी चर्चा शुरू करें -सोचते हैं !

20 टिप्‍पणियां:

  1. जो कुछ काम चाहते हुये भी न कर पाने का मुझे अफ़सोस है उनमें एक यह भी है कि साथी चिट्ठाकारों के बारे में लगातार लिख न सका। अब आपने इस दिशा में सोचा है तो बहुत अच्छा लग रहा है। इंतजार रहेगा आपके लिखे का।

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  2. कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको कलम को हुक्म भर देना होता है बाकी जो भी लिखा जाएगा , इतिहास होगा . उन्हीं में से आप हैं . लिखिए च्रर्चा . लिखिए !

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  3. इंतजार रहेगा आपकी चर्चा का !

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  4. आपका लिखा पढने को लेकर मन रोमांचित हो रहा है ! जल्दी किजिये !

    रामराम !

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  5. नक्शा बताए बिना ही मकान दिखाना शुरू कीजिये महाराज! नक्शे पर चर्चा बाद में कर लेंगे।

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  6. अरे!! डाक्टर साहब !!

    खूब लिखिए!! जिस पर मन हो उस पर लिखिए
    जैसे लिखना हो वैसे लिखये!!
    जब लिखना हो तब लिखिए!!
    पर सोचा है तो लिख अवश्य डालिए!!


    कोई न मिले तो प्राईमरी का मास्टर तो है ही????
    अरे इसे मजाक में लीजियेगा!!!

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  7. अच्छा रहेगा साथी ब्लागरो के बारे मे चर्चा करना।इस चर्चा का सभी की तरह हम भी इंतज़ार करेंगे।

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  8. भूमिका में ही यह साल निकल जाएगा. नाव वर्ष की शुभकामनाएँ.

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  9. आप लिखे आपकी लिखी चर्चा का इन्तजार रहेगा .

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  10. बहुत अच्छा लगा लेख पढ़ कर..अगले का इंतज़ार रहेगा

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  11. सकारात्मक प्रयास हेतु शुभकामना.परन्तु ध्यान रहे,यह आग में हाथ डालने से कम नही ,सो बस ख़याल रखियेगा कि न ख़ुद जलें न कोई और जले.
    चिरंतन सत्य है,स्वप्रशंषा सब सुनना चाहते हैं, आलोचना सुन उसे सकारात्मक लेना बहुत कम के बूते ki होती है.

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  12. डा. अरविन्द जी.. मेरा एक सूत्र है.. बेधड़क !
    यदि आप इस मुहिम में सबको खुश देखना चाहेंगे..
    तो निश्चय मानिये सभी आपसे नाखुश ही रहेंगे !
    बेधड़क चर्चा शुरु करें.. आपके पीठ पीछे अनूप जी तो हैं ही..
    जिनका भी मिलता जुलता सूत्र यही है..'हमार कोऊ का करिहे !'
    तो फिर शुभस्य शीघ्रम !

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  13. आपकी कलम ऐसे चलती है, जैसे किसी बह्ती नदी की मनोवेधक धारा।... बहुत अच्छी अनुभूति हुई, धन्यवाद।

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  14. बढ़िया धार पकड़ी है आपकी लेखनी ने। बस जमाये रहिये!

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  15. अरे भाई, अब आर्यपुत्रों का ज़माना बीत गया, श्वान्पुत्रों का आ गया। देखिये तो आज का चिठाचर्चा!!

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  16. "-अनूप शुक्ल जी ऐसी वैसी चर्चाएँ n जाने कब की कर के छोड़ चुके हैं और वह भी बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से ! अब वे भी ठहरे एक पुरातन-चिर नवीन /चिर प्राचीन जमे जमाये चिट्ठाकार..... "

    शुरू कीजिये. साफ़-सफाई तो होती रहेगी.

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  17. हम तो बस्स इत्ता ही कहेँगेँ -" आमीन ":)
    स स्नेह,
    - लावण्या

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  18. चिठ्ठाचर्चा की तुलना में चिठ्ठाकार चर्चा कई गुना कठिन काम है. किसी व्यक्ति के कार्य पर तो फ़िर भी (आवश्यक हो तो) प्रतिकूल टिप्पणी की जा सकती है लेकिन स्वयं उसके व्यक्तित्व पर कैसे? डर यही है कि ज्यादा प्रशंसा नीरसता की ओर ले जाएगी (अजित जी का बकलमखुद उदाहरण है) और आलोचना अनचाहे विवादों को जन्म देगी.

    सचमुच एक बड़ी चुनौती स्वीकार कर रहे हैं आप. उत्सुकता से प्रतीक्षा रहेगी.

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