बुधवार, 10 सितंबर 2008

टिप्पणियाँ ही टिप्पणियाँ : कुछ और चिंतन !

सबसे पहले तो ये दो उद्धरण जो टिप्पणियों के बारे में हिन्दी ब्लॉग जगत के दो पुराधाओं द्वारा अभी कहे गए हैं -
निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल


-- हिन्दी चिट्ठाकारी अपने शैशवावस्था में है। आईये इसे आगे बढाने के लिये कुछ करें. आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
- शास्त्री जे सी फिलिप
ये दोनों ही आग्रह सच्चे मन से किए गए हैं -पर मुझे दुःख हुआ जानकर कि समीर जी की उक्त आशय की टिप्पणी को भी कुछ लोगों ने अन्यथा ले लिया .हम सभी यह जानते हैं कि समीर जी अपने लिए यह भिक्षा नहीं मांग रहे थे -यह लोगों से उनका एक विनम्र उनुरोध भर था .पर खल जनों ने ले लिया उन्हें आडे हाथों !
टिप्पणियाँ एक पारस्परिक संवाद का जरिया हैं ! और निश्चय ही वादे वादे जायते तत्व्बोधः के अनुसार हिन्दी चिट्ठाजगत की गुणवता में उत्तरोत्तर सुधार का संबल भी !यह अपने हिन्दी चिट्ठाजगत में अभी तो एक बहु वांछित गतिविधि होनी चाहिए जिससे सख्य भाव /भातृत्व भाव बढे और हम वसुधैव कुटुम्बकम के भाव की भी प्रतीति कर सकें ।
यह अपने पूर्वाग्रहों ,विशेषता (इलीट) बोध की संकीर्णता से ऊपर उठने का भी एक सुअवसर है -वैसी ही संकीर्णता जिससे बचने का उद्घोष इस वैदिक ऋचा में हुआ है -
अयं निजः परोवेति गणना लघु चेत्साम
उदार हृदयानाम तु वशुधैव कुटुम्बकम !
( यह मेरा यह तेरा तो क्षुद्र मानसिकता वाले करते हैं उदार लोगों के लिए तो यह जगत ही परिवार सा है !)
तो क्या हम उदार हृदय नहीं हैं ! अपनी लघुता में ही आत्म मुग्ध बने रहना चाहते हैं ?अपने ही परिवार की सुध हमें नहीं है ?
चलिए आप थोक में टिप्पणियाँ न करे -समय नही है ,दुनिया में और भी गम /काम हैं इक ब्लॉग्गिंग के सिवा ......पर जनाबे आली कोई अगर आपके लेखन की लगातार चारण परमपरा में गुणगान किए जा रहा है तो आख़िर एकाध बार तो पसीजें हुजूर ! यह इक तरह से शिष्टाचार भी तो है -आप के घर कोई विशिष्ट व्यक्ति कई बार आये और आप उसके यहाँ जाने तक को अपनी तौहीन समझे या समय न होने की बहानेबाजी करते जाएँ -यह क्या उचित है ?यहाँ हर ब्लॉगर विशिष्ट है -सकल राम मय सब जग जानी !
इक दूसरे को सम्मान देना ,प्रत्युपकार करना यह आज के सभ्य समाज के ब्लू बुक में भी है -आप अपनी लम्बी लम्बी पोस्टें ठेलें जा रहे हैं ,टिप्पणियों से आत्म विमुग्ध होते जा रहे है पर दूसरों के लिखे पर टिप्पणी करना आपको गवारा नहीं है -क्योंकि आप विशिष्ट है ,आपके पास समय नहीं है ,और ब्लॉगर तो गधे हैं रेंके जा रहे हैं उन्हें साहित्य की समझ नही है आदि आदि बहाने आपने ख़ुद गढ़ रखे हैं .अरे भाई ! जब इतना समय नहीं तो काहें इतनी लम्बी पोस्ट कर रहे हैं ! क्या उसमें से कुछ क्षण निकाल कर शिष्टाचार ही वश दूसरे को पढ़ लेने और इक शब्द की टिप्पणी ही करने को समय नहीं निकाल सकते आप ? समीर जी और शास्त्री जी का कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि इससे प्रकांतर से हिन्दी चिट्ठाकारिता का ही विकास होगा ! क्या आपको इस संभावनाशील अभिव्यक्ति के माध्यम को विकसित करने में कोई रूचि नहीं ? क्या आप अपनी कोई प्रतिबद्धता नही समझते ?? क्या महज आत्म परचार ,आत्मोन्नति ही आपका लक्ष्य है ??
मुझे तो दूसरे क्या लिख पढ़ रहे हैं यह जानना , टिप्पणी करना अच्छा लगता है -पर मैंने भी महज कुछ प्रवृत्तियों को चेताने के लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया है ! जो १० बार विजिट ( सन्दर्भ :शास्त्री जी )करने के बावजूद भी आपके घर ना आए उसके लिए करें सविनय अवज्ञा आन्दोलन -बोले तो गांधीगीरी ! जिससे उनका आसन तो डोले ...गुरुडम तो चरमराये !
मित्रों , मैं आपको पढ़ना चाहता हूँ और टिप्पणी भी अनिवार्यतः करना चाहता हूँ क्योंकि आप मुझे पढ़ते है और अपनी स्नेह भरी ,प्रेरणा भरी ,आत्मीयता से ओतप्रोत टिप्पणियाँ भी करते हैं -यह अनुग्रह मेरी संवेदनाओं को गहरे संस्पर्श करता है -मैं कैसे इतना अनुदार हो सकता हूँ कि आपको आभारोक्ति के चन्द शब्द ना कहूं -पर यदि मुझसे कोई अनदेखी हो जाए तो कृपा कर मुझे टोंके और यदि चाहते हैं कि मैं आपको पढू या मेरी प्रतिक्रया -टिप्पणी आपके लिए मायने रखती है तो कहें जरूर मैं यथा सम्भव आप तक अवश्य आउंगा -आप मेरा इन्तजार कर सकते हैं -मैं कृतघ्न नहीं हूँ ! और ना ही किसी विशिष्टता बोध से ग्रसित ही और समय भी निकाल ही लिया जायेगा ! माफ़ करिएगा आपका काफी समय जाया किया पर शायद यह जरूरी था ....!

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपने एकदम द पोइण्ट लिखा है . मान गए गुरु .

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  2. padhna,padhkar samajhana, aur samajh kar tippani karna ,nishit rup se likhne waalon ka hausala badhata hai,sahi likha aapne ,aabhar aapka .

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  3. टिप्पणी पुराण :) यह मसला अब मसाला फ़िल्म जैसा लगने लगा है :) पर यह भी सच है कि यही एक दूजे के लेखन से जोड़े रखता है | लिखे को कोई पढ़े यही इच्छा सबकी रहती है ..इसी तरह से ब्लोगिंग की दुनिया आगे बढेगी ..

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  4. आपने लिखा सही है। पर आजकल मूड कुछ सन्ता सिन्ग छाप हो रहा है। सन्ता कमीज और टाई पहने थे और नीचे मात्र कच्छे में थे।
    ऊपर के वस्त्र इसलिये कि कोई मिलने आ जाये, तो!
    और नीचे इस लिये कि कभी कोई मिलने नहीं भी आता!
    सो मन पढ़ने टिप्पणी करने का होता भी है और नहीं भी होता! :-)

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  5. " ya very well said and described. thanks for making understand every body about it"

    Regards

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  6. कोई भला आदमी कभी कहता था की अपेक्षा सबसे बड़ी बीमारी है ,एक आदमी आपको नमस्कार करे बिना निकल गया आप परेशां हो गए की भला आदमी आज क्यों नही कर गया ?ब्लॉग जगत में भी ऐसा ही है ,की फलां आदमी मुझ पर रोज टिपण्णी करता था आज क्यों नही आया ?परेशां है ?कई साहेब तो मेल ठेल देते है ....की भइया आये नही ,कई लोग सीधा कह देते है भिय्या आ जायो नाराज न हो ....आप पिछली पोस्ट पे नही आये नाराज थे क्या ?हम समझते थे की बिना प्रशंसा के किसी को प्रसन्न नही किया जा सकता ओर बिना झूठ बोले किसी की प्रशंसा नही की जा सकती (हालांकि डॉ अमर जी इसका अपवाद है )रवि रतलामी जी ने एक बार बहुत ठीक लिखा था की हर आदमी अपनी पोस्ट को लिख कर समझता है की वह देखो मैंने कितनी महान पोस्ट ढेल दी ....उस ऑरकुट पर जिसे कई भद्र जन लौंडो का अखाडा कहते है ,ओर जहाँ ज्यादातर जमात २३-२४ साल के लोगो की है वहां फ़िर भी लोग एक अच्छी कविता लिखने पर एक दूसरे की पीठ थपथपाते है ,हौसला अफजाई करते है ....अजीब बात है की वहां अंहकार नही दिखता ? अंहकार की भी कोई उम्र नही होती ?इतने दिन हो गए मुझे ब्लॉग जगत में मुझे आज तक समझ नही आता ये बड़े ब्लोगर कौन है? उम्र में बड़े ?कद में बड़े ?किस चीज में बड़े ?आपको सब पढ़े ओर आप किसी को न पढ़े ?यही है भाई ?
    चलते चलते .......हम जरा देख ले आपने हमारे ब्लॉग पे टिपिया है की नही ?

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  7. बहुत दिन के बाद उस दिन उड़नतश्तरी जी ने मेरे ब्लाग पर भी टिप्पणी की थी , उन्ही पंक्तियोa के साथ , जिसमें सभी ब्लोगर भाइयों को दूसरों के ब्लोगों पर टिप्पणी करने का संदेश था। मुझे तो कुछ भी गड़बड़ नहीं लगा , उन पंक्तियों में । वैसे भी उनके पोस्टों में कोई कम टिप्पणी तो होती नहीं थी कि वे अपने लिखे में टिप्पणी करने को किसी को कहते।

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  8. उड़न तश्तरी का कहना बिल्कुल ठीक है.
    ब्लॉग एक तरफा संबाद न बनकर रह जाए , अतः आवश्यक है की एक दूसरों के ब्लॉग पढ़कर उस पर टिप्पणी की जाए , जिससे द्वि तरफा संबाद कायम कर विचारों और ज्ञान का प्रचार प्रसार किया जा सके अवं हिन्दी ब्लॉग की दुनिया को निखारने और सवरने का सुभ अवसर प्रदान किया जा सके.

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  9. उड़न तश्तरी जी का कहना बिल्कुल ठीक है.
    ब्लॉग एक तरफा संबाद न बनकर रह जाए , अतः आवश्यक है की एक दूसरों के ब्लॉग पढ़कर उस पर टिप्पणी की जाए , जिससे द्वि तरफा संबाद कायम कर विचारों और ज्ञान का प्रचार प्रसार किया जा सके अवं हिन्दी ब्लॉग की दुनिया को निखारने और सवरने का सुभ अवसर प्रदान किया जा सके.

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  10. मेरा मानना है कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक हमेशा जो दूसरों का हौसला बढाने, उनकी मदद करने को उत्‍साहित रहते हैं और दूसरे जो स्‍वयं में आत्‍ममुग्‍ध रहकर दुनिया को धन्‍य करते हैं। अफसोस का विषय यह है कि दुनिया में दूसरे टाइप के लोगों की संख्‍या ज्‍यादा है।

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  11. बात निकली है तो कुछ मै भी कहता हूँ। टिप्पणी दिल से की गयी हो तो सचमुच उपयोगी है। यदि यह महज औपचारिकता है तो यह प्रथा बन्द होनी चाहिये। समीर जी को इतनी टिप्पणिया करनी होती है कि वे महज शीर्षक या आखिर की चार लाइन पढकर कुछ भी टिपिया देते है। बडी कोफ्त होती है। ऐसी बेमतलब की टिप्पणी के क्या मायने। आप जब अखबारो मे लिखते है तो एक भी टिप्पणी नही आती फिर भी आप लिखते है। यहाँ अनोनिमस का बोलबाला है। अच्छे-अच्छे लेखको को गाली दे दी जाती है। नारियो को भी नही बख्शा जाता। हिंन्दी ब्लाग जगत कहने को परिवार है पर मुखिया के न होने से बेहद खराब वातावरण है। इस सन्दर्भ मे टिप्पणी करने या ना करने पर खुलकर चर्चा करनी चाहिये। रोज दस या बीस टिप्पणी की जगह हफ्ते मे एक भी करे पर सही मायने मे करे तो यह सबके लिये बढिया रहेगा। बाकि तो वाह, क्या लिखा है, लिखते रहे, दद्दा या भैया दिल खुश कर दिया, ---यह सब खोखले विचार तो हम पढते ही रहते है। शांति से विचारे तो इसका कोई मतलब नही है। बाकी आप समझदार है, मै क्या बोलूँ। समीर जी आदमी अच्छे है। मेरे लिखने का मतलब उनपर लाँछन न समझा जाये पर जिस दिन वे सही मायने ने चुनिन्दा टिप्पणी करेंगे उनकी छवि मे चार चान्द लग जायेंगे।

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  12. माफ़ करिएगा आपका काफी समय जाया किया पर शायद यह जरूरी था ....!

    जी आप ने समय जाया नही किया बल्कि अच्छा किया ! आपकी बातो से हम सहमत है !
    और आदरणीय ज्ञान दत्तजी का कथन "सो मन पढ़ने टिप्पणी करने का होता भी है और
    नहीं भी होता! :-)"
    अत्यन्त ही उपयुक्त है ! थोडा बहुत हम लोगो को उधार भी कर लेना चाहिए ! धन्यवाद

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  13. आप बहुत उदारमनस्क हैं अत: 10 की सीमा तय की है. यदि पांच टिप्पणी के बाद कोई आपके चिट्ठे पर नहीं पधारता तो उसका बहिष्कार कर देना चाहिये क्योंकि वे "वसुधैव कुटुम्बकम" से अनछुए लोग हैं.



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- हिन्दी चिट्ठा संसार को अंतर्जाल पर एक बडी शक्ति बनाने के लिये हरेक के सहयोग की जरूरत है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  14. खरी खरी जी की बात तो है बिल्कुल खरी. बुरा मानने का प्रश्न ही नहीं.

    बस, जो अंतर है वो यह कि आप टिप्पणी को विश्लेषण मान रहे हैं और मैं प्रोत्साहन.

    शैशव अवस्था में विश्लेषण से ज्यादा प्रोत्साहन की आवश्यक्ता है, अति आवश्यक होने पर विश्लेषण भी सही है. समय आयेगा जब सिर्फ विश्लेषण की ही आवश्यक्ता रह जायेगी और उसका निश्चित ही इन्तजार रहेगा.

    तब तक कृप्या साथ दिजिये और कोफ्त मत खाईये, प्लीज!! :)

    ---------------

    आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.

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  15. ठीक समीर जी। लीजिये हिन्दी ब्लाग काँव-काँव की पहली पोस्ट आपकी वापसी के नाम


    उडनतश्तरी वापस धरती पर

    http://hast-rekhaa.blogspot.com/2008/09/blog-post.html

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  16. बहुत ही सही लिखा आप सब ने धन्यवाद

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. अयं निजः परोवेति गणना लघु चेत्साम
    उदार हृदयानाम तु वशुधैव कुटुम्बकम!


    बड़ी बात कही है आपने - तो फ़िर छोटी बातों को दिल से लगाना क्या? दूसरे शब्दों में छोटी बातों से दिल का दुखाना क्या? दिल करे तो टिप्पणी कर दें, न करे तो कोई बात नहीं. मैं तो विचार मिलने पर, विचार न मिलने पर, अच्छा लिखा होने पर अक्सर टिप्पणी कर ही देता हूँ. हाँ समय न होनेपर, बहुत गूढ़ और हम जैसे अल्पबुद्धि के समझ में न आने वाली बात हो, या पहले ही ९९ टिप्पणियों की बरसात हो तो छोड़ भी देता हूँ. सही लिखा होने पर प्रशंसा में और ग़लत लिखा होने पर सुधार की नीयत से टिप्पणी करता हूँ मगर कोई तो उसे पढ़ते ही नहीं हैं और कोई अर्थ का अनर्थ ले बैठते हैं. एक महारथी दूर के इतिहासकार तो नाराज़ भी हो गए.

    अरे भाई, लोग लिख रहे हैं क्योंकि वे कुछ कहना/लिखना चाहते हैं न कि इसलिए की वे कुछ टिप्पणी चाहते हैं?

    हाँ, पाण्डेय जी की बात पसंद आयी मगर मैं उस पर टिप्पणी नहीं करूंगा वरना कोई और टिप्पणीकार रेसिस्ट होने का ठप्पा लगा देगा - क्या पता कल मेरे विरोध में एक नया चिटठा ही खुल जाए.

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