शनिवार, 28 जून 2008

स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ......!

मेरे विज्ञान के ब्लॉग हैं .मगर मुझे विज्ञान के इतर भी अक्सर कुछ कहने की इच्छा होती है .विज्ञान के ब्लागों पर मैं अपने को बहुत बंधा पाता हूँ -विज्ञान का अनुशासन ही कुछ ऐसा है ।इसलिए संत महाकवि तुलसी से उधार लेकर उन्ही के शब्दों को इस ब्लाग का शीर्षक बनाया .विज्ञान से परे ,उससे इतर स्रोतों से -इधर उधर से भी जो यहाँ कह सकूं -क्वचिदन्यतोअपि .......
यह भी स्वान्तः सुखाय है .ताकि इसके सरोकारों /निरर्थकता /सार्थकता को लेकर कोई बहस हो तो यह स्वान्तः सुखाय का लेबल मेरी ढाल बन सके ।
यह तो इस ब्लॉग का नामकरण सन्दर्भ हो गया ....अब अगली पोस्ट देखिये कब होती है ..किसी ने क्या खूब कहा है कि ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज रोज होते हैं ?यह नामकरण की पोस्ट कुछ कम थोड़े ही है -यह आत्मश्लाघा की बेहयाई करते हुए कह रहा हूँ .....शंकर .....शंकर .....

5 टिप्‍पणियां:

  1. आप का यह ब्लाग पसंद आएगा। बस फोन्ट साइज कुछ बड़ी कर दें गहरे पर हलके रंग के शब्द होने से आवश्यक जान पड़ा।

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  2. शुक्रिया द्विवेदी जी और स्वागत ,आप इस चिट्ठे के पहले पाठक हैं ....यह यादगार हो गया और मेरा सौभाग्य भी .
    आप सरीखे पाठक ब्लॉग जगत में एक लाख के बराबर हैं .
    अभी टीथिंग ट्रबुल चलेगी .पर आपका स्नेहाशीष रहेगा ,प्रेरणा से इसे गति मिलेगी ही .
    पुनः धन्यवाद !

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  3. आपका नया ब्लॉग देखकर अच्छा लगा। इसका नाम बडा अनोखा है। कृपया इसपर थोडा प्रकाश डालें।

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  4. जाकिर भाई ,जिज्ञासा के लिए शुक्रिया -रामचरितमानस की प्रस्तावना में ही तुलसी ने इस महाकाव्य के सन्दर्भ स्रोतों के उल्लेख में लिका है -नाना पुराण निगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदय्न्तोअपि ...स्वानतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा भाषा निबंध्मति मंजुल मात्नोति .
    यानि उन्होंने काव्य सामग्री के लिए नाना पुराणों, वेद, तंत्र साहित्य और वाल्मीकि रामायण में जो वर्णित है के अलावा कुछ अन्यत्र स्रोतों से भी सामग्री एकत्रित की ----
    तो यह चूंकि मेरे मुख्य ब्लागों के अलावा एक ब्लॉग है तो इस पर वर्णित होने वाले विषय कुछ इदर उधर .छित पुट हे रहेंगे ....
    मुझे उक्त नामकरण से अछा कोई नाम नहीं सूझा तो रख लिया ...और शायद यह नामकरण मौलिक है .

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