एक दिन फेसबुक पर मैंने यह जुमला क्या छेड़ा कि गुरु तो गुरु ही होता है(आदि आदि ) तो इस पर काफी चर्चा हो गयी. संतोष त्रिवेदी ने पलट वार किया की मगर चेला चेला ही नहीं रह सकता वह गुरु भी हो सकता है - अली सईद साहब इसी उत्तर की ही बाट जोह रहे थे -इस अपडेट पर लपक ही तो पड़े। कहा, देखा न चेला पलटी मार गया। काफी चर्चा हुयी, गुजिश्ता टाईम के ब्लॉगर मित्र जिन्होंने अपने ब्लॉग की सुध बिसरा दी है वहाँ आ जुटे और अपना अपना दर्शन झाड़ा और हमारा ज्ञान वर्धन किया। हमने भी ब्लॉगर तो ब्लॉगर ही होता है कि तर्ज पर सबकी फेसबुकीय टिप्पणियां झेलीं।
मजे की बात यह हुयी कि इसी मुद्दे पर उस रात मैंने एक सपना देखा। देखा कि उसमें अपने जमाने के कई धुरंधर ब्लॉगर्स एक ब्लॉगर मीट कर रहे हैं। विषय था गुरुओं में गुरु और उनमें भी गुरु घंटाल की पहचान । विषय प्रवर्तन मैंने किया था। मैंने कहा कि भारत के गुरुओं की महान परम्परा में ही आधुनिक गुरुओं की एक श्रेणी गुरु घटालों की होती है। और सम्भवतः बिगड़े शिष्य ही आगे चलकर गुरु घंटाल बन जाते हैं। यहाँ भी अली भाई ने तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त की -प्रत्यक्षं किम प्रमाणं। मैंने उन्हें इशारे से आगे कुछ भी कहने से रोका। संतोष त्रिवेदी भला कहाँ अपने को रोक पाने वाले थे -उन्होंने कहा कि मेरे निगाह में तो बस एक ही गुरु घंटाल है जो इन दिनों पहले की तुलना में कुछ कम सक्रिय है मगर अभी भी गुरु घंटाल नंबर वन है, अब ब्लॉगर लोगों की जिज्ञासा यह थी कि आखिर यह गुरु घंटाल होता क्या है और यह किस तरह अन्य गुरुओं से अलग होता है। सतीश सक्सेना जी ने कहा कि मुद्दा अहम है और इस पर वे जल्दी ही वे कुछ अपने गीत के माध्यम से लिखेगें।
अपने समुदाय की अकेली नुमायन्दगी कर रही वाणी गीत शर्मा जी ने एक मासूमियत भरा सवाल पूछा कि क्या महिलाओं में भी गुरु घंटाल होती हैं? तभी किसी ओर से आवाज आयी कि उन्हें तो गुरु घंटालिने कहना चाहिए। मगर आदरणीय दिनेश द्विवेदी जी ने कहा कि ये शब्द लिंग निरपेक्ष होते हैं अतः महिला वकील को वकीलाइन कहना जैसे गलत है वैसे घंटाल को घण्टालिन कहना गलत है। इस पर कुछ आपत्तियां और आयीं और यह पक्ष प्रस्तुत किया गया कि वकील की पत्नी को वकीलाइन कहने का चलन समाज में तो है। बहरहाल फिर से बात गुरु घंटाल पर आकर रुक गयी। किसी ने सहजता से पूछा गुरु घंटाल के लक्षण क्या क्या हैं। अभी तक अनूप शुक्ल जी काफी चुप से बैठे थे। उन्होंने कहा कि परसाई जी ने इस पर काफी लिखा है मगर अभी तो उन्हें याद नहीं, हाँ देखकर ही वे बता पायेगें। तब तक एक कोने से गिरिजेश राव जी और बेचैन आत्मा गलबहियां डाले दिखे। गिरिजेश राव ने कहा कि व्युत्पत्ति शास्त्र के मुताबिक़ गुरु घंटाल का कोई न कोई संबंध घंटे से होना चाहिए। उनका आशय मंदिर में बजने वाले घंटे से था। अब तक शिल्पा मेहता जी भी दिखाई दे गयीं थी, इससे वाणी गीत जी के चेहरे पर एक तसल्ली का भाव उभरा। शिल्पा मेहता जी ने गिरिजेश जी की बात का अनुमोदन करते हुए कहा हाँ गुरु घंटाल शब्द में कुछ पण्डे और घंटे का भाव समाहित लगता है।
तभी डॉ तारीफ़ दराल साहब और जनाब महफूज अली भी मुझे साथ साथ बैठे दिखाई दे गए . उन्होंने कहा कि जो भी महफूज जी का विचार होगा वही उनका भी मंतव्य समझा जाय। महफूज ने कहा कि दोनों लिंगों के गुरु घंटालों से उनका पाला तो कई बार पड़ा है मगर वे जो कुछ भी इस मुद्दे पर कहना चाहते हैं अंगरेजी में ही कहेगें। इस पर विवाद हो गया कि हिंदी ब्लागरों के बीच आंग्ल भाषा का क्या काम? महफूज जी ने चुप्पी साधना ही उचित समझा। मुझे और कई ब्लागरों के चेहरे दिखाई पड़ रहे थे मगर वे सभी चुप चाप इस बहस का बस श्रवण लाभ कर रहे थे। प्रवीण त्रयी को भी मैंने देखा और समीरलाल जी को भी मगर उनकी चुप्पी माहौल को असहज बनाये हुयी थी। आचानक एक बड़ा शोर सा होता लगा और मैंने देखा कि श्रीमती जी साक्षात सामने आग्नेय नेत्रों से मुझे घूर रही हैं -कब तक सोते रहेगें आज ,आफिस नहीं जाना क्या ? स्वप्न टूट गया था मगर मेरे जेहन में यही सवाल बार बार उमड़ घुमड़ रहा था कि गुरु घंटाल आखिर किसे कहते हैं और उसके लक्षण क्या क्या हैं और वह कैसे अन्य गुरुओं से अलग है? अब आप लोग ही मेरी यह जिज्ञासा दूर करिये न।
द्वावा त्याग : कृपया नए पुराने, भूतपूर्व और अभूतपूर्व ब्लॉगर इस स्वप्न चर्चा को अन्यथा न लें। यह बस एक निर्मल हास्य है जिसका अभाव इन दिनों ब्लागिंग और जीवन में भी बहुत कम हो गया है। तथापि अगर कोई बंधु बांधवी अपना नाम यहाँ से हटाने को कहेगें तो ऐसा सहर्ष कर दिया जायेग!
ऐसे सपने आना गुरूघंटालों का मुख्य लक्षण है :-)
जवाब देंहटाएंवैसे मैंने फेसबुक पर ही एक बार गुरुपूर्णिमा पर सभी गुरुओं और गुरूघंटालों को प्रणाम कह दिया था जिससे कई संभ्रांत ब्लॉगर रुष्ट हो गए थे। हमें तो गुरूघंटालों से कोई दिक्कत नहीं,अक्सर दिक्कत गुरु ही पैदा करते हैं।
गुरूघंटालों की शरण में जाने से जीवन धन्य हो जाता है :-)
ताराचंद सहित इलाहाबाद के तमाम छात्रावासों में वरिष्ठों की रैगिंग अच्छी तरह से झेलने वाले छात्र विश्वविद्यालय की मठाधीशी में उनसे आगे निकल जाने पर गुरुघंटाल बनते थे.
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गुरुघंटाल बोले तो , जो गुरुधर्म का घंटा अपने गले में लटकाए तो रहे पर गुरू जैसा कर्म कभी न करे ।
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wow. nice definition :)
हटाएंगुरु ही आशाराम होने पर गुरु घंटाल हो जाता है।
जवाब देंहटाएंplease note my objection. the case is not completed, neither is he convicted.
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जवाब देंहटाएंगुरु में पैदा विक्षोभ मसलन गुरु का तमो -प्रधान हो जाना यकायक उसमें तमोगुण बढ़ना उसे घंटाल की उपाधि दिलवा देता है। गुरु का विचलन गुरु घंटाल है।
घंटाल नामक संस्था के गुरु और उन गुरुओं के गुरु को शायद गुरु-घंटाल कहते हों ...
जवाब देंहटाएंगुरु घंटाल बोले तो श्री श्री १००००८ अनूप शुक्ल एवं श्री श्री श्री १०००००८ ताऊ जी महाराज के सिवाय और कौन हो सकता है !!
जवाब देंहटाएंये कितने शून्य हैं ? :)
हटाएंउन्हीं को गिनने दें न :)
हटाएंअरे मैं भी गिन ही रहा था -एक दो ज्यादा तो नहीं हो गए?
हटाएंअसली वाले तो आये ही नहीं अभी तक :-)
हटाएंइतने ही होने चाहिए :)
हटाएं:)
हटाएंइस आधुनिक युग में
जवाब देंहटाएंहर शब्द के अर्थ
आधुनिक हो गए है,
रोज जिनकी
करनी पड़ती हो पूजा
चढाना पड़ता हो चढ़ावा
वे ही गुरु, वे ही गुरु घंटाल
कहलाते है !
परिहास-पूर्ण प्रशंसनीय प्रस्तुति । मज़ा आ गया ।
जवाब देंहटाएंओह यह सब सपने में हो रहा था? वही मैं कहूँ कि यह सब चर्चा कब की हम सबने?
जवाब देंहटाएं:) :)
इसी सोच में हम भी पड़े कि गुरुघंटालिनों के बारे में हमने कब पूछा !!
हटाएंमन में राम, बगल में छूरी= गुरु घंटाल
जवाब देंहटाएं:)
जो अपनी गुरुता का घंटा बजवाता फिरे वह हुआ गुरुघंटाल...
जवाब देंहटाएंपूजा आरती के समय मंदिरों में जो घंटा बजता है वह भक्त जनों को उनके आराध्य के प्रति भक्तिभाव से रोमांचित करता है। वही रोमांच ये गुरू लोग अपने चेलों में अपने लिए चाहते होंगे।
अच्छे अर्थ में नहीं है। व्यंग्योक्ति है। अपने स्वार्थ में अत्यधिक चालाकी, कह लीजिए धूर्तता करने वाले व्यक्ति को गुरूघंटाल से नवाजते हैं। जैसे बनारस में..(शायद यह शब्द बनारस की ही उपज हो).. उनसे बच के रहिया ऊ बहुत 'गुरू' हउअन..गुरू मत कह पूरा 'गुरूघंटाल' हउअन।
जवाब देंहटाएंहाँ..पोस्ट मजेदार है। बहुत दिनो बाद ब्लॉगिंग में हलचल दिख रही है।
जवाब देंहटाएंक्या ख़ाक हलचल -दस ठो टिप्प्णियों पर :-)
हटाएंइतनी बर्फ पड़ गयी है कि बेलचे चाहिए और कामगार मजदूर!
गुरुघंटालिन वाला सवाल हमसे काहे पूछवाया !
जवाब देंहटाएंश्रीमती जी आग्नेय नेत्रों से घूर रही थी - ये तो सम्भव नहीं है। संध्या भाभी तो बहुत शांत स्वाभाव की दिखती हैं !
बाकी गुरु घंटाल तो , हम कभी गुरुओं के चक्कर में पड़े नहीं सो हमको पता नहीं !
हम तो फेसबुक से फेस मोड़े बैठे हैं इसलिए हो सकता है इन सब गतिविधियों से वंचित रह गए... यह शुभ लक्षण है कि आपको ब्लॉग के सपने आने लगे हैं... सपने सच हों तो अधमरी हालत में पड़ा ब्लॉग जगत फिर से चहचहाने लगेगा.. कटाक्ष, तुलनाएँ, रूठने-मनाने का दौर फिर से चालू होगा.. और पण्डित जी, ऑटॉमैटिकली उनके बीच से कोई न कोई गुरुघंटाल भी निकल ही आएगा! तब पकड़कर पूछेंगे कि होली से पहले बता दे भाई कि इसका मतलब क्या है!!
जवाब देंहटाएंपुनश्च: अली साहब एक बार मुझे टोक चुके हैं..इसलिए उनका नाम सुधार कर अली सैयद कर लीजिए.. सईद तो जाफरी हैं! :)
सलिल जी ,
हटाएंये दूसरे हैं :-)
सलिल भाई शुक्रिया :D
हटाएं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन टेलीमार्केटिंग का ब्लैक-होल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
पढ़कर आनन्द आ गया सर |
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा जाकर पढ़नी पड़ेगी, इतने गुरु साथ बैठे हैं तो कुछ न कुछ तो घंटनाद होगा ही।
जवाब देंहटाएंनिर्मल हास्य वाली पोस्टें भी दावा त्याग करके लिखनी पड़ेगी! क्या दिन आ गये। क्या तो शेर है:
जवाब देंहटाएंआजकल तो उतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में,
जितनी कभी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।
ye to bahut bari na-insafi hai................
हटाएंpranam.
आज कि ब्लॉगिंग हलचल बहुत ही मजेदार है जी
जवाब देंहटाएं: आप किसी भी वाकये को शब्दों में बहुत उम्दा ढंग से बाँध लेते हैं :) अच्छा लगा पढ़कर
जवाब देंहटाएंजैसे सांख्य में कहा गया है कि जब तक आग नहीं लगी होगी तब तक धुआँ नहीं उठ सकता और केवल इतनी सी बात को ही कई तरीके से कहा गया है, और हमने तो इसके २५० से ज्यादा पेज पढ़े हैं, तो यह बात समझ आई कि गुरू गुरू ही होता है, चेला गुरू ना हो जाये इसके लिये बहुत तगड़ी राजनीति चलती रहती है।
जवाब देंहटाएंलगता है होली कहीं आसपास ही है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
नींद में भी मारक क्षमता कम नहीं होती आपकी :)
जवाब देंहटाएंजबरदस्त ! ......इसको कहते हैं ड्राई वाश ! :) ;) हंसी रुक नहीं रही है ......कितना अच्छा समराईज़ेशन है !
जवाब देंहटाएंजिन्होंने इतना ज्ञानवर्धक स्वप्न बीच में ही तोडा उन्हीं से ज्ञान वर्धन करने को कहें. अन्यथा कहिए वे पहले पूछ लें कि सपना तो नहीं देख रहे और आश्वस्त होने पर ही आपको जगाएँ.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
होली की शुरुआत कर दी आपने:)
जवाब देंहटाएंआपके इस स्वाप्तिक विमर्श से हमारा ज्ञानवर्धन भी हुआ.
जवाब देंहटाएंगुरू घंटाल महोत्सव का आनंद उठाया जा रहा है..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंएक लम्बा समय बीत चुका है और हमे एक नए पोस्ट का इंतज़ार है.
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