कहते हैं कुछ दिनों पहले नवाज शरीफ ने अपने प्रधान मंत्री को देहाती औरत कह दिया जो कथित तौर पर रोज रोज पाकिस्तान को लेकर ओबामा के पास जाकर रोना रोते रहते हैं। इस पर तरह तरह की समीक्षायें ,टीका टिप्प्णियां और भाष्य हुए . मोदी ने इस बात की निंदा की . बात आयी गयी हो गयी . मगर अभी कल ही एक बिहारी नेता ने अपने मुख्यमंत्री नितीश जी को भी देहाती औरत कह दिया जो मोदी को लेकर निंदा पुराण बाँचते रहते हैं . कहा गया कि नितीश मोदी से इर्ष्या रखते हैं . आखिर देहाती औरत से अभिप्राय क्या है ? बिहार से लेकर पाकिस्तान तक के एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में यदि देहाती औरत से कोई समान अभिप्राय निकलता हो तो यह एक महत्वपूर्ण विवेचन का विषय निश्चित ही है .
मेरा लालन पालन और एक उम्र तक निवास भी ग्रामीण परिवेश में ही हुआ है . अब भी छठे छमासे गाँव आना जाना होता रहता है और सेवा निवृत्ति के बाद गाँव में ही बस जाने का प्लान है . देहाती औरत का विशेषण मेरे भी समझ में बिल्कुल बेजा ही नहीं है . सभी नहीं मगर गाँव की ज्यादातर औरतों में मैंने सहजता का ज्यादा आग्रह देखा है .शहरों का मिथ्याचरण (सोफिस्टिकेशन) उनमें नहीं होता . सभी मानवीय आवेग -गुस्सा, प्रेम,घृणा और द्वेष और उनका प्रगटीकरण उनमें अपने मौलिक रूप में देखे जा सकते हैं . वे जबर्दस्त झगड़ालू ,स्नेहमयी ,प्रेममयी सब हैं . गालियां देने में भी उनकी कोई सानी नहीं है . बहुत सहज होकर वे 'सुभाषितम' का धड़ल्ले से आपसी विनिमय करती हैं . जैसे कोई अनुष्ठान का धाराप्रवाह मंत्रोंच्चार हो रहा हो . मैं तो आज भी इस अनुष्ठानिक कलरव से लज्जावश नेपथ्य में हो लेता हूँ . कहीं कोई यह न देख ले कि मैं इस नारी -निनाद का रससिक्त श्रवण कर रहा हूँ .
देहात की औरतों की इस सम्भाषण स्पर्धा में लैंगिक विशेषणों का धड़ल्ले से प्रयोग होता है जो कभी कभी मुझे उनकी यौन विषयक कुंठाओं का आभास सा देता है और बहुत सम्भव है कि उनके दैनिक सम्भाषण से उनकी कतिपय कुंठाओं का कुछ शमन भी हो जाता हो . इसके अलावा गाँव की ज़िंदगी अभावों की और काफी श्रम साध्य होती आयी है तो उनसे मनोमुक्ति के लिए भी कोई मनोरंजन और टाईम पास चाहिए सो एक गाली गलौज के संवाद का सेशन भी क्यों न हो? मेरी एक अंतर्जालीय घनिष्ठ मित्र ने उत्कंठा वश मुझसे कभी उन लैंगिक विशिष्टियों युक्त गालियों को बताने को कहा था जो प्रायः ग्राम्य वधुओं द्वारा इस्तेमाल में आती हैं -मैं उन्हें संकोचवश बता नहीं सका था . आपके मन में कौतुहल हो तो मुझे अलग से मेसेज कर सकते हैं -एक और कोशिश कर सकता हूँ . अब तो टेलीविजन आदि के बढ़ते प्रभाव में गाँव की औरतें भी मिथ्याचरण अपनाने लगी हैं -तथाकथित 'सभ्य' होने लग गयी हैं . और गालियों आदि के विनिमय के बजाय शिष्टाचरण से काम लेने लगी हैं . अब तो मुझे यह लगने लग गया है कि गाँव की औरतें 'तो शिष्ट' होने लग गयी हैं मगर शहर की औरतें अब आदिम होने लगी हैं .
तो गावं की औरतों में लगाने बुझाने(झगड़ा ) ,चुगली करने , ईर्ष्या करने के आदिम मानवीय भावों के भी होने के आरोपण हैं -मंथरा आदि के चरित्र यूँ ही वजूद में नहीं आये। मगर मैं यह मानता आया हूँ कि गाँव की औरतें बहुत भोली होती हैं ,मुंहफट तो होती हैं मगर दिल की साफ़ होती हैं . जीभ भले कलुषित हो, ह्रदय निष्कपट होता है . निहायत भोली ऐसी कि कोई भी चंट आदमी उन्हें छल सकता है . चंटों के सामने वे कत्तई भी महफूज नहीं रह पातीं . यह ग्राम्य भोलापन मैंने कई शहरी नारियों में भी देखा है -भले वे शहरी हो गयी हों मगर मन उनका ग्राम्य बोध लिए ही होता है . कैलाश गौतम जी की एक कविता की पंक्ति अकस्मात याद हो आयी है जो गाँव की औरतों के भोलेपन को इंगित करता है -
उसको शायद पता नहीं वह गाँव की औरत है
इस रस्ते पर आगे चल के थाने पड़ते हैं .......
इस रस्ते पर आगे चल के थाने पड़ते हैं .......
औरत का मूल देहाती औरत में ही है,ग्लैमरस या पेज थ्री वालियों में नहीं !
जवाब देंहटाएंगाँव में , शादी विवाह और अन्य मौकों पर गालियां , लोकगीत के रूप में जी भर कर, गा गाकर दी जाती हैं और कई बार वे अश्लीलता की हद को भी पार कर जाती हैं ! मगर पूरे नेट पर यह मनोरंजक विस्मयकारी लोकगीत गालिया उपलब्ध नहीं हैं , शायद लोग हिम्मत नहीं कर पाते उसे छापने की , आपसे अनुरोध हैं वे जैसी की तैसी प्रकाशित करिये !
जवाब देंहटाएंइन्हें, इकट्ठे करने का काम और कोई शायद ही कर पाये !!
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
जवाब देंहटाएंवली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
औरत औरत होती है। देहाती हो या लंदन की।
जवाब देंहटाएंशहर की औरते और किसी में न हो ,पहनाव में तो आदिम होते जा रहे हैं !
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
Dinesh ji se sahamat . badhiya abhivyakti . Diwali parv ki hardik badhai .
जवाब देंहटाएंआप सभी को सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और मंगलकामनायें !!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन आई थोड़ी मीठी - थोड़ी खट्टी दिवाली - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मैं गॉव में ही पॉचवीं तक पढी हूँ पर मैंने " रोगहा , बेर्रा" के अतिरिक्त और कोई गाली कभी नहीं सुनी, न किसी स्त्र्री से न पुरुष से । ये दो गालियॉ भी मैं हमारी गोबर-हेरिन के मुँह से सुनी थी । हम बच्चे कभी -कभी " गौ की " कसम खा लिया करते थे उसके लिए हमें बहुत अपमानित किया जाता था । बेचारी गॉव की स्त्रियॉ सरलता की प्रतिमूर्ति होती हैं आज भी हैं । आज गौरा पूजा का दिन है । आज के दिन हम लोग दुरपिहिंन के यहॉ जाते थे , वह गौरा सेराने जाते समय बहुत झूपती थी , हम स्तब्ध होकर उसे देखते थे । सामान्य दिनों में हम उनके पारा में नहीं जा सकते थे पर हमें गौरा देखने के लिए एक दिन की छूट मिलती थी । दुरपिहिंन ही हमारे घर गोबरहेरिन थी । दूसरे दिन जब काम में आती थी तो मैं उनसे पूछती थी - " काल तुँहला का हो गय रहिस हावै जी मामी ?" तो वह हँस देती थी । उन्हें कुछ याद नहीं रहता था । मैंने नारी -मात्र को फूट-फूट कर रोते हुए बहुत देखा है पर गाली-गलौज करते कभी नहीं सुना ।
जवाब देंहटाएंदेहाती औरतों के बारे में नवाज़ शरीफ + बिहारी नेता + अरविन्द जी ही जाने !
जवाब देंहटाएंफिलहाल एक देहाती पुरुष की ओर से आपको सह परिवार दीपावाली की हार्दिक शुभकामनायें :)
दीपोत्सव की शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंपुराने दिन याद आ गए. मेरे भी शुरूआती १८ साल गाँव में गुज़रे जिसके दौरान कई बार आशना हुआ इन परिस्थियों से. उनकी कई मौखिक लड़ाइयाँ तो सात शामों तक खिंच जाती थी. लेकिन अगले दिन प्यार से दोनों मंदिर भी साथ में जाती थीं. ऐसी लड़ाई और अगले क्षण प्यार तो बस उन्हीं में देखा जा सकता है.
जवाब देंहटाएंशायद किसी समय में पूरा देश ही देहात था तभी अक्सर शादियों में गाली गलोच के गीतों का प्रचलन था और है भी ... ये कोई बुरी बात नहीं जब तक आपसी सहमति होती है ... मज़ा तो सभी को आता है इन मसालों में .... वैसे मुझे कोई बुराई नहीं नज़र आती इस शब्द में ...
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की बधाई और शुभकामनायें ...
दुनिया भर की देहाती औरतो , जाओ नवाज़ शरीफ़ की ईंट से ईंट बजा दो
जवाब देंहटाएंआपके अनुसार एक विदुषी जी ने उत्कंठा जाहिर की थी, उनके सामने तो आप संकोच कर गये और अब ओपन मार्केट में ऑफ़र दे रहे हैं कि अकेले में कौतुहुल शमन कर देंगे। सीधे रस्ते की ये कौन सी टेढ़ी चाल है महाराज? :)
जवाब देंहटाएंमहराज तब से कितना पानी गंगोत्री से बह गया -अब काहें का संकोच!
जवाब देंहटाएंआपको उत्कंठा हो तो एक मेल अलग से रवाना कीजिये -अब पब्लिक डोमेन में कैसे बतायी जायं वे गालियां ?
उकसाइए मत -हम अब उकसने वाले नहीं :-)
अरे नहीं जनाब, इसे हमारी उत्कंठा न समझें - इस क्षेत्र विशेष में तो पहले से ही अपनी स्थिति अतिसुद्र्ढ़ है :)
हटाएंआपकी विषयविशेषज्ञता वाली किसी फ़ील्ड में मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ने पर मेल-मेली रवाना की जायेगी, तब उत्कंठा शांत कर दीजियेगा।
हमारे उकसाने पर भी आप नहीं उकसने वाले, जान रहा हूँ। चलिये. कहीं और ट्राई कर लेंगे :)
WOW GREAT ANALYSIS
जवाब देंहटाएंApne office mein bhi kuchh logon ko maine bhi kaha hai ki ye auratani ladai hamse mat kiya karo, himmat hai to aamne samne fariya lo. Waise bachpan mein suni un gaaliyon ka bhandar hai hamare bhi paas.
जवाब देंहटाएंइस विषय पर मेरे पास भी कुछ हमेशा टटका रहने वाला अनुभव है लेकिन उसे बांटने की हिम्मत नहीं कर सकता। देहाती औरतें पुरुषों से गाली-गलौज कम करती हैं लेकिन आपस में एक-दूसरे से सामान्य बात-चीत में भी जैसी शब्दावली प्रयोग करती हैं उसे सुनकर बड़े-बड़ों के दाँत खट्टे हो सकते हैं।
जवाब देंहटाएंसही में आरी कहा जाए या कटारी देहाती औरत ही है सब पर भारी..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विश्लेषण। वैसे अब तो नवाज़ शरीफ़ को माफ़ी माँग ही लेनी चाहिए देहाती औरतों से...यह टिप्पणी समूचे स्त्री समाज पर आघात है।
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