इंजीनियर शिल्पा मेहता जी ने मुझसे मेरी
पिछली पोस्ट पर एक सवाल पूछा है कि मिथक का मतलब क्या है? अब जब किसी जिज्ञासु ने यह सवाल कर ही दिया तो यह फर्ज बनता है कि जवाब दिया जाय .यद्यपि मैं जानता हूँ कि शिल्पा जी और मेरी सोच इस विषय पर भिन्न संस्कारगत और स्वाध्याय के कारणों से अलग है मगर मैं समझता हूँ कि अपनी अल्प बुद्धि से जो मैं आत्मसात कर सका हूँ वह पूरी ईमानदारी से आप से साझा करूँ! सबसे पहले यह कि मिथक शब्द हिन्दी मूल का नहीं है बल्कि इसे अंग्रेजी के मिथ या माइथालोजी से गढ़ा गया है .मिथक पुराकथाओं,विश्वासों ,चमत्कारिक घटनाओं, पात्रों ,अलौकिक आख्यानों का ही संबोधन है जिनके सच होने की अनिवार्य प्रमाणिकता न हो। अब जैसे हमारी पुराकथाओं के अनेक स्थान, पात्र मिथकों की ही श्रेणी में आते हैं .मिथक बोले तो जो 'रियल' यानी वास्तविक न हो .
पिछली पोस्ट में मैंने गोवर्द्धन पर्वत के नीचे लाकर गोकुलवासियों को कृष्ण द्वारा अति वृष्टि से बचाए जाने का एक दृष्टांत दिया था . यह एक मिथक है!अब लोग बाग़ इस पर तर्क कर सकते हैं कि हद है कृष्ण तो स्वयं भगवान हैं क्या उनके लिए ऐसा संभव नहीं हो सकता था-जिसकी भृकुटी विलास पर सारा ब्रह्मांड लय हो सकता है उसके लिए एक पहाड़ को अपनी उंगली पर उठाना कौन सी बड़ी बात?इसी तरह हमारे महाभारत और रामायण काल के कई आख्यान हैं . रावण द्वारा पूरा कैलाश पर्वत ही उठा लेने का मिथक है .नारायणास्त्र, ब्रह्मास्त्र के प्रयोग हैं . पुष्पक विमान है।
पुष्पक विमान:मिथक या सच
मेघनाथ का माया युद्ध है,आदि आदि ! क्या ये सब जैसा वर्णित है सच रहे होंगें? अगर आप इन्हें सच मानते हैं तो बात ख़त्म हो जाती है -हम आपसे आगे बात नहीं कर सकते . क्योकि मेरा तर्क है कि प्रौद्योगिकी तो तब इतनी विकसित ही नहीं थी (प्रमाण कहाँ है ? ) कि ऐसे गजेट वजूद में होते , हाँ मानव मेधा बहुत उर्वर तब भी थी . उसने अपनी कल्पनाशीलता के घोड़े को बेलगाम दौड़ा दिया . मगर यह कोई कम योगदान नहीं है -आज उन्ही दिव्यदृष्टि प्राप्त विचारकों की राह पर प्रद्योगिकी चल रही है और कोई आश्चर्य नहीं कि एक दिन हमारे पास सचमुच का पुष्पक विमान हो , माया युद्ध के इंतजाम हों , शत्रु के टारगेट पर मार कर सकुशल वापस लौटने वाले मिसाईल हों जैसे भगवान् राम के बाण उनके तुरीण में लौट आते थे ! मगर ये सब कभी थे यह कहना सच नहीं है बल्कि मिथक है !
हाँ यह माना जा सकता है कि कुछ घटा होगा जिनकी सामूहिक/ जनस्मृति अवशेष आज के मिथक हों . समयांतराल में उनका स्वरुप फंतासी/स्वैर कल्पनाओं से आलोड़ित होता गया हो ! जैसे बहुत संभव है अतिवृष्टि की समस्या से आगाह होकर कृष्ण नामक कोई जन नायक महावृष्टि की किसी आशंका के चलते एक सुरक्षित विशाल कन्दरा ढूंढ ली हो और आपात काल में सबकी रक्षा हो गई हो .कालांतर में वर्षा के देव इन्द्र के साथ संयुक्त हो यह पूरी घटना अपना मौजूदा मिथकीय स्वरुप पा गयी हो .
मानव बुद्धि का तकाजा यह है कि वह अपने तर्क की क्षमता का उपयोग करे .फंतासी के पीछे छुपे सत्य को अनावृत करने का प्रयास करे .सभी अलौकिक घटनाओं के पीछे ईश्वरीय भूमिका को सहज ही मान लेना मानव बुद्धि का अपमान है ,उसका तिरस्कार है . मिथकों ,जनश्रुतियों, लोक कथाओं में अंतर है मगर मिथकों को विराटता मिली है . जो अलौकिक हो, विराट हो ,चमत्कारिक हो वह मिथक है . उसकी दृश्यावलियाँ समकालीन दृश्य से मेल न खाती हों, एक दूसरी दुनिया सी हों .पात्र मानवीय न होकर दैवीय हों ....स्वर्ग नरक पाताल देवता राक्षस मिथक ही तो हैं! मजे की बात है कि सभी लोक कथाएं तो सच नहीं मानी जाती मगर मिथकों को कहने सुनने वाले उन्हें सच मानते हैं . स्वर्ग नर्क उनके लिए कोई परिकल्पना नहीं सच है! यह एक बड़ा विषय है .बहुत सी बातें इस छोटी सी पोस्ट की परिधि के बाहर हैं .हम फिर कभी चर्चा करेगें या फिर टिप्पणियों में कुछ चर्चा का विस्तार हो सकेगा।आप चर्चा के लिए आमंत्रित हैं!