शनिवार, 4 मई 2013

भरत, भौंरा और चम्पे का फूल

भरत त्यागी हैं ,वैरागी भी हैं . राम को वापस लेने के लिए जब वे प्रयाग पहुंचते हैं तो भारद्वाज ऋषि उनका  आवाभगत करते हैं . हो सकता है भरत  के उसी सेवा सत्कार से हिन्दी का यह आवाभगत शब्द महिमामंडित हुआ हो -आवाभगत अर्थात भगत आये जिसमें उनकी सेवा सुश्रुषा का भाव अंतर्निहित है . वैसे इस शब्द के उद्भव पर किसी वैयाकरण की व्याख्या अपेक्षित है . भारद्वाज जी जान ही  रहे थे कि भरत राम के वियोग में अत्यंत व्यथित हैं ,उद्विग्न हैं तो उनका मन बहलाने को वे बहुविध प्रयास करते हैं। छप्पन भोग  के उपरान्त आंनंद और आराम के तमाम साजो सामान और यहाँ तक कि गणिकाएं वनिताएँ भी उन्हें मुहैया होती हैं . मगर भरत पूरी तरह उदासीन ही रहते हैं .
रितु बसंत बह त्रिबिध बयारी। सब कहँ सुलभ पदारथ चारी।।
स्त्रक चंदन बनितादिक भोगा। देखि हरष बिसमय बस लोगा।।

दो0-संपत चकई भरतु चक मुनि आयस खेलवार।।
तेहि निसि आश्रम पिंजराँ राखे भा भिनुसार।।215।।(अयोध्याकाण्ड ) 

( बसंत  ऋतु  की त्रिविध समीर बह रही है .सभी प्रकार की सुख सुविधा - धर्म अर्थ काम मोक्ष के  चारो पदार्थ उपलब्ध है -माला चन्दन स्त्री आदि भोगों की उपलब्धता से लोग हर्षित विस्मित है , मगर भरत रूपी चकवे  के लिए इन  सभी चकई रूपी सामग्री से कोई लगाव नहीं है भले ही इन्हें मुनि ने एक पिंजरे में रात भर रखने का प्रयास किया और सुबह हो गयी .)
मगर आज की पोस्ट का मुख्य हेतु यह नहीं है . भारत वापस जब अयोध्या लौट आते हैं तब भी वीतराग ही रहते हैं . तुलसी प्रकृति के भी पारखी कवि हैं -उनका प्रकृति निरीक्षण अद्भुत हैं -वीतरागी भरत की तुलना वे भौरे से करते हैं और यही मेरी दुविधा का प्रश्न लम्बे समय से बना रहा -तुलसी कहते हैं -
तेहिं पुर बसत भरत बिनु रागा चंचरीक जिमि चम्पक बागा ..अर्थात विरागी भरत राम विहीन अयोध्या में वैसे ही रहते हैं जैसे चंपा जैसे सुगन्धित पुष्प के बाग़ में भौरा .....बस यही बात मेरे मन में खटक जाती थी .....भौरा क्या चंपा के फूल से आकर्षित नहीं होता ? हिमांशु जी ने भी ऐसी ही व्याख्या अपने चंपा के फूल की पोस्ट पर की है -"खिलने वाला यह फूल भौंरे को मनमानी नहीं करने देता । झट से झिझक जाती है भ्रमर वृत्ति - अनोखा है यह पुष्प । यह अकेला ऐसा पुष्प होना चाहिये जिसकी उत्कट गंध के कारण भौंरे इनके पास नहीं जाते । बाबा तुलसी को भी यह बात रिझा गयी थी, और यही कारण है कि अयोध्या में राम के बिना भरत का अयोध्या के प्रति राग वैसा ही था - जैसे भौरा चंपक के बाग में हो । सर्वत्र बिखरा हुआ ऐश्वर्य (सुगंध), पर किसी काम का नहीं" .अब पता नहीं हिमांशु जी ने यह विचित्र भ्रमर व्यवहार खुद देखा है या नहीं -मैंने भी नहीं देखा मगर जिज्ञासा हमेशा बनी रही कि क्या सचमुच भौरे को चंपा के पुष्पों से परहेज है . वर्षों से मानस की इस अर्धाली ने मुझे व्यग्र कर रखा था .

 मदार पुष्प पर भौरा

अब यहाँ राबर्ट्सगंज में यह गुत्थी अचानक ही सुलझती नज़र आयी .एक दिन मैंने सुबह सुबह ही देखा कि मदार के   (Calotropis) समूहों पर भौरे झुण्ड के झुंड मंडरा रहे हैं -तो इन्हें चंपा नहीं मदार के पुष्प पसंद हैं . मगर क्यों ? क्या मदार के पुष्पों में परागण -निषेचन इन्ही भौरों से ही संभव हो पाता है? और यह मदार और भ्रमर सम्बन्ध इसलिए ही प्रगाढ़ बन गया हो ? कोई वनस्पति विज्ञानी क्या इस भ्रमर व्यवहार पर प्रकाश डालेगा ? एक साहित्यकार ने तो अपना प्रेक्षण पूरा किया मगर वैज्ञानिक विश्लेषण तो विज्ञानियों के जिम्मे है . इसी पोस्ट में तुलसी के ऊपर उद्धृत दोहे में चकवा चकई का उद्धरण दिया गया है . और यह साहित्यिक मान्यता है कि यह पक्षी युग्म -नर मादा रात में बिछड़ जाते हैं और इसलिए एक दूसरे  को ढूँढने की बोली लगाते रहते हैं। तुलसी ने भारद्वाज मुनि द्वारा भरत  के सेवा सत्कार में इसी साहित्यिक सत्य का उद्घाटन किया है कि संपत्ति सुख साधन रूपी चकई और भरत रूपी चकवे को भारद्वाज ऋषि द्वारा एक पिंजरे में बंद कर देने के बावजूद  भी उनमें संयोग नहीं हो पाया और सुबह हो गयी ... चकवे चकई के इस अभिशप्त  रात्रिकालीन वियोग का क्या कोई वैज्ञानिक विवेचन भी है ? इस पर कभी फिर चर्चा होगी .

27 टिप्‍पणियां:

  1. चंपा और भ्रमर के बीच के बीच के विकर्षण के बारे में पता नहीं था. चकवा चकई के वियोग विवेचना का इंतज़ार रहेगा.

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  2. मदार पुष्प का वानस्पतिक नाम दें तो बात बने .पोस्ट ज्ञान वर्धक और व्याख्या सुन्दर है .

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    1. वीरू भाई ,यह कैलोटरोपिस है और जानकारी यहाँ हैं -
      http://en.wikipedia.org/wiki/Calotropis

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  3. आध्यात्म और विज्ञान का बहुत ही सुन्दर सम्मिश्रण अद्भुत जानकारी सहित *********

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  4. तस्वीर में दिख तहे फूल को तो हिन्दी में सफ़ेद अकौव्वा कहते हैं. कुछ बैंगनी भी होती है.

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  5. बढ़िया और नयी जानकारी ...
    आभार !

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  6. ऊपर वर्णित वस्तुओं के उपयुक्त और अर्थगर्भित रूपकों में सत्यता तो अवश्य ही होगी..अब विज्ञान का काम है प्रमाणित करना.

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  7. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-05-2013) के चर्चा मंच 1235 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  8. हर रहस्य के पीछे कोई तो कारण होता ही है। बस इसे उजागर करने की बात है। आज आपने पता लगा ही लिया। बधाई।

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  9. ये आध्यात्मिक भी है और विज्ञान सम्मत भी, बहुत ही उत्कृष्ट आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. कितनी सुंदर विवेचना जो सदा ही प्रासंगिक रहेगी .....और मदार, जो भोले बाबा को भाये वो भँवरे को क्यों नहीं ? ये इसलिए क्योंकि मैं वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कर सकती :)

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    1. हाँ एक साम्य तो है भौंरा चम्पे की उपेक्षा कर विषैले मदार की और आकर्षित होता है और भोले बाबा को भी मदार धतूर आदि प्रिय है

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  11. प्रिय भाई, मदार का 'वृक्ष' तो नहीं होता बल्कि झाड़ीनुमा पौधा होता है. सुन्दर व्याक्य की है. भाषा तो, खैर लाजवाब होती ही है, आपकी

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  12. पहली बार आई यहां...बहुत अच्‍छा लगा..फालो कर रहीं हूं, रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी की आस लि‍ए। पता लगे तो जरूर बताइएगा कि चंपा के पास भौरें क्‍यों नहीं जाते।

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    1. स्वागत है आपका ,आपकी रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारी की आस
      का ध्यान रखूंगा ....वैसे नयी जानकारियों को साझा करना मेरा शौक है!

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  13. शायद भौंरे को चंपई सुगंध से कोई अलर्जी होती हो.. :)

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  14. overwhelmed by the surroundings.. I fear at some point like bharat and bhanvra..we too feel like flooded with emotions and in that flooding we forget all

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  15. 'यह अकेला ऐसा पुष्प होना चाहिये जिसकी उत्कट गंध के कारण भौंरे इनके पास नहीं जाते । '
    --आप के इस लेख में ही यह वाक्य उत्तर दे देता है कि भँवरे चम्पा के फूल के पास क्यों नहीं जाते!
    वैसे भी यह ज़रूरी नहीं कि हर दिखने या महकने वाली चीज़ हर किसी के लिए एक सा आकर्षण रखती हो.
    ओ.पी नय्यर साहब ने लता जी से कभी गाना नहीं गवाया!जबकि हिंदी फिल्म लोक में लता जी को माँ सरस्वती का रूप तक कहा जाता है.
    वनस्पति विज्ञान की बात न करें तो सीधी बात है कि पसंद अपनी -अपनी !

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  16. श्री राम के तप से भरत का त्याग कम नहीं था। भरत का त्याग सदैव अनुकरणीय बना रहेगा। जीवन को संपूर्णता प्राप्त करने के लिए मानसिक शांति, आत्मिक आनन्द जरूरी होता है। भरत भला कैसे प्रसन्न रह सकते थे जब उनके अपने वन वन भटक रहे हों !

    अब रही बात चंपा के फूलों की, तो भौरों को चंपा से एलर्जी है या चंपा को भौरों से कौन जाने :)
    मदार, धतूरे में नशा भी होता है (ऐसा सुना है ), हो सकता है भौरों का इन फूलों पर मँडराने का एक कारण यह भी हो ।

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  17. चंपा तुझ में ३ गुण, रूप रंग और बास
    अवगुण तुझ में एक ही भ्रमर न आवें पास !

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  18. आभार शोभा जी , क्या संदर्भ देगीं किसका है यह लिखा ?

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  19. चम्पा फूल की तीव्र गंध हो सकता है भौरों को बरज देती हो! अब यह गंध क्या किसी विशिष्ट प्रकार की गंध है, जो भौरों के लिए किसी काम की नहीं, यह विशेषज्ञ बतायेंगे? रही व्यवहार और आदत की बात..तो भौरे को वहाँ जाना तो चाहिए! बेवजह अपवाद पैदा किया उसने!
    स्त्री-स्मित से खिलने वाला यह पुष्प गंधपूर्ण हो यह तो ठीक,पर अपनी गंध से किसी के लिए त्याज्य बने, यह बर्दास्त से बाहर है।

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