विगत 15-17 फरवरी को महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त तत्वावधान में एक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी,
"प्रिंट एवं सोशल मीडिया:चुनौतियां एवं संभावनाएं " के उद्घाटन सत्र एवं पहले दिन के दो अकादमीय सत्रों में उपस्थित रहने का गौरव मिला . भोजन पश्चात के दूसरे सत्र में मुझे बीज वक्तव्य देना था -यानि कि
की नोट एड्रेस -अब बीज वक्तव्य को तो पहले होना चाहिए था मगर उसे छात्रों के शोध पत्रों के पढ़ने के बाद रखा गया था . और मेरे बीज वक्तव्य के बाद सत्राध्यक्ष महोदय को अपना अध्यक्षीय संबोधन भी देना था -भोजन के बाद का सहज आलस्य लोगों पर तारी भारी था और सत्र का सञ्चालन एक बहुत ही उदारमना के हाथों था तो उन्होंने शोध पत्रों के पढ़ने के लिए समय देने में जो दरियादिली दिखाई कि शाम हो आयी और सभागार से लोग उठकर जाने लगे -ऐसे में बीज वक्तव्य?
संगोष्ठी के पहले...........
मुझे बीज वक्तव्य के लिए जो विषय मिला था वह था -"सोशल मीडिया: प्रासंगिकता एवं भविष्य" -इस सत्र में कुल दस शोध चिह्नित हुए थे मगर पढ़े गए आधा दर्जन। कुछ की क्वालिटी तो सचमुच बहुत अच्छी थी .सबसे अधिक इस्तेमाल में आने वाली सोशल नेट्वर्किंग साईट फेसबुक के चर्चे रहे। इसके राजनैतिक इस्तेमालों और दुरुपयोग की चर्चाएँ भी हुईं। एक शोध पत्र ने तो लगभग यह साबित कर ही दिखाया था कि ये सोशल नेट्वर्किंग साईटे अपसंस्कृति फैला रही हैं -अब इसमें बिचारी साईट का क्या दोष? श्रेष्ठ संस्कृति या अपसंस्कृति फैलाने वाले कोई हैं तो वे तो हमी लोगों में से हैं . इलाज तो इनके दिमाग का होना चाहिए .
बहरहाल मेरे साथ संयोगात सोनभद्र के ही राष्ट्रपति पदक प्राप्त शिक्षक श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी जी अध्यक्ष पद का गौरव बढ़ा रहे थे . मैंने मात्र दो मिनट जिसमें एक मिनट तो औपचारिक संबोधन में चला गया अपनी बात रख दी -श्रोताओं ने बख्श दिए जाने की खुशी में जोरदार ताली बजायी . मुझे इस संगोष्ठी में बतौर ब्लॉगर एवं विज्ञान संचारक की हैसियत से बुलाया गया था और मुद्रित सामग्रियों में यही अंकित था . मुझे खुशी हुयी कि अब धुर और धुरंधर मास/ मेनस्ट्रीम मीडिया के कार्यक्रमों में ब्लागरों को भी धर पकड़ बुलाया जा रहा है .वैसे इस कार्यक्रम के सर्वे सर्वा आदरणीय राम मोहन पाठक जी एक बड़े ही समादृत भारतीय मीडिया मुग़ल हैं और यह उन्ही की कृपा रही कि मैं इस संगोष्ठी में शिरकत कर सका .हाँ जाने की शर्तें मेरी थीं और यह पाठक जी की विनम्रता ही है कि मुंहफट होने की मेरी उद्दंडता का उन्होंने तनिक भी ध्यान नहीं दिया .
संगोष्ठी का जीवंत कार्यक्रम जाहिरा तौर पर उद्घाटन सत्र में ही निपट चुका था . हिन्दुस्तान अखबार समूह के मुखिया और एक फायर ब्राण्ड वक्ता शशि शेखर जी ने बला का भाषण दिया . उन्होंने बड़ी अच्छी अच्छी बातें बतायीं -फ्रेंच क्रान्ति के सबक पढाये -एक बड़ी अच्छी बात उन्होंने कही कि नये मीडिया पर अंकुश न लगायें जाय वह अपने आप खुद को संभाल लेगी-इंसानियत एक बार फिर अपना रास्ता तलाश रही है उसे वक्त मिलना ही चाहिए . पहले भी ऐसी कई संक्रातियों में मनुष्यता ने अपनी राह बनाई है।हाँ उनकी सबसे अधिक आलोचना हुई जब उनसे पेड न्यूज,सरोगेट न्यूज आदि पर सवाल किये गए -उन्होंने इनका स्पष्ट विरोध तो किया मगर कहा कि आखिर समाज में जब चारो ओर गिरावट है तो मीडिया से ही इतनी अपेक्षा क्यों ,फिर मीडिया के लोग 'प्रोफेसनल ट्रुथ टेलर " हैं . अब सबका सत्य अलग अलग हो सकता है . उनकी इस बात पर मुझे तत्क्षण याद आया था,भई सत्य तो हमेशा एक है -ऋग्वेद ने कहा - एकम सत विप्राः बहुधा वदन्ति!
मैं पहले दिन ही गोष्ठी से निजी कारणों से लौट आया -बाकी लोग अब लौट रहे हैं! एक अच्छा अनुभव रहा -आयोजकों, मुझे बुलाने के लिए बहुत आभार!
अच्छा लगता है जानकर कि आज मीडिया ढकोसलाशाही से बाहर आ रहा है वर्ना प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर जिस तरह से कुछ गिने चुने लोगों ने सांठ-गांठ करके वर्चस्व बना रखा था उससे तो यही लगता था कि देश के बाकी 120 करोड़ तो निरे बौड़म हैं, बस यही बजूके हैं इस देश के खेवनहार. यह बात दीगर है कि भले ही वे कितने ठस्स हों पर यूं दिखते/दिखाते चले आए हैं कि उनसे बेहतर सोच वाला तो कोई दूसरा हो ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंलेकिन आज सोशल मीडिया ने इन ढपोरशंखों में इतने अच्छे से फूंक भरी है कि हवा से ही बजते घूम रहे हैं.
आभार गुरु जी -
जवाब देंहटाएंथोथी दरियादिली से, पढ़ते लम्बे ड्राफ्ट |
समय सदा गतिमान है, क्यों करता दरियाफ्त |
क्यों करता दरियाफ्त, बीज पर तेज उर्वरक |
बेचारा अध्यक्ष, कोशिशे कर ले भरसक |
पर हो जाती देर, पढ़े सब अपनी पोथी |
बीज मन्त्र कर साफ़, दलीलें देते थोथी ||
बधाई आपको ,
जवाब देंहटाएंहम ब्लोगर भी किसी से कम नहीं हैं !
जवाब देंहटाएंबीज वक्तव्य देने के लिए बधाई। हालाँकि यह शब्द हिंदी में पहली बार सुना। :)
संगोष्ठियों में विद्वानों को सुनना सदा अच्छा लगता रहा है। यह भी देखकर हैरानी होती है कि अपने अपने क्षेत्र में जाने कितने लोग हैं जो ज्ञान के भंडार हैं।
लेकिन सभी कही गई बातें सच भी हों , इस पर संदेह भी रहता है।
ब्लॉगरों की पूछ बढने लगी है। मेन स्ट्रीम मीडिया हड़कने लगा है। ब्लॉगर जो कर दे वो कम है। :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया आयोजन। आपसे न मिल पाने का अफसोस।
जवाब देंहटाएंयह खुशी की बात है। वैसे इन दिनों ब्लॉग जगत की धूम चल रही है। अभी 1 से 5 तारीख को वर्धा विश्वविद्यालय में जो 'हिन्दी का दूसरा समय' आयोजन हुआ, उसमें भी एक सत्र ब्लॉग का रखा गया था। (मुझे उसमें जाना था, पर अपरिहार्य कारणोवश कार्यक्रम कैन्सिल हो गया)। इसी तरह पिछली 7-8 फरवरी को लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के व्याख्याताओं के लिए आयोजित पुनश्चर्या कार्यक्रम में भी ब्लॉग पर दो लेक्चर रखे गये थे। विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों में जहां, सूर, तुलसी और कबीर को लेकर ही ज्यादातर चर्चाएं होती रहती हैं, इस तरह के कार्यक्रम होना एक बड़े बदलाव को प्रदर्शित करता है। जाहिर सी बात है कि ब्लॉग जगत का बढता प्रभाव अब लोगों को स्पष्ट रूप में समझ में आ रहा है, जिसे नकारना मुश्किल होता जा रहा है।
जवाब देंहटाएं.............
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शशि शेखर जी ने फ्रेंच क्रान्ति अच्छे से पढ़ी है. एम ए के सिलेबस में जो थी.
जवाब देंहटाएंगुरूजी, आप बीजारोपण में भी दक्ष हो गए हैं....बधाई !
जवाब देंहटाएंबधाई हो!
जवाब देंहटाएंचलिये, उन्होंने 'प्रोफ़ेशनल ट्रुथ टैलर’ होने की तो मानी। है तो यह भी एक एक्सक्यूज़ ही। ऐसे ही एक्सक्यूज़ेस हर कोई देकर अपने सही गलत काम को जस्टीफ़ाई कर सकता है।
जवाब देंहटाएंबहरहाल, आप बधाई स्वीकार कीजिये।
Badhaiji ...
जवाब देंहटाएंरजोनिवृत्ति (मेल मीनोपाज ) के बाद बीज वक्तव्य। वाह!
जवाब देंहटाएं*पुरुष रजोनिवृत्ति (मेल मीनोपाज ) के बाद बीज वक्तव्य। वाह!
हटाएंबहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंइधर सच बोलने का कुछ रिवाज़ सा चल पड़ा है .भाव शमन भाव शान्ति की जाती है सच बोलके हाँ मीडिया में ऐसा होता है करना पड़ता है .बाज़ार के अपने दवाब हैं ...अखबार चलाना भी है ...सरकारी विज्ञापन भी लेने हैं .न्यूज़ तो है आखिर पेड हुआ तो क्या हुआ ...संक्षिप्त सुन्दर प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी ताज़ा उत्साह वर्धक टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर की आप बतौर ब्लॉगर बुलाये गए, विज्ञान संचारक तो खैर आप हैं.
जवाब देंहटाएं@एक शोध पत्र ने तो लगभग यह साबित कर ही दिखाया था कि ये सोशल नेट्वर्किंग साईटे अपसंस्कृति फैला रही हैं,
-अब काशी विद्यापीठ में एकाध ऐसे शोधार्थी तो मिलेंगे ही :)
@श्रोताओं ने बख्श दिए जाने की खुशी में जोरदार ताली बजायी.
- ये सुनकर हँसी नहीं रुक रही.
बहुत बहुत बधाई... सभी ब्लोग्गेर्स के लिए सुखद समाचार है आपकी इस कार्यक्रम में उपस्थिति
जवाब देंहटाएं'बीज वक्तव्य'से आशय तो यही निकलता है कि वह मूल वक्तव्य और प्रेरक है अतः यह सर्व प्रथम ही होना चाहिए था। निश्चय ही साधन नहीं उसका प्रयोग कर्ता ही दुरुपयोग/सदुपयोग के लिए उत्तरदाई है-आपका निष्कर्ष उचित है। शशि शेखर साहब 1990-91 मे 'आज',आगरा के स्थानीय संपादक के रूप मे 'विहिप'प्रवक्ता बने हुये थे तब वह उनका सत्य था और अब 'हिंदुस्तान'के प्रधान संपादक के रूप मे 'धर्म निरपेक्षता'के मसीहा बन गए उनका 'सत्य'तो परिवर्तनशील है;'वेदों' से उनको क्या सरोकार?
जवाब देंहटाएंवही तो विजय राज जी!
हटाएंआपका आभार अनुभव साझा करने के लिए..
जवाब देंहटाएंब्लॉगरों को भी सामाजिक सत्य का स्रोत माने जाना लगा है..बधाई इस पहल के लिये।
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