अक्सर ऐसा होता क्यूँ जब कविता लिखने को मन हो आये
शुष्क जगत के व्यवहारों से रूठा मन रूमानी हो जाए
प्रीत किसी की लगे छीजने जी अकुलाने को हो आये
तब काव्य देवि के चरणों में ही जा मन कुछ राहत पाये
कैसे कैसे लोग यहाँ जो रीति प्रीति की समझ न पाये
हृदयी आग्रहों को त्यागे बस गुणा गणित हैं अपनाये
भावुकता का मोल नहीं यह बिना मोल की बिकती जाए
दुनियादारी का परचम ही हर दिशा में है अब फहराये
चाह किये अनचाहे की तो कविता ठौर कहाँ पर पाये
आद्र स्पंदनों से दुलरायें तो बंजर में अंकुर उग आये।
संवेदन हो मानव उसकी यही विरासत समझ में आये
पशुवत होता जा रहा आचरण मन को कितना अकुलाये
गीत संगीत की रुनझुन अब रास किसी को ना आये
निज स्वारथ का नशा चढ़ा हर मन को है भरमाये
प्राप्य नहीं था मनुज का यह तो राह वह नित भटका जाए
देख दशा यह कुल की अपने कविता लिखने को मन हो आये
हम भी सब कुछ छोड़-छाड़कर, गीत आपका पढ़ने आए।
जवाब देंहटाएंसंतोष जी ! आप भी कविता लिख सकते हैं । आपने अपनी टिप्पणी कविता में की है ।
हटाएं:)
हटाएंकविता बहुत मन भायी है..खासकर यह पंक्ति- आद्र स्पंदनों से दुलरायें तो बंजर में अंकुर उग आये।
जवाब देंहटाएंकविता में बह निकले मन के भाव..... सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसच है कविता ,चाहे वो किसी भी विधा में हो ,मन सहज कर देती है ......
जवाब देंहटाएंभावों के साथ शब्द संयोजोन भी बहुत सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
ब्लॉग बुलेटिन की आज रविवार’ २७ जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- कहाँ खो गया सुकून– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार!
जवाब देंहटाएं" प्रेम न खेती ऊपजै प्रेम न हाट बिकाय ।
जवाब देंहटाएंराजा परजा जेहि रुचै सीस देइ लै जाय ॥"
कबीर
दुनिया में जितने भी सुन्दर संगीत,शिल्प,काव्य है यह सभी अतृप्त दिल की अभिव्यक्तियाँ है
जवाब देंहटाएंऊर्जा का सकारात्मक रूप है लेकिन इनमे खोज वही है आनंद पाने की ! सुन्दर रचना है !
काव्य-शास्त्र-विनोदेन कालः गच्छति धीमताम् ।
जवाब देंहटाएंव्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ॥
वियोगों होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान
जवाब देंहटाएंनिकल कर अाँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान
आज कल तो पैसा ही भगवान है भाव भावना वाले लोग तो ...,,,.
जवाब देंहटाएंसच्चे भाव जगे हैं । कवि हृदय तो आप हैं ही। कविता लिखना मतलब अपने मन की भावनाओं को अकेले में गुनना। कविता के लिए जबरी तुकबंदी करना जरूरी नहीं है। अनावश्यक तुकबंदी से पाठक भाव को आत्मसात नहीं कर पाता।
जवाब देंहटाएंजब मन कभी सुखचैन हो , कभी बेचैन
जवाब देंहटाएंऔर बात बात मे कविता करने का मन करे ,
तो समझो , हो गया है तुमको तो प्यार ----
कविता मन से फूट पड़ती है बशर्ते मन संवेदनशील हो , अच्छा लगा यह प्रयास देख कर अरविन्द भाई , आखिर आपने झिझक तोड़ी तो सही ! गीतों और कविताओं का समय शीघ्र आएगा ! मानव की असंवेदनशीलता समाप्त करने की शक्ति सिर्फ कविता में निहित है ! इस काम करने के लिए कवियों को आना पड़ेगा !
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं !!
कविता के माध्यम से मन के भाव ... बहुत ही सुन्दर और सामयिक गीत है ... गीत जो हर हालात में निकल आता है हर परिस्थिति को लिख देता है ...
जवाब देंहटाएंदेखती हूँ कि आजकल किसी ब्लॉग पर मेरी कोई टिपण्णी नहीं छपती। या तो गूगल जी कुछ खेल कर रहे हैं या बड्डे बड्डे बिलागर जन। दो तीन ब्लोगों पर यही देख रही हूँ कई दिन से।
जवाब देंहटाएंअच्छा जी। यह वाली तो दिख रही है।
हटाएंसंवेदन हो मानव उसकी यही विरासत समझ में आये
जवाब देंहटाएंपशुवत होता जा रहा आचरण मन को कितना अकुलाये
इसी अकुलाहट को कम करने यहाँ वहाँ कवितायें खोजते हैं कम से कम अपनी लिखी नही तो दूसरों की ही सही दुख सुख तो सब के एक जैसे ही होते हैं! सुन्दर कविता के लिये बधाई!
मन के भाव कविता के माध्यम से... बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ