तुम वो नहीं
तसव्वुर में थी बसी एक तस्वीर जो
मुद्दत से था जिसका ख़याल
था सदियों से इंतज़ार जिसका
तुम वो नहीं
पास तुम आये जो
लगा सच हुआ ख्वाब मेरा
मगर जल्द ही टूटे भरम
तुम वो नहीं
शुक्र है उन
नजदीकियों का
होती गयी हर हकीकत बयां
तुम वो नहीं
तिश्नगी फिर से वही अब
इंतज़ार फिर उस प्यार का
ताकि हो ताबीर उस ख्वाब का
तुम वो तो नहीं!
तसव्वुर में थी बसी एक तस्वीर जो
मुद्दत से था जिसका ख़याल
था सदियों से इंतज़ार जिसका
तुम वो नहीं
पास तुम आये जो
लगा सच हुआ ख्वाब मेरा
मगर जल्द ही टूटे भरम
तुम वो नहीं
शुक्र है उन
नजदीकियों का
होती गयी हर हकीकत बयां
तुम वो नहीं
तिश्नगी फिर से वही अब
इंतज़ार फिर उस प्यार का
ताकि हो ताबीर उस ख्वाब का
तुम वो तो नहीं!
जरा सी आहट होती है ओर यह दिल सोचता है कही ये वोह तो नहीं।
जवाब देंहटाएंतिश्र्नगी- ना बुझने वाली ज्वाला निरंतर हृदय को जलाती रहती है ।
ना बुझने वाली प्यास लिए मृग भी भटकता फिरता है। मरीचिका में।
कही ये वोह तो नहीं। सुंदर शब्दव्लोकन।
कभी तो मिलेगी ……
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !
शुक्र है उन
जवाब देंहटाएंनजदीकियों का
हकीकत होती गयी बयां
तुम वो नहीं
.... बहुत खूब!
नित - नवीन की चाह मनुज की
जवाब देंहटाएंमन को हर क्षण उद्वेलित करती ।
जो भी है नित्य - नवीन उसी की
प्रतिमा प्रति -पल मन में पलती ।
ये भरम ही ऐसा है कि एक टूटता नहीं कि दूसरा बन जाता है.. सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकल 27/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
भ्रम कभी सुख दायक होता है और टूटना दुःख दायक ! शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंउम्मीदों की डोली !
तिश्नगी फिर से वही अब
जवाब देंहटाएंइंतज़ार फिर उस प्यार का
हो तावीर फिर उस ख्वाब का
तुम वो तो नहीं!
बहुत खूब
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंये कल्पना है उन्ही की जो बसी है हर कहीं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ..
बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
आपका काव्य भी बहुत अच्छा है...उम्मीद है अगली कविता जल्दी पढने को मिलेगी.
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