शुक्रवार, 22 मार्च 2013

सहमति का सोलहवाँ साल?

मुझे साफ़ शफ्फाफ  याद है जब मैं हाईस्कूल में था मेरे एक सहपाठी ने मुझसे कुछ ऐसी बात फुसफुसाहट भरे लहजे में की थी जो तत्काल तो मेरी समझ में आई ही नहीं। मगर उसी ने  जब वही बात मुझे समझा समझा कर समझाई तो मैं असहज हो गया था और शायद ऐसी ही कुछ और छोटी बड़ी घटनाओं ने मिलकर मुझमें यौनिकता के समयगत विकास को आगे बढाया था . मैं उस समय यही कोई 15 वर्ष का था मगर दोस्त एक दो वर्ष ज्यादा उम्र का और समाज के कथित निचले तबके से आता था। वह मुझसे ज्यादा होशियार और परिपक्व था . उसे पता था कि मैं एक क्षेत्रीय ख्यातिलब्ध चिकित्सक परिवार से था , वह मुझसे वह "रामबाण' औषधि चुरा कर लाने की याचना कर रहा था जिससे गर्भ समापन होता था . 
मैं तब तक ऐसी किसी समस्या के बारे में ज्यादा नहीं जानता था . मैंने अपनी असमर्थता जता दी थी और उसके हाव भाव से ऐसा लगा था कि जो काम करने को मुझे वह कह रहा था वह किसी 'पाप' से कम न था . एक पापी सदृश लगा था वह और मुझे भी पाप की राह पर चलने को उकसा रहा था . उस समय यही सोचा था मैंने। कुछ महीने बाद मैंने उससे जाना कि वह शापित बिचारी भगवान को प्यारी हो गयी थी जिसके लिए उसे किसी रामबाण औषधि की तलाश थी .  उस घटना के कई वर्षों बाद जब मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध छात्र था तो वह मित्र बस यात्रा में अचानक  मिला - दोस्तों की नयी पुरानी बातें शुरू हुईं तो सारे परिप्रेक्ष्य का पता चला -जनाब कच्ची उम्र में ही अपने से भी कच्ची उम्र की ग्राम्या से प्रेम और यौन सम्बन्ध बना चुके थे -गर्भ का समापन झोला झाप डाक्टर ने किया और उस बिचारी की जान चली गयी थी . समय ज्यादा हो गया था -बदनामी के डर और यौन प्रतिबंधों ने एक मानव जीवन लील लिया था।  आज भी दूर सुदूर गाँवों में कमोबेस  ऐसी ही स्थिति है .
अब यौन कर्म के सहमति की नयी उम्र पुनर्निर्धारित हो गयी है -कम थी तो बड़ा हो हल्ला मचा . नैतिकतावादियों ने ग़दर मचा दिया . सेक्स  इतना बड़ा हौवा बस अपने महाद्वीप में हैं शायद -उसके सामाजिक -जैवीय, नैतिक  पक्ष तो हैं मगर आज तो विज्ञान की दुनिया है, हम कब अपनी सोच परिमार्जित करेगें? बच्चों को इस तरह के प्रतिबंधों से बांधने के बजाय उन्हें यौन शिक्षा देना ज्यादा जरुरी है -उनके मन से इनसे जुड़े अपराध बोध को दूर करना ज्यादा जरुरी है। किस उम्र में कोई सेक्स करे या न करे यह कतई प्रतिबन्ध का विषय नहीं होना चाहिए . यह कानून कितना प्रभावी होगा? समाज में और माँ बाप की चौबीसों पहर की चौकसी, समाज का सख्त पहरा -खाप वाले ऐसे ही बदनाम नहीं हैं . फिर भी क्या किशोर वयी सेक्स सम्बन्ध नहीं होंगें  ? भूले भटके कमसिन उम्र में अगर ऐसा हो गया तो बच्चों  क्या फांसी पर चढ़ा दिया जाना चाहिए?काल कोठारी में ढकेल देना चाहिए? यह ऐसा कौन सा अपराध हो गया ?आज भी सेक्स को पाप समझने की यह आदिम सोच कब बदलेगी?
 अब तो वयः संधि वाले किशोर अट्ठारह वर्ष से एक दिन भी छोटी हम उम्र किशोरी  को छू भर लिए तो अपराध हो जायेगा -यह कानूनी विकर्षण का आरोपित प्रयास जैवीय आकर्षण पर कितना कारगर होगा इसे साबित होने के  लिए इंतज़ार की कोई जरुरत नहीं है, जैवीय आकर्षण तो जान देने लेने तक का मामला हो जाता है। मैं कम उम्र के मासूम यौन सम्बन्ध की वकालत नहीं कर रहा हूँ बस यह कहना है कि इस तरह के प्रतिबन्ध कोई मायने नहीं रखते ,हाँ यौन शिक्षा ज्यादा जरुरी है . जो बच्चों को इस जैवीय आकर्षण के अनेकानेक सामाजिक और स्वास्थ्य के पहलुओं के  प्रति ज्यादा कारगर तरीके से सजग कर सकती  है ,यह बताने के बजाय कि यौन कर्म एक 'पाप कर्म' है यह बताना ज्यादा जरुरी है कि अपरिपक्व यौन सम्बन्धों से क्या समस्यायें हो सकती हैं? 
यह उनके लिए कतई किसी ग्लानि बोध का मामला  नहीं है और इसके कारण आत्महत्याएं तक करने की कोई जरुरत नहीं हैं,न ही खाप पंचायतों में मौत का फरमान सुनाने की  -ऐसे  मामले  घटित हो जाएँ भी तो आज एम टी पी का विकल्प तो है ही ? ऐसे मौकों पर बच्चों को मानसिक सपोर्ट की जरुरत होती है, मार्गदर्शन की जरुरत होती है, नहीं तो मेरे बाल मित्र के साथ घटी उक्त घटना की पुनरावृत्ति समाज में होती रहेगी . मासूम जानें जाती रहेगीं! अब तो अट्ठारह के पहले ऐसे कोई सम्बन्ध हो जाते हैं जिन्हें रोका जाना संभव नहीं दीखता तो ग्लानि बोध, पाप बोध के साथ ही अब अपराध  बोध भी बच्चों को आ ग्रसेगा? सेक्स सम्बन्ध को लेकर ऐसे प्रतिबन्ध मुझे तो बचकाने लगते हैं ,बेमानी लगते हैं जो मनुष्य से उसकी मनुष्यता छीनते हैं!


यह पोस्ट  भी पढ़ें-

बलात्कारी सामूहिकता के दौर में सहमति की उम्र

49 टिप्‍पणियां:

  1. 18 वर्ष की उम्र के पहले यौन संबंधों का हामी तो मैं भी नहीं हूँ। किसी लड़की के 16 वर्ष की होने के पहले उस से यौन संबंध को बलात्कार का अपराध था और बहुत पहले से था। अब यह उम्र 18 वर्ष कर दी गई है।
    यौन शिक्षा अब अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। चूंकि कानून सरकार ने बनाया है इस कारण से सरकार की जिम्मेदारी है कि वह 8-9 वर्ष की उम्र के बालक बालिकाओं के लिए यौन शिक्षा अनिवार्य कर दे।

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  2. क़ानून कैसा भी बन जाय,जरूरत है सही समय पर बच्चों को मार्ग दर्शन देने की,,
    होली की हार्दिक शुभकामनायें!
    Recent post: रंगों के दोहे ,

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  3. ....जिस बात पर रोक-टोक ज़्यादा होती है ,वह अदबदाकर होती है। इन सबके लिए सामाजिक और नैतिक परिवेश कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है।

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  4. बेहद आवश्यक विषय ..
    आपकी राय से सहमत हूँ भाई जी !

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  5. यह एक ऐसा विषय रहा है जिस पर खुले पन से कभी विचार ही नही हुआ, लोग इस पर बात करने से कतराते रहे या बगलें झाकते रहे. यह खुशी की बात है आज हर तरह के मिडीया में इस पर खुली बहस और बातें शुरू हो गई हैं. और बातों से तो जनाब हर समस्या सुलझती है, यह भी सुलझ जायेगी. बहुत आभार इस विषय को उठाने के लिये.

    रामराम.

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  6. मानवीय शरीर की संरचना और गर्भ निरोधी उपाय अब ९ -१ ० वीं के पाठ्यक्रम का हिस्सा बाकायदा है .यौन शिक्षा से आप कब तक बचते भागेंगे ,मुंह बिचकाएंगे .अलबत्ता अगर सरकार का सबद्ध मंत्री अपनी बेटी को यह कह सकता है -अब तू सोलह की हो गई अब तेरी मर्ज़ी तब शौक से फिर से उम्र घटा दें सहमती से यौन संबंधों की .यौनशिक्षा को भी सारे फसाद की जड़ मान लेने वाले हमारे बीच सुशोभित हैं जब की नेट पे आज सब कुछ उपलब्ध है .लेकिन पोर्न शैली में बेशक वहां भी उम्र की प्रामाणिकता लिखित में मौजूद है आप को १ ८ साल का होना चाहिए उन वेब साईट तक पहुँचने के लिए .

    लेकिन यहाँ फिलाल जब तक पुलिस सुधार और न्यायपालिका में बरकरार भारी तंगी बनी रहेगी मामले कभी नहीं निपटेंगे .नीम हकीम आधा अ -धूरा गर्भ पात करवाते रहेंगे .

    बाल सुलभ यौन उत्सुकता दबाने से और बढ़ती है इसीलिए तरीके से यौन शिक्षण ज़रूरी है .लाजिमी कर देना चाहिए इसे .

    बढ़िया पोस्ट मौजू सर्वकालिक मुद्दा भारतीय सन्दर्भ में आपने उठाया है जिसपे विमर्श की लगातार गुंजाइश बनी रहेगी .

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  7. आज की ब्लॉग बुलेटिन चटगांव विद्रोह के नायक - "मास्टर दा" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. सही कहा आपने। आज के खुले समाज में जब यौन सम्‍बंधों की सम्‍भावनाएं ज्‍यादा हो गयी हैं, यौन शिक्षा ज्‍यादा जरूर हो गयी है। सरकार को इस विषय में गम्‍भीरता से सोचना चाहिए।

    ............
    शुरू हो गया सम्‍मानों का सिलसिला...

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  9. @ सेक्स सम्बन्ध को लेकर ऐसे प्रतिबन्ध मुझे तो बचकाने लगते हैं .बेमानी लगते हैं !
    .
    .
    तो आप ओपन सेक्स की वकालत कर रहे हैं या नहीं?

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  10. ek baar punah aapne ek bold vishay par lekh likha vaise ladako ke liye to sex ka galat va sahi samay ka koi vivad nahi hai lekin anchaahe garbh ke liye abhishapt naadaan ladakiyo ke liye ul jolool davaaye lene ki sahi umra ka nirdhaaran avashya hona chaahiye . kyoki dava to shariir va man ke hisaab se docter hi tay kar sakata hai . ab viyaagra ko to ham naabaalig bachhe ke liye khane ki salah to nahi de sakate ki yah tumhaare sex problem ka mufid hal hai
    sahi va galat ka fark to vah mata pita hi jaanate hai jinake bachhe sharmshaar hote hai ham va aap is par vaastav me comment karane ke hakdaar nahi hai jaake pair na fate bivaaii..........

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  11. संजय जी ,
    हम केवल यह चाहते हैं कि मासूम किशोर इस सहज प्रक्रिया को लेकर ग्लानि -अपराध -पाप बोध से ग्रस्त न हों और अपनी जान न गवाएं -हमारे समाज को इसका ध्यान देना होगा !

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    1. चाहता वो समाज भी यही है कि कोई अपनी जान न गवाये, बल्कि हो सकता है कि यह चाहता हो कि यहाँ तक की नौबत ही न आये। यह कैसे हो, इस पर जरूर मतभेद हो सकता है।

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    2. यथार्थ कहा संजय जी,

      समाज में स्वतः उत्पन्न वर्जनाएँ, बाढ आने से पहले ही बांध बना देने की दूरदृष्टि से प्रेरित होती है. वस्तुत: समाज की रचना ही सभी के लिए सुख, शांति और संतुष्ट सहजीवन के लिए होती है. फिर भला वह अपने सदस्यों की अमंगल कामना के प्रतिमान क्यों स्थापित करे!!

      समाज को दोषी करार दिया जाता है जैसे कि समाज के कुछ रसूखदार लोग मीटीँग करके नैतिकताओँ के प्रतिमान ठोक बिठाते है. जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है. नैतिकताओँ के प्रतिमानों का बनना सहज स्वभाविक और प्राकृतिक है.कुछेक लोग तृष्णाओं पर जीत हासिल करते है, दृढ मनोबल से संयम व त्याग पर टिके रहते है. उनके यह वैयतिक गुण प्रशंसनीय माने जाते है.दूसरे लोग भी उस श्रेष्ठ स्थिति को पाने की आकाँक्षा रखते है.अनुकरणीय बन जाते है. इस तरह समाज में स्वत: ही नैतिकता के प्रतिमान स्थापित हो जाते है. और इसका विपरित कर्म वर्जनाएँ बन जाती है.

      भूल वास्तव में इन्ही प्रतिमानो पर आस्था में चूक ही होती है और किसी भी चूक की सजा जीवन खो देना नहीं हो सकता. जीवन को पुनः सही मार्ग पर लाना हो सकता है. या फिर ऐसी सम्भावनाओँ के चलते पूर्व सावधानी का हो सकता है.

      इस जीवन-मार्ग के नैतिक प्रतिमानों की सुरक्षा बाड को ध्वस्त करके, स्वछंदता मार्ग को चौडा करना सुरक्षित उपाय नहीं है.

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  12. देखिये क़ानून तो हर गंभीर अपराध के लिए बने हैं लेकिन उनसे आजतक अपराध का निर्मूलन नहीं हो पाया है. हाँ क़ानून अपराध में कमी जरूर ला सकता है. अपने देश में कई क़ानून हैं अपने देश में और पश्चिमी देशों में फर्क है कानून के अनुपालन को लेकर. यहाँ किसी महिला के साथ छेड़ छाड़ या ताकने झाकने के की घटना होती है तो फ़ोन करते ही १०-१५ मिनट में पुलिस हाजिर होती है और संदिग्ध को गिरपफ्तार किया जाता है. अगर रिपोर्ट झूठी होती है और शिकायत करने वाले को भी सजा होती है. अपने यहाँ पुलिस तक शिकायत पहुंचाना ही बहुत मुश्किल है . इसलिए इस क़ानून से कितना फायदा होगा उसके बारे में मुझे संदेह है. कहीं न कहीं यौनिक विषयों पर हमारा आपका चुप्पी भरा रवैया, इस विषय पर संवाद की कमी और महिलाओं की छुपा कर रखने की सोच ने समाज में बहुत विकृतियाँ पैदा कर दी हैं. अब यहाँ के समाज का हाल ये है की जब १४-१५ साल का लड़का यौन सक्रिय हो जाता है तो कई पिता सबसे पहले "हाई फाइव" (एक तरह से शाबासी) देते हैं क्योंकि उससे ये तय हो जाता है वो समलैंगिक नहीं है (जिसे यहाँ के धर्मभीरु पाप समझते हैं). दूसरा ये की पिता ही कंडोम का पूरा पैक देते हैं और सुरक्षित रहने की जानकारी भी. ये लिखने के पीछे यहाँ के खुलेपन की तारीफ करना मेरा उद्देश्य नहीं है. इसका एक दूसरा पक्ष ये भी है की यहाँ टीनएज गर्भधारण बहुत बड़ी समस्या है. लेकिन अपने समाज को देखता हूँ तो मुझे दुःख होता है कि महिलाओं को घर की चाहरदीवारियों में में बंद रखकर कई तरह की विकृतियाँ पनप जाती हैं अभिभावकों को जरूरत है की वो खुलकर बच्चों से किशोरावस्था आते ही बातें करें और नैतिक शिक्षा भी दें. अगर इस सबके बावजूद आपके कुछ ऐसी परिस्थिति आती है तो उससे खुली सोच से निबटें.

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  13. इस विषय पर खुली सोच रखनी ही होगी.....समय के साथ बदलना आवश्यक है | बच्चों को मार्गदर्शन के साथ ही विश्वसनीयता भरा साथ देना भी अभिभावकों की जिम्मेदारी है, जीवन से बढ़कर कुछ नहीं

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  14. एक आवश्यक विषय पर आपने लिखा है ...जिसपर चिंतन करने से ज्यादा हम टालना पसंद करते है ! लेकिन टालनेसे समस्याएं थोड़े ही ख़तम हो जाती है ? ख़तम तो नहीं होती पर विकराल रूप धारण कर लेती है और हम देख रहे है समाज में यही हो रहा है आजकल ! अभी कुछ दिन पहले इसी विषय पर एक लघु कथा डाली थी मैंने "भूख की बीमारी" ! सहज स्वभाविक भूख को अगर ठीक से समझा और समझाया नहीं गया तो मनुष्य विक्षिप्त और रुग्ण कैसे हो जाता है यही इस कहानी में समझाया है ! जिस प्रकार आज मनुष्य का स्तर निचे से निचा गिरता जा रहा है यही एक कारण है सही यौन शिक्षा का अभाव उसने अपनी सहज स्वाभाविक प्राकृतिकता, और वैज्ञानिकता खो कर अपराधिक हिंसात्मक प्रवृत्ति अपनाई है तो मै समझती हूँ यही कारण है ! अगर मनुष्य के ऊपर गलत संस्कार गलत संस्कृति की धारणाये, बाधायें न हो तभी जीवन भी स्वस्थ और सुखी हो सकता है !

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  15. वाकई सही जानकारी बढ़ाने की जरुरत तो है ही इस क्षेत्र में.

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  16. युवा को समझदारी सिखायें और उसको दायित्वपूर्ण निर्णय लेने दें। यह कोई ऐसी वस्तु तो नहीं है कि १६ वें वर्ष में निकल गयी तो वापस नहीं आयेगी।

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  17. सबसे पहले तो आपके दिए संस्मरण पर………

    आपके उक्त उदाहरण में सेक्स शिक्षा नहीं खल रही, वह किशोर सेक्स शिक्षा से तद्दन निरक्षर भी सफल सेक्स करता है और सफल भी होता है। उसकी समस्या यह है कि उस सफल सेक्स से जो परिणाम आए है उससे कैसे निजात पाई जाय। तो सेक्स शिक्षा का मतलब यह हुआ कि मजे करो- कहीं भी, कभी भी, कैसे भी। बस दुष्परिणाम आए तो उससे बा-ईज्जत बचने, निजात पाने, और मार्ग निकालने का कौशल हम सीख जाय।

    क्या होता अगर उस लड़की को पिल मिल जाती? अनचाहे गर्भ से तो वह बच जाती, किन्तु फिर दो सम्भावनाएं बनती। 1)हीनता बोध तो उम्र भर लगा रहता। 2) सहज निजात पाने का मार्ग देख उसका दुस्साहस उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होता। संभल जाने की सीख तो वहां नदारद है अतः दोनो दृष्टि से जीवन सामान्य तो न ही रह पाता।

    ग्लानि बोध तो कब किसे कैसे उत्पन्न हो जाता है कोई नहीं कह सकता। आत्महत्या तो कमजोर मनोबल का व्यक्ति किसी भी तरह के तुच्छ कारणों से कर लेता है। मामूली सी बात पर भी, जैसे किसी ने कुछ पूछा नहीं तो इसी बात पर कमजोर मनोबल और विवेक रहित व्यक्ति आत्महत्या जैसे संगीन कदम उठा लेता है। सेक्स शिक्षा में इस बात की गारन्टी नहीं होती।

    शिक्षा में मात्र जानकारी दी जाती है, उसका सकारात्मक उपयोग तो प्रत्येक शिक्षार्थी पर निर्भर करता है। हर व्यक्ति के सोचने का नजरिया भिन्न होता है उसी तरह शिक्षा से अनुभव और अनुभव से लाभ उठाने की मानसिकता में जमीन आसमान का अन्तर हो सकता है। एक विकास के लिए इन्जिनियरिंग की शिक्षा पाया व्यक्ति उस ज्ञान का उपयोग लोगों की हिंसा करने के लिए विस्फोटक बनाने में प्रयुक्त कर लेता है। इसका मतलब यह नहीं में शिक्षा का विरोध कर रहा हूँ। किन्तु सेक्स शिक्षा को ही इस समस्या का सटीक समाधान समझने वालो को समझना चाहिए कि यह फुल प्रुफ समाधान नहीं है, इसके उल्टे इफैक्ट अधिक खतरनाक है।

    अबतक हजारों वर्षों से लोगों ने सेक्स शिक्षा ग्रहण नहीं की। कितने लोग होंगे जो सेक्स कुंठित होकर स्वर्ग सिधार गए, और कितने होंगे जो यौनविकारों से विक्षिप्त होकर इस भूमि पर भ्रमण कर रहे है? वस्तुतः 98% लोगों ने यौन-अबोध रहने के उपरांत भी कालक्रम अनुसार पूर्ण सुरक्षित और सन्तुष्ट जीवन जिया है। अधिसंख्यों की जनसंख्या, उनकी जीवन शैली और विकास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यौन शिक्षा सुख शान्ति और सन्तुष्टि की गारण्टी नहीं देती।

    यौनेच्छा का दमन करने वाले यौनविकार के शिकार होते ही है यह पूर्ण सत्य नहीं है। अनवरत यौन चिंतन में रत भी कुंठित और विकारी बन सकते है। यौन शिक्षा के पाठ्यक्रम भी, असीमित जिज्ञासा और अनवरत चिंतन का माहोल पैदा करेंगे। और अति तो हर चीज की बुरी होती है। यह अतिरिक्त अति ही होगी।

    अरविन्द जी, इस असहमति को मनभेद न मानें, इस विषय में यह मेरा दृष्टिकोण है। नैतिकतावादियों का कोई हो हल्ला नहीं होता, जैसे इसके पक्षकारों को अपना पक्ष रखने का अधिकार है ठीक वैसे नैतिकतावादी भी अपना पक्ष भर रखते है। हो हल्ला क्यों माना जाय?

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    1. सुज्ञ जी ,
      हमारे और आपके सोच और विचार में काफी लोचा लगता है :-)
      मेरा केवल यह कहना है कि मासूम किशोर के बीच जो यौन संसर्ग हो जाते हैं और गर्भ धारण हो जाता है उसकी सजा उनकी मौत नहीं होनी चाहिए -उपयुक्त शिक्षा और सामाजिक खुलेपन से उनकी जान बच सकती है !

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    2. अरविंद जी,

      लोचा तो है ही है :)

      अब देखो न सजा शब्द का उपयोग कर आपने समाज को दोषी करार दे दिया. सामाजिक खुलापन हो तब भी किसी अन्य बात, व्यवहा,र कार्य से अपराध बोध का आ जाना सम्भावित है.

      आत्महत्या तो अपने आप में हिंसा है और पाप भी. जिंदगी का किसी भी दशा मेँ आदर करता हूँ.

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  18. यह माना गया है कि मानवीय शरीर १८ के बाद ही यौन सम्बन्ध और उसके परिणामों के लिए परिपक्व होता है। इसलिए यह उम्र निर्धारित की गई है। लेकिन परिवर्तित परिवेश में युवाओं के लिए यौन जिज्ञासा उम्र से पहले ही हावी हो जाना भी स्वाभाविक है। ऐसे में सही जानकारी के अभाव में हानि होने की सम्भावना बनी रहती है।
    वैसे कहते हैं , प्रतीक्षा का फल मीठा होता है।

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  19. अच्छी और सामयिक मुद्दे पर लिखी गयी पोस्ट |आभार सर |

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  20. ये सोचने की बात है कि आज जो लोग सहमति से सम्बन्ध की आयु सोलह हो, इस विषय पर इतना शोर मचाये हुए हैं, उन्हें शायद ही ये मालूम हो कि एज ऑफ कंसेंट तो सालों से सोलह ही थी. बल्कि इस पर वकील वर्ग ये कहता भी था कि विवाह की आयु अठारह है तो सहमति से सम्बन्ध की आयु सोलह क्यों हो?
    यहाँ यह देखने की ज़रूरत है कि एज ऑफ कंसेंट का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि कानून इस आयु में सेक्स की खुली छूट दे रहा है. इसका मतलब सिर्फ इतना है कि यदि इस आयु से नीचे की आयु की लड़की सम्बन्धों के लिए सहमति भी दे देती है, तो भी इसे बलात्कार ही माना जाएगा. ये भी सोचने की बात है कि यह कानून औरतों के पक्ष में तो खड़ा है लेकिन लड़कों के पक्ष में नहीं. फ़र्ज़ कीजिये कि एक उन्नीस साल के लड़के के सम्बन्ध एक साढ़े सत्रह साल की लड़की से बन जाते हैं, तो वह लड़का बलात्कार का दोषी माना जाएगा, भले ही लड़की ने सम्बन्ध के लिए हामी भरी हो.
    मुझे आश्चर्य इस बात पर होता है कि वही लोग, जो छेडछाड के मामले में 'विपरीतलिंगी आकर्षण का जैविक तर्क' देते हैं, वे 'सहमति से सम्बन्ध' की आयु के मामले में तुरंत इसी तर्क के विरोध में जाने लगते हैं, जबकि यहाँ मामला "सहमति" का है. मुझे इनकी मानसिकता समझ में नहीं आती.
    जो लोग एज ऑफ कंसेंट को सोलह किये जाने के पक्ष में थे, उनका मतलब सिर्फ इतना था कि अगर भूल से लड़का-लड़की में सम्बन्ध बन जाते हैं, तो इसे 'अपराध' मानने के बजाय 'भूल' माना जाय. सिर्फ इसलिए कि उनसे एक मानवीय भूल हो गयी है. उन्हें जेल न भेज दिया जाय.
    मैं भी किशोरावस्था में यौन-सम्बन्ध की समर्थक नहीं हूँ क्योंकि इसका परिणाम अन्ततः लड़की को ज़्यादा भुगतना पड़ता है, जैसा कि आपने अपने संस्मरण में भी बताया. लेकिन अगर किशोरों से भूल हो गयी हो, तो उन्हें अपराधी तो नहीं मानना चाहिए.

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    1. धन्यवाद मुक्ति ,आपने इस विषय को बहुत अच्छे और इतने स्पष्ट तरीके से समझाया है कि मूरख ह्रदय भी समझ सकते हैं ,हम इसीलिए तो आपको विदुषी पद पर विभूषित किये हैं न -मगर हाँ आपसे कई मुद्दों पर असहमतियां भी हैं और आपकी असहमतियों पर सहिष्णु सहमति भी -मगर यह मुद्दा फिर कभी ! :-)

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    2. मुक्ति-अरविंद जी,
      यदि 18 वर्ष से कम उम्र के किसी बालक पर बलात्कार का आरोप लगेगा तो उसे बालक अधिनियम के अनुसार ही अभियोजित किया जाएगा न कि वयस्कों के कानून के अनुसार इस कारण से उसे जो दंड मिलेगा वह शतप्रतिशत उस के लिए सुधारात्मक ही होगा।
      यौन शिक्षा का अर्थ बहुत व्यापक होना चाहिए। यौन संबंध, उस के जैविक व सामाजिक परिणाम। अपराध और दंड ये सारी चीजें पढ़ाई जानी चाहिए। एक छठी कक्षा का विद्यार्थी 10-11 वर्ष का होता है, वहीं यौन आकर्षण का आरंभ भी होता है। यदि यौन शिक्षा दो भागों में बांटी जाए, शिक्षक और परिवार के बीच और शिक्षक व अभिभावकों के बीच इस संबंध में तालमेल हो जो वर्ष में शिक्षक और अभिभावकों की दो तीन संयुक्त बैठकों के माध्यम से हो सकता है तो इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। हम छठी कक्षा से जीव विज्ञान बच्चों को पढ़ा सकते हैं अन्य जानवरों के जीवन चक्र के बारे में पढ़ा सकते हैं तो क्या अजीब बात नहीं कि हम मनुष्यों के बारे में वही पाठ बच्चों को नहीं पढ़ा सकते?

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    3. बहुत अच्छा सुझाव दिया है आपने दिनेश जी -इस पर शिक्षाविदों को ध्यान देना चाहिए -आपसे अनुरोध है इस प्रस्ताव को स्वयंपूर्ण बनाएं और हम इसे लागू होने के लिए प्रयास करें!

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  21. कानून के अनुसार संबंधों के लिए उम्र का निर्धारण अवयस्कों को शोषण से बचाना है . इसपर नकारात्मक दृष्टि अवयस्कों की शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना को प्रोत्साहित करती मालूम होती है .
    सभ्य समाज और आदि मानव युग में कुछ अंतर होते ही हैं , होने भी चाहिए वे सामाजिक जागरूकता के नाम पर हो या कानून के भय से हो !

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    1. हम ऐसे ही दृष्टि के चलते इतनी वर्जनाएं थोप देते हैं कि यौन कुंठाएं उपजती हैं-सेक्स टैब्बू नहीं होना चाहिए मगर विवेक को जागृत करना सही समय पार्टनर ,देश काल का ज्ञान बच्चों को देना हमारा कर्तव्य है .
      अगर किशोर सम्बन्ध हो ही जायं तो उन्हें ऐसी मानसिक यंत्रणा और सामजिक बहिष्कार ,फतवों से न गुजरना पड़े जैसा होता आया है -इसलिए यह पोस्ट लिखी गयी है -मुक्ति ने बहुत बढियां तरीके से विषय को प्रस्तुत किया है!मुझे तो लगता है कि इस यौन कुंठित समाज में यौन न रुकने के पीछे यौन कुंठाओं की ही वजह है !

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    2. *यौन अत्याचार न रुकने

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    3. @वाणी दी, जिस कानून पर बात हो रही है, वह अवयस्कों के शोषण के विरुद्ध कानून नहीं, बल्कि बलात्कार का कानून है. अवयस्कों के शोषण के विरुद्ध बने कानून- The Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 में आयु 18 ही है. इसके अन्तर्गत अठारह साल से कम आयु के बच्चे के यौन-शोषण पर रोक लगाई गयी है.

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    4. मेरी टिप्पणी में अवयस्कों के विरुद्ध कानून का जिक्र है , मुझे ऐसा नहीं लगता !
      थोड़ी दूरदृष्टि से टिप्पणी को पढ़े तो बात समझ आएगी .

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  22. दमित यौन भावना का प्रस्फुटन ही बालकों के यौनशोषण की वजह बन रहा है . समाधान खाप और खापीय मानसिकता को बदलना है .यौन समबन्धों से जुडी उत्सुकता और विचलन पर निरंतर संवाद की ज़रुरत है .यहाँ मुंबई में एक लड़के ने अपनी मित्रा के रुके हुए पीरियड्स रिलीज़ करवाने के लिए स्क्र्यु ड्राइवर का इस्तेमाल किया .युवती की संक्रमण से मौत हो गई पता चला वह गर्भ से भी नहीं थी वैसे भी यौन सक्रीय होने पर माहवारी आगे पीछे हो जाती है .कौन देगा ये सब ज्ञान ?क्या आकाशवाणी होगी ?

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  23. यौन जिज्ञासा पर माँ बाप बगलें झाँकने लगते हैं शुद्धता वाद सारे झगड़े की फसाद है . भारत की आबादी इसी पाकीज़ा होते रहते बढ़ रही है देव योग से ?

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  24. सारगर्भित और तार्किकता पूर्ण

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  25. मर्यादा का संयम बहुत जरूरी है लेकिन अगर यह टूट गया तो कोई अपराध नहीं हो जाएगा जिसकी सजा जान देकर चुकानी पड़े। अर्थपूर्ण चिंतन

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  26. प्रतिबन्ध कोई मायने नहीं रखता ... हाँ! यह है कि यौन शिक्षा बहुत ही ज़रूरी है ...

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  27. पूर्णतयः सहमत हूँ आपसे. मेरी भी राय यही है जो अभी एक लेख में लिखी थी.

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    1. आपकी पोस्ट का भी लिंक दे दिया है समर !

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    2. अरे.. यह नहीं देखा था सर. बहुत नवाजिश आपकी इस हौसलाआफजाई के लिए. :)

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  28. जैवीय आकर्षण में फिसलन बनी रहती है .पैर भी फिसल जाता है संभलके चलना और उठना सिखलाया जाना चाहिए .उत्सुकतावश बहुत कुछ किशोर वय में अपघटित हो जाता है ,क्षम्य होना चाहिए .यौन सम्बन्ध किसी से कम उम्र में हो जाना सहज स्वाभाविक है .यह विषय जिज्ञासा के शमन से ताल्लुक रखता है -भय बिन होत न प्रीत गुसाईं वाला फलसफा यहाँ नहीं लागू होगा .अलबत्ता कम उम्र में यौन सम्बन्ध से होने वाली नुकसानी तद्जन्य गर्भावस्था से पैदा आतंक का सामाजिक स्तर पर स्वीकार्य समाधान निकाला जाना ज़रूरी है .दोहरा दें -यौन फिसलन जीवन का हिस्सा है अंत नहीं है .खाप पंचायतें जितना जल्दी इस तथ्य को समझ लें उतना ही ज़रूरी है .

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

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  29. परिष्कृत दोहरेपन के शिकार , मानसिक रूप से बहुत गहरे में बीमार , हमारे आसपास के तथाकथित सभ्य समाज में जो आप कह रहे हैं उसका दस प्रतिशत भी जमीन पर आने में अभी कम से कम पचास साल का समय है !

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  30. यहां तो चौदह पन्द्रह साल के लड़के लड़्कियाओं को भी अपनी मर्जी से सबकुछ करने की छूट है. उस प्रक्रिया को लेकर न कोई सामाजिक टबू है न कोई छद्म नैतिकताजन्य अपराधबोध ! इससे अटारह बीस होते होते सब भली भांति मैच्योर होते है ! शरीर को लेकर कोई कुण्ठा नहीं रहती. इससे पारिवारिक व सामाजिक जीवन की बहुत सारी उलझनें, समस्यायें अपने आप खत्म हो जाती है.
    सेक्स से जुड़े अपराध होते ही नहीं .

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  31. सहमति आपसे .पर आम जन की मानसिकता कब इस दोहरेपन से बाहर आएगी जो केवल अपनी जिंदगी को अपवाद मान कर दूसरों के लिए कानून बनाते हैं .

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