शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

नवाबों के शहर में दूसरा दिन और अजीम शख्सियतों से मुलाक़ात


संतोष त्रिवेदी जी लखनऊ में मेरे प्रवास के पल पल की जानकारी ले रहे थे..कहाँ कहाँ गए किससे किससे मिले क्या क्या खाया आदि आदि ..भले और सहृदय मानुष है ...सच्चे और निष्कपट ...मगर ऐसी भी घुसपैठ क्या भाई जी कि  रिजर्व टाईम और प्राईवेट क्षणों में भी राहत नहीं ....रवीन्द्र प्रभात जी के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के बाद मैंने अपने डेरे का रुख किया ...जाना तो हजरत गंज चाहता था 'गंजिंग' का आनन्द लेने मगर  किसी का साथ न होने से यह इच्छा फलीभूत न हो सकी ..मायूसी लिए डेरे पर लौट आया ....संतोष जी को भी सूचित कर दिया ...फेसबुक पर लगातार मेरे पोजीशन अपडेट हो रही थी ..इस  भुलावे में कि कोई और हाल चाल तो पूछे ..मगर सन्नाटा रहा ....हौसले और हकीकत का यही फर्क है ..अब तो मेरी इस पोजीशन -अपडेट तकनीक के चलते यह कहने वाले भी कम होते गए हैं कि भाई आपने पहले बता दिया होता तो हम पलक पावंडे न बिछा देते ..अब सिद्धार्थ त्रिपाठी जी की जरुर इस आशय की टिप्पणी पिछली पोस्ट पर आयी है ..अब वे कहेगें कि उनको तो फेसबुक छोड़े अरसा हो गया है ..बहरहाल ... :)मगर वे भी तो वर्धा में हैं लखनऊ में उनके होने की तसव्वुर भी मैं कैसे करता ... निश्चय ही ब्लॉग जगत के रिश्तों की शुरुआती गर्मी पर अब तुषारपात होने लग गया है मगर अभी भी मानवीयता का परचम लिए खड़े  कुछ लोग अपवाद हैं ...उन्हें सलाम! 
मुझे उत्तर प्रदेश प्रशासन एवं प्रबंध अकादमी पहुंचना था, सो मैं जल्दी ही नहा धो नाश्ता वाश्ता करके वहां दस बजे के पहले ही पहुँच गया ....वहां मेरे शासकीय दायित्व के दीगर जो सबसे बड़ा लाभ हुआ -गुरु और गोविन्द से एक साथ मिल जाने के अनिर्वचनीय आनंद का .....संस्थान के अतिरिक्त निदेशक  हेमंत कुमार जी, ऐसे गुरु जिनसे मिलते ही उन्होंने गोविन्द से भी मिला दिया जो इस बार मेरे लखनऊ प्रवास की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रही ...गोविन्द बोले तो मनीष शुक्ल जी जो उसी संस्थान में एक बड़े ओहदे पर हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वे  ब्लॉगर भी हैं -सोने पर सुहागा ....वे एक गहन अनुभूति  वाले शायर हैं ....गौतम राजरिशी साहब से अभी हाल की ही उनकी दोस्ती भी है जिसकी प्रगाढ़ता का अहसास मुझे उनसे मेजर साहब के बारे में बातचीत से हुआ और इसमें क्या दो राय कि ब्लागजगत में शायरी को एक नया तेवर और मुकाम देने में मेजर साहब का कितना योगदान है ..वे एक सृजन, साहित्य प्रेमी पहले हैं और फ़ौजी बाद में ....
पहले गुरु जी की बात -हेमंत कुमार जी प्रशासनिक ढाँचे में रहने के बाद और बावजूद भी गहरे रचनाधर्मिता से पूरी शिद्दत के साथ जुड़े हुए हैं ..जिसका प्रमाण है उनकी अनेक पुस्तकें जो साहित्य की कई विधाओं -कहानी,कविता ,यात्रा वृत्तांत ,संस्मरण,व्यंग की नुमाईंदगी करती हैं ..उनकी सूटकेस में जिन्दगी  यात्रा संस्मरण की एक नायाब कृति है ....जिसका अवगाहन आपको अपनी ही दुनिया के बड़े चुटीले और मार्मिक पड़ावों को दिखाता जाता है ...इसकी चर्चा यहीं फिर कभी होगी ...उन्होंने मिलने पर एक नया तोहफा दिया है 'लाल फीता' यह संभवतः व्यवस्था के कार्य व्यवहार के प्रति एक व्यंगकार की प्रतिक्रिया है ..अभी मैंने इसे पढ़ा नहीं ..पढ़कर साझा करूँगा और इंशा अल्लाह इस शख्सियत के बारे में विस्तार से लिख सकूंगा ...अभी तो आपको अपने गिरधर गोविन्द से मिला दूं ..
मनीष शुक्ल जैसा आप यहाँ देख सकते हैं -गहरी अनुभूति और अभिव्यक्ति की परिपक्वता लिए एक रचनाकार और उससे भी बढ़कर एक बढियां इंसान हैं ....मैंने ज्यादातर शुक्ल लोगों को शुक्ल पक्ष का ही पाया है ..विद्वता अथवा / और श्रेष्ठता के शिखर पर ..मेरी पत्नी खुद  शुक्ल खानदान से हैं -इसलिए भी शुक्ल लोगों के प्रति मेरा पहला रिएक्शन अदब और भय मिश्रित सम्मान का ही रहता है  अब अपवाद तो हर जगह हैं :)  ... .. आज के पोस्ट के मेरे नायक मनीष जी के समय की व्यस्तता के कारण  चंद पलों की उनसे हुयी मुलाक़ात ने ही इस मिलन को यादगार बना दिया -वित्त विभाग से सीधे जुड़कर भी उनकी 'साधारणता' की 'असाधारणता' ,सादा जीवन और विचारों की समृद्धता और प्रकारांतर से वित्त को धता बताती उनकी  प्रत्यक्ष वित्तीय 'विपन्नता ' या उसे ज्यादा तवज्जो  न देने की उनकी प्रतिबद्धता ने मुझे गहरे प्रभावित किया ...चलते चलते उन्होंने एक पत्रिका उन्होंने मुझे थमाई -'लफ्ज़' जिसमें उनकी और गौतम राजरिशी जी की ताजातरीन गजलें छपी हैं ..जिनका अस्वादन/शेरो सुखन में मुब्तिला   मैंने वापसी रेलयात्रा सहज की बिता दी  ...उनकी एक ग़ज़ल भी हो जाय यहाँ -
गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं.
तनावर जिस्म गाड़े जा रहे हैं,

यक़ीनन कोई वीराना सजेगा.
घरौंदे फिर उजाड़े जा रहे हैं,

तुम्हें बदनाम तक होने न देंगे.
हर इक तहरीर फाड़े जा रहे हैं,

बहुत रोओगे हमको याद करके.
तुम्हें इतना बिगाड़े जा रहे हैं,

खिजां की उम्र भी आने को है अब.
चले आओ कि जाड़े जा रहे हैं,



मनीष शुक्ल
मनीष जी से गुजारिश  है  कि अपने ब्लॉग पर नियमित हों और हमें अपने नायाब शेरो /शायरी /गजलों से रुबरूं कराते रहें ....हम इंतज़ार करेगें!   

31 टिप्‍पणियां:

  1. कई साहित्यकारों से परिचय कराया, गंजिंग अकेले ही निपटा लेनी थी।

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  2. बहुत रोओगे हमको याद करके
    तुम्हे इतना बिगाड़े जा रहे हैं !

    मनीष जी को पढवाने के लिए आभार आपका !
    उपरोक्त लाइन इनके कविह्रदय व्यक्तित्व का परिचय करवाने के लिए काफी है ! शुभकामनायें मनीष जी को !

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  3. इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नए ब्लौगर्स को भी जानने का मौका मिला. धन्यवाद.

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  4. ब्लोगरों से मुलाकात करने के लिए धन्यवाद|

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  5. सुखद और सार्थक संस्मरण, ऐसी ही शूक्ष्म अनुभूतियों को निराला और अज्ञेय ने आगे बढाया था ....आप जैसे कुछ लोग और आगे बढ़कर ऐसे सकारात्मक संस्मरण लिखे तो मेरा मानना है कि आने वाले समय में हिंदी चिट्ठाकारिता का एक अलग और महत्वपूर्ण मुकाम होगा !

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  6. मेरी पत्नी खुद शुक्ल खानदान से हैं -इसलिए भी शुक्ल लोगों के प्रति मेरा पहला रिएक्शन अदब और भय मिश्रित सम्मान का ही रहता है
    नवाबों के शहर में दूसरा दिन और ......नायाब रहा .साक्षी हम भी बने .आपकी अदबियत और आदार भाव के ,कटाक्ष के .

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  7. मनीष जी का लिखा बांचा. बहुत अच्छा लगा. आभार. शुक्ल लोगों के प्रति आपका बयास समझ आती है.

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  8. mishra ji apka bahut abhari hoo'n ki apne mujh jaise nacheez ko itni izzat bakhshi,mai'n govind ke sath tulna karne ke qataee layaq nahi'n hoo'n aap bas apna chhota bhai samajhkar isi tara asheerwad barsate rahe to shayd insan ban jaoo'n kisi din,apke adesh ke anupalan mei'n kuchh ghazalei'n blog par post kari hai'n,age bhi karte rahenge,again thanks a lot to you and your blog friends who blessed me with their affection

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  9. कई ब्लोगरों/साहित्यकारों से परिचय कराया.आभार.

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  10. वाह! बढ़िया शायर से मिलवाया आपने। उनके ब्लॉग पर गया और कुछ गज़लें पढ़ीं।

    गए मौसम का डर बांधे हुए है
    परिंदा अब भी पर बांधे हुए है,
    बुलाती हैं चमकती शाह राहें
    मगर कच्ची डगर बांधे हुए है

    ....यह तो वहाँ से यहां उठा लाया। आपकी याददाश्त और रिपोर्टिंग की क्षमता लाज़वाब है।...आभार आपका।

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  11. (१)
    ओह आपके लिए एक और सुकुल जी :)

    (२)
    अब जैसा कि शीर्षक में उल्लेख है इस पूरी पोस्ट में अज़ीम और नवाब नाम का कोई बन्दा नहीं दिखा :)

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  12. मनीष जी की गजल पढवाने के लिए आभार !

    इस हेतु आपको अनेक धन्यवाद एवं मनीष जी के लिए कोटिशः मंगलकामनाएं!

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  13. बहुत आभार आपका...!
    आपने अपने शिष्य को इतना प्यार दिया कि बस्स, लहालोट हो गया मैं !आपके हमारे बारे में उच्च-विचारों पर इतना ही कहना है :

    यह आपकी ज़र्रानवाज़ी है हुज़ूर,
    वर्ना हम तो आदमी बेकार के हैं !
    (ग़ालिब साहब से माफ़ी सहित)

    ये मिलना -मिलाना भी ख़ूब रहा,
    शाम-ए-अवध को लूटा है किस कदर !

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  14. हा हा हा ! रिजर्व टाईम और प्राईवेट क्षणों में तो राहत मिलनी ही चाहिए ।
    त्रिवेदी जी को समझना पड़ेगा ।

    बहुत बढ़िया ग़ज़ल है ।
    विवरण पूरा हो गया ?

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  15. आपकी लखनऊ यात्रा और मनीष शुक्ल सहित सभी विद्वजन के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा.

    बहुत रोओगे हमको याद करके.
    तुम्हें इतना बिगाड़े जा रहे हैं,

    बहुत ही शानदार शेर है...

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  16. मनीष जी, सचमुच ऊचे दर्जें के शायर हैं। एक दिन वे विश्‍व स्‍तर पर अपना नाम करेंगे। उनके ब्‍लॉग के बारे में जानकर अच्‍छा लगा।

    ------
    मिल गयी दूसरी धरती?
    आसमान में छेद हो गया....

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  17. बढ़िया लेखा-जोखा. हेमंत कुमार जी को तो पढ़ा था मगर मनीष शुक्ल की गज़लें एक उपलब्धि हैं .
    आपको धन्यवाद कि परिचय कराया .

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  18. अनोखा परिचय!! अद्भुत व्यक्तित्व... सॉरी शाख्सियात!!हमारे गुरूजी से तो मिलाने का इत्तिफाक नहीं हुआ होगा! बहुत लो प्रोफाइल हैं - जनाब के.पी.सक्सेना! वहीं गोमती नगर के बाशिंदे हैं!!

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  19. looks like u had lotz of fun... and the gazal in last was like cherry on the cake.

    Nice read !!

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  20. कई नए ब्लोगेर्स के बारे में जाना ....शुभकामनायें

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  21. जाने-पहचाने और अनजाने ब्लॉगर्स के परिचय के लिए आभार !

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  22. अच्छे लोगों का परिचय पाकर अच्छा लगता है. मनीष जी की गजल बहुत अच्छी है.
    @"मगर ऐसी भी घुसपैठ क्या भाई जी कि रिजर्व टाईम और प्राईवेट क्षणों में भी राहत नहीं "
    लगता है संतोष जी को अभी आपकी बदमाशियों के बारे में मालूम नहीं है:)

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  23. अरविन्द जी ,
    आपके लिए एक शिकवा त्रिवेदी जी के सौजन्य से !

    शाम-ए-अवध को आपने लूटा है किस कदर !
    कि पोर पोर शहर का टूटा है ऐ ब्रदर !

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  24. मनीष जी की गजलों से पूर्व-परिचित हूँ, फेसबुकिया मीत-सूची में हैं मेरे, एकाध वीडियो प्रस्तुति भी देखा-सूना हूँ. इन्हें यहाँ पढ़ना अच्छा लगा!

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  25. बहुत रोओगे हमको याद करके.
    तुम्हें इतना बिगाड़े जा रहे हैं,

    खिजां की उम्र भी आने को है अब.
    चले आओ कि जाड़े जा रहे हैं,

    वाह वाह वाह मनीष जी ।
    आप की पोस्ट के माध्यम से नए पुराने काफी ब्लॉगर्स से परिचय हुआ । ऱोचक पोस्ट ।

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  26. aap sabhi logo'n ka mai'n tah e dil se shukrguzar hoo'n ,age bhi isi tarah nawazte rahiyega,thanks dr mishra itne sare dosto'n se milwane ke liye

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  27. चलिए अवध की एक शाम मिश्र जी के नाम रही, जानकर प्रसन्नता हुई॥

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  28. बहुत सुन्दर पोस्ट आदरणीय मिश्र जी आपकी लेखन शैली और प्रवीण पाण्डेय जी के लेखन शैली अद्भुत है लेख अपनी स्टाईल से बहुत रोचक हो जाता है |बधाई

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  29. बहुत सुन्दर पोस्ट आदरणीय मिश्र जी आपकी लेखन शैली और प्रवीण पाण्डेय जी के लेखन शैली अद्भुत है लेख अपनी स्टाईल से बहुत रोचक हो जाता है |बधाई

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