शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

ब्लागर्स इन 'बिग बॉस'

सोचा आज कुछ निबंध विबंध लिखा जाय ..ऐसे ही बैठे ठाले ....कुछ फुरसत मिल गयी है तो उसका सदुपयोग किया जाय .अब निबंध लिखना है तो कुछ विषय उसय भी चाहिए ही ..दिमाग पर जोर डालने लगा ..कौन सा विषय चुनूं कौन सा छोडूं ....फिर सहसा फ्लैश हुआ कि अपने प्यारे हिन्दी ब्लाग जगत के रहते विषय की कौन सी कमी है ....एक ढूढों हजार विषय यहाँ मौजूद हैं ..मगर निबंध के लिए तो थोडा ठीक ठाक विषय होना चाहिए जिस पर कम से कम कुछ देर तक तो  की बोर्ड पर उंगलियाँ खटखटाई जा सकें  ..फिर सहसा यह भी सूझ गया कि क्यों न अपने ब्लॉग जगत की  उपमा इन दिनों कलर चैनेल पर चल रहे अद्भुत गेम बिगबास से ही की जाय ...आखिर संस्कृत और हिन्दी साहित्य में उपमा विषय काफी समादृत हुआ है -संस्कृत में तो उपमा कालिदासस्य की नजीरे तक दी जाती हैं .तो मन  ने तय पाया कि चलो आज हिन्दी ब्लॉग जगत की तुलना बिग बास से ही कर दी जाय ...

पहले तो अनजान लोगों को यह बता दूं कि बिग बास का यह भारतीय कांसेप्ट चुराया हुआ है मगर यह जहाँ से चुराया गया है ( अमेरिकन टी वी संसार ) वहां भी यह कहीं और से चुराया गया है .दरअसल यह सोच थी जार्ज आर्वेल की जिन्होंने अपने उपन्यास १९८४ में बिग ब्रदर इज वाचिंग यू का जुमला उछाला था ...मतलब १९८४ तक  मशीनी जुगतों के सहारे हर नियोक्ता या सरकार सभी की पल पल की हरकतों पर निगाह रखेगी ...और उस मनीषी की सोच हकीकत में बदलती गयी और उसी तर्ज पर ये टी वी प्रोग्राम भी अब अच्छे खासे लोकप्रिय हो रहे हैं ...जिसमें एक घर के अंदर देश दुनिया से कटे कुछ ख्यात कुख्यात लोगों के बात व्यवहार ,चाल ढाल पर हर पल नजर रखी जाती है ....और उन्हें रियल्टी शो के नाम पर दर्शकों को परोस दिया जाता है ...मेरी कापीराईट सोच यह है कि बस इसी तर्ज पर जरा अपने हिन्दी ब्लागजगत के कुछ ख्यात कुख्यात बन्धु बान्धवियों  की खोज खबर ली जाय कि वे इस आभासी जगत के बिना /बजाय कैसा जीवन जी रहे हैं ..यहाँ तो सब दूध के धुले उज्जवल स्वच्छ नजर आते हैं मगर अपनी दैनंदिन जिन्दगी में कैसा आचरण करते हैं .

मैं इस प्रस्ताव को कलर चैनेल तक  पहुचाना चाहता हूँ कि अगले  बिग बास के किरदारों का चुनाव वह हिन्दी ब्लॉग जगत के ख्यात कुख्यात लोगों में से करे ...और फिर देखे कि कैसे उसकी टी आर पी शूट करती है .सारा ब्लॉग जगत उसे देखने को उमड़ पड़ेगा ....बाकी कलर के परमानेंट दर्शक तो होंगे ही .अगर आप इन दिनों बिग बास देख रहे हों तो आप घर के सदस्यों के चुनाव  पर सोचमग्न जरुर हुए होंगें -समाज के एक से एक बढ़कर रहनुमा उसमें किरदार बने हैं ..बंटी चोर से  बीहड़ की डाकू तक उसमें अपने जलवे बिखेर रहे /रही हैं .और बिग बास के इस घर का शायद ही कोई सदस्य हो जो अपनी निजी जिन्दगी में भारतीय कथित श्रेष्ठ  परम्पराओं के अनुकूल हो ...कोई परित्यक्त तो कोई परित्यकता ,कोई दाग दामन तो कोई नापाक!   अगर यही ट्रेंड बरकरार रहा तो हिन्दी ब्लागजगत के चिट्ठाकारों के लिए एक सुनहला भविष्य इंतज़ार कर रहा है जहाँ वे छोटे परदे पर चरित्र का बखूबी निर्वहन कर सकेगें और दर्शकों का तिरस्कार या तालियाँ बटोरेगें...
 बिग बास की चख चख 
आईये हम बिग बास के अगले अगले और उसके अगले इपिसोडों के लिए टीमें तैयार करें ताकि प्रपोजल जल्दी से जल्दी कलर चैनेल वालों को भेजा जा सके ..एक बात तो तय है कि मैं इन टीमों में से किसी एक ,पहली ही में क्यों न ,खुद जाना चाहूँगा ..और अपने साथ ..................इन्हें देखना चाहूँगा ...पल पल गुजारकर वाकई देखना चाहता हूँ कौन वाकई कितना और अच्छा है और कौन वाकई कितना और कमीना है ..और दूसरे सदस्य भी खुद मेरे बारे में असली मूल्यांकन कर सकेगें ..आप कहें तो मैं अपनी च्वायस  भी बता दूंगा मगर पहले आप लखनौआ तर्ज पर अपनी पसंद बता दें ताकि उसी हिसाब से टीम का गठन शुरू भी हो जाय .
 ब्लागर्स इन बिग बास :पोस्टर सौजन्य ताऊ रामपुरिया 

ओह कितना विषयांतर हो गया...मैंने शुरुआत एक निबंध लिखने से की थी मगर कहाँ से  से कहाँ पहुँच गए ....अब तो फिलहाल निबंध लेखन का नेक  ख़याल मुल्तवी करना पड़ रहा है ...

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

मिथिलेश दुबे की याद है किसी को ?

आज मिथिलेश जी का फोन आया तो मुझे अच्छा लगा ,इतने  दिनों बाद उत्साह और ऊर्जा से लबरेज इस युवा ब्लॉगर की आवाज सुनायी दी ..मगर उसके बाद जो कुछ वे रौ  में कहते गए  सुन सुन कर मन व्यथित हुए बिना नहीं रहा ..उनके पिछले दो माह कठिन कष्ट के बीते हैं ...उन्होंने बताया कि  लखनऊ में उन्हें  डेंगू  हुआ और हालत क्रिटिकल होने पर उन्हें अपोलो हास्पिटल दिल्ली ले जाया गया ...उनकी सबसे बड़ी और उचित पीड़ा यह है कि उनके हमदम दोस्त ब्लागरों तक ने भी उनकी सुधि नहीं ली ...खबर मिलने पर कतरा कर निकल गए ...प्लेटलेट की कमी आखिर घर से लोगों के आने पर रक्तदान के बाद  दूर हुई ...और एक बार यह फिर पुष्टि हुई कि रक्त का सम्बन्ध ज्यादा घना होता है ....ब्लड इज थिकर दैन  वाटर बहरहाल वे इन दिनों कारपेट नगरी भदोहीं में अपने पैतृक घर पर स्वास्थ्यलाभ कर रहे हैं .

मिथिलेश ने अपने कुछ दोस्त ब्लागरों का नाम लेकर भी गिनाया और बताया कि खून देने की बात कौन कहे वे उन्हें देखने तक नहीं आये ..मैंने उन्हें एक बुजुर्ग की हैसियत से सलाह  दी और कहा कि मिथिलेश अब आपको जीवन की सीखें मिलनी शुरू हुई हैं ..एक तरह से यह दुनिया ऐसी ही है ,खुदगर्ज लोगों की ..चाहे वे ब्लॉगर हो अथवा न हों ....उन्होंने यह कहा कि बीमारी से ठीक होने पर किसी भी ब्लॉगर को यानि मुझे उनका यह पहला फोन है -सहसा एक ग्लानि बोध ने  मुझे  भी ग्रसित किया .मैंने ही कहाँ उनका कुशल क्षेम पूछा इन दिनों ..मैंने खुद को पंचायत चुनावों के नाम पर माफ़ किया और उन्हें अपनी  इस व्यस्तता की बात बतायी ...मगर सच कहता हूँ मुझे याद तो मिथिलेश की आई थी मगर हाँ फोन उन्हें नहीं कर सका ...और इसके पहले उनका ही फोन आ गया ..उन्होंने यह भी बताया  कि सतीश सक्सेना जी के मेल और काल्स जरुर आये मगर वे उनका जवाब देने की स्थिति में नहीं थे-सुन रहे हैं न सतीश भाई! मान  गए आपको बन्धु! औरों के बारे में तो बस यही कहा जा सकता है कि कोई मजबूरी रही होगी वर्ना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता ......

 मिथिलेश धर दुबे 


  मिथिलेश जी से मैं साक्षात रूबरू हो चुका हूँ ..पहले विश्वास नहीं होता था कि वे सबसे कम उम्र के युवा ब्लागर हैं ...देखा तो सौ फीसदी इत्मीनान हो गया ..एक सुदर्शन ,मेरे बेटे की उम्र का नौजवान मेरे सामने था -गदह पचीसी की ओर खरामा खरामा पग बढ़ाता हुआ .....देश दुनिया ,जान  जहान के बारे में एक मासूम सी उनकी सोच से कहीं कुछ कचोट भी अनुभूत हुई थी मुझे ..कितना कुछ दुनिया को अभी जानना समझना है बच्चे को ...लेकिन उनका निश्छल व्यक्तिव उस समय मुखर था और मैंने उन्हें ढेर सारा आशीष देकर विदा किया था ...दुनिया को तो पूरी तरह हम भी आज तक नहीं समझ पाए हैं कितने अपनों  ने कैसे  कैसे दुःख पहुचाये हैं ,पीठ में छुरे घोपे हैं ..यह तो अभी बच्चा है ...और बच्चों के लिए तो दिल में हमेशा स्नेह ही उमड़ता रहा है ..आशीष ही ह्रदय से रेडियेट होता है ...

मिथिलेश जी  का बार बार ब्लॉग जगत की हाल चाल और नए तूफानों की जानकारी की  उत्कंठा से यह लग रहा था कि जनाब अब पूरी तरह  ठीक हो गए हैं ...मैंने उन्हें महफूज जी के गोलीकांड के बारे में भी बताया -लगा जैसे उनका खुद का दुःख दूर हो गया हो ...उनकी हाल चाल ,गोली कहाँ लगी छर्रे कितने लगे यह सब पूछते रहे ..यह तो अच्छा हुआ कि महफूज भाई ने मुझे यह सब जानकारी तफसील से दे दी थी इसलिए मुझे बताने में हिचक नहीं हुई ..फिर वे  वापस  ब्लॉग जगत के नए धमाकों पर केन्द्रित हो गए ...वाह रे मनुष्य का जिज्ञासु स्वभाव वह दुनियादारी से खफा होकर भी उसी का होकर बना रहता है .. मैंने उन्हें सहेजा कि भइया मेरे ,अभी आराम करो ,स्वास्थ्यलाभ करो .. छोडो ब्लागिंग वलागिंग ..जब वे नहीं माने तो मैंने उनके ही वेश्याओं पर एक लेख के जुमले में जवाब दे डाला -सुनो मिथिलेश ,ब्लागिंग मुई क्या है कि यह एक वैश्या की जवानी है जो हमेशा सदाबहार दिखती है ....जबकि होती कुछ और है ..अभी इससे दूर रह सको तभी खैर है ...हा हा ...अब वे शरमा के चुप हो लिए थे.....और मैं यही चाहता भी था ...

आप चाहें तो मिथिलेश जी का कुशल क्षेम इस नंबर पर -09457582334 जान सकते हैं ...वैसे वे अब स्वस्थ हैं और ब्लॉग जगत में धमाकेदार वापसी करने की नीयत रखते हैं .....कायनात सावधान हो ले ....

रविवार, 24 अक्टूबर 2010

शैलेश भारती के जज्बे को सलाम ....

उत्तर प्रदेश में इन दिनों पंचायत चुनावों की धूम है .आज आख़िरी चरण के मतदान के लिए पोलिंग पार्टियां रवाना हो गयी हैं -कल मतदान है .हम सरकारी मुलाजिमों की हालत हलकान है ..पिछले डेढ़ माह से हम निर्वाचन आयोग के अधीन चुनाव प्रक्रिया को निर्विघ्न सकुशल निपटाने को रात दिन लगे हैं .आज भी देर शाम पोलिंग पार्टियों की रवानगी सुनिश्चित करके  लौटा हूँ -आज कुछ ऐसा अनुभव हुआ है जिसे मैं आपसे बांटे बिना खुद को रोक नहीं पा  रहा हूँ .दिन के वक्त जब तकरीबन ढाई हजार मतदान कार्मिकों की विशाल भीड़ मतदान स्थलों पर जाने के पहले अपनी सर सामग्री -मतपत्र ,मतदाता सूची ,मतपेटियां आदि सहेज रही थी और उनकी पार्टी के अब्सेंन्टीज (गैर हाजिर ) मतदान अधिकारियों की प्रतिपूर्ति की व्यवस्था मेरे निर्देशन में चल रही थी ..बेईन्तहा शोर ,चिल्ल पों ,मजमें का आलम था ...एक अलग सी आवाज ने मुझे सहसा आकर्षित किया ...

"सर ,मेरी पोलिंग पार्टी में मतदान अधिकारी प्रथम अब्सेंट हैं ,मुझे एक मतदान अधिकारी प्रथम चाहिए " यह एक नारी आवाज थी जबकि मेरी जानकारी में आराजीलायिन ब्लाक पर किसी महिला की ड्यूटी नहीं लगाई गयी थी ...वैसे भी दूर दराज के गाँवों वाले ब्लाकों में महिला मतदान कर्मी नहीं लगाई गयी थीं ,जबकि शहर के निकटवर्ती गावों में पोलिंग आफीसर तृतीय की ड्यूटी आयोग के निर्देशों पर की गयी थी ...मेरे सामने तो एक महिला खडीं थीं और खुद को पीठासीन अधिकारी की हैसियत में प्रस्तुत कर रही थीं ..हैरानी की बारी मेरी थी ...
"आप ..आप की ड्यूटी कैसे लगी ..यहाँ तो किसी भी पोलिंग पार्टी में महिला कर्मी की किसी भी पद पर ड्यूटी नहीं लगी है और आप तो पीठासीन अधिकारी बता रही हैं खुद को ..." 
" सर यह दिक्कत मेरे नाम के चलते हुई है ..शैलेश भारती को पुरुष समझ लिया गया और मुझे पीठासीन अधिकारी की ड्यूटी मिल गयी है ,मैंने मतदान सामग्री एलाट करा लिया है ,सब सामानों का  मिलान भी कर लिया है ..मगर मेरी पार्टी में मतदान अधिकारी प्रथम अनुपस्थित हैं ..बस आप उनकी व्यवस्था कर दीजिये ...." मैं ,मेरे  सहयोगी ,सबके सब अवाक ...सहसा कुछ कहते ही नहीं बना ...यह तो अपने ढंग की अप्रत्याशित समस्या आ  खडी हुई थी ..जहाँ अपनी  जिम्मेदारियों से मुंह  मोड़ने वाले कई भगेड़े पुरुष कर्मी अन्यान्य कारणों से अपनी ड्यूटी कटवाने के  फिराक में रिरिया रहे थे,पूरे आत्मविश्वास से लबरेज यह महिला अपने दायित्व के लिए दृढ प्रतिज्ञ लग रही थी ..जबकि वह एक क्लारिकल भूल की शिकार हुई थी और उसकी ड्यूटी बदलने का पूरा औचित्य बनता था ...और यह मेरे अधिकार में था ...मैंने सहसा कुछ निश्चय किया ..
"रहने दीजिये आप मत जाईये ..एक अप्लीकेशन लिखिए मैं आपके स्थान पर दूसरे पीठासीन अधिकारी को नियुक्त कर देता हूँ ..रिजर्व में कई पीठासीन अधिकारी यहाँ हैं भी ..." 
"सर मैंने तो सब समान रिसीव कर लिया है और मतपत्रों के पीछे अपनी साईन भी कर दी है ..अब कैसे कोई दूसरा जा सकता है ? " 
मैं झुंझला पड़ा .."मुझसे पूंछ तो लिया होता ...यहाँ कई लोग ड्यूटी न करने के बहाने ढूंढ रहे हैं और आप ड्यूटी को उद्यत हैं  ." मेरी आवाज में अब असहायता का पुट साफ़ उभर आया था ....मैंने फिर प्रयास किया ...

" आप फाईनल  बताईये ..मन  स्थिर कीजिये ..आपके ऊपर है अब इस टफ ड्यूटी को करना या न करना ..गाँव में रात गुजारनी है, आपके अन्य सभी पोलिंग पर्सोनेल पुरुष हैं ....आपको असुविधा हो सकती है ...सोच लीजिये ..मैं अब भी आपके स्थान पर दूसरा पीठासीन अधिकारी भेज सकता हूँ  ..." 
"नहीं सर अब मैं ही जाउंगी ,आप तो बस मुझे एक पोलिंग आफीसर प्रथम दे दीजिये बस ..." वे अपने निर्णय पर अटल थीं और अब मैं असहाय हो उठा था ...उन्हें एक पोलिंग आफीसर प्रथम दे दिया ....और वे खुशी खुशी चल दीं ....मगर थोड़ी ही देर में फिर आ  पहुँची ..
." सर मेरे मतदान स्थल पर १००० मतदाता हैं  " 
"अरे, सभी बूथों पर तो औसतन ६००-७०० मतदाता  हैं आपके यहाँ कैसे एक हजार ? " 
जवाब में उन्होंने पूरी मतदाता सूची ही सामने धर दी ....१००० से कुछ ऊपर ही मतदाता थे...." तो यहाँ मुझे एक और कर्मी रिजर्व से देना होगा ,जाईये आपके बूथ पर कल सेक्टर  मजिस्ट्रेट एक अतिरिक्त कर्मी और लेकर जायेगें ..सकुशल शांतिपूर्ण मतदान के लिए मेरी शुभकामनायें " 

..और शैलेश भारती जो यहाँ स्थानीय सहायक बेसिक शिक्षाधिकारी काशी विद्यापीठ कार्यालय में हैं और  प्रधान अध्यापक हैं खुशी खुशी अराजीलाईन  ब्लाक के  मतदेय स्थल संख्या १२२ ,प्राईमरी पाठशाला शहंशाहपुर,  पर कल मतदान कराने को चल  दी हैं ....रात में उनकी पोलिंग पार्टी के सकुशल मतदान स्थल पर पहुँच जाने की सूचना है ...मैं उनके जज्बे को सलाम करता हूँ और उन्हें शांतिपूर्ण ,निर्विघ्न मतदान कराने की शुभकामनायें भी देता हूँ ....

शैलेश  भारती ने  एक ऐसा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी चर्चा होती रहेगी ...
पुनश्च:
आज तारीख २६ अक्तूबर २०१० को शैलेश भारती की खबर स्थानीय दैनिक जागरण ने भी प्रमुखता से छापी है .मित्रों के पुरजोर आग्रह पर उसी फोटो को यहाँ दे रहा हूँ ,हो सका तो कभी उनका इंटरव्यू भी लेकर एक अच्छी सी तस्वीर भी दे  सकूंगा ..अभी तो इसी से संतोष कीजिये .
देखिये इस सुदर्शन महिलाके सुन्दर और अनुकरणीय काम को भी ....


मतपेटिका जमा कराने जब शैलेश जी आयीं तो दैनिक  जागरण के फोटोग्राफर ने झट से उतारी उनकी  ये  तस्वीर 

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

दिनोदिन आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करना कठिन होता जा रहा है!

यह एक चुराया हुआ शीर्षक है जिसे  एक सम्मानित टिप्पणीकार की एक टिप्पणी से मैंने उड़ाया है. वैसे सम्मानित टिप्पणीकार ज्यादातर एक ही चिट्ठे पर अपने विचार पुष्प बिखेरते पाए जाते हैं. मुझे क्या ,मगर बात अब बर्दाश्त के बाहर  जा रही है!

समाज के प्रबुद्ध  बुजुर्ग से अपेक्षा रहती है कि वह समाज का पथ प्रदर्शन करें - संस्कृत की एक  कहावत है कि वह समाज गर्त में जा गिरता है जहां बुजुर्ग सम्मानित नहीं हैं -जाहिर है बुजुर्ग से भी यही उम्मीद रहती है कि वह अपनी इस इमेज की रक्षा करे.हाँ आज इस चुराई शीर्षक टिप्पणी से मन जरुर शांत हुआ है.कई ऐसे चिट्ठाकार हैं जिनका चिटठा बस अन्धविश्वास परसते रहे हैं. मुझे  ऐसी गतिविधियाँ बहुत नापसंद हैं -कारण वही वैज्ञानिक नजरिये के प्रसार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता है
..अब आत्मा के वजूद पर निरे बेसिर पैर की बातें कई जगहं दिख  रही है. हिन्दू धर्म दर्शन की हंसी जब दुनिया में उडाई जाती है ,ऐसे विचारक ही उसके जिम्मेदार हैं .

विज्ञान की पद्धति आत्मा का अस्तित्व नहीं स्वीकारती -अतः जब डाकटर ,इंजीनियर ऐसी बात करते हैं तब साबित करते हैं कि उनकी शिक्षा पर संसाधन जाया हुए -भारत ही दुनिया का वह सिरमौर देश है जिसकी एक सुस्पष्ट  विज्ञान नीति है.जिसकी संरचना पंडित नेहरू ने की थी -कई चिट्ठे इस विज्ञान नीति की धज्जियां उड़ा रहे हैं ,जाहिर है यह कडवी घूंट अब बर्दाश्त के बाहर है -चिंतनीय यह भी है कि कई स्वनामधन्य चिट्ठेकार /टिप्पणीकार सारा आचार  विचार त्याग ऐसे प्रतिगामी प्रयास के  उत्साह वर्धन में हैं अन्यत्र चिट्ठे उनके उत्साह वर्धन से वंचित रह रहे हैं.

मन  संतप्त  हुआ और आपसे यह साझा करके ...अपनी जिम्मेदारी की इति मान रहा हूँ- अन्यथा मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती रहती -आत्मा का अर्थ  संचेतना ,विवेक बस और कुछ नहीं !

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

हालीवुड की प्रशंसनीय नक़ल के लिए रोबोट को मिलते हैं तीन स्टार ...

मेरे कुछ ब्लॉग मित्र यह आस लगाए बैठे हैं कि मैं रोबोट (तमिल एन्धिरन ) फिल्म देख लूं और सिफारिश कर दूं तो वे भी देख लें ....अब परमारथ के कारण साधुन धरा शरीर के चलते आज मैटनी शो देख ही डाला ..मिले जुले विचार हैं इस फिल्म के बारे में ..मगर आप को कोई फिल्म देखना ही हो तो   कोई और फिल्म भले देख लें .....इसकी सिफारिश मैं अपने ब्लॉग मित्रों को नहीं करता -हाँ अपने बच्चों को वे इजाजत दे सकते हैं कि अकेले देख आयें ...इसलिए कि यह एक साईंस फिक्शन मूवी होने के नाते उनकी सोच को थोडा कुरेद सकती है ....बाकी आप इसकी बजाय कोई और हालीवुड की परिपक्व साई फाई फिल्म देख लें .....इसमें एक पढ़े लिखे और संजीदा आदमी के लिए कुछ ख़ास नहीं है ...

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अब रोबोट क्या है इसे कुछ इस तरह समझ लीजिये कि हालीवुड की बासी कढी में  मुम्बईया फ़िल्मी मसालों ,लटको झटकों को तड़का मारकर परोस दिया गया है ...बाप रे पूरे तीन घंटे की मुकम्मल फिलम ...हम तो पूरा  ऊब गए ....न तो यह एक अच्छी रूमानी या एक्शन  फिल्म ही बन पाई है और न ही एक साई फाई फिल्म  ही ..बोले तो बिल्कुल चूँ चूँ का हलवा या मुरब्बा बन के रह गयी है .ताज्जुब यह है कि अकेले ६० वर्षीय मगर चिर युवा दक्षिणी  अभिनेता रजनीकांत के  दम ख़म पर रीलें आगे भागती हैं ....ऐश्वर्या ज़रा भी प्रभावित नहीं करतीं ....पता नहीं मगर हो सकता है अब उन्हें ऐसी ही फ़िल्में मिल रही हों .फिल्म   में  एक से एक बोर करने वाले गाने /सीक्वेंस भरे पड़े हैं ..कोई गीत लोकप्रिय होने वाला नहीं है ...

कहानी की थीम इतनी पुरानी है कि खुद को शर्म सी लगती है कि अपना देश विज्ञान कथाओं के नाम पर अभी भी सौ साल पुराने पश्चिमी साईंस फिक्शन के विचारों को अपना रहा है -रोबोट शब्द मूलतः चेक भाषा का शब्द है जिसे कैरेल चैपक ने १९२१ में अपनी कहानी आर यूं आर (रोसम्स युनिवर्सल रोबोट )  में पहली बार इस्तेमाल में लाया था और जहाँ इसका मतलब कृत्रिम बन्धुआ मजदूरों से था जो मनुष्यों के गुलाम होते हैं मगर उनमें भी विद्रोह भड़क  उठता है और वे सारी मनुष्य जाति को मिटा देते हैं ....यह रोबोट भी ऐसी ही एक कहानी है जिसमें नायक (रजनीकांत )  अपना हमशक्ल रोबोट बनाता हैं मगर उसमें जब इमोशंस उत्पन्न होते हैं तो वह नायक की ही महबूबा को हथियाने पर आमादा हो जाता है और अपने निर्माता के आदेश को भी नहीं मानता ...मशीनें  खतरनाक हो सकती हैं अगर उन पर कठोर नियंत्रण न रखा गया ....और यही कारण है कि अमरीकी विज्ञान कथाकार आईजक आजीमोव ने रोबोटिक्स के तीन नियम बनाये जिसमें  अनिवार्य रूप से एक शर्त थी... जो भी रोबोट बनें उनमें मानव जाति/मानवता को हानि न पहुचाने का स्पष्ट निर्देश हो ....क्या मशीने मानव को विस्थापित  कर सारा राज काज खुद संभाल लेगीं ? तब मनुष्य क्या उनका गुलाम बन उठेगा ? ऐसी फ़िल्में इसी दुश्चिंता के प्रति आगाह करती हैं और इस थीम पर हालीवुड में सैकड़ों फ़िल्में बन चुकी है -तरह तरह के कथानक के साथ ..तो एक विज्ञान कथा प्रेमी के रूप में यह फिल्म मुझे तो कोई खास नहीं लगती ..हाँ जिन लोगों को यह पता नहीं है कि आखिर साई फाई किस चिड़िया का नाम है उन्हें यह कुछ अलग सी लग सकती है ...

फिल्म की जांन  इसके कुछ आख़िरी दृश्य हैं जिन्हें  हालीवुड की अभी हाल में ही आई साई फाई फिल्म ट्रांस्फार्मर्स  से उड़ाया गया है मगर चूंकि सारे स्पेशल इफेक्ट्स भारत में ही तैयार हुए हैं ...हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि अब सिनेमा के विशेष प्रभावों के लिए हम केवल हालीवुड की ओर ही नजरे उठाये नहीं रह सकते ....फिल्म में नायक के हजारों प्रतिकृतियों में तैयार हो उठना और क्षण क्षण में अनेको छोटे बड़े और अति विशाल रूपों का धारण   कर लेना पूरे आडियेंस को स्तंभित कर देता है ..पूरा हाल स्तब्ध अवाक सा हो रहता है ..मैंने केवल इन्ही दृश्यों के आधार पर इस फिल्म को तीन स्टार दिए हैं .तो बच्चों को भेज दीजिये और आप मियां बीबी घर की नीरवता का आनंद उठाईये ...बस यही कहना है .
   बैनर: सन पिक्चर्स
डायरेक्टर: शंकर
कलाकार: रजनीकांत, ऐश्वर्या राय बच्चन और डेनी डेन्जोंगपा







रविवार, 3 अक्टूबर 2010

नया जमाना वाले जगदीश्वर चतुर्वेदी जी के अयोध्या फैसले पर विचार और मेरा प्रतिवाद

अयोध्या फैसले पर छद्म धर्म निरपेक्षी बुद्धिजीवियों का ढार ढार आंसू बहाना  जारी है ....मैं कल परसों से ही इनके कारनामों को यहाँ देख पढ़ रहा हूँ -यथा संभव मैंने अपना प्रतिवाद उनके ब्लागों पर जाकर दर्ज किया है ....मगर अब उनका रुदन तेज हो रहा है ..कई रक्तबीजी उठ उठ प्रलाप कर रहे हैं ...एक अरविन्द अशेष या शेष कोई जनसत्ता में हैं वे भी अपनी काबिलियत का एक बड़ा  पोस्टर मोहल्ला पर लगाकर न्यायाधीशों को कोस रहे हैं ....एक कलकत्ता विश्वविद्यालय में कल तक या आज भी प्रोफ़ेसर रहे जगदीश्वर चतुर्वेदी जी विद्वान् न्यायाधीशों से भी बड़े विद्वान् कहलाये जाने की होड़ में हैं ....मैंने उनकी व्यथा पढी है कुछ जवाब देने की कोशिश की है ....ये लोग बड़े अधिकारी और विभागी विद्वान् लोग हैं ..इनका जवाब देना विद्वानों के लिए भी मुश्किल का काम है ..मगर हम जैसे गैर विद्वान् ऐसी कोई गफलत नहीं पालते और जल्दी ही मामले का निपटारा कर देते हैं -यही असली ब्लागीय चरित्र भी है .क्लैव्यता मत पालो ..बोल डालो जो मन  में है .....आप इस पूरे मसले को पढने में रूचि ले सकते हैं बशर्ते कविताओं के तमाम ब्लॉग पर एक दिन टिप्पणियों को मुल्तवी कर दें तब ..आखिर देश के भविष्य का सवाल है ...

जगदीश्वर चतुर्वेदी जी
फैसला हो चुका है ,आप जैसे  अतिशय बौद्धिकता से संतप्त छद्म धर्म निरपेक्षी अब इसमें मीन मेख निकाल रहे हैं ....मगर यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट जाय ही क्यों ?
क्या आप समझते हैं कि जिन बिन्दुओं की ओर आप इशारा कर रहे हैं उन पर न्यायाधीशों ने ध्यान नहीं दिया ,क्या वे अधकचरे ज्ञान के मूर्ख लोग थे ? क्या इतिहास विज्ञान है ? भारतीय इतिहासकारों जैसे  भ्रमित ,सामान्य विवेक से पैदल दुनियां में कहीं और इतिहासविद नहीं मिलेगें ! भारत भूमि पर पहले से हर जगह मंदिर ही हैं -इस्लाम का आगमन हिन्दू परम्पराओं के सदियों बाद की बात है ....भारत के पुरातत्व विभाग के पहले भी तकनीकी ज्ञान से यह पता चल चुका था कि जमीन के भीतर कोई विशाल संरचना अस्तित्व में है ....और उसका शिल्पगत ढांचा मंदिर सरीखा है ...विद्वान् न्यायाधीशों ,यहाँ तक कि जनाब एस यू  खान ने भी ऐसी संरचना के ऊपर मस्जिद बनाए जाने को इस्लाम विरुद्ध माना ....हाँ विद्वान् न्यायाधीश इस भौतिक तथ्य से भी ऊपर  दार्शनिक /आध्यात्मिक विचार बिंदु तक इस सवाल को ले गए और उसे आस्था से जोड़ा ,मानवीय चेतना से जोड़ा -यह कहा कि दिव्य शक्तियां सर्वकालिक और सार्वभौमिक हैं ....जहाँ इनका आह्वान हो जाय वे निराकार  और साकार दोनों रूपों में अनुभव गम्य हो सकती हैं -उन्होंने नितांत विज्ञानगत भौतिकता के ऊपर भी जाकर दार्शनिकता का उदबोधन किया ..मुझसे भी  निर्णय को समझने में तत्क्षण  संकीर्ण भूल हुयी थी -व्यापकता से सोचने में न्यायाधीशों के विवेक को सलाम करने को मन हुआ ....जी हाँ इसके सकारात्मक परिणाम अवश्य होंगें तो होने दीजिये न आप लोग क्यों ढार ढार  रोये जा रहे हैं और अपने रुदन से घडियालों को भी मात देने पर उतारू हैं .

सत्य क्या है इसकी कभी प्रतीति आपको हुयी है ? फिर परम सत्य की तो बात ही छोडिये .सुनिए चतुर्वेदी जी राम सत्य हैं ..मोटी बुद्धि का आदमी भी यह जानता है ,हिन्दू मुस्लिम सब यह जानते हैं ...राम को सत्य साबित करना इस देश में एक अहमकाना प्रस्ताव है ....प्रखर समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया भी यह मानते हैं की यह सवाल ही अपने में बेहूदा है ..आप जन जन के मस्तिष्क और दिलों में झांकें .....राम आज से नहीं हजारों साल से विद्यमान हैं ....जैसा कि विद्वान् न्यायाधीशों  ने कहा ..वे हर जगह है और उस जगहं  तो अवश्य ही जहाँ उनका पूजन हजार वर्षों से हो रहा है ....राम कैसे इस देश से तिरोहित हो सकते हैं ...यहाँ चप्पा चप्पा और बच्चा बच्चा राम का है ....दरअसल आप लोगों के साथ दिक्कत यही है की सारी उम्र एक ख़ास सोच और किताबों के साथ बिता दी और दृष्टि का पूर्ण  परिपाक / परिष्कार नहीं हो पाया ..अध्ययन में भी रिक्तता और सोच के स्तर में भी -आप पर और आप जैसों पर भारतीय मनीषा केवल अफ़सोस करती आयी है .

जी हाँ अब न्यायाधीश वह सब कर के रहेगें जो इस देश का चिर भ्रमित इतिहासकार , आप सरीखे छद्म बुद्धिजीवी ,और सामाजिक सरोकारों से कोसो दूर  कुंठित वैज्ञानिक नहीं करते आये हैं ...यह फैसला पूरी तरह तर्कशील और सुचिंतित है और  मानवीय भी है ,दृष्टि की व्यापकता लिए हुए हैं -यह कहीं से भी संकीर्ण नहीं है ....यही कारण है पूरे विश्व ने इसे शांत और सयंमित होकर कर सुना -संगीनों के साए जन आक्रोशों को  नहीं रोक सकते -अतीत के कई उदाहरण हमारे सामने हैं .
आप सरीखे लोग अदालत की अवमानना के साथ साथ हिन्दू मुस्लिम भावनाओं को भड़का रहे हैं -सदियों /दशकों पुराना जो मामला हल होने के कगार पर है उसे और उलझा देना चाह रहे हैं ...आखिर भारत के बुद्धिजीवी कब अपने सामजिक निसंगता के ढपोरशंखी शुतुरमुर्गी सोच ग्रंथि से उबरेगें ? 

आज समय का तकाजा है मुसलमान भाई इन दुरभिसंधियों को पहचाने ओर विशाल हृदयता का परिचय देते हुए राम का मंदिर बनाए जाने की सहर्ष अनुमति दें ताकि आम हिन्दू जो सहज ही संस्कारों से भोला भाला ओर  उदारमना होता है आगे बढ  कर उसी परिसर में ही एक इबादतगाह बनाए जाने  में मदद करे ..यह साहचर्य ओर सद्भाव की एक मिसाल होगी ...इतिहास ऐसे मौके बार बार नहीं देता ..अगर अब चूके तो आने वाली पीढियां आपको और कौम को भी माफ़ नहीं करेगी ...चन्द सिरफिरों के कारण हम अपने बच्चों की अमानत में खयानत नहीं कर सकते ....

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शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

अमन चैन से बीत गयी रात, आया नया सवेरा!

कल ठीक ठाक अयोध्या फैसले के आने के बाद की फ़िक्र यह थी कि वाराणसी और देश के सभी हिस्सों में  सब कुछ अमन चैन से बीत जाय ..और सुबह ४ बजे उठकर मैंने टीवी पर जब ख़बरों का जायजा लिया तो जान में जान आई ..उभयपक्षों ने सचमुच संयम और सौहार्द से फैसले को लिया ,कहीं कोई वैमनस्य नहीं दिखा -फैसला  भी बहुत सुविचारित और विवेकपूर्ण रहा -बिल्कुल धर्मनिरपेक्ष  और सांस्कृतिक सोच के मुताबिक़ ...अब अगर किसी भी पक्ष को यह फैसला मंजूर नहीं है तो यही माना जाएगा कि कुछ निहित भावनाओं और स्वार्थ के वशीभूत लोग  इस मामले को लटकाना चाहते हैं .

 विद्वान् न्यायाधीशों के बहुमत के इस निर्णय से बहुत से हिन्दू इत्तेफाक  रखते हैं कि विवादित परिसर का एक हिस्सा मुसलमानों को दे देने में कोई हर्ज  नहीं है ..वे इस बटवारे के लिए तैयार हैं -इतिहास के एक बड़े बंटवारे के बाद यह तो एक छोटा सा बंटवारा है ...हिन्दू भाई बंटवारे की परिस्थितयों से खासे परिचित हैं .....आये दिन भाई भाई का बंटवारा और आंगन में उठती दीवालों के वे चश्मदीद होते रहते  हैं ....अगर गंगा जमुनी संस्कृति को बनाए रखना है तो ऐसे मजबूरी के बंटवारे भी किये जाने में कोई परेशानी  नहीं है. हम तैयार हैं ....

हाँ निर्णय का एक पेंच मेरी समझ में नहीं आ रहा है जब भारतीय पुरातत्व के सर्वेक्षण ने निर्विवाद तौर पर यह साबित कर दिया था कि विवादित स्थल के नीचे एक मंदिर के अवशेष हैं तो फिर आस्था का सवाल न्यायाधीशों ने क्यों सर्वोच्च माना ? फिर तो देर सवेर काशी और मथुरा का मामला भी उठेगा ..काशी में मैंने खुद देखा है कि मस्जिद का आधार हिन्दू मंदिर है और वहां आज भी श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए लोग कटिबद्ध होते हैं मगर उन्हें रोका जाता है ...ताकि शांति भंग न हो ....क्या अब विश्व हिन्दू परिषद् यह नारा लगाएगा कि  अब अयोध्या हुई हमारी  काशी मथुरा की है बारी ..दरअसल जहाँ जहां मंदिर अवशेषों पर मस्जिदें बनी हैं उस पर अयोध्या का यह फैसला नजीर बनेगा -हाँ बगल में एक मस्जिद की जमीन भी मुहैया करने की पेशकश को लोगों को इसी तरह मान  लेना चाहिए ...आखिर हिन्दू और मुसलमान पहले  भारतीय हैं और हमें साथ साथ रहना है तो मेल जोल से रहना ही जरूरी है ...

अगर यह फैसला सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज किया जाता है तो मेरी समझ से दोनों कौमों के लिए  एक दुर्भाग्य होगा ..आज मुस्लिम भाईयों को उदारता दिखाने का एक बड़ा मौका हाथ लग गया है और उन्हें चूकना नहीं चाहिए .अदालत का फैसला हम सभी को शिरोधार्य होना चाहिए .....नहीं तो विवाद की जड़ें गहरी होती  जायेगीं और हमारी नई पीढियां भी एक विषाक्त माहौल में जीने को अभिशप्त होती जायेगीं ...मुझे नहीं लगता कि इस बहुत ही विचारपूर्ण और तार्किक फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय कोई रोक लगायेगा ..हाँ सुनवाई तो कर ही सकता है ....फैसले पर अमल की कार्यवाही निर्धारित समयानुसार आरम्भ करने में सरकारों को देर नहीं लगाना चाहिए ....

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