सोमवार, 2 अगस्त 2010

बेवफा ,छिनाल ,कामुक कुतिया पर गीदड़ हुआंस और कुक्कुर विलाप -गैर ब्लागीय साहित्य की एक झलक !

वर्धा अन्तर्ऱाष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री वी एन राय पर इस बार का हमला ज्यादा घातक  है .अपने ज़माने की मशहूर पत्रिका ज्ञानोदय के नए समकालीन रूप   -नया ज्ञानोदय के ताजे अंक में उनका एक इंटरव्यू छपा है जिसे लेकर हंगामा मच गया है .. इंडियन एक्सप्रेस और डी  एन ऐ  ने खबर यहाँ और यहाँ  प्रकाशित की है ...पत्रकारिता के स्थापित मानदंडों के अनुरूप डी एन ऐ ने वी एन राय का पक्ष भी उद्धृत करने की सावधानी बरती है .ब्लाग जगत में भी इस घटना को  लेकर  कुछ हलचले हुईं हैं पर ब्लॉग जगत ने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी है ..कारण यहाँ  नारी विमर्श आम ब्लागरों तक समुचित तरीके से संवादित नहीं हो पाया है -इस दिशा में महज कुछ  ही गंभीर और ईमानदार प्रयास हुए हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि आधुनिक मानवीय सरोकारों का एक  यह अहम् मुद्दा अपने सही स्वरुप और समझ के साथ ब्लागरों को विश्वास में लेने में सफल होगा -अभी तो बस नारी विमर्श के नाम में केवल पुरुष विद्वेष ,असहिष्णुता ,अ -साहचर्य   का ही दौर रहा है और इसकी जिम्मेदार  नारीवाद का  नकाब लगाये कुछ मूढमति प्रतिगामी तत्व ही हैं .

पहले तो इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की रपट को देख लिया जाय जिसमें छिनाल शब्द के लिए -प्रास्टीच्यूट-  वैश्या शब्द का इस्तेमाल कर सनसनी फैलाई गयी है -छिनाल वैश्या नहीं है .वह लोकजीवन में कुलटा है ,पतिता है मगर वैश्या नहीं है ...और यह भी माना जाना चाहिए कि ये गालियाँ निश्चित ही पुरुषवादी सोच की देन हैं यद्यपि छिनाल का पुरुषीय विकल्प छिनरा है ....मतलब वह जो चरित्र की शुचिता से वंचित है जीवन साथी के प्रति इमानदार नहीं है वह छिनाल और छिनरा /भंडुआ  है .अब इंडियन इक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्टिंग में वैश्या (वृत्ति ) जो एक अनैतिक पेशा है को छिनाल के समानार्थी प्रस्तुत किया है तो इसके भी निहितार्थ हो सकते हैं .

अब आते हैं वी एन राय के साक्षात्कार पर जो यहाँ मूल रूप में देखा जा सकता है .मेरी अल्प समझ पूरे साक्षात्कार को इस रूप में देखती है -वी एन राय का कहना है कि कुछ नारीवादी लेखिकाएं केवल बेवफाई (इनफेड़ेलिटी =दाम्पत्य -च्युति  ) और नारी देह को ही मुख्य नारी विमर्श मान  बैठी हैं जबकि नारी से जुड़े और भी समीचीन मुद्दे हैं -उन्ही के शब्दों में -"यहाँ नारी विमर्श बेवफाई के विराट उत्सव की तरह  है ...इसी रौ में वे आगे कह जाते हैं -"लेखिकाओं में  होड़ लगी है यह साबित करने में कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है ... मुझे लगता है कि इधर प्रकाशित एक बहु प्रोमोटेड और ओवर रेटेड लेखिका की आत्मकथात्मक पुस्तक का शीर्षक कितने बिस्तरों पर कितनी बार (धन्य हो गुरु अज्ञेय)   हो सकता था .." अब यह लेखिका कौन हैं और उनकी पुस्तक कौन है यह कयास का विषय  है - बिना पुस्तक को पढ़े इस पर क्या कहा जा सकता है ?.इतना कह लेने के बाद वी एन राय निष्पत्ति देते हैं -" दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"
  इसी संदर्भ को आगे बढ़ाते हुए पुरुष बेवफाई पर वे इलाहाबाद  के किसी मार्क्सवादी रुझान वाले रचनाकार को केंद्र मे लेकर लिखी एक कहानी "नमो अन्धकारम   "जिसमें  एक महिला पात्र  के चरित्र को अति कामुक कुतिया की तरह दिखाया गया है का भी हवाला देते हैं ....

मैं  इस विषय पर अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहा हूँ -केवल मनन कर रहा हूँ कि एक प्रसिद्ध वामपंथी विच्रारक/लेखक  अगर ऐसा कह रहा है तो क्या वामपंथी साहित्य के विमर्श की भाषा यही है ? अपनी पल्लवग्राही सोच के अनुसार मैं नारीवाद और वामपंथी प्रगतिशील सोच के अन्तर्सम्बन्धों की कयास भी लगाता  रहा हूँ -जरा कल्पना कीजिये अगर यही शब्द किसी संघी (य ) सोच के महानुभाव के मुखारविंद से प्रस्फुटित हुए होते तो (उनकी बोली भाषा अलग है और मुझे कृत्रिम ज्यादा लगती है) ....तो क्या इस बार शिकारी खुद जाल में है ?   इस पूरे वाकये को दरअसल पूरे साक्षात्कार के संदर्भ में ही देखा जाना युक्तियुक्त होगा .
मैंने कुछ ऐसे ही विचार एक ब्लॉग पर व्यक्त किया तो वहां कहा गया कि मैं कुक्कुर विलाप करने वालों  की जमात में हूँ -मतलब उनकी गीदड़ हुआंस  टीम से अलग जो कि बिना पूरे परिप्रेक्ष्य को जाने हुआं हुआं पर उतर आई ..गीदड़ों का यह व्यवहार तो जग ख्यात है मगर कुक्कुर विलाप -इसकी अवधारणा कोई राय विरोधी टीम के नीलः श्रृंगाल समझाएगें क्या ? 

पुनश्च -यह पूरी पोस्ट विषयनिष्ठता  को परे धकेलते हुए लिखी गयी है क्योकि मुझे पता है मेरे कुछ मित्र समूचे घटना क्रम से संतप्त हैं और उन्हें मैं और संतप्त करना नहीं चाहता -यह पोस्ट उन तमाम ब्लॉगर मित्रों की जानकारी में यह प्रकरण जस का तस लाने  का एक प्रयास भर  है!मैं किसी वाद से न कभी जुड़ा और न ऐसे विषयों की मेरी समझ ही दुरुस्त  है ...
 

38 टिप्‍पणियां:

  1. @ गैर ब्लागीय साहित्य
    :)
    अधिक दिन नहीं हुए जब ब्लॉग बनाम साहित्य की नोक झोंक चलती थी। आप एक कदम आगे बढ़ गए हैं - साहित्य के दो प्रकार, ब्लॉग, ग़ैर ब्लॉग। ग़ैर ब्लॉगीय साहित्य को चुनौती देती यह मुद्रा बहुत जमी।

    कथित प्रगतिशील और नारीवादी आन्दोलनों के अंतर्विरोधों को आप ने अच्छा उभारा। prostitute और छिनाल का अंतर, छिनरा आदि अंग्रेजीदाँ लोगों का ज्ञानवर्धन करेंगे।

    बाकी अपनी बात तो उस लेख पर टिप्पणी में कह ही चुका हूँ। यह पैरा ध्यान देने योग्य है:
    दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"

    इतना तय है कि इस मुद्दे पर पॉलिटिकली करेक्ट होने के अतिरिक्त किसी भी तरह की टिप्पणी/कर्ता आरोप, गालियाँ, निन्दा, उपेक्षा आदि का ही शिकार बनेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसे माहौल में अनूठे पात्रों को लेकर प्रेमकहानी लिखना सुखद है -
    "...देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।" :)

    जवाब देंहटाएं
  3. गिरिजेश जी की टिप्पणी को मेरी भी टिप्पणी माना जाय।

    बात बहुत मार्के की कही है कि -

    दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"

    जवाब देंहटाएं
  4. आपने जहाँ तक हो सकता है, तठस्थ रहकर यह लेख लिखा है....वी.एन. राय को मैंने इलाहाबाद में सुना है और मुझे उनके विचार उस समय अच्छे लगे थे. वे वामपंथी हैं या नहीं, नहीं जानती.जहाँ तक बात इस स्टेटमेंट की है " दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"
    मैं सहमत हूँ, पर फिर भी औरतों के लिए ऐसी भाषा के सख्त खिलाफ हूँ, चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी.इस तरह की भाषा ही औरतों को सिर्फ एक आब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसके बारे में कोई भी अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है, उसके लिए आदर्श की स्थापना कर सकता है और ये अपेक्षा करता है कि औरतें उसी पर चलें. मैं ये कहती हूँ कि अगर औरतें ऐसी बातें लिख भी रही हैं, तो समय उन्हें देखेगा. आप कौन होते हैं कहने वाले?
    और ये जो आपने प्रगतिशील और नारीवादी आंदोलन के अंतर्विरोधों की बात कर रहे हैं, ये मुद्दा खुद नारीवाद के समक्ष एक बहुत बड़े विमर्श का मुद्दा रहा है. नारीवादियों ने वामपंथी दलों में ही औरतों को उचित प्रतिनिधित्व ना प्रदान करने के लिए समय-समय पर प्रश्न उठाया है.
    इन सारी बातों में मुझे दुःख इस बात का होता है कि नारीवाद की सबसे अधिक आलोचना वे करते हैं, जिन्हें उसकी बारहखड़ी तक नहीं आती.

    जवाब देंहटाएं
  5. लोग तो कुत्ता है

    हमारे कस्बे के जलविभाग का चौकीदार अक्सर सिद्धावस्था में कहता था।

    बीते कुछ दिनों से यह वाक्य याद आ रहा है। इसका अर्थ तब से अब तक समझ नहीं आया। पर इन संदर्भो में विगत जीवन के इस वाक्य की याद क्यों? प्रस्तुत संदर्भ में कुत्ता कौन यह भी नहीं जानता। लोक यानी लोक अर्थात जो सम्मुख है वही कुत्ता है। गालिब कहते हैं कि बाज़ीचाए अत्फाल है दुनिया मेरे आगे....
    मेरी यादों का पात्र कहता है-लोग तो कुत्ता है। कुछ समानता है क्या?

    मैं ही कुत्ता होता जा रहा हूं, ऐसा लगता है। जब कुत्ते को हड्डी नहीं मिलती, भौंकने के पात्र नहीं मिलते, वफादारी के वसीले नहीं मिलते और नहीं मिलता मालिक से मन तब वह चिन्तक हो जाता है। चिन्तन करते करते ही बीच सड़क पर खलास हो जाता है....

    क्या पता यही अर्थ हो....
    लोग तो कुत्ता है....का। पर ऐसे में राय साब का संदर्भ फिट नहीं बैठता....

    यही कहता हूं कि आपने अच्छा लिखा...

    जवाब देंहटाएं
  6. @गिरिजेश जी.
    आपने सूक्ष्मता से पोस्ट कर अंतर्निहित मुद्दों की तलाश की ...अभिभूत हुआ ...आखिर अप गिरिजेश ऐसे ही नहीं हैं !
    @मुक्ति ,
    आप ही की डर थी ,आपने मेरी तटस्थता स्वीकार कर अभयदान दे दिया :) धुकधुकी बंद हुयी ...दरअसल यह पूरा मुद्दा ही गंभीर विमर्श की मांग करता है ...जबकि हम ज्यादा आवेशित दिख रहे थे ...
    @अजित जी .
    कुत्ता के साथ ही कुक्कुर विलाप और कुछ हुआँस का भी भाष्य हुआ होता आर्य! आप के दीगर कौन करेगा ?

    जवाब देंहटाएं
  7. भाषा की शालीनता महत्वपूर्ण है मगर मुद्दे भाषा से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं. लोकतंत्र में सबको अपने विचार रखने का अधिकार है, उस लेखिका को भी और इस कुलपति को भी (और संभवतः उन पत्रकारों को भी जिन्हें इस घटना में मसाला दिख रहा है)

    जवाब देंहटाएं
  8. मुमकिन है कि वी एन राय की बात किसी सन्दर्भ से काट कर उछाली गई हो ,सहज में विश्वास करना कठिन है कि उच्च पद पर आसीन कोई व्यक्ति इस तरह से बात करेगा ! इसलिये उन्हें पूरे सन्दर्भ में पढे बिना तथा उल्लिखित आत्मकथा को बांचे बगैर अगर मैं कोई टिप्पणी करूं तो यह भी गीदड हुआंस ही कहलायेगी !
    एक बात ज़रुर कह दूं कि साहित्य ही नही बल्कि दैनिक जीवन में भी अमर्यादित भाषा के प्रयोग के विरुद्ध हूं मैं !
    नारीवाद / विमर्श पर मेरा कोई विषयाधिकार नहीं है अत: इस विचार पर मुक्ति जी पर भरोसा करना चाहूंगा !

    आपका आलेख प्रलाप के विरुद्ध है , साधुवाद !

    जवाब देंहटाएं
  9. prostitute और छिनाल का अंतर आपने अच्छा समझाया फिर भी चाहे किसी भी संदर्भ में क्यों न हो, छिनाल शब्द का प्रयोग निंदनीय है. मैं मुक्ती जी से सहमत हूँ कि इस तरह की भाषा ही औरतों को सिर्फ एक आब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करती है.

    जवाब देंहटाएं
  10. वी एन राय ने पूरे होशो हवास मे यह इन्टरव्यू दिया है तथा छिनाल शब्द व महिला कथाकारो के साहित्य पर अपनी टिप्पणियों पर कायम है एक टी वी चैनल मे उन्होने पुनः इसे दुहराया है इलाहाबाद के ब्लागर सम्मेलन मे अभिव्यक्ति की स्वच्छंदता व स्वतन्त्रता पर बडी चर्चा इन्ही महानुभावो द्वारा की गइ थी
    याद करे अध्य्क्ष जी ने कहा था बोलने पर जुबान तो कटते नही सुना लेकिन लिखने वाले के हाथ कटते हुए जरूर सुना है शायद इसी लिये पुलिसिया संस्कार की भाष बोल रहे है महानुभाव
    खादी की मुडी तुडी कमीज पहन लेने से ही विचार गान्धी वादी या मार्क्सवादी नही हो जाते
    ये खाये और अघाये लोगो की जमात के प्रतिनिधि है इन का असली चेहरा यही है पता नही गुरू नामवर सिंह की इस पर क्या प्रतिक्रिया है
    इस पर मैने लेख तैयार किया थ लेकिन आप का लेख पढा तो लगा कि पुनरुक्ति प्रकाश करना उचित नही है इस पर तो महिलाओं को खुल कर विरोध करना चाहिये कहाँ है आप पर यौन उत्पीड़क का ठ्प्पा लगाने वाली मोहतरमा राय साहिब के उदगारो के प्रति वे क्या कानूनी कदम उठा रही है पता नही
    अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. @मित्रवर ,यह सयंम बोली और लेखनी दोनों में क्या नहीं होना चाहिए -इसी को लेकर तो बवेला मचा हुआ है -

    जवाब देंहटाएं
  12. इंसान में साहित्यकार बसता है. साहित्यकार में इंसान नहीं बसता. साहित्य का इंसान से कोई लेना-देना नहीं है तो साहित्यकार से इंसानियत का क्या लेना-देना. मानव मन सदा से ऐसा रहा है. जब चाहा साहित्य लिख दिया. जब चाहा इंटरव्यू दे दिया. साहित्य के बारे में इंटरव्यू देना ईजी है लेकिन साहित्यकार के बार में इंटरव्यू देना ईजी नहीं है. कारण केवल एक ही है. साहित्यकार साहित्य लिखने के लिए बने हैं. वे मानवता प्रीच करने के लिए नहीं बने और न ही इंटरव्यू देने के लिए. वैसे भी इंटरव्यू का आजकल मानवता से ज्यादा लेना-देना नहीं है. एक बार इंटरव्यू दे दिया तो मानवता गई काम से. और अगर साहित्यकार ने इंटरव्यू दे दिया तो वह अपने आप में एक साहित्य बन जाता है. साहित्यिक विमर्श को आगे बढ़ाते हुए आप और कुछ कहें. हो सके तो इंटरव्यू भी दें क्योंकि आप कोई कवि या साहित्यकार नहीं हैं. आप तो इंसान हैं. और जब इंसान इंटरव्यू देता है तो वह साहित्य नहीं बनता. साहित्यकार संयम खो सकता है लेकिन वह साहित्य नहीं खो सकता. वहीँ इंसान संयम भी नहीं खोता और साहित्य भी नहीं खोता. एक किताब हाथ में आ गई तो उसे कांख में दबाये रहता है कि कहीं खो न जाए. मंहगी होती है न. आप गैर ब्लागीय साहित्य लिखें लेकिन ब्लागीय साहित्य को भी साथ लेकर चलें. उससे इंटरव्यू देने का मौका बना रहता है. आप कुत्ते को ही ले लीजिये. कुत्ता इंटरव्यू देता है कभी? नहीं न? लेकिन साहित्यकार इंटरव्यू देता है. अब यह हमारे ऊपर डिपेंड करता है कि हम कुत्ते का इंटरव्यू लें या साहित्यकार का? वैसे भी इंटरव्यू के एक भाग को चार डिवाइड करके अगर उसे कुत्ते के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय....

    क्या कहा आपने? मैं कुछ ज्यादा लिख रहा हूँ? चलिए खत्म करता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  13. shahitya agar samaj ka darpan hai
    to .......
    shabd byabhar hi hamare sanskar ka darpan hai.

    bakiya to ...... bass likhat padhat ki chees hai..... samajhne ke liye o ek shabd "c....l" kya kam hai.

    bhartsna...bhartsna aur bhartsna.

    जवाब देंहटाएं
  14. अरे, ये लगता है गड़बड़ हो गया. किसी और पोस्ट के लिए यह कमेन्ट लिखा था और लगा दिया किसी और पोस्ट पर. डिलीट कर दूँ? या छोड़िये जिस पोस्ट के लिए लिखा था उसमे ही कौन स वैल्यू एडिशन करता मेरा कमेन्ट? मिश्र से जी क्षमा याचना सहित लगा रहने की अपील करता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत संयमित हो कर आपने इस विषय पर लिखा है....

    अब छिनाल शब्द का अर्थ अपनी दृष्टि से कुछ भी लगाएं पर शब्दकोष में तो इसका अर्थ वैश्या या व्यभिचारिणी ही है...और ऐसे शब्दों के प्रयोग पर आपत्ति उठना स्वाभाविक है ..

    जवाब देंहटाएं

  16. किसी भी व्यक्ति पर प्रतिक्रिया करते समय हम अपने पूर्व के अनुभवों एवं आग्रहों से संचालित होते हैं। वी एन राय के सम्बंध में भी यही बात लगती है। जो लोग इस पर इतना हो-हल्ला मचा रहे हैं, वे भी कहीं न कहीं अपने पूर्व के अनुभवों और आग्रहों के अनुसार मिले हुए मौका का उपयोग कर रहे प्रतीत होते हैं।

    …………..
    स्टोनहेंज के रहस्य… ।
    चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..

    जवाब देंहटाएं
  17. कई बार पढ़ा आपके इस लेख को ...

    औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं...देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"...

    पुरुषों की गलती को मानते हुए स्त्रियों से इसे नहीं अपनाने की अपील ही लगी इसमें ...

    लेकिन छिनाल शब्द का अर्थ जो भी हो , किसी भी स्त्री के लिए इसका प्रयोग तो अनुचित ही माना जाएगा ...
    आपने पूरे वाकये को संतुलित और निरपेक्ष होकर समझाने की कोशिश की है मगर ...
    लेख के शीर्षक पर मुझे आपत्ति है...शीर्षक के लिए सभ्य भाषा का प्रयोग किया जाता तो इसकी उपयोगिता बढती ...!

    जवाब देंहटाएं
  18. बड़ा संतुलन साधना पड़ा होगा आपको ये पोस्ट लिखने में . हमको पता नहीं काहे लगता है की कुछो ना होने वाला है फिर भी कुछ फरिया जाये तो बताइयेगा .

    जवाब देंहटाएं
  19. वाणी जी ,
    इन्ही शब्दों के इर्द गिर्द तो सारा विमर्श सिमटा हुआ है ,मैं लाचार था !

    जवाब देंहटाएं
  20. छिनाल शब्द का प्रयोग...कहीं से उचित नहीं. दुर्भाग्य से जब तथाकथित साहित्यकारों की दुकान उठने लगती है तो वे ऐसे ही शब्दों का प्रयोग कर चर्चा में आना चाहते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  21. अप सभी के विचार पढ कर एक हल्की सी मुस्कान चेहरे पर आ गई बस.......

    जवाब देंहटाएं
  22. मिश्र जी , राय जी ने बहस को हवा दी है.....हम आज भले ही विकास से विकसित की ओर जा रहें हैं लेकिन सोच और आदतें कब बदलेंगे ?. हम सभी अपने विचार रखते हैं ..और अपने तर्क भी ..लेकिन एक सही बात जो सर्वमान्य होती है......... बहस और होनी चाहिए जिससे कुछ बातें स्त्री मुक्ति पर निकल कर सामने आये .....सार्थक पोस्ट और विचारणीय भी ...

    जवाब देंहटाएं
  23. @सभी महानुभाव कृपया ध्यान दें -
    छिनाल /छिनार शब्द लौकिक साहित्य में धड़ल्ले से व्यवहृत होता रहा है -प्रेम से गाई जाने वाली "गाली" में वर वधू उभय पक्ष सम्मानित सम्बन्धियों तक को इससे विभूषित कर आनन्द का सृजन किया जाता रहा है मगर ध्यान देने वाली बात है कि यहाँ वैश्या शब्द वर्जित है -अंगरेजी के अधकचरे पत्रकारों ने तमाशा बना कर रख दिया !

    जवाब देंहटाएं
  24. @संगीता जी ,
    क्या सचमुच छिनाल वैश्या के समकक्ष है -व्यभिचारिणी शब्द श्याद ज्यादा सटीक है ! ज्याद स्वच्छनद आचरण वाला /वाली भी छिनार /छिनाल है !

    जवाब देंहटाएं
  25. "यद्यपि छिनाल का पुरुषीय विकल्प छिनरा है ....मतलब वह जो चरित्र की शुचिता से वंचित है जीवन साथी के प्रति इमानदार नहीं है वह छिनाल और छिनरा /भंडुआ है ."

    शुक्रिया , मेरे लिए तो यह एकदम नई जानकारी थी अरविन्द जी !

    जवाब देंहटाएं
  26. किसी व्यक्ति/हस्ती ने ऐसा कुछ कहा ,जो कि कहीं से भी कुछ सकारात्मक प्रभाव छोड़ने लायक न हो...तो मेरे समझ से उस प्रसंग को ही छोड़ देना चाहिए...मटिया देना चाहिए...नहीं तो नीचे उतरने की कोई हद नहीं है....
    ऐसी बातों को टूल दे हम बस वहीँ करेंगे जो आज के न्यूज चैनल कर रहे हैं...अश्लीलता का बाजार ज्यादा बड़ा और व्यापक हुआ करता है सदा ही...अच्छा कुछ करने में बड़ी मेहनत जो लगती है,सो कोई इसमें जुटना नहीं चाहता.....

    जवाब देंहटाएं
  27. व्यभिचारिणी शब्द ज्यादा सटीक है

    'औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं' पुरूषों के बराबर होने की बात करने वालों को, इस वाक्यांश पर भी आपत्ति हो सकती है. वे गलती कर सकते हैं, हम नहीं :-)

    फिर भी यह बात सटीक है कि देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है

    जवाब देंहटाएं
  28. मिश्र जी हमेशा की तरह दहकती हुयी पोस्ट. बढ़िया लगा आपको एक बार फिर से पढने के लिए . जहाँ तक छिनाल शब्द की बात है तो इसकी तुलना वैश्या जैसे शब्द से तो नहीं की जा सकती. हा आप सही कह रहें है हमारे यहाँ शादियों में अक्सर रात को खाना खाते समय लड़के पक्ष को ये गलियों के रूप में कही जाती हैं वह भी आनंद के साथ . जिस तरह से नारीवादी महिलाएं इस बात को जोर दे रहीं हैं उससे ये साफ होता है की उनके पास और कुछ मुद्दे हैं ही नहीं .

    जवाब देंहटाएं
  29. मिश्रा जी, सबसे पहले तो इस बहस को आगे बढ़ाने के लिए बहुत बहुत बधाई। पूरी बहस दरअसल एक शब्द पर ही सिमटी हुई है। हर व्यक्ति अपने अपने निहितार्थ निकाल रहा है।
    आकांक्षा जी की बात से सहमत हूं। जब कोई पूछता नहीं, व्यक्ति नेपथ्य में चला जाता है, कुछ खास करने धरने को होता नहीं तो इस तरह की हरकतें की जाती हैं। इसके कई उदाहरण मिलेंगे।
    मैं यह नहीं कहूंगा कि विवादित शब्द के मायने क्या हैं। फिर भी अर्थ कुछ भी हो लेकिन शब्द सभ्य समाज में कदापि स्वीकार्य नहीं है।
    मिश्रा जी बड़ी ही विनम्रता से एक बात और कहना चाहूंगा कि अपने अपनी बात कही और दूसरे ब्लॉगरों ने अपनी बात। जो अपनी बात कहेगा आप उसी को कैसे कठघरे में खड़ा कर सकते हैं। जिस शब्द पर बहस हो रही है वह गलत है तो औकात शब्द भी कोई बहुत अच्छा शब्द नहीं है। और अगर किसी की औकात कितनी है इसकी बात न ही की जाए तो अच्छा है। मैं आपकी उस टिप्पणी की बात कर रहा हूं जो अपने एसएन विनोद के ब्लॉग पर की है। हो सकता है आपको उनकी बात पढ़कर क्रोध आया हो लेकिन फिर भी मुझे लगता है संयम बरतने की जरूरत थी। बाकी आपकी मर्जी, आप जो चाहे लिखें...........

    जवाब देंहटाएं
  30. .
    .
    .
    १- पूरी समग्रता में यदि विभूति नारायण राय जी के कथन को देखा जाये तो कुछ भी गलत नहीं कहा उन्होंने... मुझे लगता है कि इधर प्रकाशित एक बहु प्रोमोटेड और ओवर रेटेड लेखिका की आत्मकथात्मक पुस्तक का शीर्षक कितने बिस्तरों पर कितनी बार (धन्य हो गुरु अज्ञेय) हो सकता था ... मुझे याद आता है कि कुछ साल पहले सईद जाफरी की आत्मकथा को Penis Monologues तक कहा गया था और किसी ने कोई आपत्ति तक नहीं की... राय साहब भी यह सब महज 'कुछ' नारीवादी लेखिकाओं के लिये कह रहे हैं... और 'सभी'(लगभग) उन पर बिफर पड़ी हैं ।... :(

    २- "मैंने कुछ ऐसे ही विचार एक ब्लॉग पर व्यक्त किया तो वहां कहा गया कि मैं कुक्कुर विलाप करने वालों की जमात में हूँ -मतलब उनकी गीदड़ हुआंस टीम से अलग जो कि बिना पूरे परिप्रेक्ष्य को जाने हुआं हुआं पर उतर आई ..गीदड़ों का यह व्यवहार तो जग ख्यात है मगर कुक्कुर विलाप -इसकी अवधारणा कोई राय विरोधी टीम के नीलः श्रृंगाल समझाएगें क्या ?"

    देव,
    किसी के ऐसा लिखने से क्या होता है ?... आप 'कुक्कुर विलाप' की अवधारणा को 'नीले सियारों' से समझने की इच्छा व्यक्त कर बहुत मन दुखायें हैं मेरा आज !... यह कभी न भूलिये कि आप सिंह-गर्जन करने वालों की जमात से हैं।

    आभार!


    ...

    जवाब देंहटाएं
  31. पंकज जी ,आपने मेरी उस गलती के लिए टोका ,आभारी हूँ ,
    नारी का यह भी अपमान था ....श्री विनोद ने भी ऐसे नाजुक मुद्दे पर लिखते हुए अचानक आपा खोया और श्रीमती वी एन राय को कोठे पर बैठाने लगे ...इसलिए उनका पूरा परिश्रम अचानक ही ढह गया -उनकी इस चूक पर ही मैंने उनकी औकात की बात याद दिलाई -इससे कम पर लोग बाग़ मानते नहीं न ...हाँ मुझे भी संयम रखना था ...पुनः आभार !

    जवाब देंहटाएं
  32. मित्रों ,
    छिनाल शब्द पर ये रहे दो महत्व पूर्ण विवेचन (सौजन्य :अजित वडरेनकर )
    http://vinay-patrika.blogspot.com/2008/06/blog-post_18.हटमल

    **1. छिनाल का जन्म
    चर्चा यहाँ पर भी है -
    http://groups.google.com/group/shabdcharcha/browse_thread/thread/624ddfc30aeca187/ad7be5440a8d78cc?#ad7be5440a8d78cc

    जवाब देंहटाएं
  33. प्रवीण शाह जी ,
    लोक जगत के एक बहु प्रयुक्त शब्द को सहज ही उच्चारित कर श्री वी एन राय जी अपने विरोधियों के षड्यंत्र का शिकार हो गए ...अब भी अगर वे प्रतिशोधी न बने तो यह उनकी उदारता ही है ..मेरी यह भी धारणा पुख्ता हुयी की चाहे वामपंथी हों ,दक्षिण पंथी हों ,प्रगतिशीलता का दंभ भरने वाला खेमा हो उनमें नीले सियारों की कमी नहीं है -ये हुआं हुआं कर अपनी जमात इकठ्ठा कर ही लेते हैं ....कुछ 'मेमने ' सियार और सियंनियाँ यह भी नहीं जानती कि उन्होंने हुआंस क्यों भरी ...
    मानवीय सहज अभिव्यक्ति पर ऐसी चीख पुकार को हिन्दी साहित्य के नाम पर रोजी रोटी करने वालों और पत्रकारों के छिछोरेपन /छिछोरई के लिए ही याद किया जायेगा !
    लिंग के आत्मालाप की जानकारी अच्छी मिली ...
    वैसे मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता अगर नारियां अपनी आत्मकथाओं में कितने बिस्तरों पर कितनी बार लिख पढ़ रही हैं ,और वे ऐसा निजी जीवन में कर भी रही हैं तो कोई राय वाय इस पर बोले ही क्यों ? उन्हें करने दें न -यह सारा लेखन कमला दास से शुरू हुआ था जिनकी आत्मकथा मैंने पढी थी (उन्हें खिलन्दड़े लड़कों से बहुत लगाव था ) ...और तसलीमा नसरीन से चलते हुए हिन्दी साहित्य की कई स्वनामधन्य लेखिकाओं को भी अपनी गिरफ्त में ले चुका है -मकसद चमड़ी मोक्ष नहीं है चंद दमडियों के लिए अपना जमीर बेचने का है !

    जवाब देंहटाएं
  34. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

    जवाब देंहटाएं
  35. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  36. Arvind bahut achchha vivechan aur samakalan hai. maine bhee likha tha magar akhbaar men chhapne kee bandish hoti hai. vahan prakaashan ke baad hee blog par rakhta hoon. iseeliye aaj post kar paaya. bat-bebat par hai.

    जवाब देंहटाएं
  37. Iss sabd ka Sahi tippani Kya hai.Hamare desh me Nari ke prati pyaar hai Nafrat nehi,iss word hamare desh ka nehi legta.

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव