मंगलवार, 25 मई 2010

वे जिनका विवादों से चोली दामन का साथ है...ब्राह्मण हैं वे?

एक लम्बे अंतराल के बाद मेरी एक चुनिन्दा  ब्लॉगर ने मेरा कुशल क्षेम पूछा -कुछ गिले शिकवे हुए! मैंने पूछा  बहुत दिनों बाद मेरी सुधि आई है तो उन्होंने कहा कि चूंकि बीते दिनों मैं विवादों में रहा और वे विवादों से दूर रहती हैं इसलिए दूर ही दूर रहीं -उन्हें विवादों में रूचि नहीं है -जवाब अपने लिहाज से दुरुस्त था मगर मुझे अपने अतीत में लेकर चला गया ...मैं उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राणी शास्त्र से पी. एच. डी. कर रहा था और मेरे एक प्राध्यापक थे,मेरे बहुत आदरणीय डॉ ऐ के माईती जी (अब दिवंगत ) ..वे सादा जीवन और उच्च  विचार के प्रतिमूर्त थे...मैंने दुनियादारी के बहुत से धर्म संकटों  में उनसे परामर्श लिया और लाभान्वित हुआ -उनकी कई सीखें आज भी मेरी धरोहर हैं -कुछ तो पीढ़ियों दर पीढ़ियों तक चलने वाली भी ...लेकिन मैं उनकी एक बात जीवन में नहीं उतार सका और इसलिए ही शायद बीच वीच में संतप्त होता रहता हूँ -वह है विवादों से दूर रहने की .....मैंने उनसे तभी कहा था कि मैं प्रेम और ईश्वर के अस्तित्व पर लिखना चाहता हूँ -उन्होंने मना किया था ...कहा था कि विवादित विषयों से दूर रहो और भी कितने विषय हैं उन पर भी लिखो न ...

लेकिन मेरी विवादित विषयों से अरुचि कभी नहीं रही ...कभी सोचता था कि जब मैं इन विषयों पर लिखूंगा तो सारे विवाद एक झटके से दूर हो जायेगें ...मगर मैं कितने मुगालते में था आज अपनी इस भोली सोच पर हंसी आती है ...ईश्वर हैं या नहीं ,प्रेम के कितने रूप हैं आज भी यह बहस जारी है और शायद  तब तक ये बहस चलती रहेगी जब तक खुद मानवता का वजूद है ....और मुझे यह भी लगता है कि क्या दुनिया सचमुच इतनी मूर्ख है जो इतने सीधे से मामले को समझ नहीं पा रही है  या मैं ही महामूर्ख हूँ जो दुनिया को समझ नहीं पा रहा हूँ .खैर ,माईती   साहब की एक बात तो कालांतर में शिद्दत के साथ समझ में आ गयी कि ईश्वर और प्रेम (यौनिक ,अशरीरी और दूसरे रूप ) के सही रूप की  समझ 'मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना" जैसी ही है और इन पर समय बर्बाद करना कदाचित उचित नहीं है ...क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं ? 

लेकिन एक ब्राह्मण को ऐसा सोचना क्या उचित है .यहाँ ब्राह्मण से मेरा तात्पर्य है ," बंदहु प्रथम महीसुर चरना मोहजनित संशय सब हरना" (मैं सबसे पहले उन  ब्राह्मणों की चरण वंदना करता हूँ जो मोह से उत्पन्न सब भ्रमों को दूर करने वाले हैं -गोस्वामी तुलसीदास ) अगर विवादों का हल  ढूँढने में ,नई दिशा देने में कोई ब्राहमण सफल नहीं है तो फिर तो उसका ब्राह्मणत्व ही शक के दायरे में है ....तो फिर विवादों पर अपने मत क्यूं व्यक्त न करुँ -आखिर अपने ब्राह्मणत्व की पुष्टि जो करती रहनी है ....बहरहाल मैंने अनिता जी को जवाब दिया कि चूंकि वे अकादमीय जिम्मेदारियों से जुडी हैं इसलिए उनके पास निश्चित ही विवादों में हिस्सा लेने का समय नहीं है ....अकादमीय लोगों को अपने काम से काम रहना चाहिए ...(मगर मित्रों की सुधि लेते रहना चाहिए.. )  मैंने आराधना जी के बारे में यही सोचता हूँ कि वे भी चूंकि असंदिग्ध अकादमिक व्यक्तित्व हैं उन्हें भी विवादों से दूर रहना चाहिए -

मगर उनका भी शायद ब्राह्मणत्व बार बार आड़े हाथ आ  जाता है और वे कई मुद्दों पर एक दिशा देने समुपस्थित हो जाती हैं .
शायद ब्राह्मणों की एक कटेगरी वह भी है जो कोशिश तो करती है  विवादों को सुलझाने  की मगर उनके दुर्भाग्य से वे और भड़क जाते  हैं ....मैं शायद इसी अभिशप्त कोटि में हूँ ....या फिर नित नए विवादों को जन्म देने वालों की एक अलग कटेगरी है ब्राह्मणों की ......

पता नहीं शायद यह वाद  भी किसी नए विवाद को जन्म न दे दे .....आमीन!

34 टिप्‍पणियां:

  1. टिप्पणी कर रहे हैं - थोड़े को बहुत समझिये.

    जवाब देंहटाएं
  2. लीजिये आप भी क्या याद करेंगे - ब्लोग्वानी पर पसंद का भी एक नंबर लगा दिया - मगर हम कहेंगे कुछ भी नहीं इस पोस्ट पर.

    जवाब देंहटाएं
  3. विवाद नहीं कर रहे इसलिए मौन ही ठीक है...अच्छी पोस्ट..

    जवाब देंहटाएं
  4. हम भी ये टिप्पणी देकर महज ब्राह्मण होने का फर्ज ही अदा कर रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  5. विवादो के लिये जिन के पास समय होता है, वोही करते है, हम तो दोनो हाथ जोड कर पहले ही माफ़ी मांग लेते है जी

    जवाब देंहटाएं
  6. आपको स्मरण होगा ...कुछ माह पूर्व "कुपित ब्राम्हण श्रेष्ठियों" पर चर्चा कर रहे थे हम ...हां लिखा नहीं ज़रुर कुछ भी उसपर ! आज आप "विवादित ब्राह्मणत्व" के विचार के साथ प्रकट हुए हैं ...सच कहूं तो पहली प्रतिक्रिया दर्ज़ ही नही कर पाया ! मुझसे पहले के टिप्प्णीकार भी पोलिटिकल स्टेट्मेंट देकर ( पतली गली से निकल लिये ) बढ लिये ! विषय हाहाकारी है ! इसलिये अर्ज़ किया है कि हुज़ूर आज कोई उम्मीद मत पालियेगा ...बन्दा कोई रिस्क नहीं लेना चाहता :)
    आगे यदि कुछ अच्छी टिप्पणियां आईं तो लौट कर ज़रूर आउंगा ... आश्वस्त रहियेगा :)

    जवाब देंहटाएं
  7. "ब्राह्मण" ही क्यों? जितने पर्याय हैं या अन्य प्रकार से जुड़े हुए हैं "ब्राह्मण" से, सब से यही ध्वनित भी होता है और प्रकट भी। शर्त बस यह है कि वंशानुगत-ता के प्रति पूर्वाग्रही न हुआ जाए।
    जैसे - ब्राह्मण - ब्रह्मन् से उद्भूत - और ब्रह्मन् क्या है? "अक्षरं परमं ब्रह्म" अर्थात् जो कभी क्षरित नहीं होता - (क्षय नहीं, क्षर की बात है यहाँ)
    इसीलिए मधुर-प्रिय होता है।
    पुरोहित - जो आपका हित आगे रखता है
    पण्डित, शास्त्री, सभी रूप में ऐसा है।
    विवाद - जो विशिष्ट और विपरीत दोनों वादों से लक्षित समझना चाहिए, से दूर रह कर हंस नीर-क्षीर विवेक कैसे करेगा?
    बहुत ही समझ और पाण्डित्य से भरी हुई टीएलबीएस!
    "थोड़ा लिखा बहुत समझना" यानी यही है स्मार्ट इण्डियन की स्मार्ट च्वाइस बेबी… आऽऽऽऽहाऽऽऽऽऽ!
    जय हो!

    जवाब देंहटाएं
  8. बंद हैं मुट्ठियाँ खोल दीजिए

    जवाब देंहटाएं
  9. हम तो ब्राह्मण भी नहीं फिर क्यों विवाद में पड़ें :)
    मौन ही उचित है

    जवाब देंहटाएं
  10. Vivad aur lakshmi, kab kispe meherban ho jaayen kuchh kaha nahi ja sakta.

    जवाब देंहटाएं
  11. Vivad aur lakshmi, kab kispe meherban ho jaayen kuchh kaha nahi ja sakta.

    जवाब देंहटाएं
  12. काशी का बाभन और विवाद? अरे ये तो ऐसा ही है जैसे चोली दामन का साथ. चाणक्य से कुछ सीखिए विप्रवर ..हा हा

    जवाब देंहटाएं
  13. ये तो बिना विवाद का विवाद हो गया , मिश्रा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  14. विवादों से बचना आसान है पर विवादों को शमित करना ही उचित, करे कोई भी ।

    जवाब देंहटाएं
  15. आर्यजन
    पहले तो अली सा ,जो गली में आये तो बाकी तो पतली गली से कौन कहे ,बगल की गली से गुजर गए ...
    लगता है ब्राहमण शब्द को लेकर अभी भी कुछ गलतफहमी है ...ब्राह्मण जन्मना नहीं कर्म से होता है कोई -जो संशयों / मोह को दूर करे वह ब्राह्मण है -इसलिए क्लीयर कर रहा हूँ की लोग अंट शंट मतलब न निकालते जायं !
    आईये देखें ब्लॉग जगत में सचमुच कितने ब्राहमण हैं ?

    जवाब देंहटाएं

  16. विद्वानों की कोई जाति नहीं होती,
    वह अपनी विद्वता के गोत्र से ही जाने जाते हैं ।
    मतैक्य पर न ठहरने वाले थोथे पँडितों ने ही यह धारणा प्रचलित की होगी, " बारह बाभन.. बारह मत ! "
    बहुधा विवाद के गर्भ में मतैक्य कायम करने के प्रयास से अधिक अपनी बात मनवाने का हठ रहा करता है ।

    जवाब देंहटाएं
  17. विप्रवर,
    आपने हमारी पोस्ट पढी, यह हमारा सौभाग्य है और आपकी टिप्पणी हमारे लिए आशीर्वाद...
    हम लेखक द्वय में भी एक ब्राह्मण हैं और उन्होंने भी ब्राह्मणत्व की वही व्याख्या की थी मुझसे जो अभी आपने ऊपर दी है... रही बात विवादों की तो हमें भी कई लोगों ने चेताया, समझाया, बुझाया, और सुझाया था.. लेकिन हमने हठ न छोड़ा... परिणाम यह हुआ कि कविताओं पर तो दो अंकों में टिप्पणियाँ मिलीं, पर उन मुद्दों पर नियमित पाठकों की तरफ से भी मौन... लोग पतली गली से सरके क्या, पोस्टर देखकर ही भाग लिए...

    जवाब देंहटाएं
  18. यह सुबह का स्विच शाम को कार्यांवित हुआ।
    बन्दऊँ प्रथम महिसुर चरना
    मोह जनित संशय सब हरना
    आप ने मोह और संशय सब दूर कर दिए। पयलग्गी स्वीकारें। सोच रहा हूँ एक ठो शृंखला चालू कर दूँ। बौत इंटरेस्टिंग होगी।
    चन्द्रप्रकाश द्विवेदी (चाणक्य धारावाहिक निर्माता) ने एक बार कहा था चाणक्य ब्राह्मण नहीं थे। बड़ा बवाल हुआ था।
    भाऊ अगर यहाँ आएं तो उनके लिए शब्द सन्धान हेतु एक विषय सुझा रहा हूँ:
    'विवाद, बवाल, पंगा, चोली, दामन और बरहमन)'
    चलें अब - जनगणना प्रोग्राम में देरी हो जाएगी।

    जवाब देंहटाएं
  19. यः जानासि ब्रह्मः च सः ब्राह्मणः.. और नहीं पता.

    जवाब देंहटाएं
  20. कई बार विवादित विषयों में रहने का अलग ही मजा है। विवादो से हमेशा दूर रहना चाहिए। पर कई विषय ऐसे होते हैं जिनपर विवाद न होकर चिंतन होता है। इसे समझना चाहिए। किसी बात पर लोग अगर मतभिन्नता प्रगट कर रहे हों तो इसका मतलब ये नहीं होता की विवाद हो रहा है। यही तो आज हमारे समाज की गड़बड़ी है. चिंतन और बहस के अंतर को समझे....चिंतन करें लगातार, बहस नहीं। यही भारतीय परंपरा है. जिसने न जाने कितने विषयों का हल ढ़ूढ निकाला था। अब जाने ये तरीका कहां खो गयै है।

    जवाब देंहटाएं
  21. @ हम घनघोर चिंतन में लगे हैं। आभासी दुनिया मे साझा चिंतन किस तरह किया जाय?
    पहला तो यही है कि ब्लॉगर प्रोफाइल में चिंतक की मुद्रा में फोटो लगाई जाय, फिर वैसे फोटो वालों को ढूढ़ा जाय।
    इसके बाद चिंतन कोरा हो जा रहा है, कोई समझा दे तो मेहरबानी होगी।

    जवाब देंहटाएं
  22. .
    .
    .
    आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,

    आप ब्राह्मण व ब्राह्मणत्व की जो चाहे व्याख्या दें...ठोस जमीनी हकीकत यही है कि दोनों शब्द एक सवर्ण जाति से जुड़े माने जाते थे, हैं और रहेंगे...

    गद्गद् होती टिप्पणियाँ किनकी हैं यह पता करने के लिये मुझे या किसी को भी अकल लगाने की जरूरत नहीं...

    वर्चुअल स्पेस में ब्राह्मणों का वर्चस्व है...इसमें कुछ भी गलत नहीं...और इस तथ्य को स्वीकारना भी गलत नहीं है...

    "अगर विवादों का हल ढूँढने में ,नई दिशा देने में कोई ब्राहमण सफल नहीं है तो फिर तो उसका ब्राह्मणत्व ही शक के दायरे में है ....तो फिर विवादों पर अपने मत क्यूं व्यक्त न करुँ -आखिर अपने ब्राह्मणत्व की पुष्टि जो करती रहनी है ....बहरहाल मैंने _ _ _ जी को जवाब दिया कि चूंकि वे अकादमीय जिम्मेदारियों से जुडी हैं इसलिए उनके पास निश्चित ही विवादों में हिस्सा लेने का समय नहीं है ....अकादमीय लोगों को अपने काम से काम रहना चाहिए ...(मगर मित्रों की सुधि लेते रहना चाहिए.. ) मैंने _ _ _ _ जी के बारे में यही सोचता हूँ कि वे भी चूंकि असंदिग्ध अकादमिक व्यक्तित्व हैं उन्हें भी विवादों से दूर रहना चाहिए -
    मगर उनका भी शायद ब्राह्मणत्व बार बार आड़े हाथ आ जाता है और वे कई मुद्दों पर एक दिशा देने समुपस्थित हो जाती हैं .शायद ब्राह्मणों की एक कटेगरी वह भी है जो कोशिश तो करती है विवादों को सुलझाने की मगर उनके दुर्भाग्य से वे और भड़क जाते हैं ....मैं शायद इसी अभिशप्त कोटि में हूँ ....या फिर नित नए विवादों को जन्म देने वालों की एक अलग कटेगरी है ब्राह्मणों की ......"


    अगर ऊपर लिखे में हर जगह 'ब्राह्मण' को 'जागरूक जानकार बुद्धिजीवी' से रिप्लेस कर दें तो मैं सहमत हूँ...कब तक बच कर निकलेंगे लोग विवादों से...निपटाना तो होगा ही !... केवल एक असहमति है, क्या आप मानते हैं कि गैरअकादमिक लोगों के पास विवादों में हिस्सा लेने के लिये समय ही समय होता है ?... हमारे अकादमिक क्षेत्र में कितना कार्य (???) हो रहा है, सर्वविदित है... जाने दीजिये काहे को मुँह खुलवाते हैं...

    आशा है अन्यथा न लेंगे...आप मेरे प्रिय ब्लॉगर हैं... :)

    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  23. प्रवीण जी आपने वही बिंदु अपने प्रेक्षण में लिया जो मैंने इंगित किया था लोग ब्राह्मणत्व में उलझ गए -आज के तथाकथित अकादमीय लोग अपने सामाजिक सरोकारों से इतना कटे हुए और नकारा हो गए हैं कि मुझे यह पोस्ट लिखनी पडी ...अकादमीय हैं तो केवल अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए ... यह तो जानवर भी कर लेते हैं ..
    और महराज किंचित भी भ्रम आपको क्यो हुआ की हम आपसे अलग सोचते हैं -सीना चीर कर दिखाना होगा क्या ?

    जवाब देंहटाएं
  24. जन्मना जायेते शुद्र: संस्कारात द्विज उच्चयते
    वेद पाठेत भावेत विप्र, ब्रहमा जानादि ब्रहामण:

    आदर सहित, बस यही कि : जो ब्रह्म को जानने कि उदघोषणा कर सकने कि हिम्मत रखता है वही ब्राहम्ण है. जो कह सकता है अहम ब्रहमास्मी! अनहलहक!! वही ब्राहम्ण है. यह जाति से परे आध्यात्मिक बात है..पर मूर्खतावश "सर नेम" का अहंकार बन गया, शायद!!

    "मै कौन हूं" कि खोज जब भ्रमित होती है तो कोई जाति, कोई धर्म, कोई क्षेत्र, आदि से सयुक्त होकर खुद को धोखा भर देती रह्ती है...वरना तब भी अशांत रहने का और क्या कारण होता है?

    जवाब देंहटाएं
  25. 'ब्राहमण हैं इसलिए सिर्फ [वाद]विवादों तक सिमित रहते हैं... :D

    [[[[[[[[[[[[[[हम क्षत्रियों के बारे में क्या राय है...हा !हा!हा !]]]]]]]]]]]

    जवाब देंहटाएं
  26. मौन रहना बेहतर तो है..पर कई बार मुखर होना ही पड़ता है...और फिर वह विवाद का रूप ले लेता हैं...हाँ किसी मंशा के तहत विवाद सही नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  27. "Haathi ke daant, khaane ke aur, dikhane ke aur "

    [ Haathi= Blogger = Brahmin ]

    जवाब देंहटाएं
  28. किसी विषय पर वाद(विवाद) होना तो अच्छी बात है । यह परम्परा तो न जाने कबसे चली आई है ।

    जवाब देंहटाएं
  29. आदरणीय अरविंद जी, ये पोस्ट भी मेरे तो सर के ऊपर से निकल गयी। पता नहीं आप को मेरी कही बात अच्छी नहीं लगी, आप कटाक्ष कर रहे हैं। वाद विवाद से बचना ही सिखाया गया है बचपन से और यही मेरी आदत भी है।

    जवाब देंहटाएं
  30. भो विप्रवर ! मुझे ब्राह्मणों की जमात में सम्मिलित न करें. मैं ब्राह्मण सिर्फ इसलिए हूँ कि धर्म की तरह जाति बदली नहीं जा सकती...शेष बातों में मैं प्रवीण शाह जी की बातों से सहमत हूँ.
    मुझे ब्राह्मण होने पर कभी गर्व नहीं होता. शर्म अक्सर आती है, कभी-कभी गुस्सा आता है और कभी-कभी पछतावा भी होता है.

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव