गुरुवार, 28 मई 2009
सीमा गुप्ता जी को स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाये दीजिये ( चिट्ठाकार चर्चा )
अभी उसी दिन तो जानकारी हुयी कि सीमा जी के दुश्मनों की तबीयत नासाज हो गयी थी मगर एक शल्य चिकित्सा के बाद वे स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं ! जैसे ही यह मालूम हुआ मन सहसा ही दुखी हो गया और हम तुरत फुरत उनको शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामना दे आए ! उनको शुभकामना देने वालों की लम्बी कतार है ! मगर मन अभी भी क्लांत है ! उनकी तबीयत अब कैसी है जानने को उत्सुकता बनी हुयी है .हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही वे फिर ब्लॉग जगत में अपनी कविताओं/गीतों से हमें रूबरू करायेगीं !
सीमा जी उन चंद ब्लागर हस्तियों में हैं जिनके प्रति मेरे मन में गहरा सम्मान है ! मगर यह सम्मान उनका फोटो देखकर अकस्मात उत्पन्न हुयी कोई आसक्ति ( इन्फैचुएशन ) नही है जो ब्लॉग के आभासी जगत में सहज संभाव्य है बल्कि एक महनीय व्यक्तित्व को धीरे धीरे समझते जाने से उत्पन्न श्रद्धा भाव ( adoration ) है ! अन्यथा तो सच कहूं कि उनके ब्लॉग कुछ लम्हे पर जब पहली बार गया तो ऐसा लगा कि हातिमताई के किसी कथानक के सेट पर पहुच गया हूँ -खासी तड़क भड़क ,उमर खैयाम के जाम और प्याले ,अलिफ़ लैला सरीखा परिवेश-ख़ुद सीमा जी के कई मनभावन पोर्ट्रेट ,और कुल मिला कर श्रृंगार के विविध भावों को उद्दीपित करता माहौल ! मैं किशोरावस्था से ही ऐसे चित्र ,दृश्य से सहसा ही अप्रस्तुत हो कर धीरे धीरे ही संयत हो पाता हूँ -सो पहली बार तो इस ब्लॉग पर पहुँच कर बहुत कुछ अप्रस्तुत सा होता हुआ फूट लिया ! मगर उत्कंठा ऐसी बढ़ी कि मन माने ही नही । 'मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे जैसे उडि जहाज को पन्छी पुनि जहाज पर आवे !' लिहाजा मैं उनके ब्लॉग पर अब बार बार और शीघ्रता से पहुँचने लगा और फिर तो गंभीर और बौद्धिकता से ओतप्रोत एक नया रचना संसार मानो मेरे सामने अनावृत होने लगा ! हातिमताई के परिवेश की अनुभूति अब काफूर हो चली थी !
फिर किस्सा कोताह यह कि मैं ब्लॉग आमुख की तड़क भड़क से परे अब उसकी अंतर्वस्तु पर भी नजरे स्थिर करने लगा -और वहाँ प्रस्तुत हो रही रचनाओं की वैचारिक गहराई से प्रभावित हुए बिना नही रहा ! यद्यपि उनमें वर्तनी की अशुद्धियाँ रहती थीं मगर भाव गाम्भीर्य में वे छुप सी जाती थीं ,कभी भी चुभती नही थीं ! मुझे आश्चर्य भी हुआ कि मानव मन के सूक्ष्म से सूक्ष्मतर भावों की इतनी बारीक पकड़ और अभिव्यक्ति रखने वाली रचनाकार से वर्तनी की इतनी छोटी छोटी भूलें ? माजरा क्या है ? मैंने उन्ही दिनों देखा कि सीमा जी की अनेक टिप्पणियाँ रोमन में आ रही हैं जिनके अंत में रिगार्ड्स की हस्ताक्षर मुहर अनिवार्य रूप से होती थी ! जब जिज्ञासा और बढ़ी तो मैंने सीधे रचनाकार से ही वार्ता कर समाधान का निर्णय लिया और सीमा जी को चैट पर आमंत्रित किया , उन्होंने तत्परता से मुझे उपकृत किया और एक रहस्योदघाटन आखिर हो ही गया -सीमा जी मिलेट्री परिवेश में पली बढ़ी है जहाँ बोलचाल में अंगरेजी का बोलबाला रहता है -इसलिए हिन्दी की अच्छी जानकारी के बावजूद भी उनकी वर्तनी पर पकड़ उतनी अच्छी नही रह पायी !
मैंने कुछेक बार उनसे कुछ शब्दों की वर्तनी सुधारने का धृष्ट आग्रह भी किया मगर उन्होंने कभी इसे अन्यथा नही लिया बल्कि तत्परता से वांछनीय सुधार कर दिया -मैंने उनसे एक आग्रह करने की अनाधिकार चेष्ठा यह भी की -वे कृपया ब्लॉगों पर अपनी टिप्पणियाँ रोमन में न कर के हिन्दी में किया करें -और मैं तो कृत कृत्य हो गया -सुनते ही उन्होंने इसे अमल में भी ला दिया ! मैं जानता हूँ कि इस निर्णय को लागू करने में उन्हें कितनी असुविधा हुई होगी ! और आज भी मैं उनके इस निर्णय के प्रति आभारोक्ति शब्दों में कर पाने में सक्षम नही हो सका हूँ ! हाँ regards का पुछल्ला अभी भी उनकी टिप्पणियों में लगा रहता है मगर यह उनकी मर्जी है तो ठीक है -अब सब को मंजूर भी है और मुझे भी ! यह मुझे हिन्दी अनुप्रयोग की उनकी विजय गाथा की याद दिलाता रहता है !
उनकी बौद्धिक परिपक्वता और विषयों की गहरी समझ का संकेत उनकी टिप्पणियाँ करती रही हैं -तस्लीम की अनेक पहेलियाँ उन्होंने चुटकियों में बूझी हैं ! उनका काव्य प्रणयन वियोग -विरह से आप्लावित है और मैंने उनसे इसका कारण भी पूछने की जुर्रत भी की -भले ही मैं इस विचार का हिमायती हूँ कि पाठक को रचनाकार की रचना से बस मतलब होना चाहिए उसकी निजी जिन्दगी से नही ! उन्होंने सहजता से ही जवाब दिया था कि विरह वियोग भी मानव जीवन का एक प्रमुख भाव-पहलू है भला इससे विमुख कैसे हुआ जा सकता है ! मगर मैंने उन्हें आगाह कर रखा है कि उनकी वियोग भरी रचनाएँ मन में सहसा ही altruistic भावों का संचार करती हैं इसलिए मैं कभी कभी उन्हें पढने से कतरा जाता हूँ ! शायद इसलिए मेरी तसल्ली के लिए ( कैसी खुशफहमी पाल रखी है मैंने भी !) उन्होंने एकाध श्रृंगार प्रधान कविताये -गीत भी लिखे है. मैंने इस चाह में उन रचनाओं की इसलिए भी ज्यादा प्रशंसा की कि यह उनका एक स्थाई भाव बन जाय मगर उनका तो स्थाई भाव विरह -वियोग ही है -साहित्य के ही इस पक्ष की वे सिद्धहस्त प्रतिनिधि रचनाकार हैं !
मेरा आपसे आग्रह है कि कृपया आज आप सब एक बार फिर उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं मेरे साथ करें -वे आयें और ब्लॉग जगत को अपनी कालजयी रचनाओं से निरंतर समृद्ध करें ! वैसे तो सीमा गुप्ता जी से शायद ही लोग अपरिचित हों मगर नए ब्लॉगर उनके बारे में इस साक्षात्कार से विस्तृत रूप से परिचय प्राप्त कर सकते हैं !
रविवार, 24 मई 2009
आकाश गंगा को निहारते हुए ....
इस बार मुझे आकाश गंगा जो गर्मियों में बेहद खूबसूरत दिखती है को निहारने का खूब आनंद मिला ! रात्रि दो बजे से उत्तर और दक्षिण के मध्य रूई के फाहों या हलके महीन बादलों के आवरण की एक पट्टी दिखती है जो जैसे जैसे समय बीतता जाता है और भी फैलती जाती है ! यह एक अद्भुत दृश्य है जो रोमांच उत्पन्न करता है ! कहते हैं की हमारा सूर्य और ख़ुद यह पृथ्वी इसी मिल्की वे -आकाश गंगा की ही एक कण मात्र के सदस्य/सदस्या हैं .इस आकाश गंगा में जो वर्तुलाकार है करीब १० हजार करोड़ तारे हैं ! और ब्रहमांड में ऐसी ही अनेक मिल्की वे हैं ! अभी तो यह आकाश गंगा अर्ध रात्रि के बाद दिख रही है मगर आगामी माहों में यह रात्रि के आरम्भिक पहरों में भी दिखेगी ! भारतीयों ने सचमुच इस मिल्की वे का कितना सुंदर नामकरण किया है -आकाशगंगा ! मतलब धरती की गंगा के ही समांतर आकाश की गंगा जो इन्द्र सरीखे देवताओं की भी पतित पावनी है !
मैंने देखा कि रात्रि तीन बजे तक अपने बृहस्पति महराज भी आकाश गंगा की झीनी चादर में मुंह छुपा कुछ कुछ निस्तेज हो लिए थे ! जरा ढूँढिये तो गुरू महराज को -
www.noao.edu/outreach/
May is Milky Way month
शुक्रवार, 15 मई 2009
चिट्ठाकार समीरलाल : जैसा मैंने देखा -4
बिखरे मोती में एक से बढ़कर एक कुल १४ गजलें समाहित हैं -पहली ही गजल अपनी ओर एक चुम्बकीय आकर्षण के साथ पाठक को आमंत्रित करती है -
"दम सीने में फंसा हुआ ,कमबख्त न निकले
तिरछा सा वार बाकी है इक तेरी नज़र का " (पृष्ट ७३)
अब इधर भी देखिये की क्या ये किसी व्याख्या की मांग करती हैं ?
" फैल कर सो सकूं इतनी जगह मिलती नहीं
ठण्ड का बस नाम लेकर मैं सिकुड़ता गया "(पृष्ठ & 77)
जन स्मृतियाँ दुर्भाग्य से कितनी अल्पकालिक होती हैं इस पर कवि का यह गहरा कटाक्ष तो देखिये -
"कल मरे थे लोग कितने ,रो रही थी ये जमी
महफिले सजने लगेगीं देख लेना शाम से " ( पृष्ठ -८३)
जीवन के एक कटु सत्य और नग्न यथार्थ से साक्षात्कार करती ये पंक्तियाँ मन को सहसा विषणण कर देती हैं मगर किया क्या जाए मानों जनजीवन की यही नियति बन गयी हो ! अब भला कितने लोगों को याद है मुम्बई का आतंकवादी हमला ?
समीर लाल के मुक्तक स्नेह सम्वेदना ,प्यार तकरार ,विछोह विप्रलम्भ से पूरी तरह लबरेज हैं -"जो मुझसे प्यार करती है " शीर्षक मुक्तक की इन पंक्तियों पर जरा गौर फरमाएं -
" कभी इनकार करती है ,कभी इकरार करती है
बड़ी नादान लडकी है , जो मुझसे प्यार करती है ( पृष्ठ -८९)
कवि अपनी या खुद के रचना कर्म की कालजीविता के प्रति कोई मुगालता नहीं पालता -
" आज मैं हूँ कल मेरा ये नाम बस रह जायेगा
वक्त की आँधीं में वो भी इक दिन बह जायेगा
( पृष्ठ -९०)
पर यह नीर क्षीर विवेक /न्याय भी तो काल बली के हाथ ही है ! मगर ये मौलिक रचनाएँ अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त तो करती हैं ! कवि की "तुम " शीर्षक की चार मुक्तक कवितायेँ वर्ड्सवर्थ की ही परम्परा में अपनी गर्विता प्रेयसी ( बोलो कौन ? ) को समर्पित है जो प्रेम और विछोह के उतार चढाव की तासीर लिए हुए हैं ! मुक्तकों के कई अन्य रूप रंग राजनीति ,धर्म और प्यार के प्रभावी अवयव समेटे हुए हैं !
क्षणवाद की फिलासफी भले ही अज्ञेय से गुजर कर आज भी अज्ञेय ही है मगर समीर लाल की क्षणिकाओं का प्रभाव कतई क्षणभंगुर नही है -लाचारी ,आरक्षण ,इंसान शीर्षक क्षणिकाएं गहरा प्रभाव डालती हैं.अन्तिम क्षणिका कवि की रचना प्रक्रिया से अवगत कराती है -
और अंत में
हाथ में लेकर कलम
मै हाले दिल कहता रहा
काव्य का निर्झर उमड़ता
आप ही बहता गया
[समीक्षित पुस्तक:
बिखरे मोती
(काव्य संग्रह )
रचनाकार -समीर लाल 'समीर '
प्रथम संस्करण :२००९
प्रकाशक -शिवना प्रकाशन ,सीहोर, मध्य प्रदेश
मूल्य २०० रूपये मात्र ]
गुरुवार, 14 मई 2009
चिट्ठाकार समीर लाल : जैसा मैंने देखा -3
चिट्ठाकार समीर लाल -जैसा मैंने देखा !
चिट्ठाकार समीर लाल : जैसा मैंने देखा -2'बिखरे मोती' को रचनाकार ने गीत ,छंद मुक्त कविताओं,गजल ,मुक्तक और क्षणिकाओं अर्थात साहित्य की जानी पहचानी विधाओं से सजाया सवारा है . संग्रह में संयोजित रचनाएं रचनाकार को इन सभी विधाओं में सिद्धहस्त होने की इन्गिति करती हैं . हां यह जरूर है कि ये सभी रचनाएँ पाठकीय एकाग्रता की मांग करती हैं क्योंकि इनके अवगाहन में पल पल यह आशंका रहती है कि सरसरी तौर पर पढने में कहीं कोई सूक्ष्म भाव बोधगम्य होने से छूट न जाय! रचनाकार ने अपने व्यतीत जीवन की अनेक गहन अनुभूतियों को ही शब्द रूपी मोतियों में ढाल दिया है मगर संभवतः एक लंबे काल खंड के अनुभवों की किंचित विलम्बित प्रस्तुति ने ही उसे इन शब्द -मोतियों को बेतरतीब और बिखरे होने की विनम्र आत्मस्वीकृति को उकसाया है .मगर रचनाओं के क्रमिक अवगाहन से यह कतई नही लगता कि कवि के गहन अनुभूतियों की यह भाव माला कहीं भी विश्रिनखलित हुई हो !
संग्रह के २१ गीत दरअसल समय के पृष्ठ पर रचनाकार के भाव स्फुलिगों के ज्वाज्वल्यमान हस्ताक्षर हैं ! कहीं तो वह एक उद्दाम ललक "प्यार तुम्हारा इक दिन हासिल हो शायद बस्ती बस्ती आस लिए फिरता हूँ मैं "(पृष्ठ -२५) का प्रतिवेदन कर रहा है तो कहीं " तुझे भूलूँ बता कैसे तुझे हम यार कहते हैं " (पृष्ठ -२६)की मधुर स्म्रतियों में खो गया सा लगता है ! "तुम न आए "(पृष्ठ ३१) विरही भावों का खूबसूरत गीत है जो पाठको में भी सहज ही विरही स्म्रतियों को कुरेदने का फरेब सा करता लगता है !
कवि समीर का पूरा व्यक्तित्व ही इस गीत में उमड़ आया है -" वैसे मुझको पसंद नही "( पृष्ठ -३६) , भले ही इसका शीर्षक कविता की आख़िरी पंक्ति -"बस ऐसे ही पी लेता हूँ " ज्यादा सटीक तरीके से रूपायित करती हो मगर कविवर ठहरे चिर संकोची सो एक कामचलाऊ शीर्षक ही से संतोष कर बैठे ! वैसे यह गीत मेरी पसंद का नंबर १ है ..." जब मिलन कोई अनोखा हो .....या प्यार में मुझको धोखा हो ....जब मीत पुराना मिल जाए या एकाकी मन घबराए ....बस ऐसे में पी लेता हूँ " ऐसी ही कवि की विभिन्न मनस्थितियों को यह लंबा किंतु बहुत प्यारा गीत सामने लाता है और पाठक के मन में भी टीस उपजाता चलता है ! यह गीत समान मनसा पाठक को सहसा ही रचनाकार के बेहद करीब ला देता है ! कवि के विस्तीर्ण जीवन की मनोंनुभूतियों के चित्र विचित्र भावों का ही मोजैक है यह गीत !
रचनाकार की छंदमुक्त कवितायें भी कविमन के गहन भावों की सुंदर प्रस्तुतियां हैं -" मेरा बचपन खत्म हुआ ....कुछ बूढा सा लग रहा हूँ मैं ...मीर की गजल सा " (पृष्ठ -४७)या फिर "उस रात में धीमें से आ थामा उसने जो मेरा हाथ ...मैं फिर कभी नही जागा " ( पृष्ठ -६३) । "चार चित्र " शीर्षक कविता में मानव जीवन के विभिन्न यथार्थों का शब्द चित्र उकेरा गया है -मसलन " वो हंस कर बस यह याद दिलाता है वो जिन्दा है अभी "(पृष्ठ -६७)
जीवन की यह क्रूर नियति तो देखिये ," महगाई ने दिखाया यह कैसा नजारा गली का कुत्ता था मर गया बेचारा " ( पृष्ठ -७०)
अभी जारी ......
बुधवार, 13 मई 2009
चिट्ठाकार समीर लाल :जैसा मैंने देखा -2
अब जब समीर जी की चर्चा यहाँ छेड़ ही दी है तो लगे हाथ उनके बिखरे मोतियों को क्यों न समेटने का उपक्रम कर लिया जाय ! सिद्धार्थ जी ने अतिशय विनम्रता के साथ इस काज से तोबा कर ली है ! मैं उन सरीखा विनम्र नही हूँ ! मैं पूरी उद्धतता के साथ अपनी मूर्खताओं /बेवकूफियों को आपके साथ बाँटने में आनंदित होता हूँ -यह कुछ कुछ आत्मपीडात्मक ही तो है ! पर शायद मेरी यही आत्मपीडा ही है जो समीर सरीखे रचनाकार से कहीं कुछ तादात्म्य बिठा लेती है -जीवन के कुछ पल छिन जहाँ मानों रचनाकार से हिल मिल से जाते हैं ! समीर जी के सद्य प्रकाशित कविता संग्रह को पढ़ते हुए मुझे अनेक स्थलों पर ऐसा ही लगा कि अरे यही तो मेरी भी पीड़ा है ,मेरा भी अनकहा है । एक कुशल रचनाकार का यही लिटमस टेस्ट भी है कि वह अपनी रचनाओं से किस सीमा तक पाठकों से तादाम्य स्थापित कर पाता है ! समीर जी के इस काव्य संग्रह की यही बड़ी विशेषता है कि इसकी तमाम रचनाएँ पाठकों की अपनी अनुभूतियों से सीधे जा जुड़ती हैं ! मैं कोई पेशेवर काव्य समीक्षक तो हूँ नहीं और न ही इस विधा की शास्त्रीय बारीकियों से परिचित हूँ -अतः सुधी ब्लॉगर बन्धु मेरी कुछ धृष्टताओं और अज्ञानता जनित गलतियों को अवश्य माफ़ कर देगें इस आशा और विश्वास के साथ मैं समीर लाल कृत बिखरे मोती काव्य संग्रह की एक पाठकीय समीक्षा यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मुलाहजा फरमाएं !
बिखरे मोती काव्य संग्रह को समीर जी ने अपनी माँ की पुण्य स्मृति को समर्पित किया है -और इस समर्पण में भी एक वेदना ही छुपी है -बिन माँ के उस घर में कैसे रह पाउँगा ? काव्य संग्रह को कई नामचीन साहित्यकारों ने अनुशंसित/अभिस्वीकृत भी किया है जिसमें मेरे प्रिय कवि कुंवर बेचैन भी हैं जिनकी कुछ पंक्तियाँ ( दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना ....) मैं अक्सर गुनगुनाता रहता हूँ ! उन्होंने समीर जी को मूलतः प्रेम का कवि माना है ! जो वे निसंदेह हैं ! सर्वश्री रमेश हठीला ,राकेश खंडेलवाल और पंकज सुबीर प्रभृत रचनाकारों ने भी अपने अपने तई इस काव्य संग्रह के रचना विधान /प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ! पर जैसा मैंने कहा है न समीर जी और उनकी रचनाओं के बारे में बहुत कुछ कह कर भी कितना कुछ अनकहा सा रह जाता है ! ठीक उस बिहारी की नायिका की भांति जिसके सौन्दर्य वर्णन में एक से एक गर्वीले चित्रकार का घमंड धूल धूसरित हो जाता है -चित्रकार है कि उसे अपने कैनवास पर उतारने को उद्यत है और नायिका है कि क्षणे क्षणे यन्न्वतामुपैति ...तदैव रूपं रमणीयताह .....मतलब उसके सौन्दर्य में क्षण क्षण बदलते भावों को चित्रकार अपनी तूलिका में कैद न कर पाने से हताश हो कर अंत में उसके चित्र को अधूरा ही छोड़ हार मान लेता है मैं समझ सकता हूँ सिद्धार्थ भाई की हताशा को ..मगर मैं तो मानूंगा नही अपनी अनाधिकार उद्धत चेष्टा से ...
बिखरे मोती के आरम्भ में ही समीर जी ने मन की बात के तहत अपने प्रस्तुत काव्य कर्म की प्रस्तावना की है ! यह आश्चर्यजनक है कि मात्र कुछ वर्षों के कालखंड ( मात्र १९९९ से अद्यावधि ) में ही समीर लाल की यह प्रत्यक्ष आभा दृष्टिगत हुई है जिनमें उनके ब्लॉग लेखकीय जीवन की बहुत बड़ी भूमिका है ! यह सचमुच एक मीटिओरिक सक्सेस है -शायद ही ऐसा कोई और दृष्टांत कहीं और सम्भव हो ! जाहिर है इस आभामंडल का पार्श्व कोई कम आलोकित नही रहा होगा मगर वह नजरों से ओझल जरूर रहा ! और निश्चित तौर पर हिन्दी ब्लॉग ने इस महान रचनाकार को हमारे सामने ला प्रस्तुत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी है ! और जैसा कि रचनाकार ने ख़ुद स्वीकारा है उसके काव्यकर्म को प्रोत्साहित करने में श्री अनूप शुक्ला फुरसतिया (ई कौन हैं भाई ? ) श्री संजय बेगाणी ( क्या अपने ब्लागर संजय बेगाणी ? ) आदि की महनीय भूमिका रही है ! अपने प्रस्तावना में रचनाकार कुछ गृह विरही ( नोस्टालजिक ) सा हो उठा है ! जो सहज ही है ! उन्होंने ई कविता के याहू ग्रुप को भी श्रेय दिया है जहाँ उनका लावण्या शाह और दीगर किंतु काव्यकर्म के दिग्गजों से मेल जोल हुआ ! काव्य संग्रह का श्रेय अपने पिता श्री को भी देना वे नहीं भूले हैं !
जारी........
मंगलवार, 12 मई 2009
चिट्ठाकार समीर लाल -जैसा मैंने देखा !
अब समीर लाल से भला इस चिट्ठाजगत में कौन अपरिचित है ! वे सर्व प्रिय हैं .सर्व व्याप्त हैं .सबके लिए सहज और सुगम हैं !
उनके बारे में लिखना क्या और न लिखना क्या ? कितने कितने लोगों ने लिख डाला है उन पर ! पर मगर फिर भी ऐसा लगता है कहीं कुछ छूट सा रहा है ! मगर वह जो छूट सा रहा है उसे पकड़ने में फिर कुछ छूट सा जाता है -समीर जी का व्यक्तित्व ही मानों कुछ ऐसा है ! और इसलिए ही बार बार उन पर लिखने की जद्दोजहद जारी है -मैं भी इस मुहिम में अपना स्नेह अर्पण कर दूँ -यह (हरि ) इच्छा प्रबल हो उठी है ! इच्छा तो काफी पहले से ही थी मगर उनके नए काव्य संग्रह ने मानों इसमें नव स्फुरण /नवोत्प्रेरण का का काम कर दिया हो !
समीर जी चिट्ठाकार तो अप्रतिम हैं हीं जिस कारण इस समय भी बधाईयाँ हलोर रहे हैं ! वे कवि भी हैं ! और कवि ही नहीं बल्कि यूँ कहिये की वे कवि हृदय हैं -कवि तो कोई भी हो सकता है -यहाँ ( ब्लागजगत ) ,वहाँ ( भवसागर ) में एक ढूंढों तो हजार मिल जायेंगें की स्टाईल में ! पर कवि ह्रदय वाली सहृदयता भला कितनों में होती है ! कवि होना आसान है कवि हृदय होना दुर्लभ ! उनमें गुण भी है तो गुण ग्राहकता भी और वह भी माशा रत्ती तौल में बराबर ! उनकी रचनाएं मन मोहती हैं -गंभीर से गंभीर बात को भी मनोविनोद के लहजे में सहज ही कह देना यह क्षमता तो बस समीर जी ही की थाती है ! सबके वश की बात नहीं ! कभी अगले जनम मुझे बेटवा न कीजो तो पढ़ कर देख लीजिये ! वही अकेले एक ब्लॉगर हैं जिनकी रचनाएं मैं परिवार के साथ बैठ कर बांचता सुनता हूँ ! उनके आब्जर्वेशन ऐसे सटीक और पैने होते हैं कि वाह क्या कह डाला इन्होने ! और प्रेक्षण की यह क्षमता निश्चित ही गाड गिफ्टेड ही है -जिसके लिए एक खास किस्म की संवेदनशीलता और सुरुचिपूर्णता की दरकार होती है जिससे समीर जी लबरेज हैं !
मस्त मौला हैं समीर जी ! अपनी शर्तों पर जिन्दगी जीने के शौकीन ! चिंतन भी हाई और जीवन शैली भी ! जिन्दगी आखिर है भी कितने दिनों की ! सीरत ये रही और सूरत में भी अपने समीर भाई कुछ कम कहाँ ठहरते हैं -भले ही वे लाख दिखाएँ की उनका दैहिक जुगराफिया और नाक नक्श गोल मोल बेडौल है पर उनकी प्रशस्त काया किसी बडमनई का ही बोध कराती है वे नाहक ही वन मानुष सा अपने को दिखाने का यत्न करते हैं ! मैं राज की बात बताऊँ मेरी कुछ महिला ब्लॉगर मित्रों की नजर में समीर जी सेक्सी ( मतलब अच्छे ! अब यह शब्द इसी अर्थ में ही प्रयुक्त होता है न ! ) लगते हैं मगर उनकी कोफ्त यह है कि समीर जी का ध्यान कहीं और लगा हुआ रहता है -मतलब कुछ कुछ उस जुमले की तरह कि ' तेरा धयान किधर है ,तेरा सामान तो इधर है ! ' के तर्ज पर ! पर ऐसी विडम्बनायें तो अक्सर कवि और संवेदनशील लोगों के साथ होती ही रहती है -कविता तभी तो उपजती है ना ! इन्ही विडम्बनाओं और विसंगतियों से ही !
अब समीर जी कितने सरल और सहज हैं एक वाक़या सुनिए ! उन्होंने किसी कवि सम्मलेन में शिरकत की और बड़े उत्साह में अपनी आवाज में वह कविता पॉडकास्ट कर दी -अब उनकी रचनाओं का मुरीद मैं उनकी आवाज से प्रभावित न हो उनसे शिकायत ही कर बैठा ( अब मेरी अशिष्टता तो देखिये !) मगर वाह रे समीर लाल उन्होंने उसका ज़रा भी बुरा न माना बल्कि मुझे अपनी ही ध्रिष्टता पर शर्मसार होना पड़ा ! बल्कि तबसे उनसे मेरे सम्बन्धों में सामीप्य का एक नया चैप्टर खुल गया ! आज ब्लॉग जगत में जितनी सहजता बिना आमने सामने मिले मेरी समीर जी से है शायद वह किसी एक को छोड़कर किसी के साथ नही है ! मतलब एक रूहानी सा रिश्ता ! उन्होंने मुझसे वादा किया था कि भारत आने पर मुझे सस्वर काव्य पाठ सुनाने मेरे गरीबखाने पर वे आयेंगें ( ताकि मैं समझ सकूं और वह दोष निवारण हो सके कि आख़िर इस अप्रतिम सर्जक का स्वर यंत्र कहाँ फंस रहा है ! हा... हा ) पर वे आ न सके और इसलिए जाते वक्त मेरे मनो मालिन्य को दूर करने " बिखरे मोती " की एक प्रति के साथ मुझसे बाकायदा क्षमा याचना की ! मैं कृत कृत्य हो गया ! ऐसी विनम्रता ,विशाल हृदयता अब कहाँ और कितनों में है !
बिखरे मोती मैं पढ़ चुका हूँ बल्कि इसी कृति ने यह पोस्ट लिखने पर मानों मुझे विवश कर दिया ! अब अपने प्रिय चिट्ठाकारों की चर्चा मैं यहाँ करता ही हूँ तो तय पाया कि इसी के बहाने ही समीर जी को जैसा मैंने देखा पाया यहाँ व्यक्त कर दूँ और साथ ही बिखरे मोती की एक पाठकीय समीक्षा भी करता चलूँ ! पर लगता है बिखरे मोती की चर्चा आज की पोस्ट में सम्भव नहीं -इसके लिए इस चिट्ठाकार की चर्चा अब दो पोस्ट में ही संपन्न हो पायेगी ! मतलब अभी एक पोस्ट और भी ! और यह समीर जी की शख्सियत को देखते हुए तो बहुत कम है ! उनकी श्री चर्चा तो हरि अनंत हरि कथा अनंता है !
जारी .....
शनिवार, 9 मई 2009
ज़ाकिर अली "रजनीश " के बारे में आप क्या और कितना जानते हैं ? ( चिट्ठाकार चर्चा )
चिट्ठाजगत में जाकिर अब इतने अनजाने भी नही हैं ! चिट्ठाकारों में उनका एक आदर भरा स्थान है -उनका मूल चिट्ठा मेरी दुनिया मेरे सपने हिन्दी ब्लॉग जगत का एक पुरस्कृत चिटठा है ! यह तकनीकी दृष्टि से जितना सुंदर हैं इसके कंटेंट -ख़ास कर जाकिर की कवितायें मन मोहती हैं ! लेकिन आश्चर्य है कि जाकिर के कवि से लोग बाग़ अभी उतने परिचित नहीं हैं -जाकिर की जो पहचान है वह मुख्य रूप से बाल लेखक ( बड़ा कन्फयूजिंग नामकरण है यह मगर यहाँ आशय यह कि जाकिर बच्चों के लिए विविध विधाओं में लिखते हैं ऑर अनेक प्रतिष्टित पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं ) -मेरा दावा है कि शायद ही इतने पुरस्कार किसी भी चिट्ठाकार को मिले हो ! जाकिर पर तो मानों पुरस्कारों की बरसात हो रही है -मैं तो अदनान सामी स्टाईल में कभी कभी क्षुब्द्ध होकर ईश्वर से फरियाद कर बैठता हूँ कि आख़िर सब पुरस्कार ज़ाकिर को ही क्यों ? एकाध इधर भी खिसका दो हे मौला ! मगर सच कहूं जाकिर लिखते ही ऐसा हैं -वे सही अर्थों में सरस्वती पुत्र हैं -माँ सरस्वती ने उन पर अपना वरद हस्त रखा हुआ है !
बावजूद इसके कि जाकिर और मेरी उम्र में एक लंबा फासला है हमारे बीच पीढी अन्तराल से उपजी संवादहीनता बिल्कुल नहीं है बल्कि यह कह लें कि शायद मेरे उनके बीच अति संवादन का एक लंबा और अनवरत सिलसिला है -जो बिना एक गहरी आपसी समझ के सम्भव नही है -वे मेरे चुनिन्दा मित्रों में से हैं जिन पर मुझे फख्र है ! ब्लॉग जगत के विख्यात ,कुख्यात और सर्वज्ञात ( बुरे अथवा अच्छे कारणों से ) पुरुष और महिला ब्लागरों के बारे में मेरी और उनकी राय में कभी कोई फ़र्क नहीं रहा ! कौन कैसा है -कौन जोरदार ब्लॉग लेखन करता है ,कौन टंगड़ी खीचने का उस्ताद है ,किसका ब्लॉग उसके कंटेंट के कारण और किसका उसके तकनीकी ज्ञान के कारण बढियां है ! कौन दादागीरी पर उतारू है कौन निहायत गऊ किस्म का है -कौन महिला ब्लागर लिखने में और कौन दिखने में सुंदर है और कौन दोनों ही विशिष्टियों से विभूषित है -यह सब हमारी चर्चाओं में शुमार रहता है !
मगर इन सब के दीगर मैं जाकिर को उनके विज्ञान कथा लेखन के अवदानों के कारण जानता और मानता हूँ -कारण, विज्ञान कथा ( साईंस फिक्शन ) मेरी कमजोरियों ,मेरे पैशन में से एक है ! अगर किसी की विज्ञान कथा में रूचि भर है या कोई झूठमूठ में ही कह देता है कि उसे विज्ञान कथा से लगाव है तो तत्क्षण उससे मेरा एक लगाव सा हो जाता है ( आह मैं कितना शोषित हुआ हूँ अपनी इस कमजोरी से ! ) -फिर रजनीश जी का विज्ञान कथा लेखन तो उच्चता के उस स्तर को छूता है जहाँ विरले ही पहुँच पाते हैं !
दरअसल हिन्दी विज्ञान कथाकारों की अग्रपंक्ति में हैं ज़ाकिर ! ज़ाकिर से मेरा पहला परिचय तो इनकी ‘धर्मयुग’ (मार्च 1996) में प्रकाशित कालजयी वैज्ञानिक कहानी ‘एक कहानी’ के जरिये ही हो गया था। उनसे खतो-किताबत का सिलसिला ‘भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति’ के गठन (1995) के साथ शुरू हुआ और आज तो हम अन्तरंगता के उस मुकाम पर आ पहुँचे हैं, जहॉं अपरिचय और औपचारिकता की सारी दीवारें ढ़ह चुकी लगती हैं।
अदभुत कल्पनाशीलता के धनी और कलम के इस नन्हे से बादशाह (अभी ज़ाकिर की उम्र ही क्या है?) से अपनेपन का अब एक ऐसा रिश्ता है कि चन्द शब्दों में इस शख्सियत के बारे में कुछ लिख भर देना और पेशेवराना तरीके से एक दायित्व की इतिश्री कर लेना सहज नहीं लग रहा है तथापि ‘गुणान प्रगटीकरोति’ के परम्परा दायित्व के अनुसरण में ज़ाकिर के बारे में दो शब्द तो लिखना ही है -मेरी पसंद के एक चिट्ठाकार के रूप में भी !
ज़ाकिर की विपुल साहित्य सर्जना के सुनहले पृष्ठों पर उनकी पहली विज्ञान कथा ‘एक कहानी’ ही ऐसी आलोकित और आभा मंडित हुई है कि सम्भावनाओं से ओतप्रोत इस उदीयमान रचनाकार के रचनात्मक भविष्य के बारे में एक गहरे आशवस्ति का भाव जगाती है। मेरी इच्छा है कि जाकिर उस कहानी को चिट्ठाकारों को पढ़ने के लिए आमंत्रित करें ! यह कहानी मानवीय सृजन में यान्त्रिकी के हस्तक्षेप की सम्भावित भयावहता को बखूबी अभिव्यक्ति देती है। यह एक मानक आदर्श विज्ञान कथा है। आज से डेढ़ दशक से भी पहले लिखी गयी इस कहानी के लेखक की उम्र ही तब क्या थी। जुमा-जुमा कुल बीस वर्ष। पर उसकी कथा सोच एक अदभुत काल द्रष्टा की थी और शैली शिल्प तो विश्व स्तर की नामी गिरामी विज्ञान कथाओं से होड़ लेती हुई। अकेले यही कहानी ही ज़ाकिर को विज्ञान कथा लेखकों के वैश्विक मंच पर आसीन कर देती है (बशर्ते इसका ठीक ठाक अंग्रेजी अनुवाद हो जाए)।
धर्मयुग की उस रचना के बाद इस रचनाकार के परवर्ती, अनुक्रमिक और अनवरत रचनात्मक अवदान की तो बात ही निराली है- इतनी अल्पायु में ही एक भरापूरा वैज्ञानिक उपन्यास ‘गिनीपिग’, तीन विज्ञान कथा संग्रह, विज्ञान कथाऍं उनके किसी भी सहधर्मी को ईर्ष्यालु बना देने के लिए काफी हैं। निश्चय ही इस रचनाकार को अभी तो आगे और बहुत आगे जाना है।
ज़ाकिर की कुछेक विज्ञान कथात्मक कृतियों की समीक्षा का सौभाग्य मुझे मिला है, जिनमें बच्चों के लिए लिखी उनकी रचना कृतियॉं भी शामिल हैं। वे किस्सागोई की कला में निष्णात हैं। कहानी के आदि, अन्त, उतार चढ़ाव और क्लाइमेक्स तथा हतप्रभ कर देने वाले पटाक्षेप से उनकी कहानियॉं एक विशिष्ट पहचान पाती हैं। वे शब्दों (शब्द ही तो ब्रह्म हैं) के चयन में भी बड़े सतर्क रहते हैं और कहानी के वातावरण/परिवेश के मुताबिक ही शब्द चयन करते हैं या यूँ कहें कि वे अपने शब्द संकलन संचय से ही कहानी के माफिक वातावरण सृजित कर लेते हैं। खासकर ‘विज्ञान कथाऍं’ और ‘विज्ञान की कथाऍं’ शीर्षक कथा संग्रहों को इस नजरिये से देखा जा सकता है।
इन दिनों वे हमारे एक साझा अभियान -ब्लागिंग के जरिये विज्ञान संचार की मुहिम में जुटे हुए हैं -साईंस ब्लॉगर असोशियेसन और तस्लीम के वे सूत्रधार हैं और मैंने उन्हें कई बार आगाह किया है कि इसके चलते उनका अपना मूल ब्लॉग उपेक्षित हो रहा है पर वे तो अभी विज्ञान संचार की मुहिम में ही लगे हैं -मेरी केवल यही एक बात नहीं मान रहे ! आप में से कोई मनायेगा उन्हें ?
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