कभी कभी सोचता हूँ कृष्ण को आखिर उद्धव की जरुरत ही क्यों पडी होगी ? गोपियों से अपने गोपन संबंधों को किसी और से साझा करना? और इसकी इतनी जरुरत भी क्या थी द्वारिकाधीश को? फिर उद्धव की जरुरत इसलिए भी नहीं समझ आती कि वे तो खुद लीला पुरुष थे और इसलिए हर पल हर वक्त सर्वगामी सर्वव्याप्त भी। वे अपनी योगमाया से द्वारिका और मथुरा -वृन्दावन एक साथ ही रह लेते। उनके लिए यह कहाँ असंभव था? अब अध्यात्मवादी यहाँ यही जवाब देगें कि यह तो उनकी 'लीला' भर थी. सचमुच यह लीला ही रही होगी और वे गोपियों और राधा के प्रति थोड़ा नैतिक आग्रह भी रखते रहे होगें -यह कृष्ण का एक उज्ज्वल पक्ष लगता है। और इसलिए अपने एक अति विश्वस्त सखा को उन्होंने संदेशवाहक बना कर भेजा।
अब आज के विरही प्रेमियों जैसी आशंका उन्हें थोड़े ही रही होगी कि उद्धव कहीं अपनी ही दाल न गलाने लग जायं । उद्धव ने प्रयास भी किया हो तो कृष्ण -प्रेमिकाओं ने एकदम से इस संभावना को निर्मूल कर दिया और कहा की हे उधो मन दस या बीस नहीं होते -हताश निराश उधो की इसके बाद की कथा का कोई खास इतिहास नहीं मिलता। पता नहीं वे लौट कर कृष्ण के पास गए भी या नहीं। गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य समर्पण का यह एक प्रमाण है। मगर कृष्ण का प्रेम? छलिया कृष्ण?
मगर एक नैतिकता तो थी ही उनमें -कुछ तो खुद को जवाबदेह समझा गोपियों का -सोचा होगा बिचारियां वियोग में तड़प रही होगीं। तो खुद क्या जाना अब, किसी संदेशवाहक को ही भेज दो. बस इतनी नैतिकता से काम चल जायेगा। भोले लोगों को और क्या चाहिए? उन्हें मनाना कित्ता तो आसान होता है। उन्हें यह भी फ़िक्र थोड़े ही थी कहीं उद्धव अपना किस्सा चलाये तो चलायें मेरी बला से। और फिर इतना घणा सखा तो रहा है मेरा आखिर प्रेम रस -रास से यह भी इतना अछूता क्यों रहे बिचारा। इधर बिचारा उधर कितनी ही बिचारियां-कोई चक्कर वक्कर चल भी जाय तो थोड़ा इसका भी कल्याण हो जायेगा। तो कृष्ण की एक नैतिकता अपने सखा के प्रति भी रही होगी।
मुझे लगता है कृष्ण और गोपियाँ हर देश काल में रही हैं। मगर कोई उद्धव नहीं दिखता। लव जिहाद का युग है। सब कुछ खुद करने कराने का ज़माना है नहीं तो बात बिगड़ सकती है। मुझे लगा कि उद्धव की खोज होनी चाहिए। किसी कोने अतरे में हो सकता है सिमटा दुबका मिल ही जाय। मैंने अपने मित्रों में से तलाशा। एक ने तो तत्काल इस उद्धव वालंटियरशिप का ऑफर स्वीकार कर लिया। उसने अतीव उतावलेपन से तुरंत पूछा जाना कहाँ और किसके पास होगा?
मगर उसकी तत्परता ने मुझे उसके सख्यपन को लेकर गंभीर आशंका में डाल दिया -नहीं नहीं यह मेरा उद्धव नहीं हो सकता। मुझे पुरुष मित्रों में से कोई उपयुक्त नहीं लगा उद्धव बनने के लिए। एक मित्राणी ब्लॉगर ने वालंटियर बनने का आग्रह किया। मगर यहाँ भी खतरा है -गोपियाँ और राधा तो जल भुन जायेगीं -क्या क्या न कह डालें मेरी मित्र को -कलमुंही वगैरह वगैरह जैसी अनुचित बातें -अपने कुनबे में तो ठीक मगर किसी बाहरी को तो वे रकाबा ही समझ जाएगीं-नहीं नहीं यह तो जले पर नमक जैसा हो सकता है। फिर वे तो जन्म से ही संशयवादी हैं -ह्रदय हमेशा आशंकाओं से धड़कता रहता है छलिया कृष्ण को लेकर। तो यह महिला मित्र का ऑफर भी जाँच नहीं रहा?
एक विश्वसनीय और उपयुक्त उद्धव की तलाश है जो गोपियों को असहज न करे -मेरी कोई मदद कर सकते हैं आप ?
अब आज के विरही प्रेमियों जैसी आशंका उन्हें थोड़े ही रही होगी कि उद्धव कहीं अपनी ही दाल न गलाने लग जायं । उद्धव ने प्रयास भी किया हो तो कृष्ण -प्रेमिकाओं ने एकदम से इस संभावना को निर्मूल कर दिया और कहा की हे उधो मन दस या बीस नहीं होते -हताश निराश उधो की इसके बाद की कथा का कोई खास इतिहास नहीं मिलता। पता नहीं वे लौट कर कृष्ण के पास गए भी या नहीं। गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य समर्पण का यह एक प्रमाण है। मगर कृष्ण का प्रेम? छलिया कृष्ण?
मगर एक नैतिकता तो थी ही उनमें -कुछ तो खुद को जवाबदेह समझा गोपियों का -सोचा होगा बिचारियां वियोग में तड़प रही होगीं। तो खुद क्या जाना अब, किसी संदेशवाहक को ही भेज दो. बस इतनी नैतिकता से काम चल जायेगा। भोले लोगों को और क्या चाहिए? उन्हें मनाना कित्ता तो आसान होता है। उन्हें यह भी फ़िक्र थोड़े ही थी कहीं उद्धव अपना किस्सा चलाये तो चलायें मेरी बला से। और फिर इतना घणा सखा तो रहा है मेरा आखिर प्रेम रस -रास से यह भी इतना अछूता क्यों रहे बिचारा। इधर बिचारा उधर कितनी ही बिचारियां-कोई चक्कर वक्कर चल भी जाय तो थोड़ा इसका भी कल्याण हो जायेगा। तो कृष्ण की एक नैतिकता अपने सखा के प्रति भी रही होगी।
मुझे लगता है कृष्ण और गोपियाँ हर देश काल में रही हैं। मगर कोई उद्धव नहीं दिखता। लव जिहाद का युग है। सब कुछ खुद करने कराने का ज़माना है नहीं तो बात बिगड़ सकती है। मुझे लगा कि उद्धव की खोज होनी चाहिए। किसी कोने अतरे में हो सकता है सिमटा दुबका मिल ही जाय। मैंने अपने मित्रों में से तलाशा। एक ने तो तत्काल इस उद्धव वालंटियरशिप का ऑफर स्वीकार कर लिया। उसने अतीव उतावलेपन से तुरंत पूछा जाना कहाँ और किसके पास होगा?
मगर उसकी तत्परता ने मुझे उसके सख्यपन को लेकर गंभीर आशंका में डाल दिया -नहीं नहीं यह मेरा उद्धव नहीं हो सकता। मुझे पुरुष मित्रों में से कोई उपयुक्त नहीं लगा उद्धव बनने के लिए। एक मित्राणी ब्लॉगर ने वालंटियर बनने का आग्रह किया। मगर यहाँ भी खतरा है -गोपियाँ और राधा तो जल भुन जायेगीं -क्या क्या न कह डालें मेरी मित्र को -कलमुंही वगैरह वगैरह जैसी अनुचित बातें -अपने कुनबे में तो ठीक मगर किसी बाहरी को तो वे रकाबा ही समझ जाएगीं-नहीं नहीं यह तो जले पर नमक जैसा हो सकता है। फिर वे तो जन्म से ही संशयवादी हैं -ह्रदय हमेशा आशंकाओं से धड़कता रहता है छलिया कृष्ण को लेकर। तो यह महिला मित्र का ऑफर भी जाँच नहीं रहा?
एक विश्वसनीय और उपयुक्त उद्धव की तलाश है जो गोपियों को असहज न करे -मेरी कोई मदद कर सकते हैं आप ?
प्रत्येक का कार्य नियत था और
जवाब देंहटाएंवही हो रहा था। उद्धव का जो कार्य सब
जानते हैं उससे भी महत्वपूर्ण एक अंतिम कार्य
था.... कृष्ण का भौतिक पलायन
का समाचार राधा को देना। और यह
कार्य उनके सिवा किसी के वश
का नहीं था। कभी कभी दुखद भाव प्रेषित
करने के लिए नितांत कथित
बौद्धिकता ही उचित होती है। राधे-
कृष्णा ।
प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हटाएंलगता है आपकी कृष्णा के प्रति नीयत ठीक नहीं है. कहीं ऐसा न हो कि आपको भी वे D K पंडा का अनुसरण करने वाध्य कर दें. :-)
जवाब देंहटाएंआपको यदि जोग-संदेश भेजना है तो खोजते रहिए उद्धव को,कलियुग में ना मिलेंगे।
जवाब देंहटाएंहाँ, यदि प्रेम-संदेसा पहुँचाना हो तो हम प्रस्तुत हैं,बस हमारा अपने दिल पर नियंत्रण नहीं है। भूलचूक हो जाय तो माफ करना।
क्या करें,कलियुग है ;-)
आप हमेशा मुश्किल काम करने की ही क्यों सोचते हैं | वैसे सोचा एकदम रोचक है
जवाब देंहटाएंतलाश जारी रखें। कहीं तो मिलेगी/मिलेगा..... :)
जवाब देंहटाएंपहले आज के युग में राधा गोपियाँ और कृष्ण तो ढूँढ लीजिये जिस दिन ये मिल जायेंगे तो उद्धव भी मिल जायेगा आप तो उल्टा चलने लगे हैं सही राह से चलेंगे तो सही लोग मिलेंगे खोजने नहीं पडेंगे :)
जवाब देंहटाएंखोज जारी रहे ...पुलिस कचहरी के जिम्मे कोई काम हो तो हमें खबर करें ..उद्धव मिलना ही मिलना चाहिए ...अगर बिग बॉस में चला गया त मुश्किल हो जाएगा
जवाब देंहटाएंमोबाइल युग है। आप ही बन जाइये। क्या जोखिम लेना ?
जवाब देंहटाएंव्हाट्सएप्प वगैरह का ज़माना आ गया है. आजकल तो असली उद्धव वही बने हुए हैं :)
जवाब देंहटाएंउध्दव के साथ ही कृष्ण की याद आ जाती है -
जवाब देंहटाएं" उर में माखन - चोर गडे ।
अब कैसेहुँ निकसत नाहीं ऊधो तिरछे ह्वैं जू अडे । "
सूरदास
kalyug mei uddhav ka kaam whats up aur facebook jaise medium hi karte hain..sabse asaan mobile sms ki suvidha to hai hi...
जवाब देंहटाएंउद्धव की खोज जारी रहे।
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