गुरुवार, 20 मई 2010

आपने कभी गीता पढी है ?

मन जब उद्विग्न हो तो अक्सर गीता के उपदेश याद आते हैं -गीता भारतीय वांग्मय की ऐसी धरोहर है जो विश्व विश्रुत है और शायद ही भारत का कोई महान व्यक्ति ऐसा रह गया हो जिसने गीता को न पढ़ा हो ---मतलब इसे महानता की कुंजी कह सकते हैं (:)) -मतलब महान बन जाने का आसान सा नुस्खा ! फिर कोई इसे आजमाता क्यों नहीं ? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ब्लोग जगत के ९८ फीसदी से अधिक लोगों ने गीता को देखा भले हो पन्ने पलट कर कभी नहीं देखा होगा ! जबकि  किसी भी महान व्यक्ति को याद कीजिये ,उन्होंने  गीता पढी है -और कई ने तो उसके भाष्य लिखे हैं! गांधी जी ने भी गीता पर कमेंट्री लिखी है -बाल गंगाधर तिलक की गीता रहस्य तो एक लाजवाब कृति है ...नेहरु ने अपने पश्चिमी नजरिये के बावजूद गीता का अच्छा अध्ययन  किया  था ..क्या यह एक  धार्मिक पुस्तक है ? मैं भी ऐसा ही अस्पष्ट सा विचार रखता था ...पोस्ट ग्रेजुएट तक ..लेकिन एक घटना घटी उसी समय ,जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता ...डॉ कर्ण सिंह आये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान परिषद् में ...१९७९ में ..संस्कृत और भारतीय भाषाओं और वांग्मय के प्रकांड विद्वान् कर्ण सिंह के लिए भारतीय संस्कृति में रूचि लेने वालो के मन  में एक "आईडल वरशिप"  का भाव था ... मैं अपनी आटोग्राफ बुक भी लेता गया था ...

भारतीय दर्शन पर विद्वतापूर्ण व्याख्यान के बाद जब वे डायस से उतरे तो मैं ही पहला व्यक्ति था जो उनके समीप पहुँच कर अपनी आटोग्राफ बुक उनके सामने फैला चुका था .. किंचित अरुचि से उन्होंने  मेरी आटोग्राफ बुक को देखा (नहीं भूल सकता चेहरे का वह भाव ! ) ...और मैं जैसे जिद की मुद्रा में आटोग्राफ प्लीज की रट लगाए  था ....उन्हें भी लगा होगा ये जिद्दी लड़का है मानेगा नहीं ..देववाणी सी गूंजी ,किस क्लास में पढ़ रहे हैं और विषय क्या है ?  यांत्रिक सा जवाब  मुंह से निकला ,एम एस सी जूलोजी ..आटोग्राफ प्लीज ....उन्होंने फिर भी आटोग्राफ देने में कोई रूचि नहीं दिखायी ..मेरी खीझ बढ रही थी ..कैसे विद्वान् हैं ....एक रिक्वेस्ट भी नहीं सुन रहे ..दम्भी ...मन  में बात आई ...मगर फिर देव वाणी ,गीता पढ़ते हैं ? हद है गीता का आटोग्राफ से क्या सम्बन्ध ? मैंने खीज कर जवाब दिया मैं साईंस का विद्यार्थी हूँ ....तब तो आपके लिए  गीता पढना और भी जरूरी है ....मन  में आया क्या ख़ाक जरूरी है मगर तभी  देववाणी फिर कानों से टकराई वादा करो गीता पढोगे और नियिमित पढोगे ....अब मुझे आटोग्राफ लेना था और दोस्तों में शेखी बघारनी थी तो जवाब दिया हाँ हाँ जरूर पढूंगा नियमित पढूंगा  ....तब तक उन्होंने आटोग्राफ पर सुलेख अंकित कर दिया था ...सत्यमेव जयते नानृतम ..कर्ण सिंह ...मैंने आटोग्राफ बुक जैसे उनके हाथ से खीची हो ,अपुन का काम बन गया था ...और फिर मैं भीड़ का हिस्सा  बन गया था ..बात आई गयी हो गयी थी मगर बीच बीच में मुझे एक महापुरुष से किया वादा बार बार याद आता ...लिहाजा एक दिन मैंने गीता प्रेस से प्रकाशित गीता की नई प्रति खरीद ही ली  ( घर की पुरानी धुरानी से कुछ पढने का मन  ही नहीं हुआ ) ..सच बताऊँ मेरा पहला पाठ  मुश्किल से पहले अध्याय तक ही सीमित रह गया था ....बड़ा ही नीरस लगा ..दिव्य दृष्टि प्राप्त संजय फ्लैश बैक में युद्ध की घटना का वर्णन कर रहे थे ....धर्म क्षेत्रे कुरु क्षेत्रे समवेता युयुत्त्सव ........

आज मुझे यह कहने में  तनिक संकोच नहीं कि यदि आपने जीवन में एक बार भी गीता पढी और सुनी नहीं तो आपका यह जीवन निश्चय ही अधूरा रह जाने वाला है ..यह एक जीवन   दर्शन है ..भारतीय चिंतन का निचोड़ है ...आप क्यों गीता पढ़ें ? आईये मैं बताता हूँ- 

जीवन के निराश और उद्विग्न क्षणों में राहत पाने के लिए ,किसी बहुत आत्मीय   से बिछड़ जाने पर आत्मं शान्ति के लिए ....यहाँ बिछड़ने का अर्थ किसी की मृत्यु से भी है ....यह आश्वस्त करती है कि आप केवल निमित्त मात्र हैं आपके हाथ में कुछ नहीं है ....करने वाला आप नहीं कोई और है ....कोई जरूरी नहीं कि आप बड़ी तन्मयता से कर्म करें तो आपको इच्छित फल ही मिलेगा ...नहीं, फल आपके हाथ मे  नहीं है ..आप केवल कर्म कर सकते हैं ....और न भी करें तो फिकर नाट आपसे करा  लिया जाएगा ....कौन कराएगा ..प्रकृति ..प्रक्रितित्स्वाम  नियोक्ष्यति ....वही आपसे करा लेगी ...सुख दुःख लाभ हानि में एक सा रहने की आदत  डालें ...सुख दुखे समाक्रित्वा लाभालाभौ जया जयः ....आपका पराभव एक दिन निश्चित है ..जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु .....जो चला गया उसकी सोच मत करिए .. वह अपनी देह से ही गया है ,चेतना कभी नहीं मरती ..
मैं सिफारिश करता हूँ आप गीता पढ़ें ...किसी और के लिए नहीं खुद अपने लिए ....

प्रवचन

54 टिप्‍पणियां:

  1. गीता में श्री कृषण भगवान कहते हैं --हे अर्जुन जो मुझे याद करता है , मैं उसे याद करता हूँ । कोई यदि एक श्लोक का भी पाठ करे तो मैं उसके पास जा खड़ा होता हूँ। ॐ नमो भगवते वासु देवाय । इसका पाठ करें ।

    आपने सत्य वचन कहे हैं ।

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  2. कई बार.. जब किसी दर्शन को पढ़ रहा होता हूँ या किसी महापुरुष का प्रवचन सुन रहा होता हूँ तो ऐसा लगता है कि ..."इसमें कौन सी नई बात है..गीता में तो पहले से लिखा है..!"
    ...गीता सभी को अवश्य पढ़नी चाहिए..संस्कृत के श्लोक न सही अर्थ तो जरूर पढ़ना चाहिए.
    ..उम्दा पोस्ट.

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  4. सांख्य गीता का सर्वप्रमुख दर्शन है और उस दृष्टिकोण से गीता का एक भाष्य और लिखा जाना है। अब कौन लिखता है? यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।

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  5. जितनी बार पढ़ता हूँ, जीवन को कुछ और सुलझा लेता हूँ । सभी पढ़ें क्योंकि उलझनें प्राकृतिक हैं ।

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  6. तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
    "वाह सुबह सुबह दिल खुश हो गया आज गीता सार पढ़ कर. "
    regards

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  7. सम्बन्धित नहीं है लेकिन एक बार यहाँ भी हो आइए:
    http://akoham.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

    हाथ जोड़ कर (मन में) प्रवचन पढ़े हैं महराज !

    बारहवीं में गीता से श्लोक चुन कर रंगदारी कर सुलेखित पोथी बनाई थी - कर्मशास्त्र। तिलक के गीता रहस्य (पूरी पढ़ डाली थी, वह भी अंग्रेजी में, सचमुच!)का प्रभाव था।
    गीता भाषा के मानक भी आप के सामने रखती है। जरा देखिए तो कैसे वैचारिक प्रवाह को भाषा सरल रवानी से सँभाले हुए है:
    ध्यायते विषयांपुंस:संगश्तेजपजायते
    संगात्संजायते काम: कामात्क्रोधभिजायते
    क्रोधात्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।

    जाने कितनी बार इसे टिप्पणियों में डाल चुका हूँ। ऐसे और भी बहुत से श्लोक हैं।
    गीता की संस्कृत बहुत सरल है लेकिन विषय गूढ़ जैसा कृष्ण ने स्वयं कहा है। ..दिल्ली विश्वविद्यालय के एक आचार्य तो गीता के मॉडल पर संस्कृत सिखाते हैं।
    इसका प्रारम्भ ही मुग्ध कर देता है - धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे.. जैसे आगत धर्म और कर्म दोनों को समेटने वाला हो ...
    और वह कृष्ण का मित्र के लिए उद्बोधन:

    कुतस्त्वाकश्मलमिदं विषमे समुपस्थितं
    ....
    क्षुद्रं हृदय दौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप ।


    मित्र नहीं सँभल पाया और कृष्ण को भगवान होना पड़ा। पिताजी गीता का प्रारम्भ वहीं से मानते हैं। उनका इस श्लोक का गायन किसी और संसार में पहुँचा देता है:

    अशोच्यानंवशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्चभाषसे
    गतासूनगतासूंश्च नानुशोचंति पंडिता:

    ... विराम देता हूँ नहीं तो आप कहेंगे कि यह भी प्रवचन देने लगा :)

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  8. हाँ, शीर्षक ठीक कीजिए। 'श्रीमद्भगवद्गीता' है 'श्रीमदभागवत गीता' नहीं।
    बाकी लेख को वर्तनी की दृष्टि से नहीं देखे हैं ;)

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  9. @दिनेश जी ,आप लिखें -सच कहता हूँ आप कर सकते हैं ...
    @गिरिजेश जी आपने तो चार चाँद ही लगा दिया इस चिंतन में सलमे सितारे भी टांक दिए ...
    ये श्लोक बहुश्रुत ,बहुप्रिय हैं ! और भी कितने हैं ...भारतीय चिंतन के अनुपम धरोहर !

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  10. हमने गीता पढ़ी है... और यह हमारी प्रिय पुस्तक भी है...

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  11. पढ़ना और समझ लेना तो आसान है परन्तु ऊसपर निभना बहुत मुश्किल ।

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  12. मैंने तो बी.ए. और एम.ए. के कोर्स में ही पढ़ी थी। उसके बाद इसके कई संस्करण हिन्दी /अंग्रेजी के खरीद डाले। इसके बावजूद आद्योपान्त पढ़ने में अभी भी असफल हूँ। सोचता हूँ श्लोक याद करना तो मेरे वश का है नहीं और मूल दर्शन पढ़ ही चुका हूँ तो फिर यह काम फुर्सत में ही करूँ... फुर्सत... जाने कब मिलेगी।

    गिरिजेश भ‌इया की स्मरण शक्ति को प्रणाम।

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  13. मैंने तकरीबन सभी धार्मिक क़िताबें पढ़ीं हैं.... आपकी यह पोस्ट अच्छी लगी....

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  14. मेरा सुझाव है कि आप या गिरिजेश जी इस पर एक स्तम्भ शुरू कर सकते हैं !
    ( लेकिन आप तो शीर्षकै ठीक से नहीं लिखे )

    व्यक्तिगत मत ये है कि ग्रंथों से पहले इंसानों को पढ़ा जाये...सम्मान दिया जाये... उनमें ईश्वर की वाणी के साथ ईश्वर स्वयं बसता है !

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  15. Haan..padhi hai Geeta..college ke abhyas kram me thi...Lekin Geeta ko rozmarra ke jeevan me angikrut karna seeka "vipashyana" vidhise..Qudarat ke qaanoon ke saath chalna..

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  16. बहुत सुरुचि पूर्ण लेख लिखा है...

    सच्ची बताएँ तो कभी इस ग्रन्थ को पूरा नहीं पढ़ा.... गीता सार ज़रूर पढ़ा है...पर इस लेख को पढ़ कर इच्छा जागृत हो गयी है कि अवसान से पहले इसे पढ़ ही लिया जाये...

    आभार

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  17. बचपन में नानी और माँ से गीता का मधुर पाठ सुनते थे.. फिर खुद सरलार्थ के साथ बच्चों को सुनाई और अब बच्चों के मुख से सुनते हैं(अंग्रेज़ी में)खुशी तब मिलती है जब 1% भी उस पर अमल होता है..

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  18. जब अचानक पिता को खोया था तो उचाट मन गीता के ज्ञान से ही संभल पाया था ...

    " कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन " मुझे पूरी गीता का सार इस श्लोक में नजर आता है ...यह श्लोक हर अच्छी बुरी स्थिति में समभाव रखने की प्रेरणा देता है...

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  19. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ब्लोग जगत के ९८ फीसदी से अधिक लोगों ने गीता को देखा भले हो पन्ने पलट कर कभी नहीं देखा होगा

    daave kaa aadhar


    गीता पढ़ कर हमेशा एक ही बात महसूस हुई "अहम् " ईश्वर मे बहुत ज्यादा हैं । फिर पढ़ा तो लगा "जिसमे अहम् हैं वही ईश्वर हैं "

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  20. बचपन से कॉलेज तक रोज सुबह गीता का एक श्लोक जरुर पढ़ते थे , फिर रामचरित मानस कि चौपाईया. मेरे लिया गीता एक ग्रन्थ नहीं एक जीवन शैली है . मेरा सबसे प्रिय श्लोक .

    ''नैनं छिन्दन्ति शास्त्राणि, नैनं दहति पावकः , न चैनं क्लेदयन्ति आपो , नैनं शोषयति मारुतः.''

    अच्छी पोस्ट , आभार

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  21. मैने भारत में रहते हुए कभी गीता नहीं पढ़ी थी बस कुछ श्लोक ही सुने थे....परन्तु मोस्को में फिलोसोफी के इम्तिहान के दौरान सभी को अपनी फिलोसोफी लिखने को कहा गया ..और तब हमें गीता याद आई ..और उसे पढ़ा ....मुझे कहते हुए गर्व है उस इम्तिहान में मुझे सर्वाधिक अंक मिले और वो रुसी टीचर १ घंटे तक मुझसे गीता पर चर्चा करती रही..
    गीता - सबसे प्रेक्टिकल ग्रन्थ है.
    बेहतरीन पोस्ट अरविन्द जी !

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  22. जिस गीता के कारण अपने कर्म से विमुख अर्जुन पुनः कर्म में प्रवृत हुआ, उसी गीता को माता-पिता अपने बच्चों को इसलिए नहीं पढने देते की बाबाजी बन जायेंगे. गीता सत्कर्म में प्रवृत करती है ना कि सर्व-कर्म से विमुख ----------
    न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुम कर्मान्यशेषतः /
    यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते //११//
    निस्संदेह किसी भी देहधारी प्राणी के लिए समस्त कर्मों का परित्याग कर पाना असंभव है. लेकिन जो कर्मफल का परित्याग करता है, वह वास्तव में त्यागी कहलाता है.

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  23. एक श्रेष्ठ विषय पे श्रेष्ठ पोस्ट के लिए आपका आभार

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  24. यहाँ लगता है अकेली मैं ही हूँ,जिसने नहीं पढ़ी...:(...हाँ उद्धृत अंश जरूर पढ़े हैं,...पर पूरी पढनी है जरूर..अंग्रेजी अनुवाद भी लेकर रखा है...जल्दी ही शुरू करती हूँ...
    अली जी की सलाह काबिल-ए-गौर है..बहुतों का भला हो जायेगा

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  25. ...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

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  26. मु्झे तो श्री अरविन्द का कथन याद आता है - कृष्ण के गीता कथन का प्रभाव-प्राकट्य तो अभी होना शेष है।

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  27. समझ अपनी अपनी, ख्याल अपना अपना...
    कुछ टिप्पणियाँ पढ़कर "सान्ख्योगो प्रथग्बाला... " याद आ गया.

    भगवान् कृष्ण ने गीता लिखी नहीं गाई थी तो आप भी पढने के साथ साथ सुनिए न! जिनकी रूचि हो उनके लिए आचार्य विनोबा भावे के १९३२ के धुले जेल के गीता प्रवचन के हिन्दी अनुवाद का ऑडियो यहाँ है:
    http://www.archive.org/details/Vinoba_Bhave_Geeta_Pravachan_Hindi

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  28. आपको इस सुन्दर प्रेरणादायी पोस्ट के लिए मैं ह्रदय से साधुवाद देती हूँ...

    मुझे तो अक्सर ही यह लगता है कि मनीषियों ने कितने तप और अन्वेश्नोपरांत जो एक से बढ़कर एक तथ्य सत्य खोजे और उन्हें संकलित किया,जिसमे कि जीवन को सुखी करने की समस्त युक्तियाँ हैं,लेकिन लोग उन दुर्लभ दर्शनों को केवल पढने तक का श्रम/कष्ट नहींकर पाते...

    गीता जिसने मन से मनन किया और जीवन में उतारा ,उसका जीवन सफल होना सिद्ध है...

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  29. द्विवेदी जी सांख्य पर भाष्य लिखेंगे हम कब से इस घोषणा की प्रतीक्षा में हैं. कम से कम आशा तो है ही.

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  30. गीता पढ़ना आसान है और उसे जीना उतना आसान नहीं, परंतु गीता जीवन का आधार है, जीवन की कुंजी है।

    गीता पढ़ने के लिये पहले श्रीकृष्ण से प्रेम करना होगा नहीं तो गीता पढ़ना बहुत ही मुश्किल होगा।

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  31. .
    .
    .
    आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,

    बहुत ही अच्छा लगा यह आलेख,

    मैं थोड़े बहुत विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि पढ़ा है मैंने गीता को...पढ़ने से बेहतर है गीता को जीना... यह प्रयत्न सभी को कर देखना चाहिये... मैं गीता को जीने की कोशिश करता था...हूँ...और रहूँगा... अब अपनी औलाद ही मूल्यांकन करेगी कि कितना कामयाब हुआ मैं... अपन को रिजल्ट की परवाह नहीं...गीता भी यही कहती है... सही या नहीं ?...:)
    आभार!

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  32. जी अभी पढ़ रहा हूँ,नियमित नहीं पढ़ पा रहा हूँ,पर जब-तब भगवान् की गोदी में बैठने की कोशिश करता रहता हूँ!अमित भाई साहब को वापस आया देख बहुत अच्छा लग रहा है!

    कुंवर जी,

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  33. @ सान्ख्योगो प्रथग्बाला...
    पूरी कथा सुनाई जाय। प्लीज।

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  34. आप सही कह रहे हैं,गीता में क्या नहीं है ,अर्थात सब कुछ है जो मानव को देवत्व प्रदान करता है.

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  35. गीता मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है. इसको व्याख्या की क्या जरूरत ...श्लोक मात्र ही स्फूर्ति और राह दिखने के लिए पर्याप्त है...

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  36. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  37. विवेकानद पाण्डेय की टिप्पणी ( http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/)

    ईश्‍वर की कृपा से बचपन से ही गीता पढने व सुनने को मिला । मेरे पूज्‍य पिता जी गीता के अच्‍छे ज्ञाता हैं , उन्‍हें पूरी गीता कंठस्‍थ है । मैं संस्‍कृत का विद्यार्थी होने के कारण भी बहुधा गीता का लाभ पाता रहा । अब तक कुल मिलाकर 20सों बार पूरी गीता पढ चुका हूं और तो और अब तो ज्‍यादातर मंत्र याद भी हो गये हैं । आपने कर्ण सिंह के बारे में बताया , तो एक बहुत ही पुरानी घटना मुझे भी याद आ गई । यही कर्ण सिंह ने हमारे एक आयोजन में गीता का गलत तरीके से व्‍याख्‍यान दिया जिसपर पूरी संस्‍कृत भारती ही नहीं अपितु मेरठ के स्‍वामी विवेकानन्‍द जी ने भी असहमति जतायी थी । अबतक कर्ण सिंह से कई मुलाकात हो चुकी है पर उस एक ही घटना ने कर्ण सिंह के प्रति मेरी आस्‍था खतम कर दी थी ।
    खैर कभी आइये हमारे भी ब्‍लाग {संस्‍कृत जीवन} जो पूरी तरह से संस्‍कृत में ही है । आपको अच्‍छा लगेगा ।

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  38. ...प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

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  39. मंत्रव्याख्याता ऋषि के प्रश्न का उत्तर दें आर्य !
    वैसे गीता में कहीं देवकीपुत्र कृष्ण ने 'वेदवादरता' का भी उल्लेख किया है।

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  40. मैने गीताको पढा तो नही लेकिन उस के श्लोक सुने है, ओर कठीन समय मै बुजुर्गो से वो मत्रं सुने जिन से हिम्मत मिलती है, पांच साल पहले गीता को लाया था सम्मान से लेकिन अभी तक नही पढी, बीबी हर रोज रामायण ओर गीता पढती है, ओर उसे सब याद है,

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  41. मिश्रा जी, आपकी आज की पोस्ट पढकर तो मन आनन्दित हो उठा..."श्रीमद्भागवदगीता" जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है...आज तक गीता पर लिखी गई समस्त टिकाओं को यदि एकत्रित कर दिया जाए, फिर भी गीता का अर्थ पूरा नहीं होगा. असंख्य टीकाएं लिखी जा चुकने पर भी गीता वैसे की वैसी है, उसके भावों का कोई अन्त नहीं, कोई सीमा नहीं है. इसके विषय में जो कुछ भी कहा जाए, उस से सिर्फ कहने वाले की बुद्धि का ही परिचय प्राप्त होगा, श्रीमद्भागवदगीता का नहीं...ओर सबसे बडी बात ये कि जिसने गीता का अध्ययन कर लिया,समझो कि उसने सम्पूर्ण उपनिषदों का ज्ञान हासिल कर लिया......
    आपकी इस पोस्ट नें प्रेरणा देने का कार्य किया है..जल्द ही इस विषय पर कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ.....
    न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृ्त!
    कार्यते ह्यवश कर्म सर्व प्रकृ्तिजैगुणै!!

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  42. पँडित दिनेशराय द्विवेदी जी हमका पठाइन हैं, जाओ हाज़िरी हुई रही है ।
    जी हाँ श्रीमान मैंनें पढ़ा है, अलग अलग तरीके से इसके अलग अलग भाष्य भी बाँचा है..
    पर इतनी विद्वता नहीं कि टिप्पणी दे सकूँ ।
    बस इतना कि यहाँ हम श्लोकों को पकड़ कर बैठे रह गये,
    कर्मयोगी विदेशों में बस गये, वह भी फलप्राप्ति की आशा में !!
    मॉडरेशन लगा होगा, वरना यह भी दर्ज़ करता कि गीतासार से बरबस निकाले गये अधर्मयोग और कुकर्मयोग ने गीतोपदेशामृत के जाने कितने मँत्रमुग्धाओं को तार दिया !

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  43. आप गीता पढ़ें ...किसी और के लिए नहीं खुद अपने लिए ..

    -यही सत्य है..खुद के लिए ही पढ़ना हुआ, पढ़ी और पढ़ना चाहिये.

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  44. गिरिजेश राव said...
    @ सान्ख्योगो प्रथग्बाला...
    पूरी कथा सुनाई जाय। प्लीज।


    सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
    एकम् अप्यास्थितस्सम्यग् उभयोर्विन्दन्ते फलम्॥
    (गीता: ५,४)

    गीताकार के अनुसार सांख्य और योग में अलगाव देखना बचपना (बालकपन) है (सांख्य+योगौ पृथक+बाला)
    वैसे भी सांख्य के (तथाकथित ईश्वरविहीन) २४ तत्वों से समुचित व्याख्या न कर पाने की कमी को योग ने ईश्वर-प्राणिधान से परिपूर्ण किया. पूरी कथा फिर कभी...

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  45. गीता प्रस्थानत्रयी की महत्त्वपूर्ण किताब है। पाणिनीय शिक्षा में अनर्थज्ञ की गणना अधम पाठकों में की गई है-

    गीति शीघ्री शिरःकंपी तथा लिखित पाठकः।
    अनर्थज्ञो अल्पकंठश्च षडेते पाठकाधमाः॥

    गीता के पाठकों को देखता हूं तो ज्यादातर इसी श्रेणी में पाता हूं। एक बार बनारस में सांख्य पर प्रवचन हो रहा था। सामान्यतः मैं प्रवचनों में नहीं जाता हूं पर, कुछ मित्रों की जिद थी, सो चला गया। प्रवचनकर्त्ता एक ओर तो सांख्य समझा रहे थे, गीता से उदाहरण दे रहे थे, और बीच में कहने लगे मनुष्य को अपना ध्यान सत्कर्मों पर ही केंद्रित रखना चाहिये। मैंने प्रश्न पूछने की अनुमति मांगी और पूछा गीता का तो कहना है-

    "बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृत दुष्कृते"

    फिर आप सत्कर्म को श्रेष्ठ कैसे मानते हैं? एक तो सत्कर्म, दुष्कर्म ये विभाजन द्वैत भाव को जन्म देता है और दूसरे किसी भी कर्म के लिये, वो चाहे सत्कर्म हो या दुष्कर्म, कर्त्ता होना पड़ेगा जो कि गीता को इष्ट नहीं है-

    अहंकार विमूढात्मा कर्त्ताहमिति मन्यते।

    प्रवचनकर्त्ता से तो उत्तर देते न बना। हां आयोजकों की तरफ़ से ये संदेश मित्र के माध्यम से जरूर भिजवाया गया कि कृपया आप बैठ जायें। आपके प्र्श्न से हमारे आयोजन की इज्जत खराब हो रही है। श्रोताओं में गलत संदेश जायेगा। मैं बैठ गया, इस बीच प्रवचनकर्त्ता ने मेरा नाम इत्यादि पूछा। अगले दिन से मैंने वहां जाने से मना कर दिया। पीछे मित्रों ने बताया कि अगले दो दिनों तक प्रवचन के बीच में आचार्य महोदय नाम लेकर मुझे पूछ रहे थे।

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  46. हिन्दू जगेगा देश जगेगा । मुल्ला सोएगा तभी देश हंसेगा ।

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  47. अच्छी जागृति लाये हैं आप... किसी जमाने में पिताजी यही सब पढ़ाते थे अब इन्ही सब से कितना दूर आ गया हूँ...

    फिर से उठाता हूँ... बाकी आपने कह ही दिया है..

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  48. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रूप से प्रस्तुत किया है जो काबिले तारीफ है! बधाई!

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  49. Havn't read so far. Can't deny the truth. I have decided to read the sacred scripture in my 60s because my grand-dad told me it brings detachment. I am already a detached soul, i may become sanyasin after reading Bhaagvad Geeta. What my poor hubby will do then ?.. (just kidding)

    On a serious note-

    I do not think Reading Bhagvad-Geeta brings peace to mind. It's a philosophy to fight the battle called 'Life' by saam, daam, dand and bheda. We have to become our own Charioteer to fight the odds in our lives.

    I truly have not read this sacred scripture but i do believe in one verse of it. it goes thus..." Karmanyevadhikaraste.......".

    Do your duty , reward is not thy concern.

    I'm simply following this particular philosophy of the sacred granth- Bhagvad Geeta.

    I am at peace.

    As far as turbulent mind is concerned....Go back to the one you have hurt or hurt by. It helps.

    Ego keeps our mind worried and disturbed. Forgiveness and Love is the answer for 'ashaant' mind.

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  50. पढ़ी तो है लेकिन बही कई बार पढना बाकी है !

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  51. खूब प्रवचन है जी! देखेंगे एक बार। यहाँ संस्कृत की जगह हिन्दी कम, अंग्रेजी पढ़ने अधिक लोग आ गये हैं। अब गीता का अंग्रेजी भाष्य ही पढ़ेंगे लोग।

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  52. A new blog started with similar perception:

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