बुधवार, 27 अगस्त 2008

इन दिनों मैं टिप्पणी अवकाश पर हूँ !

मित्रों ,
अभी कल ही मेरे मित्र ज़ाकिर ने आप सभी के बारे में एक उलाहना दिया कि हिन्दी चिट्ठा जगत के कई ऐसे ख्यात विख्यात ब्लॉगर हैं जिनकी तमाम पोस्टों पर वे टिप्पणियाँ करते हैं पर वे सब कभी भी ,शिष्टाचार वश भी उनके ब्लॉग पोस्टों पर टिप्पणी नहीं करते .मैं उनकी मनोदशा को समझ सकता हूँ .क्योंकि यह स्थिति अकेले वे ही नहीं बल्कि ब्लॉग जगत में कई अन्य भी जिसमें मैं भी सम्मिलित हूँ काफी दिनों से महसूस कर रहे हैं ।
आईये इस मामले की कुछ विवेचना की जाय -
१.पहले मेरी मान्यता थी कि चिट्ठाजगत में भी एक एलीट बोध है -एक अभिजात्य वर्ग है जो इस आत्ममुग्धता में जीता रहा है कि वह तो सर्वग्य है उसके जैसा तकनीकी ज्ञान और चिंतन की विराटता दूसरों में कहाँ ? बाकी तो सब लल्लू पंजू हैं -असभ्य और भदेस हैं . भले ही उनके आलेखों पर जय हो गुरू जय हो गुरू करते जाईये वे पलट कर एक बार भी आपको प्रोत्साहित नहीं करेंगे और आप के प्रत्येक जय हो गुरू पर वे यही समझते रहते भये हैं कि अभी तो यह तुच्छ जीव ऐसे ही रिरियाता रहे ,कहाँ मैं और कहाँ यह अदना सा जीव ?ऐसे ही दैन्य भाव में जब यह प्राणोत्सर्ग करने लग जायेगा तब आशीष के दो शब्द दे दिए जायेंगे .यह एक तरह से गुरुडम बनाने का उपक्रम था जो कुछ हद तक बना भी मगर अब यह लगता है कि ऐसे लोगों का भ्रम चिट्ठाजगत में निरंतर नयी प्रतिभाओं के कारण टूट रहा है .अब कुछेक को छोड़कर कई तो औकात में आ गए हैं .कुछ हताश से हो गए लगते है क्योकि जो दिवास्वप्न उन्होंने देखा था वह जल्दी ही धराशायी हो गया .अब वे सुस्त और पस्त से ब्लागजगत में किसी और करिश्में के साथ अवतरित हो रहे हैं .पर सावधान ,मानसिकता तो उनकी अभी भी वही है ।
२-व्यस्तता ,जी हाँ व्यस्तता-यह बहाना है उन्ही अभिजात्य श्रेणी के कुछ अति अभिजात्य मानसिकता वालों का .जिसे हमारे कुछ दूसरेब्लॉगर मित्र न जाने किस मुगालते में प्रभु के एक अतिरिक्त गुण के रूप में देखते भये हैं .अब भाई -बहन , यहाँ कौन व्यस्त नहीं है ?क्या उड़न तश्तरीवाले समीर भाई या फिर मानसिक हलचल वाले ज्ञान जी [इन दोनों विभूतियों के लिंक की जरूरत नही है न ?}व्यस्त नहीं हैं जो दूसरों को प्रोत्साहित करनें का कोई मौका नही छोड़ना चाहते .तो यह तो बस एक बहाना है .असल बात यह है कि ऐसी मानसिकता वाले अपना गुरुडम बनाए /बचाए रहने के प्रयास में प्राणप्रण से लगे हैं और धन्य है यह हिन्दी ब्लागजगत कि उनका निरंतर पूजन अर्चन करता जा रहा है ।
३.प्रत्युपकार हमारे वन्शाणुओं में है -यह तय है कि यदि आपने टिप्पणी करने वाले की निरंतर उपेक्षा की तो फिर आपका लेखन भले ही नोबेल पुरस्कार का हकदार हो वह टिप्पणीकार तो गया आपके हाथ से -मगर नए टिप्पणीकार जो थोक के भाव में आते जा रहे हैं -वे गुरुडम का झंडा थाम लेंगे -तो भाई कुछ हद तक तो इलीटपन बना ही रहेगा इसलिए हमें इस ओर से उदासीन होना होगा -यदि आपको ब्लागजगत में कुछ अच्छा लग रहा हो तो टिप्पणी तो अवश्य करें मगर देख लें कि यदि कोई आपकी अनेक टिप्पणियों के बाद सौजन्यता /शिष्टाचार वश भी आपकी सुध नही लेता तो भूल जाईये उसे -जब वह नोबेल पुरस्कार पायेगा तो बधाई दे दी जायेगी ।
४-यह भी एक प्रेक्षण है कि ब्लागजगत की ६० फीसदी टिप्पणियाँ अकेले उड़न तश्तरी बटोर ले जारही है ,३० फीसदी मानसिक हलचल में हविदान होती जा रही हैं शेष दस में ब्लागजगत की सौन्दर्य देवियाँ [जहाँ कथित अभिजात्य लोग भी बिना नागा अनवरत दिखते हैं -कहाँ गयी व्यस्तता ?] तो फिर बची १ प्रतिशत टिप्पणियाँ कहाँ कहाँ दिखें ? इस समस्या का कोई समाधान तो समीर भाई या ज्ञान जी ही सुझा सकते हैं ।
५.अन्तिम बात यह कि मेरे मित्रों काहें को टिप्पणी की अपेक्षा करते हो आप -अपने काम को एक मिशनरी उत्साह से करते जाईये -काम करते जाने के आनंद का अहसास करें यह सबसे बड़ा पुरस्कार है .आगे चल कर आप जब कभी पीछे मुड कर देखेंगे तो पायेंगे कि जिनकी ओर से टिप्पणी पाने को आप झ्न्खते -[यदि समीर जी सरेस शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं तो इसे भी झेलिये ] रहते थे उनमें से कई स्वनाम धन्य तो कहीं दिख ही नहीं रहे और कुछ तो अभी से फूट लिए हैं ।
ज़ाकिर और मैंने हिन्दी ब्लागजगत की इस अभिजात्य मानसिकता के प्रतिकार स्वरुप एक सप्ताह का सांकेतिक टिप्पणी अवकाश ले रखा है जिसका समय शुरू होता है ठीक अब से ......हम इस दौरान कहीं टिप्पणी नही करेंगें .अगर आप अपनी वह बेहतरीन पोस्ट लिखने वाले थे तो जरा पुनर्विचार कर लें ......यदि आपने पुनर्विचार नहीं किया तो झख मार कर हमें ही पुनर्विचार को बाध्य होना पडेगा अतः रहम माई बाप रहम !!

20 टिप्‍पणियां:

  1. अरे बाप रे, टिप्पणियों के लिये इतना गुस्सा। आप अवकाश में रहें या ना रहें हमें कोई फर्क इसलिये नही पड़ता क्योंकि हमें याद ही नही आ रहा है, आप दोनों हमारे ब्लोगस में कब टिपियाने आये।

    गुस्सा थूकिये, हम भी बहुत जगह टिपिया के आते हैं कोई पलट के भी नही आता फिर भी टिपियाये जाते हैं जब वक्त मिलता है या आपकी भाषा में कहें तो व्यवस्ता का बहाना नही बना पाते ;)।

    रहा सवाल सौन्दर्य की देवियों का तो थोड़ा बहुत सौन्दर्यबोध करते रहना चाहिये, ऊर्जा का संचार बराबर होता रहता हैं और भाषा भी संयत बनी रहती है।

    लो जी, पहली बार आपके ब्लोग में आये और इतनी लंबी टिप्पनी छोड़ के जा रहे हैं बगैर ये आशा किये कि आप आयेंगे या नही।

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  2. अरे तरुण भाई आप इत्ते ढेर सारे चिट्ठे संभाल रहे हो ...कस्मै देवाय हविषा विधेम .....?मैंने निट्ठला चिंतन चुन लिया है उसे अपडेट करें --पढ़ने और टिप्पणी करने का वादा !या आप बताएं किस पर आपका ज्यादा स्नेह इन दिनों है ! मैंने एक मुद्दा उठाया है जो निजी नही है !वैसे टिप्पणी के लिए आभार ,मगर मैं यह चाहता हूँकि इस मुद्दे के औचित्य पर भी चर्चा हो !

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  3. दिल की बात कह ही दी आपने जरा सुंदरियों के नाम भी बताते जाते :-)हम तो खैर टिप्पणी करेंगे ही आपको न करनी हो न करें ..हम टटपुन्जिये आपकी हौसला अफजाही करते रहेंगे

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  4. .


    इस मुद्दे पर आपसे सवा सोलह आने सहमत हूँ, अरविन्द जी । ऎसी स्थिति में आप अपने को एक विदूषक की स्थिति में पाते हैं, और फिर यह लगने लगता है, कि आप नाहक ही अपना वक़्त जाया कर रहे हैं ।
    यदि स्वांतः सुखाय ही लेखन करना हो, तो हम अपनी मृत्यु तक तो, काग़ज़ कलम पर एक महाकाव्य तो रच ही लेंगे । हिंदी सेवा इंटरनेट पर ही होती हो, ऎसा भी नहीं है । उसके लिये नियुक्त ठेकेदार तो हैं ही । नाहक की बेगार लगने पर, किसी का भी अपने परिवार तक से मोहभंग हो सकता है !
    मेरा विरोध टिप्पणी के अभाव के चलते नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक चातुर्य के चलते है ।

    आइये अपना गान लिखें.. " हम सेवक, तुम स्वामी... कब तक धीर धरे, ऒं हाय काहे तू ब्लागर क्षयः करे

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  5. टिप्पणी अवकाश की नीति वैसे ठीक है, जब आप विचार मन्थन के लिये समय निकाल रहे हों। अथवा ब्लॉग फेटीग से ग्रस्त हों।
    अन्यथा यह देखने में आया है कि असहयोग आन्दोलन के बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ते। अभिजात्य अभिजात्य रहेंगे और प्लेबियन (plebian) प्लेबियन।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. मैं तो कल फोन पर हुई बात को लगभग भूल ही गया था, पर अरविंद जी ने सुबह-सुबह ही फोन पर याद दिलाया, फिरभी टिपियाने की आदत देखिए कि तस्लीम पर उनकी पहेली के उत्तर में एक नहीं दो - दो टिप्पणियाँ छोड आए। पर अभी जब यह पोस्ट देखी तो वह व्रत याद आया। खैर..अब यहाँ पर टिप्पणी करके अरविंद जी बातों से सहमति तो दर्ज करनी ही पडेगी। हाँ, जब वादा किया तो है तो निभाना तो पडेगा ही। सो, एक सप्ताह का टिप्पणी अवकाश स्वीकृत।

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  8. kuch blogger kar bloging sae avkaash lae lae to saari samsyaa kaa nidaan ho jaaye . aap bhi unmae sae ek haen . bloging ka matlab kewal likhna hota haen , yae koi sahitik manch nahin haen ki sab wah wah karey . bloging ko pehlae samjhey phir blog karey

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  9. "यदि कोई आपकी अनेक टिप्पणियों के
    बाद सौजन्यता /शिष्टाचार वश भी आपकी
    सुध नही लेता तो भूल जाईये"


    मिश्राजी आपने दिल का बोझ हल्का कर
    दिया ! गुरुवर आपकी यह सलाह लाख
    टके की है ! आज से ही पालन शुरू !
    और इन लोगों को भूल गए ! कुछ तो इनमे
    इतने महान हैं की टिपणी तो दूर की बात है
    त्योंहार की शुभकामनाओं के संदेश का भी
    जबाब नही देते !
    वैसे इनकी फिक्र कौन पालता है ?

    वैसे टिपणी सम्राट और मेरे गुरु डा. अमर
    कुमार जी
    की एक टिपणी एक जगह मैंने
    आज ही देखी है उसको ज्यों का त्यों छाप
    रहा हूँ !

    why don't you regularly write man ?

    Your composition is perfect and it
    seems that you have power of words too. Just expand the the central theme with a little imagination. Don't be shy and don't care for comments of any sort..
    either good or bad .
    Most of the time, they are irrelevant.

    All the best !

    August 1, 2008 1:04 PM




    आज दोनों बातें एक साथ हो गई हैं ! अत:
    अपने दिल का मलाल ख़त्म ! और अभिजात्य
    वर्ग आप भी फलो और फूलो ! अगर इससे भी
    संतोष नही हो तो भले ही टिपणी मत करना
    पर असलियत पढ़ लीजिये ! :)
    नोट :- जिसको भी ठेस लगे उससे क्षमा याचना !

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  10. tipaniyo ke liye aapka gussa vajib hai.par mujhe lagta hai udan tashtari ji bad jyadatar tippani kisi aor bloggar ke hisse jaati hai .jara pichle do din khagaal kar dekhiye.

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  11. bat sahi hai par tippniyon ke bina likhan na chhor den. isse swatantra lekhan valon ko nirasha hogi.
    LEKH LEKHAK KAA PARICHAAYAK HAI TO TIPPANI TIPPNI KARANE VAALE KI PARICHAAYAK.
    TIPPANI PADH KAR AAP ANDAZA LAGA LETE HAIN KI KAUN KITANA SAMAJHADAAR HAI.

    blog par zyada KNOWLEDGE layen taaki abhijaaty paathak bhi aaye.

    hindi me n likhane ke lie kshmaa

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  12. छुट्टी से लौट के आइये और फ़िर टिपियाना शुरू करिये। इस बीच हमारा लेख भी बांच लीजियेगा:
    टिप्पणी_ करी करी न करी

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  13. nice
    कई बार व्यस्‍तता में इतना ही लि‍ख पाता हूँ, क्षमा।

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  14. वैसे मिश्राजी ज़रा आत्म मंथन करे की आप किस श्रेणी में हैं !
    आपने कितनी पलट टिपणियां की हैं ! :) मैं मजाक नही कर रहा हूँ

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  15. मिश्र जी, टिप्पणियों के बारे में कई बार चर्चा हो चुकी है। मेरे विचार से टिप्पणियों का चक्कर छोड़ देना चाहिये। यह दुख ही देगी।

    यदि आपको लगता है कि किसी चिट्ठी पर टिप्पणी करनी चाहिये तो अवश्य कीजिये। यह अपेक्षा कि उस व्यक्ति को भी आपकी चिट्ठी पर टिप्पणी करनी चाहिये - शायद यह ठीक नहीं। टिप्पणी न करने के कई कारण होते हैं और शायद सब वाजिफ।

    यह तो पता चल ही जाता है कि कितने लोग आपकी चिट्ठी पढ़ रहे हैं कितने सर्च कर आ रहे हैं यह आपको अपने लेखन के बारे में सही तरीके से बता सकता है।

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  16. सांकेतिक हड़ताल, शांति मार्च आदि का जमाना लद गया और आप अब तक उसी मैदान में टहल रहे हैं. गाँधीवादी अब नहीं जीता करते. तोड़ फोड़ मचाईये, हर जगह टिप्पणी करके विरोध दर्ज करिये, तब बात बनें और मेहनत भी नजर आये. ये क्या कि भूख हड़ताल पर बैठे हैं और बाकी सब रसगुल्ले खा रहे हैं.

    संवेदनशील होने से काम नहीं बनेगा-चक्का जाम किजिये, तोड़ फोड़ मचाईये, आग लगाईये-उसी का जमाना है.एक गाँव बंद की घोषणा पर तो तहसील तक कान नहीं देती.

    लौट आईये काम पर.

    बाकी पर अलग से प्रवचन किया जायेगा जब धुनी रमेगी. :)

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  17. मिश्रा जी, खेलभावना, ...जी हाँ, खेलभावना से काम चलाइए। गेंदबाज जब गेंद लेकर दौड़ता है तो हर बार विकेट पाने की ही इच्छा से दौड़ता है। लेकिन रन भी बनते है, चौके-छक्के भी लगते हैं, वाइड और नो बॉल भी पड़ जाती है। इन सबसे वह अपना प्रयास बन्द नहीं करता है। एक डॉट-बॉल भी उसे संतोष दे जाती है। लेकिन वह हर बार उसी इच्छा से बॉल लेकर अपने रन-अप पर वापस जाता है कि अबकी बार शायद विकेट मिल ही जाय।
    अधीर मत होइए, लगे रहिए। टिप्पणी सिर्फ इस उम्मीद में कि कोई इसे वापस करेगा, कुछ जमती नहीं है। टिपियाते जाइये जो अगले के हिस्से का है। आपके हिस्से का तो आपतक पहुंचेगा ही...

    कम से कम मेरी सोच तो यही रहती है।

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  18. उन्मुक्त जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा है -
    ^^यह तो पता चल ही जाता है कि कितने लोग आपकी चिट्ठी पढ़ रहे हैं कितने सर्च कर आ रहे हैं यह आपको अपने लेखन के बारे में सही तरीके से बता सकता है।^^
    मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं, कारण जहाँ तक लिखने की बात है, टिप्पणी का लेखन के स्तर से कोई वास्ता नहीं होता यह मेरा व्यक्गित अनुभव है (पिछले 15 सालों से लिख रहा हूं, 53 किताबें छप चुकी हैं और पुरस्कारों की गिनती बताना बेकार है)। मैं आपको ऐसे सैकडों ब्लॉग के नाम गिना सकता हँ, जो एकदम बेसिरपैर का लिखते हैं, पर टिप्पणियों की लाइन लगी रहती है। जाहिर सी बात है वे टिप्पणियाँ भी प्रशंसा में ही होती हैं।

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  19. मिश्रा जी
    अजी गुस्सा फ़ेंक दिजीये , ओर फ़िर से कमर कस ले, उन्मुक्त जी ने बिलकुल सही कहा हे, मुझे यहां आये अभी ७,८ महीने ही हुये हे , कोई टिपा जाये या ना टिपाये मे सब का धन्यवाद करता हु, राम राम सब से करता हु, किसी की बात अच्छी लगे तो दुशमन को भी धन्यवाद दे कर आता हू
    मिश्रा जी आप लिखते रहे, क्यो की आप अच्छा लिखते हे, टिपण्णीयो की परवाह मत करे
    धन्यवाद

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  20. लिजिए जनाब हम भी अपनी उपस्थति दर्ज कर रहे हैं। आप ने सही लिखा है और विश्लेशण भी सअही किया है।

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