हिन्दी चिट्ठाजगत की दशा और दिशा पर विचार मंथन की निरंतरता बनी रहनी चाहिए ।
जबकि यह देखने में आ रहा है कि कई समादृत चिट्ठाकार जिनकी बिना पर अभिव्यक्ति के इस माध्यम ने अंगडाई ली वही अब कोई न कोई बहाना बना कर यहाँ से फूट लेने के चक्कर में पड़ गए हैं .इतने जल्दी मोहभंग ?
क्या हमारा कमिटमेंट इतना कमजोर निकला ?क्या हम किसी मिशन को लेकर यहाँ नही आए थे ?
क्या क्या सपने बुने गए थे !अभिव्यक्ति का समांतर संसार !! खडूस संपादकों की तानाशाही पर अन्तिम कील !सिटिजन पत्रकारिता की नींव !!और जाने क्या जुमले उछाले गए थे !!
और अब सब ठंडे बस्ते मे सामा रहे हैं मानो .सपेरें ने बीन तो उत्साह से बजाई ,नाग को भी नमूदार किया पर दर्शकों की बेरुखी को देख अब आगे का तमाशा न दिखा कर अपना साजो समान अब समेटना चाहता है ।
कुछ माननीयों ने नेट से कमाई का सब्ज बाग़ देखा और दिखाया भी .बहुत तो इससे गुमराह हुए -इसी को साध्य मान बैठे .जबकि भैये यह कमाई का मामला केवल एक साधन भर हो सकता है .साध्य तो कतई नहीं -अगर दिहाडी ही कमानी है तो भैये जाकर नरेगा में अपना जॉब कार्ड बनवा लें .सौ दिनों के रोज़गार की गारंटी तो है ही वहाँ -मतलब इतनी छोटी अवधि में १०००० रूपये जबकि इस हिन्दी ब्लागजगत में नामीगिरामी बंधुओं की अपने अपने ब्लागों के लिए टिपियाते हुए उंगलियां घिस गयीं और अधिक से अधिक मिला तो बस यही कोई दो ढाई हजार रुपिल्ली जिसे इस तरह से प्रर्दशित किया जा रहा है मनो कारू का खजाना मिल गया हो ।इससे नए ब्लॉगर निश्चित ही गुमराह हो रहे हैं ।
मेरी माने या न माने चिट्ठाकारिता या तो केवल स्वान्तः सुखाय है या फिर एक सामाजिक जिम्मेदारी ...जो बस इससे संतुष्ट हों वे तो यहाँ चल पायेंगे ...अभी तो रोजी रोटी कहीं और से जुगाड़ कर लें ।
पैसा ही कमाना है तो कुछ भी कर लीजिये -मुम्बई में हों तो चौपाटी पर भैये लोगों की भीड़ में घुस कर किसी झूठ मूठ के भी नए नुस्खे की भेलपूरी बेंच लें --या रेलों में जुगाड़ कर कुछ दे ले कर स्टेशनों के बीच चना जोर गरम या झाल मुरी बेंचें या सबसे सरल ,हाथ देख कर भाग्यफल बांच कर अपना पापी पेट पाल लें ।
यीशु /ईश्वर /अल्लाह के लिए पापी पेट को पालने के लिए फिलहाल हिन्दी चिट्ठाकारिता की शरण मत लें -यहाँ अभी तो मायूसी ही मिलेगी .कई नामी चिट्ठाकारों से पूँछ लें ...अगर वे आपको अब भी यहाँ दिखाई दे रहे हैं तो बस अपने मिशन के कारण ......
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
आप का यह चिट्ठा जरूरी था। चिट्ठाकारों से तादात्म्य बनाए रखने के लिए। सभी कुछ स्वांतः सुखाय होता है। सामाजिक जिम्मेदारी भी स्वांतः सुखाय ही होती है। बस मामला यह है कि व्यक्ति किस सुख को चुनता है और उस की प्राथमिकता क्या है। अच्छा लगा। आप से संवाद होता रहेगा।
जवाब देंहटाएंक्या वास्तव में लोग जीविकोपार्जन का ध्येय मान रहे थे इस विधा को? मुझे लगा कि कुछ लोग गोलबन्दी कर गूगल एडसेंस को चूना भर लगा रहे थे, सो आजकल बन्द हो गया।
जवाब देंहटाएंयह तो मनमौजी लेखन भर होना चाहिये - फिलहाल। भविष्य तो भविष्य जाने।
oh ya very true,i think every body know that its not the place for bread and butter, its for mental peace satisfaction and responsibility towards soceity..." well said
जवाब देंहटाएंRegards
sahi baat kahi aapne....paise kamane ke liye blogging mein nahi aana chaahiye. pandey ji se sahmat hoon..
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है जो लोग शौकिया ब्लॉग शुरू करते हैं, दूसरों की देखा देखी, वे ही कुछ दिनों के बाद शान्त पड जाते हैं। इसमें टिक वे ही लोग पाते हैं, जो या तो सामाजिक अथवा बौद्धिक स्तर पर कुछ करना चाहते हैं, लेखन प्रतिभा के धनी होते हैं अथवा जिसके पास टाइम ही टाइम है।
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