हिन्दी कवि और कविता प्रेमी क्या इसे झेल पायेगें ? :-)
रचाती कामनाएं नित स्वयम्बर
प्रेम की चिरंतन चाह लिए होती है प्रेमियों की आतुरता
वैसे ही जैसे स्वाति बूँद की चाह लिए चातक रहता रटता
प्रेम की चिरंतन चाह लिए होती है प्रेमियों की आतुरता
वैसे ही जैसे स्वाति बूँद की चाह लिए चातक रहता रटता
सीप की भी होती है साध पले उसके गर्भ में इक मोती दुर्लभ
वैसे ही जैसे चाहे स्वाति की बूँद कोई निरापद आश्रय सुलभ
मुक्ता संभरण का संयोग है तभी प्रतीक्षा हो सीप की जब चिर
स्वाति बूँद सहजने को रहे वह हर क्षण हर पल आकंठ तत्पर
उभय प्रेमियों में हो मिलन की चाहना और प्रीति जब परस्पर
प्रेम तब परिपूर्ण होता और रचाती कामनाएं नित स्वयम्बर
सुन्दर कविता बनी है.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ! इसे आप यदि गद्य की तरह लिखते तो इससे बहुत अच्छा लिख सकते थे , वैसे हमने आपकी कवितायें भी पढी - सुनी हैं पर लगता है इसे कोई वैज्ञानिक ने हडबडी में लिखा है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंझेल लिये।
जवाब देंहटाएंआप लगातार कोशिश करते रहिए। एक न एक दिन आपको भी महान कवि घोषित किया जाएगा। :)
जवाब देंहटाएंभारी भरकम शब्द भावना प्रधान कविता में अजीब से लगते हैं
जवाब देंहटाएंउभय प्रेमियों में हो मिलन की चाहना.......थोड़ा जूलॅाजी टाइप का फील हो रहा है यहाँ 😋😋
जवाब देंहटाएंकिसी भी कविता से निसृत भाव जब ह्रदय को अपना सूक्ष्म कह देता है तो कोई कैसे उसके ऊपरी आवरण अर्थात शब्दों में अर्थ खोजते रह जाते है या अन्य अर्थ को स्थापित करते हैं , कविता की तरह ही रहस्य हैं न ?
जवाब देंहटाएंI am really really impressed with your writing skills as well as with the layout on your blog.
जवाब देंहटाएंvbspu ba 3rd year result roll number wise