धरती के जन्मे को एक न एक दिन मृत्यु का वरण करना ही है-इसलिए ही पृथ्वी को मृत्युलोक कहा गया है .मगर मृत्यु चाहता कौन है? कहते हैं जनमत मरत दुसह दुःख होई ...और यह भी कि मनुष्य की लोकेष्णायें ,चाहनायें उसे जीते रहने को प्रेरित करती रहती हैं . ग़ालिब साहब देखिये क्या कह गए हैं -.गो हाथ को जुम्बिश नहीं, आँखों में तो दम है, रहने दो अभी सागरों- मीना मेरे आगे ...गरज यह कि यह जीने की तमन्ना आदमी को ठीक से मरने भी नहीं देती ...वह अमरता का सपना देखता रहता है - वह चिर यौवन का आनंद उठाना चाहता है .यह आज की नहीं हमारी आदिम सोच है . चिर यौवन और अमरता की हमारी ललक कई पुराण कहानियों में दिखाई देती है। अब समुद्र मंथन को ही लें- यहां से भी चौदह रत्नों में से एक अमृत कलश था जिसे देवताओं ने पिया और वे अजर-अमर हो गये। च्यवन ऋषि ने ऐसा माजूम बनाया और खाया कि वे फिर से युवा बन गये। संजीवनी बूटी की कथा भी अमरता से जुड़ी है। कहते हैं कि संजीवनी विद्या असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास थी... देवताओं ने एक कुचाल रच कर अपने गुरु बृहस्पति के पुत्र कच को यह विद्या सीखने शुक्राचार्य के पास भेजा।
अब कच असुरों के गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में रहकर संजीवनी विद्या सीखने लगा। मगर जल्दी ही असुर आश्रमवासियों को यह जानकारी प्राप्त हो गई और वह सब मिलकर कच का वध करके उसके शरीर के टुकड़े वन में ही विचरते एक भेड़िए को खिला दिए। शुक्राचार्य की बेटी देवयानी कच का बहुत ध्यान रखती थी। घर से गौए चराने के लिए कच के शाम बीत जाने के बाद भी न लौटने पर देवयानी को चिंता हुई। उसने पिता से अपनी चिंता व्यक्त की। शुक्राचार्य ने ध्यानस्थ होकर यह जान लिया गया कि राक्षसों ने कच को मारकर उसके अंगों को भेड़ियों को खिला दिया है। शुक्राचार्य ने उसी संजीवनी विद्या का प्रयोग किया और कच जीवित हो उठा। मगर कुछ ही दिन में फिर असुरों ने मिलकर कच को मार डाला। यही नहीं मारने के बाद कच को जलाया गया और उसकी राख असुर गुरु शुक्राचार्य की मदिरा में ही मिला दी गई। अब बड़ी मुश्किल! कच का पुनर्जीवित होना अब दुष्कर कार्य था। देवयानी ने कहा कि वह बिना कच के जी नहीं सकती। शुक्राचार्य ने कच को पुकारा। भयभीत कच ने उनके पेट से ही अपनी दशा बताई। तब जाकर शुक्राचार्य ने कच को पूरी संजीवनी विद्या बताई जिसे पेट में ही सीखकर कच बाहर आ गया और फिर उसने उसी विद्या से शुक्राचार्य को जिला दिया।
अमरता की यह चाह आज भी मनुष्य को वैसे ही सालती रहती है। वैज्ञानिक आज भी प्रयोगशालाओं में ऐसे अनेक प्रयोगों में जुटे हैं जिनमें या तो मनुष्य की उम्र घटा देने की युक्ति है या फिर उसे अमरता के पास तक पहुंचा देने की ज़िद है। असाध्य रोगों से जूझ रहे मरीजों को क्रायोनिक कैप्सूलों में क़ैद कर लंबे समय तक उन्हें सस्पेंडेड एनिमेशन में रखने की जुगत तो जैसे बस कुछ वर्षों में ही सुलभ हो जाएगी। जब असाध्य रोगों का इलाज ढूंढ लिया जाएगा तब इन जिंदा लाशों को कैप्सूलों से आज़ाद कर उन्हें नया जीवन अदा कर दिया जाएगा। एक समुद्री जीव जेलीफिश की कोशिका का अध्ययन जारी है जो अमरता का वरदान पाए हुए है। जिस दिन उसकी कार्य पद्धति को वैज्ञानिक समझ जाएगें अमरता की कुंजी हमारे हाथ होगी। कुछ शोधार्थी गुणसूत्रों पर काम कर रहे हैं जिसमें एक हिस्सा टीलोमीयर उम्र बढ़ने के साथ ही घिसता जाता है। प्रयास यह है कि इस हिस्से को घिसने न दिया जाए और मनुष्य को चिर युवा बने रहने दिया जाए।
पुराणों की हमारी सोच आज विज्ञान की नई खोजों को दिशा दे रही है।
पुनश्च: मित्रों अब क्वचिदन्यतोपि की व्याप्ति नवभारत टाइम्स आनलाईन पर भी है!
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