शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

टिकाऊ बनाम टरकाऊ ब्लागिंग!

जब तक विद्वान ब्लॉगर यह तय करें कि ब्लॉग लेखन एक विधा है या महज अभिव्यक्ति का माध्यम आईये समय बिताने के लिए किसी  और विषय पर चर्चा कर लेते हैं. जैसे टिकाऊ बनाम टरकाऊ ब्लागिंग! पहले टिकाऊ की अवधारणा समझते चले जो इन दिनों पर्यावरण और संसाधनों के संरक्षण के मामले में बहुत चर्चा में है -अंगरेजी में इसका समानार्थी शब्द 'सस्टेनबल' है....पर्यावरण विज्ञानी कहते भये हैं कि संसाधनों  का 'सस्टेनबल' उपभोग होना चाहिए न कि अंधाधुंध दोहन .....यहीं पर कुछ गांधीवादी माडल के पुरोधा बापू के ही एक विचार को बहुधा उद्धृत करते रहते हैं जिसके अनुसार धरती लोगों की जरूरते भले ही पूरी करने में सक्षम है मगर लोगों के लालच की पूर्ति  वह नहीं कर सकती .. आप इसे विषयांतर न माने और मानें भी तो मुझे ग़र क्षमा करते चलें तो यहाँ मैं यह भी जोड़ देना चाहता हूँ कि यह विचार गांधी जी को ईशोपनिषद के पहले ही श्लोक से मिला था  -ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् । ...  मतलब इस संसार में जो कुछ भी उपभोग्य है वह सब ईश्वर द्वारा ही प्रदत्त है ,तुम्हारा कुछ भी नहीं है अतः उस पर गिद्ध दृष्टि के बजाय उसका त्याग की भावना से उपभोग करो ...कहते हैं गांधी जी को यह श्लोक बहुत भाया था .....अब निष्पत्ति यह है कि हमें अगर टिकाऊ ब्लागिंग करनी है तो त्याग की भावना और तटस्थता के साथ करनी होगी नहीं तो वह बस एक टरकाऊ ब्लागिंग बनी रहेगी! आईये बात को और खोल कर समझते हैं ... :)  

देखा यह गया है कि लोगबाग भावनाओं में बहकर ब्लागिंग कर रहे हैं ,नाते रिश्ते बना रहे हैं ..कई तरह की अपेक्षायें पाल रहे हैं..टिप्पणियों की संख्या गिन रहे हैं ..अपना कीमती समय जाया करके आलतू फालतू पोस्टों पर जा जाकर टिप्पणियाँ कर रहे हैं (अब जैसे यहाँ ही .. ), महज इस चाह में कि टिप्पणियों की खेप मिलती रहे ....यह तो निर्विकार निरपेक्ष भाव वाली ब्लागिंग,बोले तो टिकाऊ ब्लागिंग  हुई  ही नहीं ...और नतीजा होता है ऐसे ब्लॉगर जल्दी ही टंकी पर जा चढ़ बैठते  हैं ....अब तो लोग गुपचुप ,चुपचाप टंकी आरोहण कर जा रहे हैं ..बीते दिनों चुपके से कितने ही चल दिए पब्लिक को पता ही नहीं लग पाया और आज भी लोग बाग़  बेखबर है ..अब नाम न गिनाऊंगा , आप अपने ही अगल बगल सर घुमाकर देख लीजिये कौन गायब है! कृष्ण की गीता का सार भी कई लोग इसी बात को मानते हैं कि जगत और जागतिक चीजों का उपभोग तो करो मगर निस्पृह भाव से ...निष्काम भाव से ....गीता के विद्वान इसे निष्काम योग मानते हैं ....यहाँ आसक्ति भाव का पूरी तरह निषेध है -कर्म तो करो मगर बिलकुल तटस्थ भाव से ...टिकाऊ तभी होगा आपका कर्म! 

हमारे यहाँ एक बड़े जोगी और समान मात्रा में भोगी हुए हैं राजा जनक ...जिनके बारे में ज्यादा ब्लॉगर बिचारे जानते भी नहीं होंगें   .जानेगें भी कैसे, उन पर ज्यादा सामग्री आज भी उपलब्ध नहीं है ....बस यह समझ लीजिये वे नितांत भोगी देवताओं के राजा इंद्र के बिलकुल उलट थे ..जनक ने  भोग और योग को ऐसा साध लिया था कि बिना इन्वाल्व हुए वे दोनों क्षमताओं में समान रूप से निष्णात हो गए थे-एक ब्लागर को राजा  जनक जैसा होना चाहिए तभी वह ब्लागिंग में टिकाऊँ रह पायेगा नहीं तो बस उसकी ब्लागिंग टरकाऊ श्रेणी में ही रह जायेगी और एक दिन एक अनसंग हीरो की ही तरह वह टंक्यारोहण  कर जाएगा  ..कई कर भी चुके हैं... बिचारे /बिचारी ..असमय ही चलते बने... पहले तो टंकी -आरोहण पर बड़ा मान मनौवल होता था ....वादे कसमे दी जाती थीं ... पूड़ी पेड़े का निमंत्रण दिया जाता..कहीं  तब जाकर वे उतरते थे..एक बार ज्ञानदत्त जी ने नारी ख्यातिलब्धा रचना सिंह  जी से कहा था कि देवि उतर आओ अबसे हम आपकी पोस्टों पर जरुर टिप्पणियाँ करते रहेगें  ...शायद इसी भरोसे से वे फिर लौट आयीं और आज भी ब्लागजगत की शोभा  बनी हुयी हैं ...इसी तरह जब एक बार समीर लाल जी का भी इन्द्रासन डोल गया था तब हमने  अपने ब्रह्मबल के तेज से उसे थामने की कोशिश की थी  ..ऐसे ही कई बड़कवा ब्लॉगर और हैं ..ज्ञानदत्त जी भी ....और खुशदीप जी भी ....अब इसकी भी चर्चा क्या ..पुराने घावों को कुरेदना अपना ही नुक्सान करना है ....

कई ब्लॉगर लोगबाग अपनी टिप्पणी खिड़की बंद कर लिए हैं ..वर्स्ट आशंका यही है कि कहीं वे भी टंकी आरोहण पर न निकल जाएँ -टंकी की सीढियां ऐसी ही हैं -पहले अपनी खिड़की बंद करो ,फिर दूसरी खिडकियों में झांको तक नहीं और धीरे धीरे चुपके चुपके दुबके दुबके चल दो -हे हम नहीं जाने देगें अब किसी भी जाने पहचाने को ...फिल्मों में नहीं देखा क्या ..जरायम जगत  में आया हुआ  कोई फिर जाने पाता है क्या ...तो हम फिर अंतर्जाल जगत में भी नहीं जाने देगें ....बिग ब्रदर  इज वाचिंग यू ......समझाने बुझाने पर भी नहीं माने तो वैसे ही नोटा पकड़ हम आपको यहाँ खींच लायेंगे  जैसी बाघिन अपने बच्चे को गले  से पकड कर मांद से बाहर  लाती है ..आप से टिकाऊ ब्लागिंग की अपेक्षा है टरकाऊ की कदापि नहीं ...

आज यहीं तक ..कुछ समय के लिए इस टिकाऊ चिंतन को टरकाते हैं ....:) 

115 टिप्‍पणियां:

  1. आमी स्वान्तः सुखाय ब्लॉग कथा कोरबे।

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  2. इस तरह के चिन्तनों के अभाव ने ब्लॉग जगत की बोरियत बढ़ा दी है कुछ दिनों से.... ब्लॉग विधा पर बहुत चर्चाएँ हो हो कर चुकताप्राय हो गयी हैं... ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत का स्यापा भी हो लिया... कुछ उदीयमान ब्लॉगर ठीक ठाक लिखने के बावज़ूद मठों पर मत्थाटेकन कला में निष्णात नहीं हैं.... परिणामतः उनके टिकने और पलायन पर किसी को चिंता भी नहीं... ब्लॉगमिलन कांसेप्ट कुछ पुरस्कारों के लिए हुए विवाद से घबरा कर कहीं दुबक गया है... तमाम ब्लॉगर फेसबुक पर क्रान्ति का परचम फहराने और दिग्गी सिब्बल को गरियाने में लगे हैं...

    लगता है कुछ महारथियों के पुनः सक्रिय होने की आवश्यकता है... फिलहाल... टिकाऊ चिंतन को टिकाते रहें... नमस्कार

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  3. ऐसे ही एक दिन एक ब्लॉगर ने कुछ दिनों की अनुपस्थिति के बारे में पूछ लिया था कि कहीं आप छींटाकशी से व्यथित होकर ब्लॉगिंग को अलविदा तो नहीं कर गयी , मेरा जवाब था , मैं भागने वालों में से नहीं हूँ!
    मन व्यथित हो तो कुछ दिन दूर हो जाएँ लेकिन ब्लॉगिंग छोड़े क्यों ?जब आभासी दुनिया में सामना नहीं कर सकते ,निर्मम वास्तविक दुनिया में कैसे टिकेंगे !
    बिग ब्रदर इज वाचिंग यू ...मतलब यह तो वही बात हुई कि जो लोंग छोड़ गये ,उसका कारण बिग ब्रदर ही थे ??
    फिर एक सवाल ...

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  4. @ ईशोपनिषद,
    आपकी मियाँ मुहम्मद आज़म वाली पोस्ट पर मैंने भी यही इशारा किया था...

    " इस प्रकरण में आपका एटीट्यूड सही है जो ईश्वर की कृपा को आपने ईश्वर में बाँट दिया "...

    पर आपने उस दिन मुझे बेख्याल / बेजबाब टरका दिया था :)


    @ टिकाऊ पोस्ट ,
    बरास्ते राजा जनक ...आश्चर्य है कि मित्रों को विदेह राज होने का आशीष देते हुए / कामना करते हुए आप स्वयं इंद्र तुल्य आसक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं :)

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  5. ऐसी पोस्‍ट, जिसे पढ़ कर लगता है कि यही तो मैं भी कहना चाहता हूं, लेकिन दूसरे समझते क्‍यों नहीं.

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  6. लेबल हंसी मजाक हल्का फुल्का, बात टिकाऊ और टरकाऊ जैसे गंभीर विषय की! मुझे तो यह विचार भड़काऊ ब्लॉगिंग लग रही है।

    प्रवीण पाण्डेय जी की तरह एक पंक्ति कमेंट से गागर में सागर भरने की कला सबको आती तो सभी यत्र तत्र सर्वत्र विराजमान रहते।

    सभी की यह कामना होती है कि उसका लिखा कोई विद्वान ब्लॉगर पढ़े..तो विद्वान ब्लॉगर का भी फर्ज होता है कि वह भी हमारे जैसे कम जानकार की समय-समय पर हौसला अफजाई करता रहे, कमियाँ बताता रहे, प्रोत्साहित करता रहे। यदि कोई ऐसा करता है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसका उद्देश्य कमेंट पाना ही है।

    ईमानदारी तो पोस्ट और कमेंट से स्वयं सिद्ध हो
    जाती है। जिसकी जितनी क्षमता होगी उतना ही लिख पायेगा।

    मेरे लिए तो ब्लॉगिंग समय और मूड पर निर्भर करता है। मूड न हुआ तो अच्छी पोस्ट पर भी कमेंट छूट जाता है..मूड बना तो जो भी पोस्ट दिखी उसी पर कमेंट ढकेले चलता हूँ। समय निर्धारित है, उससे अधिक ब्लॉगिंग कर ही नहीं सकता, उस समय में या तो अपना लिखूं या दूसरे का लिखा पढ़ कर कमेंट करूँ। एक बात तय है कि जो भी करता हूँ वह अपनी मस्ती और मूड के हिसाब से। आप तो जानते ही हैं कि एक बनारसी कितना मूडी होता है और किसी की परवाह नहीं करता।

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  7. @वाणी,
    आपके ऐसे उलाहने मुझे नहीं डिगा सकते ...बिग ब्रदर हमीं नहीं इस ब्लॉग जगत का हर जिम्मेदार ब्लॉगर है -और यह पोस्ट ही लोगों को बुलाने के लिए उनके जमीर को झकझोरने के लिए ...
    @अली सा,
    किस दिशा /अंग से हम आपको महज इंद्र लगे हैं ..यह आरोपण कर आप इंद्र की गद्दी हथियाना चाहते हैं ऐसे ही कह दें हट जायेगें दोस्त के लिए कहिये तो गिरिजेश जी की तरह संकोच में काहें हैं ?

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  8. @देवेन्द्र भाई,
    आज आप तो बिलकुल भी बेचैन नहीं दिखे हैं -मैं आज तक आपकी कोई पोस्ट पढने से वंचित नहीं रहा हूँ -आप टिकाऊ वाले हैं भाई !

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  9. आप मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं और दूसरो का नाम बेवजह इस्तमाल करके अपनी पोस्ट लिखते हैं

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  10. @अनामिका,
    सच में मैं भी अपने बारे में ऐसा ही सोच रहा था -किसी मनोचिकित्सक का पता दीजिये न :)

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  11. @ अरविन्द जी वास्ते संकोची गिरिजेश ,

    मनु की प्रेम कथा के रचयिता को संकोची कह रहे हैं आप :)

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  12. वास्तव में इस विषय पर मैं भी कुछ दिनों से सोच रहा था,आपने उसे अभिव्यक्ति दे दी,उचित किया !असल में आज ब्लॉगिंग करना और उसके बाद टीपों को झाँकना दोनों बातें अलग नहीं हैं .यदि आप के पोस्ट डालते ही कई लोग टूट पड़ते हैं तो आपका हौसला किसी नई पोस्ट के लिए जल्द हो जाता है,अगर ऐसा नहीं होता है तो उसी पोस्ट को महीनों लटकाय रहते हैं.
    मुझे कई बार टीप आयातित करने के लिए स्वयं टीप-अभियान पर निकलना पड़ता है या कई जगह शेयर करता हूँ इतने पर भी कोई अपना नहीं समझता है तो उसे सीधा-सीधा सन्देश देता हूँ !
    मैं ऐसी दो-चार टीपों का ज़रूर इंतज़ार करता हूँ जो महज़ 'कॉपी-पेस्ट'' न हों,'सुन्दर अभिव्यक्ति' या ''सशक्त रचना' जैसी शतकीय-स्कोरिंग न हो !

    सबसे ज़्यादा खटकने वाली बात तो प्रभु यह है कि ब्लॉगिंग में बकायदा खेमे बन चुके हैं.हर खेमे में दो-चार मठाधीश और कुछ उनके चम्पू हो जाते हैं.हम जैसे 'उदीयमान' चाहे कितना भी उनके चंपुओं से बेहतर लिखें मगर मज़ाल है कि आपकी पोस्ट की चर्चा हो जाये.ऐसे साप्ताहिक या दैनिक चर्चा-मंचों में 'चयनित' लोगों का ही प्रवेश होता है !

    @देवेन्द्र पाण्डेय जी की बात से सहमत हूँ कि यदि कम पढ़ा-लिखा ब्लॉगर भी कुछ लिख रहा है तो वह भी कुछ 'मठाधीशी-टीपों' का हक़ रखता है.काश ऐसा सोचने वाले ऐसी बातों पर अमल भी करें !
    मैं माडरेशन के खिलाफ हूँ पर आज मैंने अपनी नई पोस्ट से एक टीप , जो पहली भी थी,हटाई है,जिसका मेरे लिखे से दूर-दूर तक भी कोई वास्ता न था !

    डॉ. अरविन्द मिश्र आपने अपना मठ तैयार कर लिया है और सौभाग्य से हम इस मठ के चम्पू हैं !!

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  13. @Anonymous लगता है डॉ.अरविन्द मिश्र से आपकी खास जान-पहचान है और एक ही टीप को बार-बार दुहराकर आप साबित कर रही/रहे हैं कि फ़िलहाल इलाज़ की ज़रुरत आपको ज़्यादा है !

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  14. ब्लॉग्गिंग की दुनिया के लिए यह सार्थक और टिकाऊ चिंतन है..... सच में सबको सोचना होगा.... ब्लॉग्गिंग क्यों और किसलिए... किसके लिए ...?

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  15. प्रवीण जी और देवेन्द्र जी ने जो कहा उसमें मेरी बात भी समाहित हो जाती है :-)



    आपकी पिछली पोस्ट पढ़कर कहना चाहूँगा कि ...संभव हो तो 'बोल'फिल्म देखें. अब तक इस साल आई सबसे बेहतरीन फिल्म है ये. पाकिस्तानी निर्देशक शोएब मंसूर ने कमाल की फिल्म बनायी है.

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  16. लगता है बासी को कढी को उबालने की तैयारी है?:) जय हो मठाधीषों की.

    रामराम.

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  17. @डॉ. अरविन्द मिश्र आपने अपना मठ तैयार कर लिया है और सौभाग्य से हम इस मठ के चम्पू हैं !!
    संतोष जी खुदा को नाजिर हाज़िर मानके कहते हैं और यह मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि आपको किसी मुगालते में
    न रखा जाय ...
    हाँ अब उस स्कूल के हैं जहाँ के आप्त वाक्य में ही लिखा है काट रामी टाट अर्बोरिस ..मतलब जितने वृक्ष उतनी शाखायें और प्रकारांतर से फिर उतने ही वृक्ष और ढेर सारे वृक्ष और शाखायें ......एक अनवरत सिलसिला ....तो भैया आत्म दीपो भव !
    आपकी भी बरगदी बर्रोह अब एक नए वट वृक्ष बनने को चल पडी है! थामिए!

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  18. सुन्दर चिंतन. बधाई.

    मैं देवेन्द्र जी से सहमत हूँ. जब मूड बने तो लिखा जाय. जब मूड बने को कमेन्ट किया जाय.

    इसीलिए मैं मानता हूँ कि ब्लागिंग का बनारस घराना मस्त है.

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  19. @ "आप मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं...."

    अनामिका ही क्यों अनाम भी हो सकते हैं ब्रह्मऋषि !
    मगर आप कह रहे हैं, तो मानने को दिल करता है ! अनामिकाएं आप पर इस कदर मेहरवान रहती हैं ,,,,??
    प्यार का यह रूप, बोरियत के दिनों में, चटपटा ही लगता है कि डॉ अरविन्द मिश्र मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं ... और पंगे लेते रहो :-)

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  20. @सतीश सक्सेना जी,
    अब आपके अलावा मेरे मन की बात और कौन समझे...
    यह उलाहना उपालंभ भी अपनों में ही चलता रहता है!

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  21. @शिव जी,
    आपकी कृपा बनी रहे भोलेनाथ! आभार !

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  22. @ "आप मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं...."

    अनामिका ही क्यों अनाम भी हो सकते हैं ब्रह्मऋषि !
    मगर आप कह रहे हैं, तो मानने को दिल करता है ! अनामिकाएं आप पर इस कदर मेहरवान रहती हैं ,,,,??
    प्यार का यह रूप, बोरियत के दिनों में, चटपटा ही लगता है कि डॉ अरविन्द मिश्र मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं ... और पंगे लेते रहो :-)


    अक्सर इस प्रकार के कमेन्ट संवेदनशील लोगों के लिए बहुत वेदना देते हैं, और भाई लोग अथवा बहिनें इस व्यथा को कमजोरी मानते हुए, भरपूर शक्ति लगा कर तीर छोड़ते हैं, यह समझने का प्रयत्न भी नहीं करते कि व्यक्तिगत तौर पर बिना जाने समझे वे किसी निर्दोष को आहत कर रहे हैं !
    हिंदी ब्लॉग जगत का यह स्वभाव बेहद संवेदनशील लोगों को इससे दूर करने के लिए काफी है !

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  23. मगर दुष्ट स्वभाव के लोग हर जगह मौजूद हैं, समय आने पर और अपना हिसाब बराबर करने में पुरुष और महिलायें नंगपन में कम नहीं रहते ! अगर ब्लॉग जगत में चारित्रिक कमी को जानना, समझना हो तो मशहूर ब्लोगरों के कमेन्ट को समझें वहां कईयों की असलियत पता चल जायेगी !

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  24. @भाई सक्सेना जी,
    छोडिये भी वे इसे नहीं समझेगें ...
    और वैसे भी हम कौन से संवेदनशील रह गए है सरकारी नौकरी ने गैंडे जैसी खाल और भोथरी संवेदना का पात्र बना दिया है!
    हम सब सह लेते हैं!

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  25. एक ही काम से लोग बोर हो जाते हैं ..तो कभी कभी ब्लोगिंग से दूर हो जाते हैं ... वैसे सच ही आज तक मुझे नहीं पता कि ब्लोगिंग क्या है ...काश कोई पथप्रदर्शक बन बता सके ..

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  26. टिकाऊ और टरकाऊ ब्लॉगिंग! :)
    ये नाम पहली बार सुना!!!

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  27. मगर दुष्ट स्वभाव के लोग हर जगह मौजूद हैं, समय आने पर और अपना हिसाब बराबर करने में पुरुष और महिलायें नंगपन में कम नहीं रहते !

    दोस्तों के प्रेम में इतना भी अंधे ना होजाए की खुद भी रास्ता भटक जाए
    पोस्ट को पढ़े और ध्यान दे पढ़े , नंग्यई कौन कर रहा हैं दिख जाएगा

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  28. @रवि रतलामी जी,
    धन्य भाग आप पधारे.. चलिए अब से सुन लीजिये!

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  29. -आमी स्वान्तः सुखाय ब्लॉग कथा कोरबे।-
    :)इस पोस्ट का कमाल यह भी रहा कि प्रवीण पाण्डेय जी बांगला बोल दिये:)

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  30. पोस्ट को पढ़कर दी जाने वाली टिप्पणियां सार्थक लगती हैं. निष्काम ब्लौगिंग का उदाहरण तो आपका 'साइंस ब्लॉग' है ही. और अपने-अपने eshtablished मठों में रम जाना भी तो उचित नहीं है.

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  31. @सतीश सक्सेना पहले तो मैंने अपनी अल्पमति से समझा था कि डॉ. साहब ने किसी अनामिका नामक ब्लॉगर को संबोधित किया था पर आप के संकेत से समझा कि Anonymous होने का 'लाभ' कोई महाशय भी ले सकते हैं.वैसे ब्लागरा और आगरा में थोड़ा साम्य तो बनता है इस नाते हो सकता है डॉ. साहब ने अपना तर्ज़ुमा कर दिया हो !
    बहरहाल,बिना व्यक्तिगत-खुंदक निकाले भी थोड़ी-बहुत टाँग-खिंचाई में बुराई नहीं है !
    @डॉ. अरविन्द हम 'उदीयमानों' को 'इन' तीर-कमानों से बचाए रखियेगा ,इसीलिए आपके मठ में शरणागत हैं !

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  32. ब्रह्मऋषि के आश्रम में अनामिका का छद्म नृत्य

    :)कैसे रहेगा आज 'सांध्य टाइमस' का ८० पॉइंट बोल्ड हेअडिंग...

    वैसे मठाधीश शब्द बिलकुल सही है.

    टंकी को उखाड फैंका जाए जहाँ पर ब्लोग्गर लोग चढ़ जाते है....... अन्तशंट मांगे मनवाने के लिए...:) क्या ख्याल है...

    दूसरे अब टंकी की अहमियत भी खत्म हो गयी है क्योंकि वो बुजुर्ग नहीं रहे जो हर शादी बयाह में पहले जाकर मान-मनोवल करते थे...

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  33. कुछ काम सवाल ,जबाब से परे भी होने चाहिए.प्रवीण पाण्डेय जी से सहमत.
    आमी स्वान्तः सुखाय ब्लॉग कथा कोरबे।

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  34. का भैया बस इसी पोस्ट के सहारे पूरी जिंदगानी काट के रख देगें क्या? .. ye apna haqiqut hai..

    bahut chutile dhang se aapne vishay ko rakha hai.....is-se niklti vyang
    garmi se pasine hue me halki hawa se
    bane ahsas aur shit ka kohra chatne
    ke baad gun-guni dhoop senkne jaisa..


    pranam.

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  35. अपने विचार भी पद्म जी से मिलते-जुलते हैं

    निश्चित तौर पर फेसबुक पर राजनैतिक-सामयिक पंक्तियों में हो रहे टर्र टर्र चिंतन ने टिकाऊ विचारों को टरका दिया है।

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  36. बाईसवीं-तेईसवीं सदी के वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लॉगिंग ज्यादा करने से बालों में लट पड़ जाते हैं, आँखों से झिलिर-मिलिर दिखाई देने लगता हैं, नाखुन कुतर-छन्न हो जाते हैं, चमड़ी झुर्रीदार होने के साथ साथ झूलौटी वाली अवस्था में आ जाती है :)

    संभवत: यही सब कारण हो कि लोग वर्तमान सदी से प्रिकॉशन लेने लग गये हों :)

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    अपना तो यही मानना है कि ब्लॉगिंग अपनी मर्जी से करनी चाहिये....अपने लिये....अपने लेखकीय सुकून के लिये करनी चाहिये....किसी के प्रभाव में आकर ब्लॉगिंग करना भी कोई ब्लॉगिंग हुई ? और जब लगे कि कोई मठाधीशी फठाधीशी फान रहा है तो उसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहिये। मान लेना चाहिये कि केकड़ापन्ती पसंद करने वालों की भी एक जमात है, वो अपने केकड़ापे में खुश रहें, हम अपनी ब्लॉगिंग में।

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  37. यह एक अच्छी शुरुआत है आलोचनात्मक आलेख अभी न के बराबर मिलते रहे है |इस तरह के चिंतन से ब्लोगिंग चापलूसी से मुक्त हो सकेगी थोड़ा वक्त लगेगा |आभार

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  38. हिंदी ब्लोगर अब चुपचाप ब्लॉगिंग छोड़ रहे हैं इसका सबसे बड़ा कारण 'टंकी' कहकर मजाक उड़ाया जाना है. एक तो बेचारा ब्लॉगर वैसे ही किसी बात पर व्यथित है, वह ब्लॉगिंग छोड़ने की सोच रहा है और अपनी पीड़ा ब्लॉग पर व्यक्त करता है. वहां ब्लोगरों की --अनजाने में ही असंवेदनशील-- जमात 'टंकी पर चढ़ गया रे' कहकर उसका सार्वजानिक मजाक उडाती है.

    फिर चुपचाप कलती मार लेने के आलावा चारा ही क्या है?

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  39. आपको रचना जी का नाम लेकर उनका मज़ाक बना कर अपना नाम बढ़ाने का कोई अधिकार नही है - अधिकतर महिलायें यहाँ बेनामी टिप्पणी इसलिए कर रही हैं की - आप अब उन को टारगेट करने लगेंगे |

    जो लोग यहाँ आपको सपोर्ट कर के कई बातें लिख रहे हैं " अनामिका " के विरुद्ध - क्या वे जानते हैं की आपने दिव्या जी को बिच कह कर गाली दी थी ? नेचरल है की ladies अपना नाम नही लिखना चाहती .....

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  40. अनामिकाओं को प्रत्युत्तर!

    अज्ञात टिप्पणियों के प्रति जवाबदेही तो नहीं बनती मगर इतना स्पष्ट कर दूं महिलायें /नारियां यहाँ अभयदान प्राप्त हैं ...
    और मैंने कभी किसी को बिच नहीं कहा -ऐसा प्रचार प्रसार भी अभिप्रायपूर्ण था और यहाँ भी यह उल्लेख ऐसी मनः स्थति से किया गया है ....
    हाँ किसी ने कहा होगा तो उस पर कुछजोड़ दिया होगा अपनी ओर से .....जैसे हम गाँव गिराव के आदमी बिच विच नहीं जानते -हम परेशां करने वाली कुतिया का दो रूप जानते हैं -एक खौरही कुतिया और एक कटही कुतिया और सबसे खराब जो कटही और खौरही दोनों हो ....अब यह वाक्य मैंने किसी के लिए नहीं कहा मगर पूरा अंदेशा है कल से यह बात मेरी इमेज खराब करने के लिए लोग बाद इस्तेमाल करने लगेगें ...

    मुझे तो लगता है ऐसे ज्यादातर मामलों में कुत्ते कुत्तियाँ इन मनुष्यों से बेहतर हैं और जग जानता है वे वफादार भी ज्यादा है ..
    .
    मुझे तो कुछ लोगों ने लम्बे समय तक निशाने पर रखा - इमेज हनन करते रहे -मगर क्या फरक पड़ा -हम कोइ टरकाऊ ब्लागिंग वाले तो हैं नहीं ...हे भगवान् इस आधी दुनिया के चंद नुमायिन्दों को सदबुद्धि देना!
    स्व. डॉ.अमर कुमार की याद में माडरेशन नहीं है तो कम से कम आप लोग ही इसका सम्मान करें कथित देवियों!

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  41. न टिकाऊ न टरकाऊ , हमें तो ताऊ टाईप की ब्लोगिंग ही भली लगी ।
    मस्त रहो यार ।
    सेटिंग्स में अनाम टिप्पणियों को रोकने का विकल्प होता है ।

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  42. डॉ.दराल साहब ,
    यह व्यवस्था एनेबल करनी पड़ेगी ..लोग स्व. डॉ.अमर कुमार का हवाला देने पर भी अपनी पर उतारू हैं!
    कैसी प्रतिबद्धता है यह ?

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  43. डॉ. साहब आपसे किसी को इश्क हो या न हो हमें तो आपसे रश्क होने लगा है.अब देखो खाली टिकाऊ और टरकाऊ पर ही आपने 'प्रकट' से ज़्यादा 'छद्म' टीपों की बौछार पा ली है !यह आपकी लोक-प्रियता है या 'अलोकप्रियता' इस पर बी अब अगली पोस्ट लिख डालें !
    ये कितनी मुश्किल है कि वे परदे में हैं,
    मज़ा तो यह कि इसमें भी पर्दादारी नहीं !

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  44. @Anonymous वैसे बिना लाग-लपेट के अगर कहें तो यह कि आपको किसी और को बीच में लाने की क्या ज़रुरत है,जो लोग कुछ नहीं जानते उन्हें भी आप अपनी बात दूसरे के मंच से पहुँचा रहे/रही हैं ? ऐसा करके आप कौन सा सार्थक-लेखन कर रहे/रही हैं ?

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  45. @..और का न संतोष जी ,दुनिया भर का झगडा फरियाने को बस यही मुकाम रह गया है ..चेताने के लिए भैवा आभार !

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  46. संक्षेप में ये बताइये कि आपके ब्लॉग पर कमेन्ट किया जाय कि बिना कमेन्ट किये केवल पढ़ा जाय ? :)

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  47. शायद अनाम होने के कारण, के जे की बात पर गौर कम किया गया है, मगर मुझे लगता है कि ब्लॉग जगत इस पर मनन करे तो अधिक भला होगा, शायद भले लोग यहाँ से पलायन न करें ....

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  48. इस वक्त यहां बरसात हो रही है। एक तरफ पोस्ट पर आये कमेंट पढ़ रहा हूँ तो दूसरी तरफ लगान फिलिम का गीत याद आ रहा है। कल्पना कीजिए कि गीत..कमेंट..सब मिक्स हो जांय तो क्या हों....मैं तो ऐसे गाने लगा हूँ.....

    चमक दमक फिर आये कमेंटवा
    मन झकझोर दियो रे कमेंटवा
    धमक-धमक गूँजे सबके डंके
    चमक-चमक देखो बिजुरिया चमके
    मन धड़काये बदरवा
    मन भड़काये कमेंटवा
    मन मन धड़काये कमेंटवा

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  49. काले मेघा काले मेघा पानी तो बरसाओ
    जहरीले बोल नहीं शब्दों के मीठे बान चलाओ

    मेघा छाये, बरखा लाये
    पोस्ट जब आये, कमेंट लाये
    फिर-फिर आये, दिल से आये
    कहे ये मन मचल-मचल
    न यूँ चल सम्भल-सम्भल
    गये दिन बदल तू खुल के निकल
    बरसने वाला है अमृत जल
    मंथन से ही निकला है हल

    दुविधा के दिन बीत गये भैया मल्हार सुनाओ
    घनन घनन घिर घिर आये बदरा....

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  50. अपने झगडों में कुत्तों का नाम बेवजह ना घसीटा जाय.
    और ब्लॉगिंग विधा हो या कुछ और हम तो प्रवीण जी की बात से सहमत हैं और ये भी कि हम अपनी पोस्ट पर टिप्पणी करवाने के लिए टिप्पणी नहीं करते क्योंकि जो लोग हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी करते हैं, हम उनके ब्लॉग पर नहीं जाते और हम जहाँ टीपते हैं वो हमारे यहाँ नहीं आते.
    एक बात और, आपकी इस पोस्ट में जिन लोगों का नाम आया है, हो सकता है कि आपकी बात से वे आहत हुए हों. इसलिए आगे से ध्यान दीजियेगा कि कहीं आपकी किसी बात से किसी का दिल तो नहीं दुखा है.
    बकिया टिप्पणी तो हमें पद्म जी और सतीश पंचम जी की भी बहुत अच्छी लगी :)

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  51. हमें तो भाई सबसे अच्छी टिपण्णी आराधना जी की लगी.
    उफ़... कमेन्ट कर बैठा!

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  52. इस बहस को एक दूसरी दिशा देता हूं ...

    अब तो ब्लॉगर संबोधन भी सम्मान की तरह प्रयोग हो रहा है। एक नेशनक न्यूज़ चैनेल पर एक सज्जन के नाम के नीचे ‘ब्लॉगर’ का तमगा लगा होता है। इन दिनों बड़े-बड़े लोगों के साथ चर्चा में पाए जाते हैं।

    तो टिकाऊ, टरकाऊ के साथ नामकमाऊ ब्लॉगर की खेप भी आ रही है।

    ** इस आलेख में किसी का नाम न लिया जाता तो यह लेख (मेरे अनुसार) “ टिकाऊ चिंतन” की श्रेणी में आ जाता।

    *** कमाल की व्यंग्यात्मक भाषा और पूरे प्रवाह में है इस आलेख में। इसकी विषय-वस्तु से सहमति न हो तो भी व्यंग्य और शैली ने मोहित किया और टिप्पणी करने को प्रेरित किया (बिना किसी लालच के)।

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  53. यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
    वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
    कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
    यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
    उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा
    जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
    इस को भक्ति को दे दो

    यह दीप अकेला स्नेह भरा
    है गर्व भरा मदमाता पर
    इस को भी पंक्ति दे दो

    -अज्ञेय

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  54. चाहे टिकाऊ हो या टरकाऊ, समय के साथ सब गुम हो जाता है. कितने लोगों को आज कालीदास का नाम मालूम होगा? मेरे विचार में लिखना तो अपने मन की खुशी के लिए होता है.

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  55. मेरे विचार में तो किसी पोस्ट का महत्व तभी है जब वह अधिक से अधिक पाठकों को(केवल ब्लोगर पाठकों को ही नहीं बल्कि नेट में आने वाले अन्य हिन्दीभाषी पाठको को) आकर्षित करे। यदि टिप्पणियों की संख्या के बदले पाठकों की संख्या को महत्व देना आरम्भ हो जाए तो सिर्फ "टिकाऊ ब्लॉगिंग" ही होगी, "टरकाऊ ब्लॉगिंग" स्वयमेव ही समाप्त हो जाएगा।

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  56. मुक्ति जी की कुछ बातों से असहमत हूँ.माना कि कुछ लोग केवल टीप पाने और अपना स्कोर बढाने के लिए आते-जाते हैं और 'सुन्दर भाव' जैसी टीपें देते हैं,साथ में अपना लिंक भी ,पर जो लोग आप जैसे 'स्थापित' को पढ़ते हैं और उस पर गंभीर-क़िस्म की टीप भी करते हैं तब भी आप उसके ब्लॉग पर न जाएँ क्योंकि आपकी नज़र में वह 'नौसिखिया' या 'टीप-चाहक' है? आप वहाँ जाकर उसकी झूठी प्रशंसा न करें बल्कि कमियां बताकर मार्गदर्शन करें तो आपका लेखकीय-दायित्व भी पूर्ण होगा.यह और बात है कि कुछ लोगों के अहम् को चोट लग सकती है.
    केवल निरा-साहित्य पढ़ने के लिए भी ब्लॉग में लोग नहीं आते,उसके लिए प्रचुर मात्रा में छपा और उच्च-स्तरीय साहित्य भरा पड़ा है!डॉ. अमर कुमार जैसे उच्च कोटि के ब्लॉगर हम जैसे 'नौसिखुओं' और 'उदीयमानों' को प्रेरणा देने में संकोच नहीं बरतते थे !

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  57. इतने बड़े बड़े नामों के बीच अपना नाम देखना विचित्र अनुभूति दे रहा है...

    पकाऊ और पटाऊ ब्लॉगिंग के लिए भी कुछ संभावनाएं हों तो शीघ्र उस पर भी प्रकाश डालिए...

    जय हिंद...

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  58. @संतोष जी,
    मेरा ये कहने का तात्पर्य बिलकुल नहीं था कि जो लोग टिप्पणी करते हैं, वो अपनी पोस्ट पढवाने के लिए करते हैं और अगर ऐसा करते भी हैं, तो इसमें गलत कुछ नहीं है क्योंकि एग्रीगेटर की कमी के कारण एक-दूसरे के ब्लॉग पर टिप्पणी करके ही नेटवर्क बनाया जा सकता है.
    डॉ. अमर कुमार, प्रवीण पाण्डेय जी, समीर लाल जी, अनूप शुक्ल जी, डॉ. अरविन्द मिश्र जी, निशांत मिश्र आदि बहुत से ऐसे स्थापित ब्लॉगर हैं, जो सदैव निरपेक्ष भाव से नए-पुराने सभी ब्लोगर्स पर टिप्पणी करते रहे हैं.
    मैं खुद 'स्थापित' ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर टिप्पणी करने भले ना जाऊँ, पर नए लोगों के यहाँ जाती हूँ, बल्कि में ये भी नहीं देखती, बस पोस्ट अच्छी हो तो खुद बखुद पढ़ने और टिप्पणी करने का मन होता है.
    मैंने सिर्फ़ अपनी बात कही थी और ये कहा था कि 'सिर्फ़' अपने ब्लॉग पर टिप्पणी पाने के लिए टिप्पणी करना उचित नहीं है... बहुत से लोग इसी कारण बिना पढ़े ही टिप्पणी करते हैं, जो कि पोस्ट और टिप्पणी विधा दोनों के लिए नहीं ठीक है. मैं अपने बारे में एक बात ईमानदारी से कह सकती हूँ कि मैंने आज तक कोई पोस्ट आधी-अधूरी पढ़कर 'केवल' टिप्पणी पाने के उद्देश्य से आधी-अधूरी टिप्पणी नहीं की है. मेरा कहने का बस इतना उद्देश्य था.
    और केवल टिप्पणी पाने के उद्देश्य से ब्लॉगिंग करने को ठीक नहीं मानती क्योंकि इसके कारण लोग हद से ज्यादा लिखने लगते हैं और उसकी गुणवत्ता घटती है दूसरी ओर जब टिप्पणी ना मिले तो लोग हताश होकर ब्लॉगजगत पर ही आरोप लगाने लगते हैं कि यहाँ मठाधीशी चलती है, गुटबाजी चलती है वगैरह-वगैरह.
    एक बात और मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं ब्लॉगिंग में टिप्पणियों के महत्त्व को स्वीकार करती हूँ क्योंकि इसके कारण ये एक interactive माध्यम बन जाता है.
    दूसरी बात और, मैं खुद को एक स्थापित ब्लॉगर नहीं मानती क्योंकि हिन्दी ब्लॉगजगत में मुझे आये हुए सिर्फ़ दो साल हुए हैं और आधे से अधिक लोग तो मेरा नाम भी नहीं जानते.

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  59. @पाबला जी,
    इस लिंक के लिए शुक्रिया. कुत्ते सच में दिमाग पढ़ लेते हैं. मैं जब उदास होती थी, तो मेरी सोना बेड पर चढकर मेरा मुँह चाटने लगती थी और कूँ कूँ करती थी.

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  60. एक ब्लागर को राजा जनक की तरह होना चाहिए और उसकी रचना सीता होगी। कोई तो राम अएगा टिप्पणी करने :)

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  61. टिप्पणी कर के मै तो चला गया था... किसी मित्र ने सूचित किया तो दुबारा आया हूँ... कुछ भी है गरल या अमिय प्रकट होने के लिए मंथन बेहद ज़रूरी है ... और कम से कम मुझे उम्मीद बंधी हुई है

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  62. कभी चर्चा करते हुये लिखा गया था:
    ब्लागिंग एक बवाल है, बड़ा झमेला राग,
    पल में पानी सा बहे, छिन में बरसत आग!

    भाई हते जो काल्हि तक,वे आज भये कुछ और,
    रिश्ते यहां फ़िजूल हैं, मचा है कौआ रौर!

    हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
    हड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!

    हमें लगा सो कह दिया, अब आपौ कुछ कहिये भाय,
    चर्चा करने को बैठ गये, आगे क्या लिक्खा जाय!
    आपकी ये वाली पोस्ट बांचकर उसका और ब्लागिग से संबंधित एक और चिरकुट चिंतन का ख्याल आ गया।

    आपकी पोस्ट ब्लागिंग के बालकाल घराने वाली पोस्ट है। शुरुआत में जब नया ब्लागर आता है और उसको लगता है कि उसे उसकी प्रतिभा के अनुसार तव्वजो नहीं मिल रही है तो ब्लागिंग के बहुत आत्मविश्वास से बहुत कुछ लिखता है। उसई घराने की आपकी पोस्ट है। आप ब्लागिंग में अब बच्चे नहीं रहे काम भर के बड़े हो गये हैं! पोस्टों में कुछ तो बड़े बन जाइये।

    ब्लागिंग करना न करना हर किसी का व्यक्तिगत मसला है। कोई नहीं करेगा तो क्या आप उसका टेटुआ दबा देंगे- चल बेटा कर ब्लागिंग!


    आपने लिखा- अंदेशा है कल से यह बात मेरी इमेज खराब करने के लिए लोग बाद इस्तेमाल करने लगेगें

    मेरी समझ में आपकी इमेज बनाने( खराब नहीं) में सबसे ज्यादा योगदान आपका ही रहा है। जैसा लिखेंगे-पढ़ेंगे-टिपियायेंगे वैसी ही इमेज तो लोग बनायेंगे! :)

    आपने अपनी पोस्ट में लिखा- एक बार ज्ञानदत्त जी ने नारी ख्यातिलब्धा रचना सिंह जी से कहा था कि देवि उतर आओ अबसे हम आपकी पोस्टों पर जरुर टिप्पणियाँ करते रहेगें मेरी समझ में ऐसा कमेंट ज्ञानजी ने रचनाजी के यहां नहीं किया जिसका मतलब ऐसा निकलता हो जैसा आपके इस वाक्य से निकलता है। आप इस बात को इस तरह कहे बिना भी ब्लागिंग की चिंता में दुबले हो सकते थे। लेकिन क्या करें आप भी आदत से मजबूर है। इस पर कोई कुछ कहेगा तो आप कहेंगे इमेज खराब कर रहे हैं।

    एक खौरही कुतिया और एक कटही कुतिया और सबसे खराब जो कटही और खौरही किसके लिये आप कह रहे हैं यह आप भले न जानते हों लेकिन ब्लागजगत में जो आपको पढ़ता रहा है वह जानता है कि आपने किसके लिये यह कहा! जिसके लिये कहा कभी आप उसकी मानसिक क्षमताओं के प्रशंसक हुआ करते थे। आपसे बहुत छोटी उमर की उस महिला के लिये यह सब कहकर आप पता नहीं कौन ऊंचाई हासिल कर रहे हैं। यह निहायत खराब बात है। घटिया घराने की। निम्नकोटि की।

    मिसिरजी, सोचिये क्या करते हैं आप! सुधर जाइये! बड़े बनिये। उदार बनिये।

    ब्लागिंग के बारे में सबसे बड़े भ्रमों में से एक यह है कि यहां कोई बड़ा ब्लागर , छोटा ब्लागर है। कोई मठाधीशी यहां चल नहीं सकती। बस कुछ दिन के लिये कोई भ्रम भले पाल ले कि ऐसा होता है।

    टिप्पणियों के मोह से बहुत पहले हम उबर चुके। समय मिलता है लोगों को पढ़ते हैं। जमकर टिपियाते भी हैं बिना यह सोचे कि अगला भी हमारे यहां आयेगा।

    पहले मैंने सोचा कि छोड़ो क्या करना मिसिरजी जो लिखें! लेकिन फ़िर समय से डर लगा सोचा ससुरा कहीं हमें तटस्थ न बता दे। अपराधी न ठहरा दे। इसलिये लिख ही डाला! जो होगा देखा जायेगा।

    आप आमतौर पर अपने खिलाफ़ लिखे कमेंट पर खफ़ा हो जाते हैं! उस चक्कर में आपकी वर्तनी बहुत अशुद्ध हो जाती है। इसलिये कोई बात खराब लगे तो आराम से टिपियाइयेगा। वर्तनी की गलती बचा के! :)

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  63. यहाँ तो युद्ध छिड़ गया है। सब चलता रहा है भाई। कुछ लोग सचमुच थक गए हैं। हम तो नए हैं और बेकार हैं इसलिए ब्लागिंग में सक्रिय हैं वरना यह काम कुछ खास आवश्यक नहीं।

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  64. yahi post kal bahut sundar laga tha.....lekin aaj??????????

    apna sanskar baron ke vich nahi bolne ka raha hai.....

    poori post ke ek-aadh wakya nazarandaz kar diye jate to koi afat nahi aati.......

    tazzub hai barke bhai abhi bhi 'anami' ke tip par 'parshurami'
    tabiyat pe aa jate hain.....

    aapke bal-prashansahk bhi kahenge
    'ab to bare ho jayiye'

    "is tip ke agrim ksham"

    pranam.

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  65. @ आलेख बनाम टिप्पणियां ,

    जो लिखा ही नहीं उसपे भी कहा गया :)

    कई बार लगता है जैसे मित्रगण हमेशा आपकी पिटाई की ताक में रहते हैं :)

    बहती गंगा में हाथ धोने वाला मुहावरा यूंही तो नहीं बना होगा :)

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  66. मैं टिप्पणी करने आया था. फिर याद आया कि इस पोस्ट पर टिप्पणी कर चुका हूँ. सुन्दर पोस्ट की बधाई दे चुका हूँ. फिर आपकी टिप्पणी पढ़ी जिसमें आपने लिखा है;

    "अज्ञात टिप्पणियों के प्रति जवाबदेही तो नहीं बनती मगर इतना स्पष्ट कर दूं "महिलायें /नारियां यहाँ अभयदान प्राप्त हैं" ..."

    यह पढ़कर प्रसन्नता हुई. यही है बड़प्पन की निशानी. बाकी टिप्पणियों से टरकाते रहिये या फिर टकराते रहिये.

    प्रणाम!

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  67. @अनूप शुक्ल ,
    किसकी फ़रियाद पर तारनहार बन बैठे हो प्रभु ...
    मुझे तो बालक घराने का ब्लॉगर
    बता दिया और प्रकारांतर से खुद स्व-घोषी बुढऊ खानदान वाले ब्लॉगर
    बन गए..
    बहुत दिन से इसी घात में थे कि ज़रा सा मौका मिल जाय तो पीठ पर छुरा भोंक दिया जाय ...
    और अपने लिहाज से आज वह पा गए ..आपका यह बहुघोषित वाक्य बिलकुल सही है जो जैसा होता है वैसा ही आचरण करता है ..
    पंचायत में चौधरी बनने का बड़ा शौक रहता है आपको ...

    कुछ लोग ऐसी ही अहमन्यता में पूरा जीवन ही काट जाते हैं ...आपकी भी उम्र बहुत लम्बी है ...मुझे बालक समझते हैं तो मेरी भी उम्र आपको ही मिल गयी होगी:) वह तो आपको भूला नहीं होगा जब मैंने आपको अपनी औकात में रहने को कहा था ..अब ब्लॉगर भी इतनी अल्प स्मृति के शिकार हो जायेगें तो कैसे चलेगा बंधु....ब्लागिंग में न सही समाज में अभी छोटे बड़े का लिहाज है ..
    और उटका पुराण तो जिसे करना था वह आया नहीं चौधराई करने आप जरुर आ गए और जैसा कि अली भाई ने कहा उन बातों को भी निहित भावनाओं के चलते उठा लाये जो इस पोस्ट की विषय वस्तु ही नहीं थी ....
    जब आप खुद नहीं सुधरेगें तो यह कैसे अपेक्षा करते हैं कि और लोग सुधर जायेगें ..
    पंचायत की चौधराहट का समय अब नहीं रहा ....हाशिये पर आप आ ही चुके हैं और यही हाल रहा तो और किनारे ठेल दिए जायेगें ..
    मनुष्य को मन से मान से और ज्ञान से सहज और सहृदय होना चाहिए -यह गाँठ बाँध लीजिये ..काम आएगा !
    और जिनकी वकालत करने आप आये हैं उनसे कहें वे अपने केस की खुद पैरवी कर लें -आपसे तो और भी बंटाधार हो जाएगा ..
    कितने लोग आये टिप्पणियाँ के ज्ञान का प्रकाश फैलाया ..मगर आप डूबे तो कटही कुतिया और क्या क्या गलीज ले आये ..कैसी मानसिकता है यह!
    चलिए कुछ लोगों को आपने उपकृत कर दिया होगा आपके यहाँ वे टिप्पणियाँ देते रहेगें ....
    और ज्यादा कुछ कहूँगा तो मेरी आडियेंस मेरे मित्र खफा हो जायेगें !
    कोई वर्तनी की अशुद्धि हो तो ठीक कर लीजियेगा --आप तो असली भाषा विज्ञानी हैं ! हम गंवार भदेस ....

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  68. @मेरी समझ में आपकी इमेज बनाने( खराब नहीं) में सबसे ज्यादा योगदान आपका ही रहा है। जैसा लिखेंगे-पढ़ेंगे-टिपियायेंगे वैसी ही इमेज तो लोग बनायेंगे! :)
    @श्रीमन अनूप जी ,

    इस पर भी आपके कुछ भ्रम का निवारण कर दूं ..

    आपने और सुश्री रचना सिंह ने और एक दो और मोहतरमा मिलकर संगठित तौर पर खुद बढियां और महान बने रहने की मानसिकता से काफी लम्बे समय तक मेरी इमेज को टार्गेट करते रहे हैं -यह अभियान तो आपका ही रहा है मान्यवर ...

    मगर समय सबसे बड़ा निर्णायक है .....दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है ....

    मैं इसका खुद प्रमाण हूँ ......विनाशाय च दुष्कृताम ..संभवामि युगे युगे ...संभल जाईये ...

    शिशुपाल वध की कथा तो देश का बच्चा बच्चा जानता है और आप भी कहाँ अनभिज्ञ होंगें ?

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  69. अरविंदजीजी,

    ये हुई झन्नाटेदार टिप्पणी। होश ठिकाने आ गये होंगे अनूप शुक्ल के। :)

    जिस बालपन की बात मैंने कही थी उसका मतलब प्रवृत्ति से है न कि उमर से। आपकी ये वाली पोस्ट बेहद बचकानी है। आपका गुस्सा आपको यह भी समझने नहीं देता। :)

    वैसे आप सोचियेगा कभी कि आप क्यों इत्ती जल्दी गुस्सा जाते हैं। क्यों अपने खिलाफ़ कोई भी बात सुनना पसंद नहीं करते? क्या हमेशा आपकी बात सही ही होती है। किसी गलत लगती बात को गलत कहना गलत है क्या?

    मैं आपसे इसी तरह की प्रतिक्रिया की अपेक्षा कर रहा था। आपने हमारा भरोसा बनाये रखा! :)

    गुस्से से जब उबरियेगा तो हमारी टिप्पणी फ़िर से पढियेगा। शायद कुछ बातें इतनी न खराब लगें आपको।

    यह बात मैं फ़िर से कह रहा हूं कि जिनसे हमारे/आपके बहुत अच्छे संबंध रहे हों उनसे संबंध खराब होने के बाद जब उनके बारे में प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई बेहूदी बातें कहीं जायें तो यह उन लोगों के लिये भी यह इशारा होता है कि जब कभी संबंध खराब होंगे तब हम उनसे कैसा व्यवहार हो सकता है।

    चलिये फ़िलहाल मस्त रहिये! कुछ दिन हर पोस्ट पर टिपियाते हुये बताइयेगा -अनूप शुक्ल ने पीठ में छुरा भोंक दिया। :)

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  70. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  71. @भाई अनूप जी एवं भाई अरविन्द जी दो की लड़ाई में तीसरे का प्रवेश हमारे बुजुर्गों ने निषेध कर रखा है,पर जब यह लड़ाई बीच सड़क पर आ जाये तो हम जैसे बालकों को ज़रूर चिंता होती है.दर-असल यह सारा झगडा डॉ. अरविन्द मिश्र के कुत्ते,कुतिया को शामिल करने का नतीजा है.भाई लड़ो तो आदमी की तरह गोल बनाकर,लेखक की तरह खेमा बनाकर मगर कुक्कुरों की तरह लड़ोगे तो खाली दूर-दूर से भौंकते रहोगे,काटेगा कोई नहीं एक-दूसरे को !जहाँ तक ब्लॉगिंग में बुढ़ियाने की बात है तो अंतर-जाल में इसी बात का फायदा है कि जैसा मन चाहे,वैसा लिख दे ,हाँ दोस्तों की टाँग-खिंचाई करना कोई आप दोनों से सीखे.
    अनूपजी अभी चुके नहीं हैं,जब वे फ़ुरसत से लिखते हैं तो बड़े-बड़ों को फ़ुरसत में बिठा देते हैं !रही बात अरविन्द जी की तो वे डॉक्टर भी हैं ,कहीं गलती से किसी मरीज़ की कमज़ोर नस दब गयी या जान-बूझकर उन्होंने दबा दी,उसके लिए उन्हें संदेह का लाभ भी मिल सकता है !

    @मुक्ति जी का आभारी हूँ जिन्होंने बड़े नरम-हृदय से हमें समझा दिया.असली लेखक की निशानी 'सहिष्णुता' और 'नम्रता' होती है ! डॉ.अरविन्द जी ,आप भी थोड़ा ठन्डे हो जाएँ और मानवों के बीच में श्वानों को न लायें,हम अनूपजी से भी आग्रह करेंगे की वे ब्लॉगर और आलोचक तो बनें मगर काले-चोगे में न आयें !
    सभी महानुभावों से क्षमा-प्रार्थना सहित !

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  72. स्पष्टीकरण : अरविन्दजी ने कुत्ते-कुतियों को तभी आमंत्रित किया जब अज्ञात ब्लॉगर/ब्लॉगरा ने 'बिच' शब्द को बीच में ले आए/आईं

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  73. कोई आये कोई जाए
    हम हैं टिकाऊ

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  74. बहुद दिन पहिला कs बात अहै..ब्लॉगिंग कs ककहरा सीख के जब लोग जवान होई गयेन तs आपस में भिड़ भिड़ाये गयेन..हम हई, हमई हई, अरे हमहीं हई गामा पहलवान। ओहमा..एक रहेन टिकाऊ,एक रहेन टरकाऊ और एक रहेन भड़काऊ! जब टिकाऊ, टरकाऊ झगड़ा करि के थकि जांय तs भड़काऊ आई के भड़काई दें। अब भैया का बताई..जितना ब्लॉगर रहेन उहै एक पोस्ट मा टकटकी लगाई के दिनभर बैठा रहेन..कि देखी इब का होई गा..इब के का कहीस..इब के जितेन..इब के हारेन...। जे हमेशा चुप्पी चुप्पा करावें ओहू चुपाई मार के मजा लें। बकिया बूझे न पावें कि अब का करी..बड़ लोगन कs बड़की बतिया में कूद के काहे घूंसा खाई...?
    तब..? तब का हुआ..?
    का बताई..झगड़ा चलते रहा अउर हमें नींद आई गई...!
    धत्त तेरे की...!

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  75. हमने तो पहले ही घोषणा कर दी थी कि बासी कढी में उबाल की तैयारी है. अच्छा है काफ़ी दिन से ठंडी कढी में उबाल आगया.:)

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  76. ये सब ब्लोगिंग के नये हिस्से-किस्से नहीं हैं, ऐसे ही हिन्दी ब्लोगिंग जारी है, जारी रहेगी! लोग अपने लेखन की ओर ध्यान दें, पर-मुख-देखी बहुत होइ चुकी। ब्लोग/ब्लागर विश्षलेण भी हो सकता है पर बड़े सधे हाथों से होना चाहिये, ताकि सकारात्मकताएँ फूले-फलें, और नकारात्मकताओं को आने के अवसर न हों!

    अब हम अपने स्वार्थ पर आते हैं, ई है-है-खैं-खैं को फदिल्ला का मान कर!

    @ देवेन्द्र पांडेय जी,
    आप गजबै सुंदर अवधी लिखते हैं। बोले तो गज्ज्ज्ज्ज्ज्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब! हमारा बस चले तो आपसे जबरिया अवधी लिखवाऊँ, इस पोस्ट का शुक्रगुजार इतने भर के लिये हूँ कि मुझे आपका अवधी कमेंट पढ़ने को मिला और मैं चकाचक हो गया! अलख निरंजन!

    जवाब देंहटाएं
  77. जे बात , कै अध्यान निपट गया अब तक पोस्ट के बाद की टिप्पणियों से , लेकिन हम सिर्फ़ पोस्ट की बात करेंगे , पोस्ट में भी विषय की ।


    असल में हम ब्लॉगिंग से किसी का माया मोह खत्म नहीं हुआ है , उनका भी नय जो पोस्ट और टिप्पणियों के बीच से हुडहुडाते हुए ट्विट्टरा और हमारी तरह फ़ेसबुक में भुकभुक कर रहे हैं । देखिए न हमारा अस्सीवां टीप है गिनती के हिसाब से , सब सब कुछ देखते पढते रहते हैं , बस तनिक टल्ली मारते रहते हैं , अब कारण मत पूछिएगा , ओईसे टिप्पणी को देख कर अंदाज़ा हो सकता है आराम से ।

    ब्लॉगिंग बढ रही है , टरकाऊ भी , टिकाऊ भी , लपटाऊ भी और भडकाऊ भी , टिप्पाऊ भी ..हर तरह की ब्लॉगिंग बढ रही है । बस घुस घुस के छांटते जाइए , इत्ता ही मर्म है इस अंतर्जाल का ...ई पोस्टवा ..सबसे लोकप्रिय वाला सूची में आ गया होगा ...उहो सार ..टिप्पणिए देख के ई डिसाईड करता है । आप बिंदास , बेलौस ,बेखौफ़ , और बेबाक रहिए..हमेशा की तरह

    जवाब देंहटाएं
  78. जहाँ तक स्वान्तः सुखाय वाली बात आती है तब फिर सार्थक हो निरर्थक, क्या फर्क पड़ेगा.

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  79. एक-दूसरे के बारे में जानना, परस्पर एक-दूसरे के साथ संपर्क बनाए रखना मानवीय स्वभाव है । जहां वह अपने बारे में दूसरों को बताना चाहता है वहीं एक-दूसरे की सभी बातों को जानने को इच्छुक रहता है । जानने-बताने के इसी स्वभाव के चलते ब्लोगिंग का विकास हुआ । आज यह समाज का एक सशक्त माध्यम बन गया है । आज के समय में विश्व का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है । इस विशाल समाज को एक-सूत्र में पिरोये रखने के लिए जरूरी है कि ब्लोगिंग को संवाद के एक वृहद् मंच के रूप में विकसित किया जाए ।

    आज त्वरित संवाद के इस माध्यम ने हमें एक ऐसा वृहद् प्रभामंडल दे दिया है कि हम इसके माध्यम से एक सुखद , सुन्दर और खुशहाल सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्तरूप दे सकते हैं । न कि कौन किससे आगे निकल जाए, कौन किसको पछाड़े आदि गलत प्रवृतियों को अपनाकर वातावरण को प्रदूषित किया जाए । प्रतोयोगिता अवश्य हो पर स्वस्थ प्रतियोगिता हो इस बात का ध्यान रखा जाए । किसी के भुलावे में, बहकावे में आकर असंसदीय व्यवहार न किया जाए । यह तो खांडे की वह तीव्र धार है जिसपर सच्चाई और निष्ठा का पालन करने वाले ही चल सकते हैं । लोगों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों से अवगत कराना, अपनी-अपनी सृजनात्मकता को धार देना,समाज की बुराईयों, कुरीतियों से लड़ने का साहस देना, स्वयं से जुड़े हुए लोगों को जागरूक रखना , उन्हें सचेत और सचेष्ट बनाए रखना ही ब्लोगिंग का प्रथम कर्त्तव्य होना चाहिए ।

    इस पोस्ट के बारे में पर अनूप जी ने यह कहा कि आपकी पोस्ट ब्लागिंग के बालकाल घराने वाली पोस्ट है। शुरुआत में जब नया ब्लागर आता है और उसको लगता है कि उसे उसकी प्रतिभा के अनुसार तव्वजो नहीं मिल रही है तो ब्लागिंग के बहुत आत्मविश्वास से बहुत कुछ लिखता है। उसई घराने की आपकी पोस्ट है। आप ब्लागिंग में अब बच्चे नहीं रहे काम भर के बड़े हो गये हैं! पोस्टों में कुछ तो बड़े बन जाइये। मैं इन सब बातों से इत्तेफाक नहीं रखता अरविन्द जी आपनी एक सकारात्मक सन्देश देने का प्रयास किया है अपने इस पोस्ट के माध्यम से और ऐसी बातें बच्चे नहीं करते बड़े ही करते हैं .

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  80. अरविन्द जी , हमने तो पहले ही कहा था कि हमें तो ताऊ टाईप की ब्लोगिंग पसंद है । और देखिये ताऊ ने भी वही कहा कि बासी कढ़ी में उबाल आने वाला है ।
    भाई कहाँ भटक गए इन संवादों में ।
    व्यक्तिगत आक्षेप से बचना चाहिए ।
    आखिर सब प्रवीण पाण्डे की तरह स्वांत : सुखाय ही ब्लोगिंग कर रहे हैं ।
    और यही सही भी है ।
    और हाँ , हिंदी थोड़ी कम गूढ़ लिखेंगे तो अपुन को भी समझ आ जाएगी । :)

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  81. @आपकी एक टिप्पणी - इस भाषा की तो मैं कहीं भी अपेक्षा नहीं करता हूं, किसी के भी ब्लाग पर.

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  82. महोदय अरविन्द मिश्रा,
    सबसे पहले तो यह क्राइटेरिया आप सेट नही कर सकते कि कौनसी ब्लोगिंग टिकाऊ है और कौन सी टरकाऊ|
    दूसरी बात, जिसे खुद तमीज न हो वह क्या टिकाऊ और टरकाऊ ब्लोगिंग की चर्चा करेगा?
    एक स्त्री से बात करने की तमीज पहले पालिए| अपनी बेटी के समान स्त्री को कटही कुतिया कहने वाले लोगों को जान लेना चाहिए कि स्त्री का अपमान करने से मर्दानगी नही, केवल नपुंसकता ही दिखाई देती है|

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  83. मिस्टर इंजीनियर महोदय ,
    पहले खुद तमीज से पेश आना सीखिए तब किसी को तमीज बताईये .
    पहले प्रकरण की जानकारी ,संदर्भ को ठीक से जानिए तब किसी के लिए ऐसे संबोधन पर उतरिये .
    पहली बार ब्लॉग पर आये हैं ..घर आये मेहमान(कम से कम पहली बार ) का स्वागत करने की परम्परा है जाईये कुछ और नहीं कह रहा हूँ ..और आप कंसर्ड पार्टी किस तरह हैं यह भी नहीं पता ...
    आपने नपुंसक की केवल एक कोटि बतायी है मैं अगली किसी पोस्ट में पुरुषों की कई कोटियाँ बताऊंगा ..जिसमें आप अपनी भी पहचान खोज सकते हैं .....आपकी अगर अगली टिप्पणी करने की प्रबल इच्छा हो आये तो इस पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में करियेगा ......

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  84. मॉडरेशन न हो तो बात कहाँ से चलकर कहाँ पहुँच सकती है, यह पोस्ट इसका आदर्श उदाहरण है।

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  85. @ अरविन्द जी ,
    आपकी पोस्ट में श्वान शब्द कहीं भी नहीं आया पर टिप्पणियों में इसकी जमकर चर्चा हुई तो मुझे लगा कि जैसे कोई मां(ब्लागर) अपने बच्चे(प्रविष्टि)को असुरक्षित(बिना माडरेशन)छोड़ दे तो श्वानयोनिज उस नवजात का क्या हाल कर सकते हैं :)

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  86. इसी पोस्ट से उत्पन्न बवाल में मेरा भी नाम लेके एक सज्जन कुछ बोले हैं। मेरा भी कुछ बोलना अनुचित नहीं होगा।

    इन सज्जन को (ऊपर यहाँ टीप में पधारे भी हैं) पूरे आदर के साथ बताना चाहूँगा कि -
    १- जब व्यक्ति एक पक्ष ही पक्ष दिखाया जाय, तो उसका पहला काम होना चाहिये कि दूसरे पक्ष को भी सुने/समझे। इसी को ध्यान में रख किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायालय में अपराधी को भी अपराध भोगने के पहले एक वकील दिये जाने का वैधानिक नियम है।
    २- जब आप पूरे प्रकरण को सही से जान नहीं रहे तो इतना उछल काहे रहे हैं, आपकी जानकारी का स्तर इतना कमजोर है कि कौन भाई नहीं बना और माफी तक मँगवा लिया, यह भी नहीं जानते आप। जानकारी के अभाव में और पूर्वग्रह पूर्ण होकर आप कभी भी न्याय के निकट नहीं जा सकते।
    ३- ब्लागरी में सारी चीजों को मैं रख भी नहीं सकता, मुझे कुकुर-झौझौं की रुचि नहीं है, यदि आप बहुत क्लीयर ही हैं तो ब्लागरी नहीं कचेहरी की ओर रुख कीजिये। वहाँ की बहस ज्यादा वस्तुनिष्ठ होगी, इस ब्लोग की फिजूल-बाजी की तुलना में। कचेहरी में दोषी/निर्दोषी साबित करने की प्रविधि ज्यादा उपयुक्त और वैज्ञानिक है।
    ४- सबसे सस्ते में ‘सत्य’ जानना हो तो मुझ तक आ जाइये, आप ही पूर्वग्रह-रहित होकर दस्तावेज देख लीजिये। यह अकिंचन यथासंभव आपकी खिदमत करेगा।

    =======

    @ अरविन्द जी,
    ऊपर स्मार्ट इंडियन जी ने और अली जी ने बड़ी मार्के की बात कही है। अरविन्द जी अगर आप विवाद-पसंद व्यक्ति हैं, तो उक्त दोनों जनों की बात आप हृदयंगम नहीं कर सकेंगे। पर अनुरोध यह आपसे अवश्य है कि अगर आप इधर ध्यान देंगे तो आपके दुश्मनों के मंसूबे नाकामयाब अवश्य होंगे। पर बात वही है कि अगर आप दुशमन-पसंद न हों तभी।

    @अनूप जी,
    आपका दोहरा मानदंड निंदनीय है। भाषा प्रयोग को लेकर आप किसी ‘पुरुष’ को तो बहुत अच्छे से समझाते हैं, पर ऐसी ही अशिष्टता कोई ‘स्त्री’ करती है तो आप चुपचाप रहते हैं। एक जाति विशेष के लिये आपकी सियासी चुप्पी को सही नहीं कह सकता हूँ! आपने ‘पिनकाने’ का राजनीतिक लाभ लिया है। यह आपकी नकारात्मक ब्लागरी का प्रमाण है। वर्षों से आप अरविन्द मिश्र जी को समझा रहे हैं, आपको तो कब का ही समझ लेना चाहिये कि इस व्यक्ति को समझाने का कोई लाभ नहीं, फिर क्यों ऐसा परोपकार किये बिना नहीं मानते आप? अगर आप दोनों की मिली-भगत में यह खेल होता हो तब कुछ नहीं कहना!

    इस प्रविष्टि का इतना लाभ अवश्य है कि ठंडे दिमाग से व्यक्तियों समझने का मौका मिला।

    बाकी हिन्दी ब्लागरी पर अपनी बात तो मैने कब का ही कह दिया था, तब रवींद्र प्रभात जी नहीं मान रहे थे, देख रहे हैं यह सब न रवींद्र जी??

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  87. @अब इस हाहाकारी चर्चा के समाहार समापन का वक्त आ गया है ..
    साम्र्ट इन्डियन ने बिलकुल सही कहा कि बिना माडरेशन के बात कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है यह पोस्ट इसका उदाहरण है ...अली भाई ने इसी बात को संस्कृतनिष्ठ उदाहरण से भी बहुत चुटीले अंदाज में कहा है -इन दिनों वे संस्कृत का विशेषाध्ययन कर रहे हैं... :)यह पूरी पोस्ट हल्का फुल्का /हंसी मजाक के लेबल के अधीन आयी ..कुछ लोगों के नाम जो उद्धृत हुए वे प्रसंगवश ही थे ...कहीं कोई कुतिया प्रसंग नहीं है ....इसे सायास लाया गया इक अनाम ब्लॉगर द्वारा पूरे सुयोजित तरीके से ..और उसी ब्लॉगर ने एक अपने प्रतिद्वंद्वी ब्लॉगर टारगेट बनाकर इस पोस्ट में सायास 'बिच' शब्द डाला ...और मैंने केवल यह किया कि उस 'बिच' शब्द को संदर्भों से जोड़ दिया -यह एक झूठा प्रलाप है कि मैंने किसी को कुतिया कहा ....यह बराबर एक ब्लॉगर द्वारा निहित कुत्सित भावनाओं और के तहत प्रचारित करके सतही तौर पर सहानुभूति बटोरने का उपक्रम रहा है ..और भोले भाले इसी झांसे में आते रहेगें .....अनूप शुक्ल जी भी एक ऐसी बैंड पार्टी के साथ मेरे इमेज को तारतार करते रहे हैं और मौका पाते ही फिर कूद पड़े और इसलिए उन्हें एक ब्लॉगर ने उकसाया भी -वे ब्लागजगत के कई दीगर ब्लागरों सहित नारी -सहिष्णु ब्लॉगर के रूप में खुद को प्रोजेक्ट करते रहे हैं -यह एक मानसिकता है और पब्लिक सब जानती है .....उन्होंने मुझे बच्चा ब्लॉगर कहा ,प्रकारांतर से खुद को बड़ा बनाए रखने की आपनी नाकाम कोशिशों के तहत -मुखौटे तो कब के उघड चुके हैं ....अगर मैं बच्चा ब्लागरी कर रहा हूँ तो चिरकुट ब्लागरी किसे कही जायेगी? साहित्य मनुष्य से ऊपर कभी नहीं उठ पायेगी -पहले लोग अपने गिरेबान में झांके -अच्छा ब्लॉगर बनने से ज्यादा जरुरी है अच्छा मनुष्य बनना -
    कुछेक शिष्ट नागरी बोध से अनुप्राणित ब्लॉगर मेरी कथित टिप्पणी से क्षुब्ध लगे ..भैया ब्लागिंग को इतना छुई मुई भी मत बना डालिए ..यह उस जीर्ण शीर्ण क्लैव्यता और दिखावटी सौजन्य ,नागरिकता से आगे का फेनामेनन है ...यहाँ गुडी गुडी खेलकर इसकी बेलौस बयानी का बंटाधार मत करिए जैसे पारम्परिक विधाओं का हश्र हुआ -यह बीते दिनों का गया गुजरा साहित्य नहीं है ....इस विधा को थोडा डूब के समझिये -यहाँ निखालिस पुराने जमाने का साहित्य नहीं चलेगा -वह तो प्रिंट मीडिया में सुशोभित हो ही रहा है .....मैंने देखा है कुछ लोग टिप्पणी के नाम पर टसुये ढरकाते हैं या फिर आनंदम आनंदम शैली अपनाते हैं -छोडिये भी इन तौर तरीकों को तनिक जवां बनिए .....कब तक शैशव काल में रहेगें ?:) या फिर बुढऊ ब्लॉगर बने रहेगें ....यहाँ अब भी माडरेशन नहीं है ..जिसे जो कहना है स्वागत है !

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  88. @अमरेन्द्र जी ,
    मैंने तो उस ब्लॉगर को घलुआ में डाल रखा है और मैं उनके बारे में कुछ भी कहना शब्द भाषा का क्षरण मानता हूँ -एक ठेठ देहाती शब्द है ऐसे लोगों के लिए छछन्नी जिनका काम ही छछन्न फैलना है -ब्लागिंग में अगर किसी ने अकेले कूड़ा गलीज फैलाया या फैलने दिया है तो वे यही हैं ...मगर अब तो यह सब इतिहास हो गया है ...मगर जो इतिहास नहीं जानते वे बार बार फिर उसी को दावत देते हैं -यही हो रहा है ..मैं अब कब्र से लिहाफें नहीं हटाने वाला -हमेशा आगे की देखता हूँ ...

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  89. @एक और बात कहनी है ..नारी के सम्मान के लिए रेटरिक नहीं गया जाता ,यह दिखा दिखा कर की जाने वाली सौजन्यता भी नहीं है ....और किस नारी का सम्मान अभिप्रेत नहीं है हमारा वांगमय यह बखूबी बताता है -जहाँ सीता ,कौशल्या ,मंदोदरी ,दुत्गा हैं वहीं कैकेयी ,सूर्पनखा और सुरसा आदि भी हैं -ये कोई पौराणिक नाम ही नहीं हैं प्रवृत्तियाँ है और जबतक मानवता है तब तक के लिए हैं -
    क्या आपके मन में सीता और कैकेयी के प्रति एक सरीखा सम्मान उपजता है ...ब्लागजगत में भी मैं नारी सम्मान को इसी दृष्टि से देखने का अभ्यस्त हूँ ! :)

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  90. भाई अमरेन्द्र जी, आप नाहक परेशान हो रहे हैं.आपदा-प्रबंधन का नाम सुने हैं कि नहीं.जिस प्रकार राजनीति में कुर्सी सरकती है या भूकंप आने पर ज़मीन खिसकती है अब ई नया चलन ब्लागरी में भी आय रहा है .श्रीमान इंजीनियर साहब की नियुक्ति इसी हेतु हुई है पर वे मारे घबड़ाहट के अपना संतुलन खोय रहे हैं.अब ऐसे आदमी से तो हमें भरपूर सहानुभूति है इसलिए हम उनको तो कुछ नहीं कह रहे हैं.उन्होंने हमें भी अपनी 'जन्मभूमि' में खरी-खोटी सुनाई है ,पर जो क्रोध के वशीभूत हो उसके मुँह से सभ्य या शालीन शब्दों की अपेक्षा व्यर्थ ही है.
    @अरविन्द जी.आप शिव की नगरी में हैं,गरल पीते रहें,सरल बने रहेंगे !हर टीप के लिए दरवाजा खोले हुए हैं यह इसी बात का प्रमाण है कि आप सच्चे 'लौह-पुरुष' हैं !

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  91. @संतोष त्रिवेदी
    आप विषम स्थितियों में भी चिकोटी काट लेते हैं :) अब कहें लौह पुरुष का दर्जा देकर एक महान व्यक्तित्व की तौहीन कर रहे हैं और प्रकारांतर से एक प्रति इमेज भी तैयार कर रहे हैं ...धन्य हो प्रभु !

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  92. संतोष जी को मैं उदीयमान ब्लागर कहता हूँ, इसलिए हुजूर के प्रति कुछ निवेदित करने का नहीं बल्कि हुजूर को सुनते रहने का सुख लेना मेरा कर्तव्य है। :-)

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  93. अब ई पोस्ट बहुत ज़्यादा गरुवा गई है,तनिक उसे भी विश्राम दिया जाये ! सौवीं-टीप मैं ही मार लेता हूँ.

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  94. संतोष जी, यह लीजिये सौवीं टीप मैंने मारी :-)
    .
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    .
    .
    अब लग रहा है यह सब अरविन्द जी ने टीप पाने के स्टंट के तहत किया था, और अनानिमस और अनूप जी से अरविंद जी की सेटिंग थी। हम सब बुद्धू बने। :-)

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  95. हा हा...
    लगी आग, निकला धुंआ...
    उल्टा चोर कोतवाल को डांटे|
    महोदय अरविन्द मिश्रा जी, आप आँख बंद कर कह रहे हैं कि सूरज तो अभी निकला ही नहीं|
    सच को कब तक ठुकराएंगे? तमीज तो मुझे भी बहुत आती है, पर क्या करें, ज़हर को ज़हर मारता है| रुदालियाँ पेलने से कुछ नही होने वाला| जो गंदगी फैलाई है, या तो उसे साफ़ करो या भुगतो उसे|

    संतोष त्रिवेदी जी,
    मेरी नियुक्ति की चिंता बहुत है आपको, तो इतना छुपकर क्यों बोल रहे हैं? साफ़ साफ़ कहिये, क्या कहना है?
    चलिए कम से कम जन्म भूमि का अर्थ तो पता है आपको|
    मुझे शालीनता का पाठ पढ़ाने से पहले मुझे यह समझाएं कि मेरी पिछली टिपण्णी में जिस अंतिम पंक्ति को लेकर आप मेरे लिए फांसी का तख़्त सज़ा रहे हैं, बताएं उसमे मैंने क्या गलत लिखा?

    "किसी स्त्री का अपमान करना मर्दानगी नही नपुंसकता है|"
    क्या कुछ संशोधन करेंगे इसमें?

    अमरेन्द्र त्रिपाठी के लिए तो यही उचित है कि वह चुप ही रहे तो ही अच्छा है, क्योंकि गधा जब पूंछ उठाता है तो लीद ही करता है|

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  96. @बामुलाहिजा होशियार! अब दिव्य मठ की चेलहाई अपना असली चेहरा दिखने आ पहुँची है ..जैसे गुरु वैसे चेला ..अमरेन्द्र जी के प्रति की गयी अशोभनीय टिप्पणी को मैं यहाँ रहने दे रहा हूँ ताकि सनद रहे कि मठ के चेलों का असली लेवल क्या है -अब कोई भी लम्बरदार यहाँ इसका विरोध करने नहीं दिखेगा -यह है दोहरी मानसिकता और ब्लागजगत का पाखंड!

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  98. अब जब विषय से हट कर इतनी टिप्पणियाँ हो ही रहीं हैं तो एक अदद अपनी भी :)


    श्याम बेनेगल साहब कृत फिल्म "मंडी" में नसीरउद्दीन शाह और ओमपुरी की सशक्त भूमिकायें और बेजोड़ अभिनय विस्मृत कर पाना कठिन है :)

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  99. अली जी,
    क्या खूब याद दिलायी आपने इस फिल्म की, ‘मंडी’ अद्भुत फिल्म है। कथ्य और किरदार , दोनों लिहाज से।

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  100. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  101. @अली भाई,
    क्या कहने ,दोनों फिल्में अपुन की भी देखी हुयी हैं ....इसके दोनों कथित पात्रों ब्लागजगत में भी सहज ही ढूँढा जा सकता है !

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  102. भाई लोगों माडरेशन लगा दूं क्या ? या और मनोरंजन चाहते हैं ? जैसी पंचों की राय हो !

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  103. @अरविन्द जी आपने पंचों की राय पूछी है पर मैं पंच नहीं हूँ,फिर भी कुछ कहूँगा :

    सबसे पहली बात इस पोस्ट में हुआ विमर्श महज़ मनोरंजन नहीं था,सिवाय दो-एक लोगों के लिए !आपने एक सार्थक विषय पर चिंतन शुरू किया था पर कुछ लोग उसे चिरकुटिया-चिंतन में तब्दील करने पर आमादा हैं.एक सज्जन की नियुक्ति तो महज़ इसीलिए हुई कि वह इसमें आकर खलल डालें.चूंकि आपके यहाँ माडरेशन नहीं है,इसका लाभ गालियाँ देने में वह निकाल रहे हैं जबकि उनकी अपनी 'जन्मभूमि' में बकायदा माडरेशन लगाकर रखा गया है.वह भद्र-पुरुष बिना किसी लाग-लपेट के वहाँ भी ऐसी ही भाषा का प्रयोग कर रहे हैं ,हो सकता है इसके लिए उन्हें 'सुपारी' दी गई हो!
    भाई अमरेन्द्र कितने वरिष्ठ और गभीर-ब्लॉगर हैं यह उनके सिवा सबको पता है. पर,मुझे उन सज्जन की कसमसाहट से यह ज़रूर याद आता है कि जब पूँछ दबाकर भागने को उद्यत एक लंगड़ा-कुक्कुर दूर से 'किक्कि-भिक' करता रहता है !इसलिए उसका भी मान रखिये,उसकी अपनी एक हद है !

    इस पोस्ट को अब माडरेशन की सख्त ज़रुरत है क्योंकि यह बिना तर्क और सन्दर्भ के महज़ गालियों की उलटी करने वाला प्लेट्फ़ॉर्म नहीं है !मेरी किसी टीप से सुधीजनों की भावना आहत हुई हो तो बिना लाग-लपेट के क्षमा-प्रार्थी हूँ !मिसिरजी से भी अनुरोध है कि वह अपनी सदाशयता का परिचय देते हुए अभद्र-टीपों का जवाब न दें !
    वैसे भी १०८ का माला पूरा हो चुका है,इस विमर्शी-जाप से बहुत कुछ निकलनेवाला है !

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  104. आदरणीय अरविन्द जी,

    नहीं लगाइए जी। वैसे हू हू हू हू हू। शूर्पणखा के भ्राता रावण और खर-दूषण, पता नहीं क्यों याद आ गए।

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  105. शबाना आज़मी वाली 'मंडी' फिल्म का डुंगरूस !?

    इसे तो मैं और अरविंद जी यहाँ भी देख चुके (टिप्पणियों में)

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  106. कुछ ऐसी ही बातें मुझे भी परेशान करती है पर अभी मेरे पास कम समय होता है ब्लोगिंग के लिए. इसलिए रहने देती हूँ..

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  107. आज के कुछ पोस्ट से लिंक को थामता पुनः यहां चला आया।
    ११३ टीप, ९ तारीख से सोलह तारीख ... तक विचारमंथन ...(टिकाऊ ही रहा यह चिंतन।

    न जाने क्यों इसका लेबल आपने लगाया था ---
    Labels: हंसी /मजाक, हल्का फुल्का

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