मंगलवार, 4 मई 2010

कस्बे में कांफ्रेंस!

बनारस से लखनऊ  राष्टीय राज मार्ग संख्या ५६ पर बनारस से १५० किमी दूर बसा है सुल्तानपुर शहर जो बड़े शहरों की तुलना में एक कस्बाई नगर ही लगता है ..मगर अभी परसों ही मुझे अपने एक स्वजन के हार्निया के लैपरोस्कोपिक सर्जरी के लिए वहां  जाना पड़ा तो एक विस्मयकारी अनुभव हुआ जो आपसे बाटना चाहता हूँ .चिकित्सको के पांच सितारा कांफ्रेंस और सेमिनारों से मैं परिचित हूँ और दूसरे राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भी शिरकत  कर चुका हूँ .जिनकी बिलकुल त्रुटिहीन प्रबंध और लाजिस्टिक्स से प्रभावित भी हुआ हूँ -मैं देखकर दंग रह गया कि सुल्तानपुर जैसे कस्बे में भी एक पांच सितारा प्रबंध की कांफ्रेंस चल रही है -खाने पीने का मीनू आदि की व्यवस्था बिलकुल टंच -ऐ ग्रेड की ....

 कांफ्रेंस -एक दृश्य 


मरीजो की सर्जरी के लिए दो आपरेशन थियेटर और आपरेशन करने वाले विख्यात सर्जन और आपरेशन की पल पल की जानकारी के लिए कांफ्रेंस हाल में ही दो बड़े हाई रिजोल्यूशन के मानीटर और वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये आडियेंस चिकित्सक  /सर्जन के बीच  समूह विवेचन -ऐसा लगा मैं किसी बड़े अन्तराष्ट्रीय स्तर के कांफ्रेंस में आ पहुंचा हूँ -यह है प्रौद्यगिकी का कमाल .जिन रोगियों के आपरेशन में महानगरों में लाख डेढ़ लाख  खर्च होना था यहाँ ४० हजार की सीमा में निपट जा रहा था ...कांफ्रेंस के दौरान ही एक ही दिन ३५ मरीजो की सफल सर्जरी की गयी ....एक हैंड्स आन कांफ्रेंस थी यह जिसमें प्रशिक्षु प्रतिभागी सीधे योग्य सर्जनो से लैपेरेस्कोपी के गुर और बारीकियां सीख रहे थे-एक पंथ दो काज!

बिना औजारों की कहाँ  सर्जरी ? एक स्टाल 
मेरे स्वजन का भी सफल आपरेशन हुआ और मैंने आद्योपांत पूरी सर्जरी  देखी -यह एक इन्सायिजिव हार्निया का केस था जिसमें कुछ वर्षों पहले के सीजेरियन आपरेशन के टाँके ठीक से न होने के चलते कालांतर में हार्निया की समस्या हो गयी थी -पेट के नीचे लैप्रास्कोपी के जरिये १५ गुणे १५ सेंटीमीटर की पालीप्रोपलीन जाली लगाई गयी -यह आपरेशन हार्नियोप्लास्टी कहा जाता है .सर्जरी की ये सुविधाएं अब गाँव कस्बों  तक पहुँच रही हैं -लगता है सबके लिए स्वास्थ्य का हमारा सपना जल्दी ही पूरा होगा .
 एक चिकित्सक टोली -मेरे मित्र डॉ .ऐ के सिंह सबसे बाएं और डॉ आर ये वर्मा बाएं से तीसरे 

मेरे सहपाठी रहे डॉ ऐ के सिंह एम एस और रूम मेट रहे डॉ आर ऐ वर्मा एम डी  (दोनों जार्जियन ) इस कांफ्रेंस  यूं पी सेल्सिकान २०१० के आयोजको में से थे. दवा  और औजार कम्पनियों का भी बड़ा जमावड़ा था जो निश्चित ही प्रायोजकों में रही होगीं .ऐसे आयोजनों का निश्चित ही एक व्यावसायिक पक्ष भी है मगर आम जनता के लिए तो इनसे राहत  ही है
.दो विशाल  मानीटर जहां पल प्रतिपल सर्जरी देखी जा रही थी ......

आपरेशन के दौरान सर्जन और प्रतिभागों चिकित्सकों के आपसी संवाद की एक बानगी  -

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्रसनता हुई ऐसे आयोजन की खबर पढ़ कर...यह एक बहुत ही स्वागत योग्य कदम है. मरीजों को दूर नहीं जाना पड़ा और सारी परेशानियों और पैसे की भी बचत हो गयी.
    ऐसे शिविर हर छोटे शहरों,कस्बों में लगाने चाहिए

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  2. Desh nishchit hi aisi dishaon me pragati sheel ho raha hai...safar lamba lagta hai,to lokhsankhy ke karan...aksar ham chand pahluon ko leke nirashawadi ban jate hain...aapke aalekh se ek naya wishwas jaag utha!

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  3. Glad to see that Sultanpur is progressing and prospering.

    nice post !

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  4. Waah.. Aabhar is samachar ke liye, chhote kasbon me aisi takneeken pahunchen aur seminaar hote rahen to log bade shahar bhagen hi kyon? aisa hi kuchh aksar Jhansi me bhi hota rahta hai.

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  5. रिपोट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा कि चिकित्सा के क्षेत्र में देश बहुत प्रगति कर रहा है....

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  6. बहुत सुन्दर जानकारी और आनंद.मेरे पड़ोसी जिले में संपन्न . शायद ये सुविधाएँ और जनकार्य फैलें तो स्वास्थ्य क्रांति हो सके.

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  7. बहुत सुंदर जी, अब शहरो से हमारे कस्बे ज्यादा उन्न्ति कर रहे है

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  8. सुल्तानपुर जैसे छोटे शहर में चिकित्सा की आधुनिक तकनीक की जानकारी जन- जन तक पहुँचाने का चिकित्सको की इस टीम का यह काबिले तारीफ प्रयास है.

    आभार इस जानकारी के लिए ,इस समाचार को जानकार ख़ुशी हुई..

    -सर्जरी की ये सुविधाएं अब गाँव कस्बों तक पहुँच रही हैं -लगता है सबके लिए स्वास्थ्य का हमारा सपना जल्दी ही पूरा होगा .--ईश्वर करे ऐसा ही हो!

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  9. बहुत खुशी हुई यह जानकार की प्रौद्योगिकी की सहायता से देश के छोटे-छोटे नगर भी अपनी संभावनाओं का भरपूर सदुपयोग कर पा रहे हैं.

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  10. िस क्रँतिकारी सूचना के लिये बधाई और शुभकामनायें

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  11. धाँसू रिपोर्टिंग। स्क्रीन पर देखना आम लोगों के लिए भी उपलब्ध था क्या? ये चीर फाड़ आम आदमी को नहीं देखने चाहिए।
    बाज़ार की अपनी उपयोगिता है। समाजवादी व्यवस्था (इंडिया मार्का) ऐसी तकनीकें क़्स्बे में नहीं दिखा पाती। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। या यूँ कहें बाज़ार दे बहुत कम रहा है, दोहन अधिक कर रहा है। दवाओं पर 300% तक लाभ लिया जाता है। न्यायोचित है कि नहीं, पता नहीं।
    हमलोगों ने प्रगति के नासूर पैदा किए हैं और पोस रहे हैं। आखिर सारी हाइ टेक सुविधाएँ महानगरों में ही क्यों हैं? मल्टी स्पेशिएलिटी हाइ टेक अस्पताल चनपटिया में क्यों नहीं होना चाहिए? यदि नहीं है तो क्यों नहीं है? क्या किया जाय कि वहाँ भी ऐसा अस्पताल बने और काम करे? .... मैं आज कल सवालों से परेशाँ रहने लगा हूँ।

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  12. @ Girijesh ji-

    Mera bhi ek sawal hai...ki...Mere paas sirf jawaab kyun hain???....smiles..

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  13. @-हमलोगों ने प्रगति के नासूर पैदा किए हैं और पोस रहे हैं। आखिर सारी हाइ टेक सुविधाएँ महानगरों में ही क्यों हैं? मल्टी स्पेशिएलिटी हाइ टेक अस्पताल चनपटिया में क्यों नहीं होना चाहिए? यदि नहीं है तो क्यों नहीं है?

    Big people want name and fame...so they extend their services in big cities only.

    They are not saints, they won't do anything without any motive.

    Selfish people have bigger agenda.

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  14. Nice reporting ...

    लोग सवालों में उलझने लगे हैं ...क्या बात है ...
    अब तो देश का भला हो कर रहेगा ...:)

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  15. Even as medical facilities in India are going hi-tech and its professionals global, Rural India seems to be languishing. There is a continuing flight of doctors and paramedical staff from the country, seeking greener pastures abroad.

    With the income levels in the metros and towns soaring in the last decade, the demand for superior medical facilities has made health industry a lucrative business.

    Doctors and medical professionals are now being increasingly attracted to these pockets of affluence. The advent of telemedicine and health tourism is reinforcing this trend of increasing returns for the health industry.

    Nice reporting.

    Regards

    Ashish

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  16. "सर्जरी की ये सुविधाएं अब गाँव कस्बों तक पहुँच रही हैं -लगता है सबके लिए स्वास्थ्य का हमारा सपना जल्दी ही पूरा होगा ."
    आमीन ...! मुझे आशावादी बातें अच्छी लगती हैं. यद्यपि यह एक सपना ही है, पर अगर डॉक्टर्स खुद आगे बढ़्कर ऐसे कदम उठायें, तो ये सपना पूरा भी हो सकता है.

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  17. कस्बा धन्य हुआ आपके प्रयासों से ।

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  18. ग्राम्य जीवन के अन्धकार में एक आशा की किरण सरीखी गतिविधि। जानकारी देने का आभार।

    वैसे सुल्तानपुर मुम्बई-दिल्ली के मुकाबले ग्रामीण भले ही कहा जाय लेकिन है तो जिला मुख्यालय ही। जिला स्तर पर ऐसी सुविधा तो पूरे प्रदेश और देश में होनी चाहिए। यह हमारा पिछड़ापन है जो हम आज इक्कीसवीं शताब्दि में भी इसे एक बड़ी उपलब्धि मानने को मजबूर हैं।

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