सोनभद्र जनपद में ट्रांसफर के पश्चात इस जनपद की प्राकृतिक सम्पदा -समृद्धि और रहस्यात्मक परिवेश ने मुझे अचानक ही आकर्षित किया। मत्स्य व्यवसाय की मेरी विभागीय जिम्मेदारी से दीगर मैंने इस आदिवासी बाहुल्य, कैमूर पर्वत श्रृंखला युक्त और विशाल भूभाग वाले नक्सल गतिविधि सहिष्णु इस जनपद का एक पुनरान्वेषण शुरू किया। यह श्रृंखला इस ब्लॉग पर चल रही है। मुझे लगा कि शीघ्र ही इस जनपद के सभी मुख्य आकर्षणों को मैं अपने नज़रिये से देख पाउँगा और आप तक पहुंचा दूंगा। जानकारी बांटने की मेरी प्रवृत्ति जो ठहरी . मगर शीघ्र ही इस जनपद ने मुझे अपनी लघुता का बोध करा दिया -ज्ञान की ऐसी विविधता यह जनपद समेटे हुए है कि यहाँ तो पूरा जीवन ही बीत जाए -करोड़ो वर्ष पहले यहां सागर लहराता था -सलखन के जीवाश्म जिसका अकाट्य प्रमाण देते हैं ,बेलन घाटी की आदि सभ्यता यही पाली बढ़ी , पग पग पर पहाड़ और झरनों की बिखरी सुषमा,वन्य जीवन, प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के बिखरे स्मृति शेष -क्या नहीं है यहाँ? चन्द्रकान्ता संतति के तिलिस्म की अनुभूति यहाँ विजयगढ़ दुर्ग में साक्षात होती है जहाँ का भ्रमण रहस्य और रोमांच से भरा है जहाँ से नायिका चंद्रकांता के प्रवास की अमर कथा ने जन्म लिया।
कौन जंतु? बूझिये तो जाने!
डॉ नौटियाल और मैं
एक बार जब मैं मुख्यालय के निकट ही शाहगंज कस्बे के करीब महुअरिया नाम स्थान पर गया और वहां शैल भित्ति चित्रों को देखा तो इसके जिक्र पर शासकीय सहधर्मी जिला आपूर्ति अधिकारी श्री अजय सिंह ने मेरी भेंट श्री जितेन्द्र कुमार सिंह 'संजय' से कराई जो यहाँ घोरावल तहसील के देवगढ़ ग्राम के निवासी है।जितेन्द्र जी ने सोनभद्र पर मुझे स्वलिखित पुस्तक भेंट की तो यहां के पुराणेतिहास की मेरी दृष्टि व्यापक हुयी। इसी के साथ मुझे जितेन्द्र जी की सृजनात्मक मेधा और उनके एक अन्य शौक से भी रूबरू हुआ। मुझे जानकारी हुयी कि इन्हे शैल चित्रों में बड़ी दिलचस्पी है। दरअसल इन्होने अपनी आँखें ही देवगढ़ की सुरम्य उपत्यका में खोलीं और बचपन से ही इनके घर के चारो ओर बिखरी पहाड़ी गुफाओं ने इनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। जितेंद्र जी बताते हैं कि हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान अक्सर वे इन गुफाओं में आ जाते और यहाँ की नीरवता में इम्तहान की तैयारी होती। यहीं उन्होंने शैल चित्रों को भी बारीकी से देखा समझा और आह्लादित हुए। शैल चित्रों पर इनसे चर्चा होती रही।
देवगढ़ का एक शैलाश्रय और अध्ययनरत टीम
तभी मुझे विज्ञान संचार में समान रूचि वाले मित्र और बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान लखनऊ में वैज्ञानिक मित्र डॉ चंद्रमोहन नौटियाल से पता चला कि उन्हें सोनभद्र के शैल चित्रों पर अध्ययन की अगुवाई का जिम्मा भारत सरकार के संस्कृति विभाग के अंतर्गत इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स ((IGNCA)) ने दिया है. उन्होंने मुझे शैल चित्रों के स्थानीय किसी अच्छे अध्येता का नाम संदर्भित करने को कहा । बस मैंने उन्हें जितेंद्र जी का नाम सुझा दिया। जल्दी ही दिसम्बर 2014 में शैल चित्रों पर लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशिविर में जितेंद्र ने प्रतिभाग किया। आज उसी की फलश्रुति है की कि सोनभद्र में विगत 13 अप्रैल 2015 से एक अंतर्विभागीय बहु सदस्यीय टीम डॉ नौटियाल की अगुवाई में यहाँ अवस्थान कर रही है जिसमें प्रमुख सदस्य हैं -प्रोफ़ेसर ऐस बाजपेयी (निदेशक, बीरबल साहनी पुरावानस्पतिक संस्थान ), डॉ बी एल मल्ला (निदेशक IGNCA) प्रोफ़ेसर डी पी तिवारी (इतिहास विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय) ,डॉ पी उपाध्याय ( बी एच यू ) ,प्रोफ़ेसर के के अग्रवाल (लखनऊ विश्वविद्यालय) और प्राणिविज्ञानी तथा एक शैलचित्र प्रेमी के तौर पर मैं भी। . मुझे तो डॉ नौटियाल जी ने मित्र धर्म के चलते टीम में शामिल किया है।
कुछ पल का विश्राम -जितेंद्र और स्थानीय पथ प्रदर्शक परदेशिया
शैल चित्रों में सबसे अधिक चित्र पशु पक्षियों के ही होते हैं ,फिर मनुष्य और तब जाकर अन्य प्रकार की संरचनाएँ और डिजाइन। मैं शैल चित्रों में पशु आकृतियों पर घ्यान केंद्रित कर रहा हूँ -हिरन और मृग ,सूअर और भालू और उनके एकल और सामूहिक शिकार इनमें चित्रित हुए हैं -भैंस और बैल के भी चित्र दिखे हैं। कई चित्रों पर विवाद है -एक साही या गिरगिटान का चित्र है स्पष्ट नहीं हो पा रहा।यहाँ आज भी कृष्ण मृग पाये जाते हैं और ये शैल चित्रों में भी दिखते हैं. बहुत से चित्र चित्रकार की कल्पना की उपज लगते हैं जैसे जिराफ की गर्दन जैसी बहुत लम्बी गर्दन लिए पशु -अब हम सभी जानते हैं जिराफ तो इस भू भाग पर थे ही नहीं -हाँ जब भू स्थल जुड़े(पंजिया ) हुए थे तब? मगर तब तो होमो सैपिएंस ही नहीं थे। यह भी सकता है कि चित्रों में दिख रहा कोई पशु अब इस क्षेत्र लुप्त हो चला हो? ये सारी अटकलबाजियां अंतिम निष्कर्ष तक चलती रहेगीं।
इन्हे भी पहचानिये
शैल चित्र आदिमानवों द्वारा हमें दी गयी अद्भुत और अमूल्य विरासत है। इन चित्रों में एक ख़ास सौंदर्यबोध तो है ही, साथ ही ये मनुष्य के विकास और प्रवास, उनके आदि रहवासों तथा संस्कृति के अब तक के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर कर सकते हैं। इसलिए ही विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के सम्मिलित प्रयास से इनके अध्ययन की यह पहल की गयी है। अभी आरम्भिक तौर पर केवल चित्रों का अभिलेखन और संग्रह हो रहा है और आगे इनकी व्याख्या पर ध्यान केंद्रित होगा। सोनभद्र के घोरावल तहसील के अंतर्गत देवगढ़ इस लिहाज से बहुत समृद्ध है और यहाँ निरंतर ध्यान केंद्रित करने की जरुरत है। ऐसे शैलाश्रयों जहाँ के चित्र अभिलिखित हो चुके हैं उन्हें तत्काल संरक्षित रखने का भी प्रयास होना चाहिए! अकादमीय दृष्टि से इनका महत्त्व तो है ही इन्हे आज के परिप्रेक्ष्य में व्यावसायिक नजरिये से शैल चित्र पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।