सोमवार, 23 जुलाई 2012

मानस में नारी विमर्श:समापन पोस्ट!


पूर्व संदर्भ: 
मित्रो मानस में नारी विमर्श के मुद्दे पर आवश्यक विचार आ गए हैं  और मैं सोचता हूँ इस विमर्श का अब समापन किया जाय ...महिला मित्र ब्लागरों /टिप्पणीकारों का इन विचारों से और वह भी मेरे सौजन्य से प्रस्तुत करना संतप्त करने वाला  रहा होगा, यह समझ में आता है.  मगर उनकी टिप्पणियाँ बहुत विवेकपूर्ण और संतुलित आयी हैं  इस बार... समझा जा सकता है कि नारी ने बीती शताब्दियों में अपने को सचमुच साबित किया है और कई निरे घोघाबसंतों से तो वे लाख गुना बेहतर ही हैं....
मुझ पर कुछ आरोप लगे हैं कि मैं धर्मग्रंथों को गलत तरीके से उद्धृत कर रहा हूँ .....या फिर पोंगापंथी विचारों को प्रचारित कर रहा हूँ . समग्र परिप्रेक्ष्य में मैं अपनी बात निम्न प्रकार कह रहा हूँ -मित्रगण अपना जवाब उसमें पा सकते हैं -
१-मैं धर्म को रूढ़ तरीके से नहीं लेता....मानस को मैं एक धार्मिक ग्रन्थ से कहीं अधिक सामाजिक सरोकारों का और साहित्य का एक उत्कृष्ट ग्रन्थ मानता हूँ .
२-नारी की निंदा वैश्विक साहित्य में खूब हुयी है और जमकर हुयी है -कारण स्पष्ट है लेखक, रचनाकार, कवि  प्रधानतः पुरुष रहे  हैं -पता नहीं अगर नारी रचनाकारों का बाहुल्य होता तो कहीं पुरुष को लेकर इससे भी गलीज बातें लिखी गयीं होती :-) ....और वह समय अब आ  ही गया है .....नारी रचनाकारों ने जम कर भड़ास निकालनी शुरू भी कर दी है.  समकालीन नारी सृजित साहित्य के पुरुष पात्र ज्यादातर दया के पात्र ही बने हैं ..
३-मानव व्यवहार के कई पहलू इतनी जल्दी तो नहीं बदलने वाले हैं उनका उदगम वन्शाणु जनित है ...अब अगर नारी मक्कार है, मूर्ख जाहिल है पुरुषों में लड़ाई करने वाली है,फरेबी है ,झुट्ठी है तो यह कुछ ट्रेट उसके हैं या नहीं यह आधुनिक अध्ययन ,अनुभव और भोगे यथार्थ से भी समझे जा सकते हैं  -कम से कम वह पुरुषों से बेहतर बहला फुसला लेती है बहनेबाजी कर लेती है ..सफ़ेद झूंठ भी चेहरे पर बिना शिकन के बोल जाती है -यह ट्रेट  बच्चों के लालन  पालन, उनके मान मनौवल के चलते और पुख्ता ही हुआ है ....कुछ नैसर्गिक कुछ सीखा हुआ -वह पुरुष की तुलना में परफेक्ट झुट्ठी है (प्यार से कह रहा हूँ) ..हम झूठ बोलते ही पकड़ा जाते हैं -शायद यही वह व्यवहार प्रतिरूप रहा हो जिसने त्रिया चरित्र के जुमले को जन्म दिया ..आज भी वैयक्तिक  जरायम /अपराध का  हेतु/मोटिव ज्यादातर  जर जोरू जमीन का होता है -कथित रूप से दो बड़े युद्ध नारी के चलते ही लड़े गए ..अब कवि करे भी तो क्या -मानस के प्रणयन के पीछे का बैक ग्राउंड यह था ......हाँ बाद की आसिफ लैला की कहानियों अरेबियन नाईट्स में भी सैकड़ों कहानियों में नारी का ज्यादा मगर पुरुष का भी कम  दुश्चरित्र चित्रण नहीं हुआ है ....आशा है आप लोगों ने अरेबियन नाईट्स की कहानियाँ पढी या टी वी पर देखी होंगी ..
४-मैं मानस का पाठ खुद के लिए ही नहीं करता -बाकी लोगों से शेयर करना चाहता हूँ, करता रहता हूँ ....अब कईयों ने तो मानस पढी ही नहीं तो वे बिचारे निरीह हैं -नाहक ही इस विवाद में अपनी नारी सहिष्णुता साबित करने को कूद पड़े -मानस कोई ऐसा वैसा ग्रन्थ नहीं है जिसे इतने हलके तरीके से खारिज कर दिया जाय -लोग कई सौ सालों से ऐसा करते आये है -ग्रन्थ और रचनाकार को गालियाँ देते फिरे है मगर हाशिये पर आते गए हैं ...बहुत से दिग्गज साहित्यकार यह सहज ही कबूल करते हैं कि ज्ञात और अभिलिखित   साहित्य के इतिहास में इससे अच्छा और बहुआयामी ग्रन्थ कोई रचा ही नहीं गया ....भाषा अलंकार, रूप विधान, नैरेशन, उपमा और यूटोपिया का ऐसा ग्रथ पूरे विश्व साहित्य में शायद ही कोई हो....और तुलसी बाबा कोई पल्लव ग्राही ..बोले तो इधर उधर का कुछ पढ़ लिख कर ही दिखाऊ विद्वान् नहीं बन गए थे -तत्कालीन अद्यावधि साहित्य वांग्मय का उनका बड़ा ही पूर्ण और विषद अध्ययन था और उनकी एक दिव्य दृष्टि विकसित हो गयी थी -जिसे त्रिकालदर्शी होना कहते हैं -ऋतम्भरा प्रज्ञा कहते हैं - जो उनमें विषद ज्ञानार्जन से उद्भूत  हो गयी थी - जब वे एक नहीं कई ब्रह्मांडों की बात करते हैं ,कल्कि प्रसंग की बात करते है तब उनका यह भविष्यदर्शी रूप प्रत्यक्ष होता है ...तो उनका आकलन ऐसे ही सतही सतही तरीके  से  करने वालों पर हंसी आती है ..
५-वे नारी के मोह को ज्ञानी पुरुष की सबसे बड़ी कमी बताते हैं .....नारद मोह का प्रसंग उन्होंने मजे से रचा .....खुद नारी से चोट खाये हुए थे ..मनुष्य की कामाग्नि बड़ी प्रबल होती है -ऋषि मुनि भी उससे बचे नहीं है ...कितने अपराध इसी के चक्कर में होते हैं जबकि नारी अपने यौन भावनाओं पर कुशलता से नियंत्रण कर लेती है -उसका जेनेटिक मेकप और मजबूरियाँ भी ऐसी हैं कि सबके लिए हाँ करती चले तो चिरन्तन गर्भिणी ही बनी रहे बिचारी ..मगर पुरुष यहीं नैसर्गिकता के आगे कमजोर पड़ गया है-यहाँ प्रत्यक्षतः कितने ही बड़े सद्विचारी और गुडी गुडी भले ही दिखना चाहे   मगर एक पुरुष होने के नाते मैं जानता हूँ कि कामाग्नि के आगे वह बार बार हारता है, बर्बाद होता है -कितने ठाकुरों ने वैश्याओं के चक्कर में पड़ कर अपनी रियासते लुटा दीं  -और भी बहुत कुछ हुआ है नारी के चक्कर में  -तुलसी इसी बर्बाद कर देने वाली कामाग्नि से पुरुषों को बार बार चेताते हैं और नारी के प्रति वितृष्णा भरते हैं और उनकी उपास्य नारी पात्र  तो जैसे इस युग के  हैं ही नहीं -कौशल्या, सीता अपने विवेचन में मिथकीय अधिक हैं  सहज और सामान्य लोकजीवन के पात्र कम -वे देवी हैं ! हमारा  समाज तो कैकेयियों,मन्थराओं से ही अधिक भरा पड़ा है ....ये हमारे आम ज़िदगी के पात्र हैं ....बोले तो रोजमर्रा के ...:-) हमारे पूर्वांचल में तो भाईयों में बंटवारा/अल्गौझी   दुलहिने ही कराती हैं -एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हैं ... मेरा दावा है कि यहाँ ब्लॉगर बन्धु भी जरा अपने गिरेबान में झांक लें ....भाईयों में बटवारा किसने कराया? भले ही यह  नारी की ब्रूडिंग इंस्टिंक्ट ही क्यों न हो?  
६-मुझ पर यह आरोप लगा है कि मैंने बिना संदर्भ के उद्धरण दिए हैं -नहीं ,मैंने बहुत सावधानी बरती है ...और किसी भी उद्धरण को बिना उसके कथा प्रसंग के नहीं दिया है -हाँ एक छोटे पोस्ट में कथा प्रसंगों को संक्षेप में ही दिया जा पाना संभव था ...
७-मानस में तो तुलसी ने फिर भी उदारता बरती है . वाल्मीकि रामायण में तो मत पूछिए .....राम सीता के चरित्र पर ही शक कर बैठते हैं -कहते हैं कैसे मान लूं कि रावण ने तुझे दूषित नहीं किया होगा -ऐसा करो तुम लक्ष्मण  या भरत के साथ रह जाओ ..अब बताईये -एक आम मनुष्य की  शंकाएं ही यहाँ तुलसी के 'मर्यादा पुरुषोत्तम; राम की भी क्या नहीं हैं ....
बस मुझे इतना ही कहना था फिलहाल ...मानस विमर्श तो आगे भी चलता रहेगा! 

30 टिप्‍पणियां:

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    नारी की निंदा वैश्विक साहित्य में खूब हुयी है और जमकर हुयी है -कारण स्पष्ट है लेखक, रचनाकार, कवि प्रधानतः पुरुष रहे हैं -पता नहीं अगर नारी रचनाकारों का बाहुल्य होता तो कहीं पुरुष को लेकर इससे भी गलीज बातें लिखी गयीं होती :-) ....और वह समय अब आ ही गया है .....नारी रचनाकारों ने जम कर भड़ास निकालनी शुरू भी कर दी है. समकालीन नारी सृजित साहित्य के पुरुष पात्र ज्यादातर दया के पात्र ही बने हैं ...

    सच्ची और खरी बात !

    मानस के रचयिता तुलसी भी आखिरकार एक पुरूष ही तो थे, यह निर्विवाद सत्य है... मैं तो अगले उस 'रामचरित' के इंतजार में हूँ जिसे आज की कोई विदुषी लिखेगी...


    ...

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  2. यह सही है महाराज.आपने पहले सबसे कहलवा लिया और अब अपनी व्याख्या देकर पाक-साफ़ बन गए.
    इस समापन-पोस्ट को ही पहले प्रसंग में धर देते तो लोग गुलाटी न मार पाते और न मूरख या विद्वान का खिताब पाते.
    बहरहाल,अब इस निष्पत्ति से लगभग सहमत हूँ.यहाँ यह ज़रूरी है कि कोई जब अपने विचार दे तो उसे मुद्दे पर ही बोलना चाहिए,व्यक्तिगत नहीं.

    नारी या पुरुष बिना किसी भेदभाव के, दोष-गुण आधार पर ही परखे जाएं तो न्यायसंगत होगा !

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  3. बेहतरीन समापन पोस्ट के लिए बधाई डॉ अरविन्द मिश्र !
    बार बार पढ़ा और आनंद लिया ! इस छोटी सी पोस्ट को अगर विस्तार दें तो ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं !

    सादर !

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  4. अरविन्द जी ,
    पिछली पोस्ट के लिए एक टिप्पणी लिखी थी फिर पब्लिश नहीं की, क्योंकि धार्मिक सन्दर्भों से की जा रही चर्चाओं में व्यक्तिगत मान अपमान घुसते देर नहीं लगती ! मित्रगण क्षण में परम शक्तिमान ईश्वर के परम परम शक्तिमान रखवाले बन जाते हैं, सो जोखिम उठाने की तुलना में दूर रहना श्रेयस्कर लगा !

    आशा करता हूं कि धार्मिक अनुदारतावाद के आलोक में किसी अयाचित विवाद में नहीं पड़ने की मेरी समझ को मान देंगे !

    दुखद स्थिति यह है कि हम अपना अभिमत होते हुए भी किन्हीं कारणों से उसे अभिव्यक्त करने से वंचित रह जाते हैं !

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  5. @शुक्रिया सतीश भाई ,कितनी अच्छी बात है अंततः आप मंजिल पर पहुँच ही आते हैं -सेलिब्रेशन!

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  6. @अली भाई ,
    यह टिप्पणी आपको पिछली पोस्ट पर ही करनी चाहिए थी ...यहाँ यह सुसंगत नहीं है ..
    होता क्या है कई बार हम पोलिटकली करेक्ट होने के चक्कर में विषय से ध्यान हटाने को
    कोई विचार रख देते हैं ...
    दोनों पोस्ट कतई धार्मिक विचारों पर नहीं थी ....और यह भी नहीं है ....पता नहीं क्यों इन्हें आप
    धार्मिक नज़रिए से देख रहे हैं -यह तो आपके प्रोफेसनल विषय का मसला है .
    अगर किन्ही को नाराज नहीं करना चाहते तो सीधे कहिये -इतना घुमाने फिराने की जरुरत क्या है ..?
    मैं तब भी आपकी भावनाओं का सम्मान करूँगा !
    आपको बात इस पोस्ट पर करनी चाहिए थी मगर अब मत करियेगा वह प्रिजुडिस कहलायेगी !

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  7. तमाम आग्रहों दुराग्रहों के बीच आपने अपना नजरिया अभिव्यक्त किया और इस बात को पुख्ता किया कि विभिन्न ग्रंथों/महाग्रंथों के प्रति व्यक्तियों के निजी सोच रहते हैं. और इसी सोच को साझा करना, उस पर विमर्श करना भी ब्लागिंग का एक उद्देष्य है, आप इसमे पूर्णत: सफ़ल रहे हैं जिसके लिये आप बधाई के पात्र हैं, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. शानदार समापन।

    इस विवेचना में आपने प्राय़ः सभी बिंदुओं को छूते हुए अपनी बात खरी-खरी, सही-सही कही है। साधुवाद।

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  9. जो दोष नारी में हैं, वैसे ही दोष पुरुष में भी दिखते हैं, काम और मोह का अवलम्बन नारी है तो उसमें नारी का क्या दोष..प्रकृति का निर्माण ही इसी गुण पर आधारित हुआ है। बहुत ही सधा हुआ समापन।

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  10. @ क्योंकि धार्मिक सन्दर्भों से की जा रही चर्चाओं में व्यक्तिगत मान अपमान घुसते देर नहीं लगती ! मित्रगण क्षण में परम शक्तिमान ईश्वर के परम परम शक्तिमान रखवाले बन जाते हैं, सो जोखिम उठाने की तुलना में दूर रहना श्रेयस्कर लगा !

    @ दोनों पोस्ट कतई धार्मिक विचारों पर नहीं थी ....और यह भी नहीं है ...

    आप दोनों ही अपनी जगह पर ठीक हैं ! हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्लोगर साथी पढ़ने की जहमत कम ही उठाते हैं , अक्सर शीर्षक देख कर कमेन्ट करने प्रथा है और जहाँ रामचरित मानस एवं बाबा तुलसी दास की बात आएगी वहाँ बिना समझे, स्वाभाविक तौर पर त्योरियां चढानी आसान ही हैं !

    हर पाठक अपनी व्यक्तिगत समझ और पूर्वाग्रहों के साथ पढता है और उसे उसी द्रष्टिकोण से पारिभाषित भी करता है स्वाभाविक है हमें निर्दोष लेखन के बावजूद भी, शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए ! यहाँ अर्थ का अनर्थ बनाते देर नहीं लगती और स्थिति का फायदा उठाने के लिए गिद्ध कौओं की यहाँ कोई कमी नहीं ! वे खाने से पहले यह नहीं देखते कि आज कौन मरा है !

    अतः यहाँ मैं अली साहब का तठस्थ रहना उचित ही मानता हूँ इसकी और वजह ना ढूंढें नहीं तो उनके प्रति अन्याय ही होगा !

    आपका यह लेख संकलन के लायक है ऐसे लेख कम से कम यहाँ बहुत कम पाए जाते हैं !

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  11. "कम से कम वह पुरुषों से बेहतर बहला फुसला लेती है बहनेबाजी कर लेती है ..सफ़ेद झूंठ भी चेहरे पर बिना शिकन के बोल जाती है" सहमति की विविशता के आगे नतमस्त.

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  12. @अतः यहाँ मैं अली साहब का तठस्थ रहना उचित ही मानता हूँ इसकी और वजह ना ढूंढें नहीं तो उनके प्रति अन्याय ही होगा !

    मैं इस बात का समर्थन करता हूँ कि कहीं टीप करना या न करना टिप्पणीकार पर निर्भर करता है.यदि उसे लगता है कि इससे विवाद बढ़ेगा तो यह उसका अपना निर्णय है .

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  13. अरविन्द जी,
    आपकी पिछली पोस्ट पर जो टिप्पणी करनी थी वो तो की ही नहीं, इसलिये उसके बाद की टिप्पणी यहीं बनती है !

    मामला पोलिटिकली करेक्ट होने का नहीं है, मैं कभी, किसी ऐसे ब्लाग में नहीं गया जो धर्मग्रंथों की बात करता हो ! मैंने किसी भी धार्मिक विचारण वाले ब्लाग में अपना कोई योगदान नहीं दिया ! मैं ईश्वर की लाज/जान बचाने वाले इंसानों से हमेशा दूर रहा हूं ! यहां तक कि मैं किसी विशिष्ट धार्मिक आशय वाली पोस्ट भी नहीं लिखता हूं ! अगर कोई उदाहरण आपने देखा हो तो नि:संकोच कहियेगा !

    चूंकि आप 'श्री रामचरित मानस' का हवाला देकर कोई 'विषय' उठा रहे हैं और उस पर मैं अपना अभिमत भी दूं तो यह अपने 'निश्चय' से हटना ही कहलाएगा और ब्लागजगत में धार्मिकता का माहौल तो आप स्वयं को ज्ञात है ही कि कैसा है?

    मुझे स्वयं के पूर्वाग्रही होने का अंदेशा कभी भी नहीं रहा है सो अब भी नहीं है बात सिर्फ इतनी सी है कि मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहता जिससे किसी कि धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने का दोष मुझ पर लगे !

    मसला किसी और के पक्ष में बात कहने या ना कहने का नहीं है मैं केवल धर्म भीरु मित्रों से अपना और अपनी तार्किकता का सम्मान बचाये रखने का यत्न कर रहा हूं ! बात घुमा कर कहने का तो प्रश्न ही नहीं है !

    आप मेरी भावनाओं को समझने की कृपा करें !

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  14. आपकी यह पोस्ट बहुत से लोगो का भविष्य में मार्गदर्शन करेगी. जो अपनी पत्नी के अलावा अन्य महिलाओं के चक्कर में जल्दी फंस जातें हैं, जो केवल अपना काम ही निकलवाना जानती हैं.

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  15. कोई भी उल्लेख समुच्य ग्राही नहीं होते। दुर्गुण लिंग विशेष के आरक्षित नहीं होते, न ही सद्गुण्।

    सभी दुर्गुण स्वतंत्र आत्म के साथ व्यक्तिगत आवरित रहते है। आवरण के हटने पर कोई भी आत्मा दुर्गुण मुक्त हो सकती है। नर हो या नारी!!

    दोष-गुण लगते ही नारी या पुरुष भेदभाव बिना, अतः दिखेंगे भी भेदभाव बिना ही। कौनसा लिंग अलिप्त है माया, कपट, मिथ्याचार, और काम-भावनाओं से?

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  16. काश, कोई विदुषी भी रामचरित मानस लिखती। उसे लेखे में निश्‍चय ही कुछ और बात होती।

    ............
    International Bloggers Conference!

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  17. सुन्दर समापन |
    सभी पोस्टों को ध्यान से टिप्पणी सहित पढ़ा और समझा ||
    आभार गुरु जी ||

    बेनामी नामी कई, रखें राय बेबाक |
    मुद्दे को समझे बिना, गजब घुसेड़ें नाक |
    गजब घुसेड़ें नाक, तर्क पर बड़ी पकड़ है |
    थी कालेज में धाक, तभी तो दंभ अकड़ है |
    गुरुवर का आभार, बना रविकर अनुगामी |
    घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी ||

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  18. मानस मे जो कहा गया उसका सिर्फ़ एक ही अर्थ कभी निकला ही नही सबने अपने अपने अर्थ निकाले किसी ने महज शब्दो के सिर्फ़ अर्थ ही देखे तो किसी ने उसके गूढार्थ और जिन्होने गूढार्थ समझे वो ही हर रहस्य को जान पाया वरना सतह पर रहकर सागर की गहराई नही नापी जाती।

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  19. ..अब अगर नारी मक्कार है, मूर्ख जाहिल है पुरुषों में लड़ाई करने वाली है,फरेबी है ,झुट्ठी है तो यह कुछ ट्रेट उसके हैं या नहीं यह आधुनिक अध्ययन ,अनुभव और भोगे यथार्थ से भी समझे जा सकते हैं -कम से कम वह पुरुषों से बेहतर बहला फुसला लेती है बहनेबाजी कर लेती है ..सफ़ेद झूंठ भी चेहरे पर बिना शिकन के बोल जाती है -यह ट्रेट बच्चों के लालन पालन, उनके मान मनौवल के चलते और पुख्ता ही हुआ है ....कुछ नैसर्गिक कुछ सीखा हुआ -वह पुरुष की तुलना में परफेक्ट झुट्ठी है (प्यार से कह रहा हूँ) ..
    "झूठीं "कर लें भाई साहब .आपकी आलोचना सटीक और सन्दर्भों से गुंथी हुई है निरपेक्ष नहीं है आरोप लगना आपकी लोकप्रियता का प्रतीक है जो पत्रकार पिटता है उसकी कलम में दम होता है बाकी तो पूडल होतें हैं इसके या उसके मीडिया सलाहकार /पर्सन होतें हैं .

    आज के सीरियल नारी पात्रों कीं अंदर की बात बतलातें हैं अहर्निश किसी पुरुष ने ये पैसा देकर नहीं लिखवायें हैं लिखने वाली भी महिलायें हैं एकता कपूरें हैं .पुरुष के सौन्दर्य की नव्ज़ तो नारी से ही जुडी है नारी साथ दे तो तुलसी कैसे पैदा हों ?

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  20. चलिए अंत भला तो अनंत भला . आपने बड़े प्यार से अपना विचार रखा है और सबका ह्रदय लबालब हो गया .

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  21. बोलिए सियावररामचंद्र जी माहाराज की जय.

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  22. @अली भाई,
    आप स्वयं एक प्रोफ़ेसर हैं -आपको कुछ नसीहत देना भी दुस्साहस है .....
    आपने अपना एक ध्येय बना ही लिया है तो क्या कहा जा सकता है !
    इतनी धर्म विमुखता मैंने कहीं नहीं देखी -और यह पोस्ट धर्म विषयक थी भी नहीं ..
    और रामचरित मानस पुस्तक एक धार्मिक पुस्तक ही है यह आपने कैसे जान लिया ..
    बहरहाल कोई टिप्पणी करे न करे इससे मेरी पोस्टों पर क्या असर होगा ..
    समर्पण से जो भी किया जाएगा उसे देर सवेर स्वीकार ही किया जाएगा !
    टिप्पणी न करने के लिए आभार

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  23. अगर कोई स्त्री रामचरित मानस लिखती और वह विदुषी भी होती तो निश्चित ही विद्वेषी नहीं होती। वह भी उन्ही गुणों- अवगुणों का आलेखन करती जो उसे पात्र विशेष में दृष्टिगोचर होता। कहने का एक अभिप्राय यह भी है कि तुलसी ने द्वेष प्रेरित चित्रण नहीं किया।

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  24. टिप्पणी नहीं होने से आपकी पोस्ट को कोई फर्क नहीं पड़ेगा किन्तु किसी नालायक द्वारा मुझे कुछ कह देने से मुझे बहुत फर्क पड़ेगा !

    धर्म विमुख नहीं हूं पर धर्मभीरुओं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता चूंकि आप मेरी फीलिंग्स को समझ नहीं रहे हैं इसलिये आपको ढूंढकर एक लिंक ज़रूर मेल करूंगा ! मेरी एक पुरानी अधार्मिक पोस्ट पर कमेन्ट के एक दो नमूनों को पढ़ लीजियेगा !

    वर्षों पहले श्री राम चरित मानस पर कई बार चिंतन दिये हैं आकाशवाणी में , इसलिये उससे कोई परहेज़ नहीं है और अनभिज्ञता भी नहीं ! बाकी मैं जिस ओर संकेत कर रहा हूं आप उस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं ! ठीक है इस मुद्दे पर बाद में बात कर लेंगे !

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  25. समापन में दिए गए स्पष्टीकरण स्पष्ट रूप से स्पष्ट और स्वीकार्य हैं . :)
    आभार और शुभकामनायें भाई जी .

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  26. लेखक , रचनाकार , कवि प्रधानतः पुरुष रहे हैं इसलिए नारियों के लिए दुराग्रह पूर्ण लिखा गया है , परन्तु नारी की टिप्पणियां संतुलित है , आपने मान लिया , यह उपलब्धि भी कम नहीं ...
    सच /झूठ , ईर्ष्या , लोभ , लालच आदि में ना पुरुष कम है , ना नारी , इसलिए त्रिया चरित्र का इलज़ाम सिर्फ नारी पर ही क्यों .
    स्त्रियों के कारण घर के बंटवारे होते हैं , तो क्या अविवाहित पुरुष हमेशा ही मिलजुल कर रहते हैं ?? उनमे कोई मनमुटाव , झगडा नहीं होता !!

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  27. @वाणी जी,
    अविवाहित भाईयों में घर तोडू झगडे? कभी सुना नहीं-सच्ची!
    और सीरियलों में भी घर घर की कहानी देखिये -शातिराना नारी पात्र वहां भी हैं और पुरुष पात्र
    बिचारे कितने दींन हीन लगते हैं :-)

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  28. main vandana ji ki baat se poorntah sahmat hoon is vishay ke safal samapan par aapko badhaai

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  29. चलिये समापन पोस्ट नारी पर आई
    किसको देनी चाहिये बधाई
    यही बात बस समझ नहीं आई !

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  30. यदि परिवार में तुलसी वाली स्त्रियाँ ही थीं व हों तो वे सही लगेगें ही और तुलसी से सहानुभूति भी होगी ही। ऐसे लोगों से सामान्य स्त्रियों व सामान्य स्त्रियों के पुत्र, भाई, पति, पिता को भी सहानुभूति होनी चाहिए। मुझे तो है।
    सहानुभूति सहित,
    घुघूती बासूती

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