अभी इस ब्लाग पर एक पोस्ट चर्चा में चल ही रही है एक आपातकालीन पोस्ट करने की जरूरत आ पडी है ...मैं लखनऊ ब्लॉगर अशोसिएशन से हटने की घोषणा करता हूँ -मैं इसके उद्येश्यों को लेकर शुरू से ही संशय में था मगर अनिच्छा से ज्वाईन कर लिया था क्योंकि उसमें कुछ अच्छे सेंसिबल ,परिपक्व विचार व्यवहार के लोगों को देखा था ...जो आज भी हैं वहां -मगर मैं ऐसी किसी संस्था में नहीं रहना चाहता जिसके अंदरूनी अजेंडे कुछ और हों और बाहरी कुछ और ....मतलब हाथी के दात दिखने के और खाने के और ...लिहाजा मैं इससे हट रहा हूँ यह कोई सामूहिक आह्वान नहीं है एक व्यक्तिगत पराजय है मनुष्य को न पहचाने की -अब प्रायश्चित जरूरी है ...
मैं इस मंच को ज्वाईन करते समय अपनी पहली पोस्ट अभिलेखार्थ और आप पढने की सदाशयता दिखायेगें तो परिशीलनार्थ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ -मूरख ह्रदय न चेत जो गुरु मिले विरंचि सम ...
मैंने ज्वाईन तो कर लिया है ,लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन को ,मगर मेरी शर्ते हैं!
सलीम खान के निरंतर अनुरोध पर अपने तमाम हिचक और हिचकियों के बाद मैंने लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन को आखिर ज्वाईन कर लिया है .मगर मेरी कुछ शर्ते हैं.मगर पहले मैंने क्यों ज्वाईन किया है इस पर कुछ रोशनी डालता चलूँ .सलीम खान के निरंतर अनुरोध को मेरे द्वारा टाला जाना संभव नहीं हो पाया .मैं उस प्रजाति में से हूँ कि किसी को भी न कह पाना बहुत मुश्किल पाता हूँ .दूसरे यह मंच सामाजिक सरोकारों के लिए बहुत कुछ कर सकता है इस संभावना से भी मैं उत्साहित हूँ -मुझे पता नहीं कि यह संस्था सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अधीन पंजीकृत है या नहीं ? अगर नहीं है तो इसे शीघ्र कराने की कार्यवाही की जानी चाहिए .जाकिर को इसका अनुभव है वे मददगार हो सकते हैं .मैं एक फुल टाईमर लोकसेवक हूँ इसलिए मात्र वैज्ञानिक और कला विषयक प्रविष्टियों पर मेरी जवाबदेही और सहयोग यहाँ हो सकेगा -बाकी से मेरा कोई नाता नहीं है और न ही मेरी जिम्मेदारी .यद्यपि इस ब्लॉग पर व्यक्त विचारों और टिप्पणियों की साझी जिम्मेदारी से हम मुक्त नहीं हो सकते -इसलिए हमरा प्रयास होना चाहिए कि हम ऐसी कोई बात न कहें और न प्रचारित करें जिससे समाज की साम्प्रदायिक संरचना को ठेस पहुँचती हो .हमें धर्म के मामलों पर बातों को कहने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए -धर्म वही है जो इंसानियत सिखाये ,इंसान बनाए बाकी सब बकवास है कूड़ा-करकट है .मैं जनता हूँ यह कहना आसान है और अमल में लाना मुश्किल .मगर कोशिश करने से क्या संभव नहीं है ?
हम यहाँ समाज के कई और मुद्दों को ले सकते हैं जो ज्यादा जमीनी हैं ,ज्यादा जरूरी हैं .हनुमान ने मंदिर क्यों नहीं तोडा और फलाने ने मस्जिद क्यों ढहाई ? शायद इन बातों की समझ और सलीके से कहने को अभी यह मंच परिपक्व नहीं है .यह सब कहते हुए हम अपने कबीलाई दौर में पहुँच जाते हैं जहाँ पत्थरों के बड़े भोडे आकार के आयुधों से लोगों के सर भुरता कर दिए जाते थे-तबसे मानव का बड़ा सांस्कृतिक विकास हुआ है- हमने बहुत तहजीब सीखी है -हम फिर उसी हिंस्र युग में नहीं जा सकते -मगर मनुष्य की तहजीब ने जो बदलाव किये हैं दुःख है कि वह बहुत कुछ ऊपरी ही है -आज भी हमारे अंदर एक वनमानुष ही छुपा है -क्या इस को साबित करने के लिए प्रमाण चाहिए ? बात बात में हम एक दूसरे के खून के प्यासे हो उठते हैं .क्या यह प्रमाण कुछ कम है ? और हमको फिर से वनमानुष बनाने वाले तत्व कौन हैं -मजहब /धर्म की श्रेष्ठता की बकवादें,दीगर रकीबी - जर जोरू जमीन के मामलात ,खुद को सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ -हिटलर बनने का सपना ,नस्ली श्रेष्टता की सोच -हम यह भूल जाते हैं कि हम सब एक ही माँ के जाए हैं जो आज धरती पर मानव के नाम से जाने जाते हैं -हमारी वह माँ जो करीब करोड़ वर्ष पहले अफ्रीका में जन्मी थी -बस उस एक की औलादें ही आज कई अरब हो चुकी हैं -बाकी माओं के न जाने दूध में कुछ जान न रही होगी शायद जो उनकी संताने हमारे साथ यहाँ तक मनुष्यता का परचम थामे नहीं आ पाई .
हम एक मूल के हैं -सभी जेनेटिक तौर पर ९९.९ फीसदी समान -बस समयांतराल के साथ इस विशाल धरा पर फैलते गए.
-याद है वह नूह की कश्ती ? आर्क आफ नोआ ? मनु की नौका ? सब एक है मेरे भाई -उस महाप्रलय से हम बच गए मगर आज के भाई भाई की दुश्मनी से बच पायेगें -यह कहना मुश्किल लगने लगता है . हमारा मूल एक है -हम एक वंशमूल के हैं -मैंने अपना डी एन ये जंचवाया -जो कि ईरान की आबादी में आज रह रहे लोगों से सौ फीसदी मिलता है .तब भी हम इतने अहमक हैं कि धर्म के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं -हो सकता है सलीम की उसी जीनिक पुकार ने मुझे विचलित कर दिया हो और आज इस नक्षत्र -घड़ी में मैंने लखनऊ ब्लागर असोसिएशन ज्वाईन कर लिया है.
आशा है सलीम भाई मेरे विश्वास की कद्र और रक्षा करेगें .
१८ मार्च २०१०
आज यहाँ से विदा लेता हूँ दोस्तों ,रवीन्द्र प्रभात जी मुझे क्षमा करिएगा -एक सुझाव यह देकर जा रहा हूँ अगर संभव हो सके तो सलीम के लिखे आलेखों को खुद पढ़ते हुए उनका मूल्यांकन एक कमेटी से करा लीजियेगा !
६ अगस्त 2010
आज यहाँ से विदा लेता हूँ दोस्तों ,रवीन्द्र प्रभात जी मुझे क्षमा करिएगा -एक सुझाव यह देकर जा रहा हूँ अगर संभव हो सके तो सलीम के लिखे आलेखों को खुद पढ़ते हुए उनका मूल्यांकन एक कमेटी से करा लीजियेगा !
६ अगस्त 2010
क्षमा के साथ आदरणीय मिश्रा से दावे के साथ मैं यह सवाल पूछना चाहता हूँ की आप एक भी पोस्ट लखनऊ ब्लॉगर अशोसिएशन में मेरे द्वारा likhit ऐसी koi पोस्ट दिखाईये मैं ब्लोगिंग छोड़ दूंगा.....एक भी पोस्ट गारंटी के साथ मैं ब्लोगिंग छोड़ दूंगा...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, मिश्रा जी ! आप कहीं न जाएँ और LBA पर पोस्ट्स भी लिखा करें...ताकी टच में रहें
जवाब देंहटाएंदेर आयद दुरुस्त आयद
जवाब देंहटाएंओह...?
जवाब देंहटाएंक्वचिदन्यतोअपि..........!देर आयद दुरुस्त आयद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
इस बाबत मेरी बात सलीम भाई से बहुत पहले भी हुई थी जिसमे मैंने सलीम भाई से ये शर्त रखा था कि मैं ये मंच तभी ज्वाईन करुंगा जब इस सामूहिक ब्लोग पर किसी भी धर्म से जुडी किसी तरह की पोस्ट नहीं लिखी जायेगी । मेरे इस बात पर सलीम भाई ने हामी भी भरी थी, लेकिन ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा, रही बात ऐसी पोस्ट की तो उसे यहां देखा जा सकता है http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/07/blog-post_5696.html सलीम भाई अगर आप जल्द ही कुछ कदम नहीं उठाते तो और भी लोगों के इस्तिफे के लिए तैयार रहें ।
जवाब देंहटाएंभई , आजकल तो हिट होना का एक ही फार्मूला है धर्म पर लिखो ,मस्जीद और मंदीर पर लिखो , मुझे लगता है कि अगर लोग खुदा और भगवान को मानते है तो उन्हे मंदीर और मस्जीद का फैसला अपने ईश्वर पर छोङ देना चाहिये ।
जवाब देंहटाएंमिथिलेश दूबे जी! जिस पोस्ट का आप लिंक दे रहें हैं उसमें किसी भी तरह से किसी धर्म के लोगों का कोई जिक्र नहीं है बल्कि उन आतंकवादी संगठन का जिक्र है जो देश एन मुसलमानों के खिलाफ लगातार ज़हर उगल रहा है और अगर आप उस संगठन के समर्थक है तो मेरे उन आरोपों का जवाब दीजिये... जैसा की मैंने लिखा है.
जवाब देंहटाएं@@@@भाई सलीम जी
जवाब देंहटाएंआप चाहे जिस आतंकवादी संगठन की बात करिए मुझे उससे कोई आपत्ती नहीं है, मान लीजिए मै संघ से ही जुडा हूं तो आपके पोस्ट का मुझे तो बुरा लगेगा ही, रही बात आंतकवादी संगठन की तो आप सिमी और इस तरह के कई संगठन है उसपर क्यों नही लिखते???? रही बात जवाब देने की तो मुझे नहीं लगता कि मुझे एसे मुद्दे पर अपनी ऊर्जा नष्ट करनी चाहिए क्योंकि मै इस तरह के मुद्दे पर इनट्रस्ट नहीं रखता जो की आपको पता है।
प्रवीण शाह की पोस्ट का लिंक दे रहा हूँ पढियेगा ! शायद आप पसंद करें !
जवाब देंहटाएंhttp://praveenshah.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.html
सिमी आलरेडी ख़त्म हो चुका है
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी आप यह ब्लॉग इसलिए नहीं छोड़ रहे कि यहाँ गलत लिज्खा जा रहा है, बल्कि इसलिए छोड़ रहे हैं, कि किसी ने आप लोगो के खिलाफ लिखने की हिम्मत दिखाई है. वर्ना आप लोग मुसलमानों के खिलाफ जो भी लिखते रहे किसी को कुछ फरक नहीं पड़ता. अप कहेंगे कि मैंने कब लिखा? तो लिखा ना सही, जिन्होंने लिखा उनकी पोस्ट पर समर्थन तो किया. वहां क्यों नहीं विरोध किया?
जवाब देंहटाएंज़रा देखिये गुरु गोदियाल साहब ने क्या लिख रहें है अपनी पोस्ट में.... मिश्रा जी आप भी वहां हैं.
ये ईशू के भक्त, अल्लाह के वन्दों से कुछ कम अमानवीय नहीं !
http://gurugodiyal.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.हटमल
गोदियाल साहब अपने पुरखों के कुक्रतय भूल गए और अमेरिका की कहानी सुनाते-सुनाते तालिबानी आतंकवादियों की आड़ में इस्लाम धर्म को ही अमेरिका की श्रेणी में खड़ा कर दिया. अब ना तो तथाकथित नास्तिक मिश्रा जी कुछ कहेंगे और ना ही अन्य नास्तिक और आस्तिक भाई-बंधू. क्यों यह जो लिख रहा है यह उनकी ही बिरादरी का है. इसी दोगलेपन की निति की वजह से आज ब्लॉगजगत में इतना हंगामा मचा हुआ है. लेकिन हमेशा की तरह आपकी नज़र में तो बुरे हम ही होंगे, मुसलमान जो ठहरे.
और दूसरी तरफ प्रकाश गोविन्द ने ईश्वर / अल्लाह को जो गाली दी है वह भी मिश्रा जी समेत किसी को नज़र नहीं आई...
देखिया प्रवीण शाह ने कैसे चटकारे लगाकर पोस्ट बनाई है.
सबको सन्मति दे भगवान !
http://praveenshah.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.हटमल
वैसे अब यहाँ भी कोई प्रकाश गोविन्द महाशय को कानून की धमकी नहीं देगा? क्योंकि ईश्वर / अल्लाह के खिलाफ जो खुलेआम थप्पड़ मारने जैसी घटिया बात लिख रहा है वह तुम्हारे स्वयं के समुदाय का है. हालाँकि एक ही कम्प्लेंट में अन्दर होने तथा पुरे भारत के लोगो के द्वारा जूते खाने जैसा वक्तव्य यह महाशय दे रहे हैं.
तुम्हारी भी जय जय.......... हमारी भी जय जय......... ना तुम हारे......... ना हम हारे !!
जवाब देंहटाएंडॉ. साहब! जिस दिन आप ने ज्वाइन किया था, उसी दिन पता था कि एक दिन यह अवश्य होगा।
जवाब देंहटाएंवास्तव में ब्लाग भी एक तरह की ई-पत्रिका है। कोई भी पत्रिका एक केंद्रीय नियंत्रण के बिना नहीं चल सकती। इसी कारण केन्द्रीय नियंत्रण के बिना चलने वाले सामुहिक ब्लाग असफल हुए हैं। इस पर विस्तार से विचार किया जा सकता है।
देर आये दुरस्त आये.. अच्छा किया...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंलखनऊ वाले ब्लोग्गर से पूछता हूँ, वो भी हैं क्या मेंबर?
जवाब देंहटाएंअपनी समझ से बहार है ये मामला,
जवाब देंहटाएंमेरे जन्म से पूर्व का कोई पंगा लगता है |
कोई समझाये ये क्या मामला है ?
आपने विवादस्पद लोगों के बीच से हटने का स्वागत योग्य कदम उठाया है
जवाब देंहटाएंएशोसियेशन में आपका विश्वास पहले से था. एक कारण यह भी हो सकता है ज्वाइन करने का. खैर, जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाइए.
जवाब देंहटाएंहाँ, अगर एशोसियेशन में विश्वास अभी तक हो तो फिर बनारस ब्लागर्स एशोसियेशन बना डालिए. या फिर काशी चिट्ठाकारी प्रचारिणी सभा...:-)
@बिना अशोसियेशन के भी ई कौनो जिन्दगी है शिब बाबू ?
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
@ MLA लियाकत अली साहब,
*** न तो प्रकाश गोविन्द जी ने ईश्वर / अल्लाह को गाली दी है और न प्रवीण शाह चटखारे ले रहा है... अगर आपको ऐसा लगता है तो यों समझिये कि समझ-समझ का फेर है यह...
*** जब आप किसी पर इस तरह का आक्षेप करते हैं तो उस ब्लॉगर के द्वारा पहले लिखे आलेख-टिप्पणियों को भी पढ़ें... फिर मन बनायें...
*** हम दोनों लोग जो कहना चाह रहे हैं उसे वही समझ सकता है जो धर्म के मर्म तह पहुँचा सका हो...
*** रही बात 'ईश्वर' की ओर से आपको बुरा लगने की... तो ठन्ड करो यार... धर्म कहता है कि फैसले के दिन 'वह' न्याय करेगा... अब हम तो वही कहेंगे न जो अपनी समझ से हमें सही लगता है... अगर 'उसे' हमारा आचरण व बातें बुरी लगी होंगी... तो खौलते तेल की कढ़ाही में डुबकियों के लिये हैं तैयार हम... आप आनंद से देखियेगा!
*** लेकिन यह भी याद रहे कि अगर 'वह' है तो मुझे पूरा भरोसा है कि मैं उसका सबसे 'प्यारा बच्चा' हूँ... क्योंकि तरह तरह के सवाल पूछ कर... बार बार उसको ताने देकर, शिकायत कर के... हर विद्रूप-हर असमानता-हर यथास्थिति-हर भाई भाई के बीच दूरी बनाये रखने के प्रपंच जो 'उस' के नाम पर आप जैसे लोग करते हो, उन सब प्रपंचों के लिये 'उस' को भी बराबर का भागीदार मान कर मैंने 'उस' के मूल चरित्र को उघाड़ कर रख दिया है... जबकि बाकियों ने पुस्तकों के लिखे मात्र पर यकीन कर लिया है... इस लिये फैसले के दिन हमारी जगहें बदल भी सकती हैं... सोचना जरूर...!!!
@ आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
देव, जब आपने LBA ज्वायन किया था तब भी मुझे सही नहीं लगा था और इस आशय की टीप की भी थी मैंने... आज आप छोड़ रहे हैं तो भी सही नहीं लग रहा... और मित्र सलीम खान के लेखों के विरोध में तो बिल्कुल नहीं... सोचिये देव, क्या क्या छोड़ेंगे?... आज LBA क्योंकि उसमें सलीम की पोस्ट है... कल ब्लॉगवुड, क्योंकि उसमें कई सलीमों के ब्लॉग हैं... परसों अपना मोहल्ला, क्योंकि वहाँ भी सलीम बसता है... क्या-क्या छोड़ेंगे ???
मैं तो मानता हूँ कि जब भी दो चीजें(चाहे व्यक्ति ही क्यों न हों) एक दूसरे के संपर्क में आ जाती हैं, तो उसके बाद वह पहले जैसी नहीं रहती... चाहे या अनचाहे दोनों एक दूसरे का 'कुछ' जरूर ग्रहण करते हैं... मैं अपनी कहूँ तो चाहे सलीम हो, कैरानवी भाई या डॉ० अनवर जमाल... या फिर अपने भंडाफोड़ू जी, महाशक्ति या सुरेश चिपलूनकर साहब... सभी ने मुझे पहले से बेहतर समझ देने, बेहतर इंसान बनाने में मदद ही की है... समाज में उमड़ रहे हर तरह की विचारधारा के साथ engagement जरूरी है...
बहुत कह गया... आशा है आप मुझे समझने का प्रयास करेंगे।
आभार!
...
एक और सभा बनाते हैं, विश्वशांति धर्म सभा :)
जवाब देंहटाएंआप जैसे संयत व्यक्तित्व के लिए गलती के प्रारम्भिक दिन से इस ब्लॉग जगत में यह भूल सुधार अपेक्षित थी , जिसके लिए आपका शुक्रिया !
जवाब देंहटाएं@ मिश्रा जी - यह तो होना ही था, बस थोड़ी देर से हुआ…
जवाब देंहटाएं=========
मिथिलेश भाई - शायद आपने पढ़ा हो, किसी ब्लॉग पर मैंने कुछ समय पहले लिखा था "आप युवा हैं, ऊर्जावान हैं, लेकिन गलत संगत में पड़ कर भटक गये हैं…", यहाँ उसे सिर्फ़ दोहरा रहा हूं, कोई नसीहत नहीं, कोई सलाह नहीं…
=========
प्रवीण शाह जी - मेरे जैसे अकिंचन व्यक्तित्व का नाम, "इतनी बड़ी हस्तियों" के साथ लेकर आपने मुझे उपकृत किया है… :):)
==========
@ सलीम खान - मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि आखिर आपने मुझे अनवर जमाल की पोस्ट की लिंक पढ़ने के लिये क्यों भेजी, क्या साबित करना चाहते थे आप? या कैसा प्रभाव छोड़ना चाहते थे आप?
==========
आप जैसे विद्वान ने निर्णय सोच समझ कर ही लिया होगा ...रविन्द्र प्रभात जैसे अच्छे लोग भी है उधर ...मुझे लगता है कि आपको संस्था में रहकर पहले उसकी सफाई करनी चाहिए थी छोडने से पहले ....खुद बाहर आने से पहले ऐसे लोगो को बाहर भेजना था जो असामाजिक काम कर रहे हैं ...मुझे हकीकत नहीं पता ...ये मेरा अपना मत है !!
जवाब देंहटाएंram tyagi se sahmat
जवाब देंहटाएंram tyagi se sahmat
जवाब देंहटाएंhttp://ts.samwaad.com/2010/08/blog-post_07.html
जवाब देंहटाएंजब जागो तब सवेरा
जवाब देंहटाएंप्रणाम
MLA जी क्या चाहते हैं?
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंप्यार किया - बुरा किया
करके छोड़ दिया - बहुत बुरा किया
अब दुबारा करोगे - तुमसे बुरा कोई नहीं !
शीब भाई से अँशतः सहमत.. यह मुक्त विधा है, एहिमें एसोशियेशन या डिसोशियेशन का क्या काम ? कौन आपको कौमी अलख जगाना है, या जागृति की लहर पैदा करना है... जिसे आपसे जुड़ना होगा, वह आकर स्वयँ ही आपसे जुड़े.. हाँ नहीं तो !
मैं तल्ख़ी से बचते हुये यह क्यों कहूँ कि, इनमें तो कई क़यामत के दिन तक नफ़रत की आग में जलते रहने को अभिशप्त हैं ।
अपने पितरों से मुकर जाने का उन्हें शायद यही उचित प्रायश्चित लगता होगा ।
मैं मिल्लत-फ़ेसबुक पर भी हूँ, लेकिन वहाँ पर भी इस कदर ज़ुनूनी और अनुदार ख़लीफ़े नहीं दिखे, जितने कि यहाँ ब्लॉगर पर हैं ।
जैसा आपको उचित लगे!! शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंअच्छा किया छोड़ दिया. दिनेश जी की बात सही है.
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसा लगता है कि ब्लॉगजगत में केवल साहित्यिक और वैज्ञानिक विषयों से सम्बंधित समूह ही सफल हैं.