जी हाँ यह पोस्ट इस ब्लॉग (नया भंडास ) के प्रेरक वाक्य कि " कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा..." से उत्प्रेरित है ! यह वर्ष बीतने को बस गिने चुने दिन रह गए हैं ! सोचता हूँ मन पर छाये कुछ मटमैलेपन को दूर कर नए वर्ष के लिए मन को तरोताजा करुँ -एक नए उत्साह और खुलेपन से नए वर्ष का स्वागत करुँ ! ब्लागजगत में आये मुझे भी कुछेक वर्ष तो बीत ही चले -मगर यहाँ यह वर्ष तिक्तता ,मनोमालिन्य ,खिन्नता का जो दंश देकर जा रहा है शायद उसकी स्मृति आगे भी कई वर्षों तक सालती रह सकती है ! आत्मान्वेषण करता हूँ तो खुद को भी बरी नहीं कर पाता ! देखता हूँ दिन ब दिन अपने व्यवहार में हठी और आक्रामक होता जा रहा हूँ जबकि विनम्रता के महात्म्य से भलीभाति परिचित हूँ ! क्या यह सठियाने की शुरुआत है? -कल ही ५२ वर्ष का हो गया! इन दिनों ज्यादा लगता है कि दुष्टों और हार्डकोर अपराधियों को कठोर दंड मिलना ही चाहिए ! जैसे शंकर ने गुरू के अपमान पर एक शिष्य (जो आगे चलकर काकभुशुण्डी बना ) को श्राप ग्रस्त कर दिया -
जौ नहीं दंड करहुं खल तोरा भ्रष्ट होई श्रुति मारग मोरा
-मतलब जो तुम्हे दंड नहीं देता हूँ तो मेरा वेदमार्ग का आचरण ही नष्ट हो जाएगा ! दंड विधान भी यही कहता है कि कुछ लोगों को दंड देने में ही जन कल्याण निहित है ! समाज सुधारक अलग रवैया अपनाते हैं -गांधी जी तो कहते भये हैं -पाप से घृणा करो पापी से नहीं ! मगर ये पाप फैलाता कौन है ? फिर ये सोचता हूँ मैं कोई दंडाधिकारी तो हूँ नहीं और कुदरत ने भी ऐसी कोई काबिलियत मुझमें नहीं देखी तो फिर काहें इन पचड़ों में पडू -जो जैसा करेगा वैसा भरेगा ! और पाप पुण्य ,नैतिकता और अनैतिकता ,उचित अनुचित सब तो सापेक्षिक हैं !अलग अलग परिप्रेक्ष्यों में अलग तरीके से देखे सुने जाते हैं!
मगर इस मन का क्या करूं जो लोगों के आचरण से कभी कभी बहुत संतप्त हो जाता है ! अभी उसी दिन एक मेल प्राप्त हुआ -
""लेकिन अफ़सोस होता है आपकी बचकानी समझ में।
आपकी एक टिप्पणी के बारे में मेरे एक मित्र की टिप्पणी थी--
अरविन्द जी मुझे हर बार धोखा दे जाते हैं। मैं जब भी यह सोचता हूं (यहाँ कौन जाने सोचती हूँ भी हो सकता है -मित्र का नाम तो बताया नहीं न ) कि आप और नीचे न गिरेंगे तब वे पांच फ़ीट और नीचे गिर जाते हैं। अद्भुत पतन प्रतिभा है उनमें।"
आपकी एक टिप्पणी के बारे में मेरे एक मित्र की टिप्पणी थी--
अरविन्द जी मुझे हर बार धोखा दे जाते हैं। मैं जब भी यह सोचता हूं (यहाँ कौन जाने सोचती हूँ भी हो सकता है -मित्र का नाम तो बताया नहीं न ) कि आप और नीचे न गिरेंगे तब वे पांच फ़ीट और नीचे गिर जाते हैं। अद्भुत पतन प्रतिभा है उनमें।"
-- अब यह संवाद दो मित्रों के बीच का है जो एक तीसरे मित्र यानि मुझ पर फोकस थे !--यहाँ इंच और टेप लेकर मेरे गिरने की गति नापी जा रही है -अब मैं भी हांड मांस का बना साधारण मानुष ही हूँ किसी भी ईश्वरीय प्रतिभा से पूर्णतया रहित -अब क्यों न ऐसे वार्तालाप पर उद्विग्न न हो जाऊं -पर यह कड़वा घूँट भी गटक लिया है ! अब आप ही पंच फैसले करें कि जब ऐसे वार्तालाप और दुरभिसंधियाँ ब्लॉग जगत में चल रही हों तो मन दर्द से क्यूं न भर जाय!
बहरहाल आईये हम नए वर्ष के आगमन में थोडा और सहिष्णु बने ,विनम्र बनें ,एक दूसरे का सम्मान करना सीखें -सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार का अनुपालन करें ! लोगों को अपने व्यवहार से खुश करें और खुद इस प्रक्रिया में खुश हों ! कटुता के वातावरण से ब्लॉग जगत को छुटकारा दिलाएं ! ये संकल्प हम जल्दी से ले ले क्योंकि नए वर्ष में /के लिए तो और भी संकल्प करने हैं न ! अंत में एक आह्वान यह भी कि प्लीज ब्लॉग जगत को छोड़ कर कर न जाएँ -आप हैं तो यह ब्लॉग जगत भी गुलजार है!
पंडित जी भड़ास हम भी चलाते हैं उस दर्शन पर जिसकी पंचलाइन का आप जिक्र कर रहे हैं पता चला कि आप तो मुर्दा हो चुकी भड़ास कि ममी भड़ास blog पर ही रुक गये हैं सो खिन्न,अवसादित,खुन्नसिआया हुआ वापिस जा रहा हूं
जवाब देंहटाएंभड़ास अब अपने मूल दर्शन के साथ http://bhadas.tk पर मौजूद है
जय जय भड़ास
@"खिन्न,अवसादित,खुन्नसिआया हुआ वापिस जा रहा हूं"
जवाब देंहटाएंवापस मत जाईये लिंक लगा दिया है ! प्रथम ग्रासे मच्छिका पाते ..क्या करें तकदीर ही दगा दे रही है !
कटुता के वातावरण से ब्लॉग जगत को छुटकारा दिलाएं !
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी बिल्कुल सही है , समहती है ।
डॉक्टर साहब,
जवाब देंहटाएंजो जैसा करेगा, वैसा भरेगा...
इसलिए नए साल पर बाकी दिया गला छडो, बस दिल साफ़ होना चाहिदा...
जय हिंद...
स्वच्छ मन से अपना कार्य करिये. सब अच्छा होगा. अच्छा संकल्प लिया है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक है
जवाब देंहटाएंबाकी दिया गला छड्डो, बस दिल साफ़ होणा चाहिदा...
बी एस पाबला
लोगों को अपने व्यवहार से खुश करें और खुद इस प्रक्रिया में खुश हों,
जवाब देंहटाएंअरविंद जी यही होना भी चाहिए,खुशदीप सहगल जी की बात से मै सहमत हुँ। आभार
मन मलिन करने का कोई अर्थ नहीं है। आप एक अच्छे काम में लगे हैं। लगे रहिए। राह में रोड़े भी होंगे, कभी अपनी गलती से भी ठोकर लग सकती है। श्रेयस्कर यही है कि अपनी राह चलते रहें।
जवाब देंहटाएंआईये हम नए वर्ष के आगमन में थोडा और सहिष्णु बने ,विनम्र बनें ,एक दूसरे का सम्मान करना सीखें -सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार का अनुपालन करें!
जवाब देंहटाएंयाद दिलाने के लिए धन्यवाद! जन्मदिन और नव वर्ष की शुभकामनाएं!
लगता है कि आपने यह पोस्ट बहुत भावुक होकर लिखी है. देखिये, आपसे आयु में बहुत छोटी हूँ, इसलिये अनुभव कम है. पर इतना जानती हूँ कि विनम्रता एक सीमा तक ही ठीक है. शठ के साथ शठ का ही व्यवहार करना चाहिये. हाँ, उसमें भी शिष्टता बनाए रखनी चाहिये जिसकी बात आपने इस पोस्ट में कही है. वर्षान्त में, आशा है कि यह पोस्ट एक नये प्रकार का वातावरण सृजित करेगी.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिये धन्यवाद!
जीवन आगे चलने का नाम, बीती बात तिसारिये।
जवाब देंहटाएंमैं अक्सर सोचता हूं जो कल था वह झूट है। जो आज है वही सच है। जो कल होगा उसे देखना और बनाना है।
पाप पुण्य ,नैतिकता और अनैतिकता ,उचित अनुचित सब तो सापेक्षिक हैं !अलग अलग परिप्रेक्ष्यों में अलग तरीके से देखे सुने जाते हैं! यही तो असली बात है । आप तो समझते ही हैं इसे, फिर क्यों व्यथित मन !
जवाब देंहटाएंहम आपके संकल्प की खुराक ले चुके हैं । हाँ, अपनी क्रिया में संयम तो बरत सकते हैं, पर दूसरों को कैसे समझायें !
हम तो आपसे जन्मदिन समरोह की रिपोर्ट का इन्तजार कर रहे थे ....
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर हम सभी अपने विचारों के साथ इकठ्ठा होते हैं ...कोई सहमत हो सकता है कोई असहमत ...सभी एक तरह सोचे ये संभव नहीं ....प्रतिक्रिया करने का सबका अपना अपना तरीका होता है ...इसमें इतना व्यथित होने की कोई गुन्जायिश मुझे तो नजर नहीं आती ...
इस खलिश और वेदना को इसी साल यही छोड़ दीजिये और नए वर्ष का ख़ुशी से स्वागत करे ...!!
आईये हम नए वर्ष के आगमन में थोडा और सहिष्णु बने ,विनम्र बनें ,एक दूसरे का सम्मान करना सीखें -सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार का अनुपालन करें!
जवाब देंहटाएंवर्षों से यही होता आया है. नया साल आते आते यही सब विचार हमारे मन मे आते हैं. इसके जाते ही वो ही रामदयाल और वो ही गधेडी.
रामराम.
का भैया! ई कौन सा 'नामा' लिख पढ़ बैठे।
जवाब देंहटाएंअरे आग के जितने नजदीक रहेंगे आँच उतनी ही लगेगी। बीच बीच में चिनगारियाँ भी उछ्लेंगी, छटकेंगी - उन्हीं को लगेगीं जो निकट हैं। लेकिन निकट आने, रहने और आग को खोदने का साहस कितनों में है! .... प्रसन्न रहिए, सन्न नहीं। भोजपुरी में आँच को 'आह' भी कहते हैं। आह आग में ही रहने दीजिए... तापते चलिए, तपते चलिए... बहुत स्याह ठंडक है।
मिसिर जी !
जवाब देंहटाएंदोस्तोव्यकी का 'बौड़म' याद आने लगा .
खुद से ऐसे ही द्वंद्व-अन्तः द्वंद्व चलते हैं वहां भी .
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रोना तो सबके पास है , कोई रो लेता है और कोई
कहता है ---
'' रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिनको मजबूरिये-हालत ने रोने न दिया | ''
ऐसे में रोना व्यापक हो जाता है और निराशा आशा-प्रद !
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हम भी करते हैं नए साल की संकल्प-तैयारी !
आईये हम नए वर्ष के आगमन में थोडा और सहिष्णु बने ,विनम्र बनें ,एक दूसरे का सम्मान करना सीखें -सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार का अनुपालन करें!
जवाब देंहटाएं"होना भी यही चाहिए , उत्तम विचार हैं जिनका पालन शायद हमेशा ही होना तो चाहिए मगर फिर भी हम भूल जाते हैं और आरोप प्रत्यारोप में लिप्त हो जाने क्या तलाश करने निकल जाते हैं.
चलिए फिर एक बार सब मिलकर कोशिश करे और इन पंक्तियों पर अमल कर ब्लॉग जगत में एक स्नेह और आदर से परिपूर्ण वातावरण की शीतल छाया के निर्माण में अपना सहयोग दे. आभार "
regards
अरविन्द जी , आपका खिन्न होना स्वाभाविक है। जब आप अपनी जगह सही होते हैं, और दूसरों से चोट मिलती है तो ऐसा ही होता है। लेकिन वक्त के साथ सब जख्म भर जाते हैं। इसलिए उसे भूलना ही बेहतर है।
जवाब देंहटाएंएक बार मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था जब किसी ने अनाम टिपण्णी में ऐसी बातें लिखी की मैं उसे सार्वजानिक रूप से छाप नहीं सकता। वो भी बिना किसी कारण। ऐसा लगा था जैसे किसी ने ईर्ष्यावश ऐसा लिखा हो, हालाँकि हम तो ऐसे बड़े ब्लोगर भी नहीं है।
आप अपना काम करते रहें, सारी धूल अपने आप बैठ जाएगी।
और हाँ, देर से ही सही --जन्मदिन की हार्दिक बधाई अवम शुभकामनाएं।
दरअसल, कुल लोग ब्लॉग जगत में अपनी मठाधीशी टूटने से हैरान, परेशान हैं और जिन लोगों ने उनकी मठाधीशी को खुली चुनौती दी है, उनके खिलाफ एक सुनियोजित षणयंत्र के तहत तरह तरह का दुष्प्रचार किया जा रहा है।
जवाब देंहटाएंइसलिए अब समय आ गया है कि इस तरह के तमाम लोगों की असलियत लोगों को सच सच बताई जाए।
जीवन के और ईसवी सन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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इसे आप पहचान पाएंगे? कोशिश तो करिए।
सन 2070 में मानवता के नाम लिखा एक पत्र।
जन्मदिन की बधाई. बाकी तो आप ठीक कह ही रहे हैं.
जवाब देंहटाएंचलते रहे लिखते रहे यही कहा जा सकता है ..जन्मदिन की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंडॊ. सा’ब भडास तो निकल गई, अब लग जाइए फिर बिलागरी की जादूगरी में :)
जवाब देंहटाएंवैसे सच बात कहें तो इ ईमेल किसी को भी विदीर्ण करने के लिए काफी है....
जवाब देंहटाएंआप भी आहत हुए हैं ...और कौनो अचरज नहीं है...
बाकि आप जो संकल्प किये उ सिर्फ आपका संकल्प नहीं सबका संकल्प होगा...ऐसा विश्वास है....
अब इ कहावत भी सब सुने ही हैं...चार बर्तन हैं तो खड़-खड़ हईबे करी...
बाकि गिरिजेश जी का फार्मूला सही है....
तापते चलिए, तपते चलिए...
और हाँ सठियाये आपके ..दुसमन....हाँ नहीं तो...!!
अरविन्द जी पोस्ट के सन्दर्भों से अपरिचित हूँ इसलिए गूढता तक जाने का प्रयास नहीं कर रहा. खुशदीप जी ने जो बात कही और जिसकी वर्तनी पाबला जी ने दुरस्त की है मुझे बड़ी जायज किन्तु औपचारिक लगी. शेष बातें रहने दी जाये बस दिल साफ़ रखिये का फलसफा तभी कारगर है जब आप ब्लॉग लिखना छोड़ कर वन को प्रस्थान कर जाएँ. आप जिस क्रोध या कठोरता की बात कर रहे हैं मैं तो उसी का पक्षधर हूँ. और अभी से कहाँ सठियाने की बातें ? आठ साल पड़े हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लगी पोस्ट और टिप्पणियां।
जवाब देंहटाएंबाकी ये कही सुनी तो साल दर साल जारी देखी है!
समीर लाल जी और पाबला जी से सहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंकरिये छिमा- कुछ देर से आना हुआ।
जवाब देंहटाएंमसला जो भी हो, जन्मदिन की अतीव शुभकामनाएं।
काश कि आपके इस संकल्प के साथ अपना ये पूरा ब्लौग-जगत चले।
जवाब देंहटाएंसालगिरह की विलंब से मुबारकबाद....सठियाये की कहां बात छेड़ दी आपने। अभी तो ग़ालिब जवान है।