मुदिता नायिका वह है जिसे अप्रत्याशित ,अनपेक्षित और अचानक ही प्रिय मिलन का सन्देश या मौका मिल जाय ! तब उसके आह्लाद -आनंद का पारावार नहीं रहता ! मुदिताओं के दो प्रकार बताये गए हैं -प्रिय मिलन की सुनिश्चितता को इंगित करने वाली बात सहसा सुनकर आनंद विभोर होने वाली नायिका मिलन -निश्चय मुदिता कहलाती है तो प्रिय से अचानक ही मिलन हो जाने पर वही मिलन मुदिता बन जाती है .अब भला राकेश गुप्त जी से बेहतर इन नायिकाओं को कौन शब्द- पद्य बद्ध कर सकता है ! आईये मुदिता नायिका को लेकर लिखी उनकी कुछ रचनाओं का आस्वादन किया जाय !
( १)
दिया निमंत्रण नंदराय ने ,
पूजा का उत्सव था भारी ;
जा न सकूंगी, सोच व्यथित थी
कृष्ण प्रिया,वृषभान -दुलारी .
'मुझे काम है',कहा पिता ने ,
"मथुरा जाने की तैयारी. "
"तुम्ही चली जाना",माँ बोली ;
पुलक उठी सुन मुग्ध कुमारी
(2 )
पूजा करने गोवर्धन की
चली साथ सखियों के राधा ;
बिछुड़ गयी ,संग- संग चलने मे
हुई भीड़ के कारण बाधा .
"कैसे कहाँ उन्हें मैं ढूँढू ?"
हुआ राधिका का मन आधा ;
तभी अचानक देख श्याम को
फूल उठी वह प्रेम अगाधा
(३)
लौट रही थी यमुना तट से
ध्यानमग्न बाला अलबेली ;
ठोकर लगी ,मोच सी आई ,
लंगडाती तब चली अकेली .
पीछे छोड़ उसे आगे सब
निकल गयीं वे निठुर सहेली ;
तभी प्रकट हो दिया सहारा ,
बाहु कृष्ण ने कटि मे मेली
चित्र :स्वप्न मंजूषा शैल http://swapnamanjusha.blogspot.com/2009/12/blog-post_05.html
अरविंद भैया-बहुत बढिया नायिका वर्णन चल रहा है। मजा भी आ रहा है,आभार
जवाब देंहटाएंशानदार वर्णन!!
जवाब देंहटाएंमुदिता नायिका का काव्यात्मक वर्णन बहुत मधुर है राकेश जी की पंक्तियों में । अनुपम प्रस्तुति ! आभार ।
जवाब देंहटाएंनायिका के इस रूप का कोई जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएंनायिका प्रियतम के हर मिलन पर मुदिता रहे तो जीवन स्वर्ग हो जाए।
कल की गुप्ता अभी अपने गुणों से मुग्ध कर ही रही थी कि मुदिता के मुदित चेहरे ने माहौल में नया उजास भर दिया..!
जवाब देंहटाएंराकेश जी बेहतरीन बिम्ब उकेरते हैं..!
पाठशाला लगती रहे...!!!
घणे मुदित भये मुदिता से परिचय पा कर!
जवाब देंहटाएंrakesh ji ki lekhni ko naman.......bahut hi sundar bhav ujagar kiye hain.
जवाब देंहटाएंनायिका के कुल चार ही भेद बताये गये थे फ़िर विद्वानो ने आगे चल कर कई उपभेद किये । मुदिता पर आपका आलेख और श्रीयुत राकेश गुप्त की कविता बहुत अच्छी लगी ।निमंत्रण मिलने पर मथुरा जाने का सुन मुग्ध हो जाना तो हुई मुग्धा ,गोवर्धन पूजा मे क्रष्ण को देख प्रेम अगाधा यानी निश्चय मुग्धा और क्रष्ण के सहारा देने पर मिलन मुदिता अति सुन्दर चित्रण ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रयास
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने प्रस्तुत किया है जो काबिले तारीफ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंमुदित नायिका का वर्णन अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंअब आगे देखें क्या होता है ...
श्याम से अचानक मिलने और मिलने की प्रतीक्षा करती राधा की भावनाओं को आपकी राकेश गुप्त जी ने कविताओं में क्या खूब व्यक्त किया है ...तस्वीरें तो जैसे इन्हें गा कर सुना रही हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन ...!!
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जवाब देंहटाएं.
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मुदिता को देख हम भी 'मुदित' भये...
आभार !
अफ़सोस, इस नायिका के विषय में भी संस्कृत नाट्य-शास्त्रों में कोई वर्णन नहीं मिलता. पर यहाँ आपने बड़ी ही सुन्दरता से वर्णन किया है. राकेश जी की कविताएँ भी सिक्त हैं श्रृँगार रस से.
जवाब देंहटाएंवाह भाई !
जवाब देंहटाएंकविता ने तो गजब का कमाल किया
है ...
१- '' पुलक उठी सुन मुग्ध कुमारी ''
और ,
२- '' फूल उठी वह प्रेम अगाधा ''
सहजता ने दूसरे का ज्यादा पक्ष लिया है और शायद
सच भी यही है , अनिश्चितता वाले का मजा ही कुछ
और है ,,,
कागा सब तन खाइयों, ये दो नैना खाइयो, मोहे पिया मिलन की आस :)
जवाब देंहटाएं@ दिनेशराय द्विवेदी जी
जवाब देंहटाएंनायिका नायक के हर मिलन पर मुदिता होती रहे तो जीवन स्वर्ग बन जाये।
कस्सम से, दस मिनट पेट पकड़ कर हँसा हूँ। गुरुदेव यह संदेश है या कसक.. :)
बहुत सारे भेद छूट गये थे, एक-एक कर पढ़ रहा हूँ।
itanaa kyun padhte hai aap...?//
जवाब देंहटाएंaur kyun likhte hain....????????????
likhnaa padhnaa band kijiye aur..
naayikaa ko samjhiye