सोलह नायिकाओं के उपरान्त कतिपय उपभेदों की भी चर्चा कर ली जाय.वैसे ये उपभेद तो मुख्य रूप से वर्णित सोलह नायिकाओ की मनस्थिति और उनकी दशा में तनिक विचलन की ही प्रतीति हैं! अब जैसे शील -संकोच और सलज्जता के लिहाज से नायिकाओं के तीन उपभेद हैं -मुग्धा ,मध्या और प्रगल्भा !
तो क्या राधा प्रगल्भा नहीं हैं ?
नायक के प्रति जिस नायिका का व्यवहार सलज्ज और संकोचशील होता है उसे मुग्धा कहते हैं और उत्तरोत्तर बढ़ती घनिष्ठता से जब यह संकोच और लज्जा कमतर होने लगती है तो वह मध्या बन जाती है और पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा बन जाती है! जैसे मुख्य नायिका भेद की संयुक्ता का उदाहरण प्रगल्भा से ही तो सम्बन्धित है.
ये समहितायें तो नहीं ?
इसी तरह नायक के नायिका के प्रति समर्पण ,आंशिक अथवा अनन्य प्रेम के आधार पर नायिकाएं चार प्रकार की वर्गीकृत हई हैं .समहिता ,ज्येष्ठा,कनिष्ठा और स्वाधीनवल्लभा . एकाधिक प्रेयसियों में जब नायक का प्रेम समान रूप से बटता है तो इसमें से कोई भी समहिता कहलाती है .और ऐसी ही स्थिति के अन्य प्रकरण में जिस नायिका को प्रेमी का अधिक प्रेम मिलता है अर्थात जो अपेक्षाकृत अधिक प्रेम की अधिकारिणी बन उठती है तो वह ज्येष्ठा कहलाती है और जो नायक का सबसे कम प्रेम हासिल कर पाती है नवयौवना कनिष्ठा होती है ! ..और नायक के अविभाजित प्रेम की अनन्य अधिकारिणी,उसके दिल पर एक छत्र राज्य करने वाली नायिका स्वाधीनवल्लभा कहलाती है ! यही स्वाधीनवल्लभा ही पूर्णरूपेण समर्पिता भी है ,गर्विता है -रूप गर्विता और प्रेमगर्विता भी!
स्वाधीनवल्लभा सीता
इस प्रविष्टि के साथ ही नायिका भेद की यह श्रृंखला अब समाप्त हुई! यह बिना आपके अनवरत स्नेह और प्रोत्साहन के समापन तक नहीं पहुँच सकती थी ! आप समस्त सुधी पाठकों का बहुत आभार ! स्वप्न मंजूषा शैल का मैं विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद इस श्रृंखला के लिए पूरी तन्मयता और परिश्रम से सटीक चित्र जुटाए ! अकादमिक कार्यों के प्रति उनकी यह निष्ठां उनके प्रति मन में सम्मान जगाती है -उनकी इस विशेषता को मेरे सामने उजागर किया था वाणी जी ने -इसलिए "बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय" के अनुसार वे भी मेरी सहज कृतज्ञता की अधिकारिणी हैं ! आराधना चतुर्वेदी(मुक्ति ) के लिए मेरे मन में कृतज्ञता और प्रशंसा के मिश्रित भाव हैं जो संस्कृत की अधिकारी विद्वान् हैं और जिन्होंने नायिका भेद के शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत श्रृंखला का परिशीलन किया और समय समय पर आपने दृष्टिकोण से अवगत कराते हुए मेरा मार्गदर्शन किया! मित्रों (नर नारी दोनों ) में कई नाम हैं और वे जान रहे होगें /रही होगीं कि मैं उनके सौहार्द के प्रति कितना संवेदित रहता हूँ -अतः सभी का अलग से नामोल्लेख करना कदाचित जरूरी नहीं है!
उन सभी प्रखर विरोधियों का भी मैं ह्रदय से आभारी हूँ जिन्होंने अपने विरोध से मेरे संकल्प को और भी दृढ बनाया! अगर नर नारी के संयोग वियोग/श्रृंगार पक्ष को साहित्य से ख़ारिज कर दिया जाय तो न जाने कितनी राग रागिनियाँ ,कला चित्र -पेंटिंग्स ,गीत गायन को भी हमें अलविदा कहना पड़ेगा! कुछ नारीवादी इसे नारी के शरीर के प्रति पुरुष का अतिशय व्यामोह जैसा गुनाह मानते/मानती हैं -उनसे यही कहना है नर नारी निसर्ग की उत्कृष्टतम कृतियाँ हैं -जब हम प्रकृति की अनेक रचनाओं का अवलोकन कर आनंदित होते हैं तो फिर यहाँ अनावश्यक प्रतिबन्ध और वर्जनाएं क्या हमारी असामान्यता की इन्गिति नहीं करते ?
मैंने सोचा था कि इसी श्रृंखला में ही नायक भेद को भी समाहित कर लूँगा मगर तब तक वर्ष का अवसान आ गया -इसलिए अब इस पुनीत कार्य को अगले वर्ष पूरी जिम्मेदारी से (जल्दीबाजी से नहीं )करने का संकल्प लेता हूँ!
जबरदस्त गुरू जी, आपका यह ज्ञानदान बहुतों को लाभान्वित करेगा।
जवाब देंहटाएंमैने तो चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, और ज्वालामुखी ही जाना था। अब कुछ ठीक से जान पाया। :)
नायक के प्रति जिस नायिका का व्यवहार सलज्ज और संकोचशील होता है उसे मुग्धा कहते हैं और उत्तरोत्तर बढ़ती घनिष्ठता से जब यह संकोच और लज्जा कमतर होने लगती है तो वह मध्या बन जाती है और पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा बन जाती है!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह जानकारी.....
उपरा वाला फोटउवा माँ किसनवा बहुते बदमाश लग रहा है।
जवाब देंहटाएं_____________________________
अगले वर्ष की प्रतीक्षा रहेगी।
यह श्रृंखला अच्छी रही। सबसे बड़ी बात रही कि ब्लॉगराओं ने बहुत सार्थक योगदान किए।
... भारी भरकम व्यक्तित्त्व! हे राम !!
बढ़िया चित्रमय प्रस्तुति..आभार अरविंद जी
जवाब देंहटाएंसब जान लिया, धन्यवाद कह रहे हैं.
जवाब देंहटाएंक्या बात है , मंत्र मुग्ध कर दिया आपने । सच जो जानकारीं आपने अल्प समय में दिया , वह काबिले तारीफ है , ।
जवाब देंहटाएंसुंदर और ज्ञानवर्धक रही यह श्रंखला। स्त्री के मनोभावों पर आधारित इस नायिका भेद से जाना कि नायक और नायिकाओं के असंख्य भेद हो सकते हैं।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंआपके नायिका ज्ञान से लोग बहुत लाभान्वित हुए हैं.....
अब अगले वर्ष कुछ पोल-पट्टी नायकों की भी खोलिए ना....हम भी तो देखें नायकों में भी कुछ गुण दुर्गुण हैं कि नहीं.....कि सब एकदम ही बेलचट हैं....कौनो काम के हैं ही नहीं....
इंतज़ार करेंगे....
@गिरिजेश जी,
ततैया के छत्ता में हाथ डाल रहे हैं...;)
ब्लाग्गर / ब्लागरानी / ब्लागराइन / ब्लागेश्वरी अथवा ब्लागरा
मेरा आभार प्रकट करके आपने जो सम्मान दिया उसके लिये धन्यवाद! वस्तुतः श्रृंगार-रस के संदर्भ में सौन्दर्यशास्त्र, संस्कृत काव्यशास्त्र का अभिन्न अंग है. आपने नायिका-भेद के माध्यम से उसे हमारे सामने प्रस्तुत किया. इससे हमारे ज्ञान में वृद्धि हुई... ... नायिका-भेद के संदर्भ में मेरी दृष्टि थोड़ी आलोचनात्मक है. परन्तु मैं उसे शास्त्र, संस्कृत-साहित्य का अभिन्न अंग और प्राचीन संस्कृति का एक भाग मानकर उसका सम्मान करती हूँ. आशा करती हूँ नायक-भेद की विवेचना करने का अपना वादा पूरा करेंगे...पुनः धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअपि च! एक बार फिर नायिकाओं के उपभेद के विषय में जानकर अच्छा लगा.तस्वीरें और अच्छी लगीं.
मेंहदी हसन की एक ग़ज़ल याद आ गई...
जवाब देंहटाएंप्यार जब हद से बढ़ा सारे तकल्लुफ़ मिट गये
आप से तुम हुए फ़िर तू का उन्वां हो गये
दिन-ब-दिन बढ़ती गईं उस हुस्न की रौनाइयां
पहले गुल फ़िर गुलबदन फ़िर गुलबदाना हो गये..
सारे लिंक सहेज लिये हैं.. इस साल की देन।
नायक भेद हम बालक लोगों के पढ़ने की चीज है क्या??
मिश्रा जी आप का लेख तो बहुत सुंदर है, लेकिन यह दोनो ऊपर वाले चित्र तो हमारे दिमाग की उपज मात्र है, राधा दिवानी थी कृष्ण की, लेकिन सेक्स जेसा उन मै कुछ नही होगा, आज से ४० साल पहले हालात केसे थे सोचिये? तो उस समय केसे होंगे, यह तो हमारे लोगो ने भजनो मै, चित्रो मै भगवान कृष्ण को प्लेय वाय बना दिया, क्योकि हमे प्यार का अर्थ सिर्फ़ सेक्स मै ही दिखता है, यानि अगर मै किसी से कहूं कि मै तुम्हे प्यार करता हुं तो उस का मतलब सिर्फ़ सेकस ही माना जायेगा, जब कि प्यार तो एक पबित्र भगती के समान है, अगर कृष्ण इन चित्रो के समान थे तो वो भगवान नही हो सकते.
जवाब देंहटाएंहालांकि मैंने कृतज्ञता जताने जैसा कोई कार्य किया तो नहीं है मगर विद्वानों से मिली डांट फटकार और स्नेह को एक सामान भाव से ग्रहण कर लेना चाहिए ...इसलिए इस सम्मान के पात्र ना होते हुए भी अपने आपको अनुग्रहित पा रही हूँ ...बहुत आभार ..
जवाब देंहटाएंसखिया विभिन्न नायिकाओं का नाम दे देकर बहुत सता चुकी हैं ...अब नायक भेद श्रृंखला शीघ्र प्रारंभ करे ..ताकि सखियों सहित कुछ नायकों की भी खबर ले सके ...!!
ज्ञान मे अतिशय वृद्धि हुई. अब नायक भेद जानकर पुर्णता को प्राप्त हुआ चाहते हैं. इंतजार २०१० का.
जवाब देंहटाएंनववर्ष की पहली बधाई आप स्वीकार करें. आज से ही शुरु की है.
रामराम.
bahut hi badhiya shrinkhla rahi agli shrinkhla ka bhi isi prakar intzaar rahega.
जवाब देंहटाएंएक भय है ! कहीं ऐसा ना हो की पंडित केवल भेदभाव में लगा रह जाये और ब्लागर मित्रगण
जवाब देंहटाएंभांवरें पाड़ लें ?
(सावधान:कतिपय टिप्पणीकारों के इरादे नेक...?)
हर नारी में ये तीन गुण होते ही है! विवाह पर मुग्धा , कुछ समय बाद मध्या और फिर अंत में तो प्रगल्भा है ही :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय मिश्र जी !
जवाब देंहटाएंइस आयोजन के सफल निबाह और
पूर्णाहुति पर बधाई स्वीकार करें !
नया साल नायक - भेद के साथ गजब
ढाये , ऐसी शुभकामना करता हूँ ..
आपको नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएँ 'अडवांस' में ...
हाय, कौन है जिसने मुग्धा ,मध्या और प्रगल्भा के रास्ते चण्डिका बनने का रूपान्तरण न देखा! :)
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं"तो क्या राधा प्रगल्भा नहीं हैं ? "
जवाब देंहटाएंओह यूँ तो सोचा ही नही..!
समहिता जाने कैसे खुश रह पाती हैं..?
"स्वाधीनवल्लभा"
तो मुझे मेरे गाँव की दादियाँ लगती हैं..सच्ची..!
एक बेहतरीन प्रस्तुति..निश्चित ही...काफी कुछ सीखा..देखता हूँ कहाँ-कब काम आता है...!
ठीक ही किया नायक-भेद अब करेंगे..!
परस्पर भेदों की तुलना भी कीजिएगा , रोचक होगी...!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें...!
सुदंर.. अति सुंदर..
जवाब देंहटाएंनायक नायिका के उपभेदों की जानकारी से मन हर्षित हुआ।
कितनी गंभीर रिसर्च और कितनी अच्छी, इतना कुछ हमारे लिये जुटाने के लिए हम आपको कैसे धन्यवाद करें
जवाब देंहटाएंप्रारंभ से लेकर अब तक यह शृंखला आकर्षण का केंद्र रही - कारण जो रहा हो |
जवाब देंहटाएंमैंने तो बहुत कुछ जाना इन प्रविष्टियों से | प्रस्तुति को बैलेंस करना तो सीख ही गया | आभार |
नायक-भेद की प्रतीक्षा |
हमारे ज्ञान चक्षुओं को वाइड..और वाइड करने का बहुते-बहुते शुक्रिया मिश्र जी।
जवाब देंहटाएंप्रगल्लभा...हम्म्म्म्म!
वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
जवाब देंहटाएं-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,
डॉ मनोज मिश्र
---- पूर्णयौवना नायिका जब नायक के साथ निःसंकोच व्यवहार करने लगती है तो वह प्रगल्भा----निसंकोच व्यवहार रति-भावना का प्रतीक नहीं...
जवाब देंहटाएं---क्या राधा प्रगल्भा नहीं है----
---राधा प्रगल्भा नायिका है...परन्तु प्रगल्भा का अर्थ ..रति आसन्ना नहीं होता ....नायिका व रति भावा व रति आसन्ना में बहुत अंतर है..
--नायिका कोई भी हो सकती है आवश्यक नहीं वह रति भाविता भी हो...
---प्रेम व काम भावना में यही अंतर है ...
बहुत ही अच्छा लिखा था ऐसे ही लिखते रहिए।
जवाब देंहटाएंवैसे हम भी थोड़ा बहुत लिखने का शौक रखते हैं। हमारे लेख पड़ने के लिए आप नीचे क्लिक कर सकते हैं।
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