राकेश गुप्त जी की ये पंक्तियाँ देखिये -
पिता गए परदेश ,कह गए ,
"नहीं छोड़ना घर सूना, री! "
चली पिरोजन में माँ यह कह ,
"रहना सजग राधिका प्यारी! "
रूठ गयीं सखिया मत्सरवश ,
उनको मना मना मैं हारी !
आज अकेली भीत विमन मैं ,
मत मिलने आना गिरधारी !
"नहीं छोड़ना घर सूना, री! "
चली पिरोजन में माँ यह कह ,
"रहना सजग राधिका प्यारी! "
रूठ गयीं सखिया मत्सरवश ,
उनको मना मना मैं हारी !
आज अकेली भीत विमन मैं ,
मत मिलने आना गिरधारी !
नायिका प्रत्यक्षतः तो प्रिय को मना कर रही है कि वे ना आये मगर मिलन के इतने सुन्दर अवसर को हाथ से न जाने का चतुराई भरा संकेत निमंत्रण भी वह दे रही है -"आज तो मैं निपट अकेली ,डरी सहमी सी ,क्लांत सी हूँ " .प्रकारांतर से यह मिलन का एक पावरफुल आमंत्रण ही तो है ! प्रगटतः उसके शब्द मिलन की मनाही कर रहे हैं, मगर सच में वह कह रही है ,
"आ जाओ न प्रिय आज मिलन का सुनहरा मौका है ..."
नायिका उपभेद में आगे हम क्रिया विदग्धा की भी चर्चा करेगें !
नायिका भेद पर नैतिक -शुद्धतावादियों ,समाज के पहरुओं और लंबरदारों की भृकुटियाँ तन रही हैं -हम उन्हें भी माकूल जवाब देगें -उचित समय और अवसर पर !
चित्र सौजन्य :स्वप्न मंजूषा शैल
चित्र सौजन्य :स्वप्न मंजूषा शैल
भैया !
जवाब देंहटाएंअब समझ में आया ...
पिछली पोस्ट के बाद इस पोस्ट का मतलब ...
दूध की जली ( कौन,नहीं कहूँगा ) छाछ भी फूँक-फूँक पीती है : )
यहाँ मामला बढियां है ,,,,,,,,, न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी ...........
...................................................................................................
@ भृकुटी तानने वाले .......
'' इहाँ कुम्हड़ बतिया केउ नाहीं |
जिहिं तर्जनी देखि मरि जाहीं || ''
....................................................................................................
bahut hi sundar tarike se bhavon ko ukera hai.
जवाब देंहटाएंसुंदर! ये सब जीवन के यथार्थ हैं।
जवाब देंहटाएंदरअसल 'नायिका भेद' के विषय में ही हम पहले बार जान रहे हैं...
जवाब देंहटाएंआज चतुर नायिका 'विदग्धा' के विषय में जानकारी मिली..
सुन्दर....अतिसुन्दर...
धन्यवाद..
इस श्रृंखला से हम जैसे घोंचू टाइप के लोगों को बहुत सीख भी मिल रही है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर श्रंखला...
जवाब देंहटाएंरामराम.
अच्छा, विदग्धा यानि आत्म निर्भर! बोले तो भारत कृषि में एक विदग्ध राष्ट्र है! :)
जवाब देंहटाएं`आज अकेली भीत विमन मैं ,
जवाब देंहटाएंमत मिलने आना गिरधारी !'
अच्छा संकेत दिया गिरधारी को.. अब देखना यह ह वो बुद्धु समझ पाया या नहीं:)
अजी क्यो पुरानी याद याद दिला रहे हो....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन, राकेश जी के कवित्त के साथ, आभार
जवाब देंहटाएं"भाटिया जी को पुरानी याद दिला दी आपने"
मिठाई वांच रहे हैं आप . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंथोड़ा देर हो गई..मगर कुछ मिस नहीं किया. :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ बड़ी पहलवान नायिका से पाला पड़ा। अकेले ही धून दी !
जवाब देंहटाएंआज फुरसत से बैठा समस्त नायिकाओं से मिलने। विगत कुछ दिनों की इधर-उधर की व्यस्तताओं से निजात पाकर....
जवाब देंहटाएंउलझन ये है कि तस्वीरों की खूबसूरती निहारूं कि शब्दों की...???
ये तो माडर्न नायिका लगती है।
जवाब देंहटाएं--------
अदभुत है हमारा शरीर।
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा?
हमारी नायिकाओं के बहुत से रंग हैं - क्रमशः अनावृत होते जायेंगे ।
जवाब देंहटाएंविदग्धा का यह परिचय अच्छा लगा । आभार ।
संस्कृत नाट्यशास्त्रों में इस नायिका के विषय में वर्णन है या नहीं, मुझे ज्ञात नहीं. परन्तु ऐसी चतुर नायिकाओं का वर्णन व्यंजना वृत्ति के उदाहरण के रूप में काव्यशास्त्रों में बहुत पढ़ा है. प्रस्तुत कविता से मिलता-जुलता उदाहरण "ध्वन्यालोक" में व्यंग्यार्थ के उद्धरण के रूप में आचार्य आनन्दवर्धन ने दिया है -
जवाब देंहटाएं"श्वश्रूरत्र निमज्जति अत्राहं दिवसकं प्रलोकय
मा पथिक रात्र्यन्धकं शय्यायां मम निमंक्ष्यसि"
(हे पथिक ! दिन में अच्छी तरह देख लो, यहाँ सासजी सोती हैं और यहाँ मैं सोती हूँ. रात में अन्धेरे के कारण कहीं हमारी खाट पर न गिर पड़ना) यहाँ निषेधरूपेण नायिका निमन्त्रण दे रही है. जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि श्रृंगार-शतकों में ऐसे उदाहरण बहुतायत में हैं. पर इस प्रकार की नायिका का अलग वर्ग नहीं है इस उद्धरण में नायिका प्रोषितभर्तृका है और पथिक को निमन्त्रण दे रही है.
यह प्रसंग कुछ अटपटा लगता है, परन्तु श्रृंगार-वर्णन में मान्य है.
नायिका भेद पर नैतिक -शुद्धतावादियों ,समाज के पहरुओं और लंबरदारों की भृकुटियाँ तन रही हैं -हम उन्हें भी माकूल जवाब देगें -उचित समय और अवसर पर
जवाब देंहटाएंरोचक होगा. वह माकूल जवाब ज़रूर पढने आयेंगे.
बहुत रोचक.
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