यह नायिका अन्यसंभोगदु:खिता है!
"अरी ,दुष्ट मैंने तो तुम पर विश्वास कर प्रिय तक बस एक सन्देश ले जाने को भेजा था ,मगर यह तो सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम उनसे ही रासरंग रचा बैठोगी! अरी विश्वासघातिनी ,यह तेरा अस्त व्यस्त श्रृंगार ही सारी बाते बता दे रहा है ,रति चिह्न सारी पोल खोल रहे हैं ,यह खुली वेणी ,लम्बी निःश्वास -उच्छ्वास और पसीने से तर बतर तुमारा ये बदन -रे कलमुही, क्या महज यह सब मुझे दिखाने मेरे पास आई हो -चल दूर हट जा मेरी नजरो से अब!"
यह भी तो हो सकती है आज की दुखिता
..डांट खाकर !
यह नायिका अन्यसंभोगदु:खिता है जो अपनी दूती /सखी पर प्रिय के रति चिह्नों को देख विस्मित और सहसा दुखी हो गयी है !
..और यह भी कहीं न हो जाय? किमाश्चर्यम??
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भी ऐसी नायिकाएं क्यों नहीं हो सकतीं? युग दृश्य और पात्र बदल गए तो क्या हुआ मानव मन तो अभी भी बहुत कुछ वैसा ही तो है ना ? अथवा नहीं?
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भी ऐसी नायिकाएं क्यों नहीं हो सकतीं? युग दृश्य और पात्र बदल गए तो क्या हुआ मानव मन तो अभी भी बहुत कुछ वैसा ही तो है ना ? अथवा नहीं?
और कल की दुनिया में भी क्या नहीं रहेगी यह नायिका?
अरविंद जी नायिका भेद तो अच्छा चल रहा है पर आज राकेश जी का कविताचित्र नही मिला, उसकी कमी अवश्य महसूस हो रही है। आभार
जवाब देंहटाएंभैया !
जवाब देंहटाएंई बाति तौ आजौ है ...
मूला , यहि समस्या से तौ मर्दौ परेसान हुवत आये हैं |
चचा ग़ालिब कै यक 'शेर' ठोंका चाहित है ........
'' जिक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना
बन गया रकीब आखिर जो था राजदां अपना | ''
इस तरह की नायिका बहुत विशिष्ठ है। इन भेदों से हम भी बहुत कुछ सीख रहे हैं।
जवाब देंहटाएंइण्ट्ररनेट खंगालें - ये वाली नायिका अब खांची भर मिलेगी! पुराने जमाने में कम होती रही होगी। भविष्य पुराण में शायद जिक्र रहा हो! उस समय के लिये फ्यूचर की चीज!
जवाब देंहटाएंअरे यह नायिका तो अब खूब होंगी ......... अब ज्ञान जी कह रहे तो मानना ही पड़ेगा | कई फ़िल्में और डाकिया वाली गाथाएं तो जनमानस में आम है; चाहे वह नायिकाएं हों या ............नायक!
जवाब देंहटाएंहे..भगवान्...!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी पिटाई चल रही है.....झोंटा-झोटी पर भी उतर आयीं हैं लोग...
इ नायिका हैं कि 'बिल्लन' माने 'वैप'...!!!
आखिरकार झोंटा पकड़ का भेद भी बता दिया ....उम्दा महाराज जी आभार
जवाब देंहटाएंप्रतिस्पर्धा तो प्रेम का विशेष दुर्गुण है.
जवाब देंहटाएंपेंटिंग न होना खल गया।
जवाब देंहटाएं3D सॉफ्टवेयर से बनी नायिकाएँ दिखा कर आप ने अपने साइ फिक्सन वाला पक्ष भी सूक्ष्मता से रख दिया है। बहुत अच्छा लगा।
जरा सोचिए यदि पुरानी शैली वाली पेंटिंग भी होती तो युग यात्रा सम्पन्न हो जाती - भूत, वर्तमान और भविष्य।
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हास्य रचने के लिए बेलन, पति और पत्नी का सर्व समझदार चित्र भी दिया जा सकता है - ऐसी नायिका क्या कहलाती है ? क्रूरकर्मा या क्रूरकर्मलब्धा?
यह तो ऐसा है कि आशिक ने खत भिजाया और क़ासिद से ही आशिकी कर ली :)
जवाब देंहटाएं"अरी ,दुष्ट मैंने तो तुम पर विश्वास कर प्रिय तक बस एक सन्देश ले जाने को भेजा था ,मगर यह तो सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम उनसे ही रासरंग रचा बैठोगी! अरी विश्वासघातिनी ,यह तेरा अस्त व्यस्त श्रृंगार ही सारी बाते बता दे रहा है ,रति चिह्न सारी पोल खोल रहे हैं ,यह खुली वेणी ,लम्बी निःश्वास -उच्छ्वास और पसीने से तर बतर तुमारा ये बदन -रे कलमुही, क्या महज यह सब मुझे दिखाने मेरे पास आई हो -चल दूर हट जा मेरी नजरो से अब!"
जवाब देंहटाएंye sab duti ke liye hai ?
naayak ke liye kuchh nahin ?
@अनाम /अनामिका
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी पते की है! यहाँ बात उदात्त नायिकाओं की हो रही है
कर्कशाओं की नहीं ,ये नायिकाएं नायक विमुख तो हो ही नहीं सकती!
नायक विमुख होकर पुरुष कृत साहित्य में फिर कहाँ मान पातीं !
अरे यह लडाई भी बहुत भयंकर दिख रही है जी, लगता है नायिका ओर अनामिका ही लडने लगी है, यह तो.... अरे अर्विंद जी इन्हे छूडाओ भाई...
जवाब देंहटाएंइस नायिका के विषय में मुझे संस्कृत में कुछ नहीं मिला. पर ऐसे प्रसंग अवश्य संस्कृत-साहित्य में बहुतायत में हैं, जहाँ प्रेमिका का संदेश लेकर गयी दूती ही नायक से प्रेम कर बैठती है और उसके प्रणय-चिन्हों को देखकर नायिका क्षुब्ध हो जाती है. ये रोचक है कि उर्दू शायरी में रक़ीब से यही शिकायत आशिकों को होती है जैसा कि अमरेन्द्र जी ने कहा.
जवाब देंहटाएंप्रेम-त्रिकोण की कहानी तो प्रत्येक युग में लोकप्रिय रही है. कुछ टिप्प्णीकारों ने कहा है कि ये बातें भविष्य के बारे में कही गयी होंगी तो ऐसा नहीं है. प्राचीन संस्कृत-साहित्य में ऐसे अनेक प्रसंग हैं मुख्यतः श्रृँगार शतकों में ( अमरुकशतक और भर्तृहरि का श्रृँगारशतक आदि).
असल में प्रेम मानव-मन का इतना गूढ़ मनोविकार है कि सैकड़ों नायिका-भेद भी उसे पूरी तरह नहीं प्रस्तुत कर सकते हैं, फिर भी हमारे काव्यशास्त्रियों ने प्रयास किया है.
आपके आज के चित्रों ने तो हास्य रस की उपस्थित कर दी है. कल्पना कीजिये कि इनके स्थान पर पुरुष हों तो,( कट्टा और बम ना चल जायेंगे).
नायिका ज्ञान अर्जित करते चल रहे हैं सौजन्य से पंडित जी.
जवाब देंहटाएंहाँ ...डाकिये से भी तो प्रेम कर बैठती हैं नायिकाएं ...
जवाब देंहटाएंअन्यसंभोगदु:खिता....इन से नायक और नायिका सबक लेंगे ...अपने सन्देश खुद ही पहुंचाए ...
क्या अगली प्रविष्टि खलनायिका भेद की होगी ..?
@मुक्ति जी ,
जवाब देंहटाएं"असल में प्रेम मानव-मन का इतना गूढ़ मनोविकार है"
क्या प्रेम शब्द के लिए विकार शब्द उपयुक्त है ?
शायद इस उदात्ततम मानवीय व्यवहार के लिए कोई भी विशेषण
दिया जाना इसकी व्यापक अर्थवत्ता को अभिव्यक्त न कर पाने की अकुलाहट ही है !
क्या प्रेम के मिस विकार शब्द को और विश्लेषित कर सकेगीं ?
विकार शब्द की व्युत्पत्ति क्या है ?
"आपके आज के चित्रों ने तो हास्य रस की उपस्थित कर दी है. कल्पना कीजिये कि इनके स्थान पर पुरुष हों तो,( कट्टा और बम ना चल जायेंगे)"
यह दृश्य हास्य उत्पन्न करे या न करे आये दिनों समाचार पत्रों के
जरिये सामान आशय की खबरों और कभी कभार चित्रों के जरिये
रौद्र और विद्रूप रस का साक्षात अवश्य करते हैं !
हाँ कट्टा और बम वाली बात भी दुरुस्त ही है !
चित्रों की योजना सुन्दर है । बहुत सी बातें तो ये चित्र ही कह जाते हैं । राकेश जी की कविता की कमी तो निश्चित ही महसूस हो रही है ।
जवाब देंहटाएंरोचक एवं मनोरंजक चर्चा।
जवाब देंहटाएंनायिकाओं की समकालिकता वाला पक्ष बहुत जोरदार है।
kafi rochak shrinkhla chal rahi hai.
जवाब देंहटाएं@ आदरणीय अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंहिमांशु भाई को एक महसूस हुई,,,,,,,, और मुझे कुछ
तुकबंदी सूझी [ आप ही का पढ़ कर ] ,,,,,,,,,,,, जो इस प्रकार है -------
...............................................................................
'' रे विश्वासभंजिनी , तूने कैसा मुझ पर वार किया !
मेरे प्रिय से नैन लड़ाया और प्रणय-व्यापर किया |
तेरी यह रति-श्लथ काया उपहास हमारा करती है ,
दूती नहीं कलमुही, हट जा, तूने अत्याचार किया || ''
................................................................................
का पता , कैसी बनी ,,,,,,,, आपन काम तौ ह्वै गवा ...........
@ आदरणीय अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंहिमांशु भाई को एक महसूस हुई,,,,,,,, और मुझे कुछ
तुकबंदी सूझी [ आप ही का पढ़ कर ] ,,,,,,,,,,,, जो इस प्रकार है -------
...............................................................................
'' रे विश्वासभंजिनी , तूने कैसा मुझ पर वार किया !
मेरे प्रिय से नैन लड़ाया और प्रणय-व्यापर किया |
तेरी यह रति-श्लथ काया उपहास हमारा करती है ,
दूती नहीं कलमुही, हट जा, तूने अत्याचार किया || ''
................................................................................
का पता , कैसी बनी ,,,,,,,, आपन काम तौ ह्वै गवा ...........
बढिया और ज्ञानवर्धक श्रंखला. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
mishraji aap to mahaan nikle ! blogging ki nayee -nayee vidhaon se parichit ho raha hoon !
जवाब देंहटाएंCHITR BAHUT HI ACCHE HAIN .... BAAKI BAHI PREM KI BAAT HONI CHAHIYE ... NA KI DVESH KI ....
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