सोमवार, 9 नवंबर 2009

यह नायिका कहलाती है आगतवल्लभा !(नायिका भेद)

मुझे बहुत खुशी है इस श्रृंखला को ब्लागजगत में  सकारात्मक रूप से लिया गया है ,इसके पीछे भावना  बस अपनी जानकारी को मित्रों से बांटना है और एक सार्थक विमर्श ही है ! हमारी शास्त्रोक्त /हिन्दी साहित्य की नायिकाएं एक काल खंड के सौन्दर्य /संवेदना /रस बोध की अभिव्यक्ति  हैं -मानव के सौन्दर्यानुभूति की एक ज्ञात प्रस्थानिका या संदर्भ  बिंदु जिससे हम उत्तरवर्ती और आधुनिक मनुष्य के   सौन्दर्यबोध का तुलनात्मक आकलन कर सकते हैं -मानव की संवेदना में आये युगीन परिवर्तनों का भी एक जायजा ले सकते हैं !  जैसे अब तक उल्लिखित विरहिणी नायिकाओं पर आप सभी के  अनुकथन से यह बात साफ़ तौर पर उभर कर सामने आई है कि आज तकनीकी जुगतों के चलते  पहले जैसी विरहणी नायिकाएं अब   कहाँ रही  ? तो क्या अब की नायिकाएं केवल विहारिणी ही रह गयी हैं  ?उनमें  विरह  का लोप हो गया है ? यह चर्चा चलती रहनी चाहिए !
आईये आज की नायिका पर एक दृष्टि डालें !


"प्रियतम के विदेश से अवश्यम्भावी वापसी  की सूचना मिलते ही  नायिका की  खुशी का पारावार नहीं है -वह आह्लादित हो उठती है ! तन मन  पुलकित  है ,छाती भर आई  है ,गालों पर लालिमा आ गयी  है ! यह दशा देख सहेली आशयपूर्ण मुस्कराहट से कह पड़ती है ," सखि, लाओ यह दीन मलीन रूप तो  साज संवार दूं "
"रहने दो ,रहने दो ,ज़रा कंत भी तो देखें उनके विछोह ने मेरी कैसी गत दुर्गत कर डाली है ! "

मगर फिर न जाने कुछ सोच कर  अपनी सखी से प्रतिरोध नहीं करती और सखी उसकी साज संवार में लग जाती है! "



यह नायिका  है आगतवल्लभा ! 
चित्र सौजन्य : स्वप्न मंजूषा शैल 

कृपया यह पोस्ट भी पढें ! 

22 टिप्‍पणियां:

  1. हो सकता है की अब विरहिणियाँ ....विहारिणियाँ ज्यादा बन गयी हों.....और हो भी क्यूँ नहीं...पहले माल, किटी पार्टी कहाँ हुआ करती थी.....विरह में खुद को समाहित करना भी एक सुख ही देता है......
    वैसे.....विरह में अस्त-व्यस्त सी वेश-भूषा का तिकड़म हम भी कर चुके हैं......तो क्या हम भी ...आगतवल्लभा !! बने थे ...? ये अलग बात है किसी सखी ने सजाया नहीं था ....सजाने का काम 'उन्होंने' ही किया था.....अब बताइए ये क्या हुआ....? हा हा हा हा ...

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  2. पहले जैसी विरहणी नायिकाएं अब कहाँ रही ? तो क्या अब की नायिकाएं केवल विहारिणी ही रह गयी हैं।
    बहुत खूब।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. इस श्रंखला में विशुद्ध श्रंगार रस है वह भी उच्च कोटि के प्रेम से सराबोर। इस में कहीं भी न तो अश्लीलता है और न ही उत्तेजना है। मुझे यह समझ नहीं आया कि आप इस की आलोचना होने का संदेह क्यों कर रहे थे?

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  4. @दिनेश जी ,कुछ पिछली यादें हैं ना ...और आगे भी निर्वाह हो जाय ! और आप जैसे सुधी अध्ययनशील का वरद हस्त बना रहे तो फिर कोई आशंका नहीं है .

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  5. काफी संतुलित लिख रहे हैं आप .... अच्छा लगा इस दफ़ा आपका अंदाज.
    इतना ही कहूँगी "और भी गम हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा"..अब स्त्रिओं का दायरा बढा है सामाजिक रूप से ..जब करने को कई सकारात्मक कार्य हो विलाप कर के बैठे रहना किसे पसंद होगा ?
    शेष प्रेम की भावना न बदली थी न बदली है.. साधारण मनुष्य का प्रेम सिर्फ उसे आनन्दित करता है..असाधारन का प्रतिदान उल्लेखनीय हो जाता है.इति

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  6. पढ रहे हैं और समझ भी रहे हैं.

    रामराम.

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  7. आहा ....
    ज्ञान भी आ रहा और आनंद भी !

    अगर आपकी इस मनोहर श्रंखला को सकारात्मक रूप से नहीं लिया गया ...... तब तो संस्कृत के कई महाकाव्यों और ग्रंथों को हमें खारिज करना पड़ेगा !

    आभार सहित

    आज की आवाज

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  8. चचा ग़ालिब ने शायद ये कहा था 'उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक...' पर मतलब तो वही है :)

    फिलहाल नायिकाओं में भले विरह का लोप हो गया (रहा) हो. पर पिछले पोस्ट में वर्णित दुश्चिंताओं से क्लांत नायिका जिन्हें अपने प्रिय के दूसरी नवयौवनाओं के मोहपाश में बंध जाने का भय होता है, की संख्या तो तेजी से बढ़ रही है. क्यों?

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  9. "प्रियतम के विदेश से अवश्यम्भावी वापसी की सूचना मिलते ही नायिका की खुशी का पारावार नहीं है, लेकिन नायिका ही नही घर मै बच्चे, ओर मां बाप की भी खुशी का कोई पारावार नही होता, बहुत रोचक लग रहा है आप का लेख, चित्र भी सुंदर.
    धन्यवाद

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  10. नायिकाओं के भेद का मर्यादित विवरण सुखद है ...साथ ही विमर्श भी जारी है .... रोचक और ज्ञानवर्धक श्रृंखला ...!!

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  11. मेरा पिया घर आया वो राम जी..

    गाने वाली नायिका किस श्रेणी में आएगी?

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  12. अरविन्द जी ,
    जानकारी पढ़ कर अच्छा लगा...
    जाने लोग कैसे कह देते हैं...के ''स्त्री को कौन जां सका है आज तक...''

    शायद लोग जानना ही नहीं चाहते...

    या एक ही स्त्री में हर नायिका के गुण देख कर उलझ जाते हैं....

    सुदर चित्रों सही अच्छा वर्णन...

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  13. `तेरी दो टकियां की नौकरी, रे मेरा लाखॊं का सावन जाए’ :)

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  14. सुंदर चर्चा चल रही है। और हाँ, चित्र भी बढिया खोज कर लगाया है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  15. lagलता है iकई दिन बाद आने से बहुत सी सुन्दर रचनायें पढने से रह गयी हैं लाजवाब । सच मे आज बहुत कुछ बदल गया है। शुभकामनायें

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