निशा -निमंत्रण से एक गीत आपके लिए भी -बाकी तो हम आज दिन रात कई स्वरान्जलियाँ कवि को अर्पित करते रहेगें -
दिन जल्दी जल्दी ढलता है!
हो जाय न पथ में रात कहीं ,
मंजिल भी तो है दूर नहीं -
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी जल्दी चलता है !
दिन जल्दी जल्दी ढलता है !
बच्चे प्रत्याशा में होगें
नीड़ों से झाँक रहे होगें -
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी जल्दी ढलता है !
मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को ,भरता उर में विह्वलता है !
दिन जल्दी जल्दी ढलता है !
इसे सुनते भी तो जाईये !
सुन्दर प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंश्रद्धा सुमन अर्पित हमारी तरफ से भी!!
इस बेहद अर्थपूर्ण व मधुर गीत को आपकी आवाज में सुनना एक अलग अनुभव रहा । संगत भी अच्छी है ।
जवाब देंहटाएंकवि हरिवंशराय बच्चन जी की १०१वी जयंती पर उन्हें याद करने और इस सुन्दर गीत की प्रस्तुती पर आभार....
जवाब देंहटाएंregards
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति..... गीत बहुत अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंदिन जल्दी जल्दी ढलता है..... वाह! बहुत ही सुंदर पंक्ति....
आभार...
अपनी आवाज़ के लिए सुन्दर गीत का चयन किया है ...या यूं कहूँ की सुन्दर गीत को सुन्दर आवाज दी है ...आभार ..!!
जवाब देंहटाएंबच्चन जी को हार्दिक श्रद्धांजलि। उनका यह गीत वाकई लाजवाब कर गया। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं------------------
क्या धरती की सारी कन्याएँ शुक्र की एजेंट हैं?
आप नहीं बता सकते कि पानी ठंडा है अथवा गरम?
कवि बच्चन जी मेरे भी प्रिय हैं। उन्हें सादर नमन!
जवाब देंहटाएंबच्चन जी का लिखा हुआ और आपकी आवाज़ बेहद खुबसूरत अंदाज़ है यह ..और भी सुनाये खासकर जो बीत गयी वो बात गयी ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कवि -प्रवर की कविता की
जवाब देंहटाएंसंगीतमय प्रस्तुति से मन
भावुक हो गया ...
आभार ... ...
अच्छा किया आपने याद दिलाया। हरिवंशराय बच्चन जी को बहुत पढ़ा - पाठ किया है। श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंसुन्दर..! पर इसमे एक स्वर तो नहीं ही लगता..स्वर-साधकों के नाम तो बताएं...बेहतरीन प्रस्तुति..!!!
जवाब देंहटाएंहे भगवान्....
जवाब देंहटाएंअब हमरा का होगा ???
अब तो गेयल भैंस पनिये में...
हाँ अब तक अच्छा ख़ासा गायन का कुर्सी पर कब्ज़ा जमाये रहे थे....अब तो गयी कुर्सिया हाथ से...
हम कहते हैं का ज़रुरत है आपको एतना सुर में गाने का अरविन्द जी...
बहुत सुन्दर कविता गायन...और बेटे ने भी खूब साथ दिया है आपका...
बस हम दुखी हैं....कि हमरी लुटिया फिर डूबी...हाँ नहीं तो...!!
याद न आए दुखमय जीवन
जवाब देंहटाएंइससे पी लेता हाला
जग चिंताओं से रहने को
मुक्त, उठा लेता प्याला...
उस महान कवि की स्मृति को अभिनंदन॥
कवि बच्चन जी की यह विशेषता थी कि वे गम्भीर विषयों को अत्यन्त सरल शब्दों में कह जाते थे. हमारी ओर से भी श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंsorry sir,
जवाब देंहटाएंi couldn't hear the poem sung by u due to network or system error.
रचना तो पढ़ी हुई थी लेकिन पिता पुत्र की यह जुगलबन्दी ! (अनुमान लगा रहा हूँ)
जवाब देंहटाएंआप लोग इतने मजे कलाकार हैं, बनारस में इसका आभास भी नहीं होने दिए। यदि पता चल जाता तो मैं फरमाइशें कर के आता ढेर सारी।
अदा जी के यहाँ मेरा मसला ढेर दिन से बकाया है - राम की शक्तिपूजा का गायन। अब आप पखावज का जुगाड़ कर लीजिए और शुरू हो जाइए। बढिया आएगा। इतना तो तय रहेगा कि उच्चारण शुद्ध और कर्ण मधुर होंगे। अब यह न कहिएगा कि पखावज बजाना नहीं आता, चलिए बिना पखावज के ही गा लीजिए।
________________
आनन्द आ गया।
हाँ, गुगल क्रोम एक्सप्लोरर में ऑडियो लिंक दिख ही नहीं रहा।
जवाब देंहटाएंजिसका कट्टर विरोधी हूँ उस इंटरनेट एक्सप्लोरर का सहारा लेना पड़ा इस पॉड्कास्ट को सुनने के लिए।
बने रहें ये पीने वाले , बनी रहे यह मधुशाला ।
जवाब देंहटाएंअरविंद जी,
जवाब देंहटाएंबच्चन जी के अनमोल वचन...मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा...को मैंने भी अपने जीवन का ब्रह्मवाक्य बना लिया है...आपने बहुत सुंदर शब्दों में बच्चन जी को याद किया...
एक शंका है...बच्चन जी का जन्म 27 नवंबर 1907 को हुआ था, इस लिहाज से ये उनकी 102वीं जयंती होनी चाहिए...
जय हिंद...
@आप सही हैं खुशदीप -शुक्रिया! गणित मेरी सदा कमजोर रही !
जवाब देंहटाएंwaah! bahut khoob!
जवाब देंहटाएंaap ki pasand ki kavita aap ke swar mein sun kar achcha laga.
ek sujhaav-audio file ka Download option bhi rakha kareeye.
taki server ki slow speed wale bhi sun payen.
Agle podcast ki pratiksha hai.
बच्चन जी से मैं भी काफी प्रभावित हूँ. उनकी कविताओं में छुपे विभिन्न अर्थ अद्भुत होते हैं, जिनमें हर कोई अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति पा सकता है.
जवाब देंहटाएं