आज तो बम बम बोल रही है काशी....शिवरात्रि पर काशी शिवमय हो जाती है ..शिव बारात सज रही है ...बरात क्या है चित्र विचित्र दृश्यों का संयोग है -एक बूढा बैल पकड़ा गया है,लोग उस पर भयावह से लग रहे बाल शिव को बैठाने के उपक्रम में हैं ...बैल बिदक रहा है ..लोग उसे संभाले हुए है ..दर्शक दूर से नमस्कार कर रहे हैं ..कहीं बैल बिदक गया तो किसी के थामें न थमेगा ..मेरे मन में भी दहशत है इसलिए एक सुरक्षित कोना ढूंढ लिया है ..बारात सज बज रही है ...यह भी कोई बरात है?
बैल तो बिदक गया अश्वारूढ़ हुए शिव बाबा -शिव बरात का एक दृश्य
अजब गजब स्वांग भरे हैं बाराती -कोई नंगा ,कोई अधनंगा ,कोई लूला कोई लंगड़ा ,कोई अँधा कोई काना ...और भूत पिशाचों की तो एक अलग टोली है -खुद शिव मुंड माला पहने हैं ,अधनंगे हैं ,भभूत लपेटे हैं ,गले का जिन्दा फुफकारता नाग है,विषदंत न भी टूटा हो तो भी विषकंठी पर विष का प्रभाव कहाँ? अजब गजब बरात.. बस चलने को उद्यत है ...यह कैसा दृश्य है? ..कोई बरात ऐसी भी हो सकती है भला? हजारो हजार साल से शिव की बरात ऐसी ही निकलती आयी है -कहीं यह हजारो हजार विपन्न, अभाव ग्रस्त प्रवंचित भारतीयों का एक सांकेतिक चित्रण तो नहीं? क्या हुआ हम गरीब हैं ,बुभुक्षित हैं मगर उत्सवप्रेमी हम भी हैं -क्या हम मानव नहीं ? हमें क्या खुशियाँ मनाने का हक़ नहीं? हम जैसे हैं वैसे ही अपनी खुशियों का इज़हार करेगें! शिव की यह बरात मन में कई तरह के भावों को संचारित कर रही है -यह भी लग रहा है कि शिव भी कुछ कम मौजी और किलोल -कौतुकी नहीं हैं -ऐसी बरात उनकी परिहास प्रियता का नमूना तो नहीं?
लोकमन के जितने करीब शिव हैं उतना कृष्ण भी नहीं ...जन जन में रचे बसे हैं शिव ...न जाने कितने लोक गीत और लोक कथाएं भोले को लेकर प्रचलित हैं ..कहते हैं अपने नंदी पर ही पार्वती को भी बिठाए हुए (जबकि पार्वती का वाहन अलग है ) भोले बाबा गाँव गिरावं घूमते रहते हैं- लोगों का दुखदर्द बांटते रहते हैं ...भला ऐसे दयालु दंपत्ति से लोगों का लगाव क्यों न हो ..भारत की नारियां तो शिव के प्रति पूरी समर्पित हैं ...शिव पूजा के प्रति उनमें विशेष उमंग और उछाह रहता है .....वर्षा ऋतु का एक पर्व है ललही छठ-यह औरतों का ही पर्व है जहां वे इकट्ठी होकर शिव पार्वती के अन्तरंग पलों का भी चटखारे लेकर बयां करती हैं -इस शिव पार्टी में पुरुषों का जाना निषेधित है ..ऐसी पार्टी में एक बच्चे के रूप सम्मलित मैंने जो कथायें सुनी है कि बस उनका स्मरण मात्र होठों पर मुस्कान बिखेर रहा है ...एक आम भारतीय नारी का शिव से इतना अपनापा है कि बस कुछ मत पूछिए ..शिव खुद उनके स्वामी की प्रतीति हैं ... शिव भोले भले हैं मगर रसिक भी कम नहीं ..बस दिखने में ही बौरहे बकलंठ हैं, अन्दर से बड़े गहरे हैं ...उन्हें हल्के में लेना भारी पड़ सकता है ....वे कड़े योगी हैं तो बड़े भोगी भी हैं ..
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आदि देव हैं शिव ....विद्वानों के बीच उनके आर्य अनार्य होने की बहस छिड़ जाती हैं ..मैं तो यही मानता हूँ की वे मानव की चेतना की अनुपम अभिव्यक्ति हैं -उनकी संकल्पना खुद हमारी अभिलाषाओं ,आकांक्षाओं ,दुर्बलताओं ,विपन्नताओं ,प्रवंचनाओं की ही देन है -इसलिए ही तो हम उन्हें अपने इतना करीब पाते हैं -हर किसी ने शिव को अपने अपने रंग में गढ़ा है -विद्वानों को जहाँ वे 'नमामीशमीशान निर्वाण रूपं .....' लगते हैं तो एक तांत्रिक को वे भस्मावेष्ठित कपाल कुंडल युक्त अघोरी दिखते हैं ..नर्तक -गायक उन्हें इस विद्या के अधिष्ठाता मानते हैं तो किसी योद्धा को वे तांडव मुद्रा की प्रतीति कराते हैं ....कालांतर में सबने उन्हें अपना बनाया है ,वे क्या सर्वहारा क्या समृद्धिवान सभी के चहेते देव हैं ....लोकमानस ने उनके साथ खुद को इतना जोड़ लिया है ,इतनी कथायें रच डाली हैं कि वे आम भारतीय में सदियों से ऐसे गुथे हुए हैं कि आगे भी कितनी सदियाँ क्यों न बीत जाएँ जनमानस शिवत्व से विलग नहीं हो सकता .....
योगी तो ऐसे कि उनके ध्यान भंग करने के लिए कामदेव को अपनी जान की बाजी लगाने पडी ..मगर आसक्त भाव भी ऐसा की दक्ष यज्ञ के पश्चात मृत सती का शरीर लिए छः माह व्यथित विकल घूमते रहे ....मृत विगलित शरीर जगह जगह गिरता रहा -जो पुण्य स्थान बनते गए ...बनारस के एक घाट पर मणि कुंतल के साथ कान गिरा तो वह मणिकर्णिका कहलाया -जो मोक्ष "श्रोतम श्रुतैनैव ' से नसीब था वह मणियुक्त पार्वती के कर्ण अवशेष अनुप्राणित स्थल के जीवित ही नहीं मृत्योपरांत भी संस्पर्श मात्र से ही सर्व सुलभ है -आज हिन्दुओं का अंतिम संस्कार के रूप में यहीं शव दाह की परम्परा है ---कामरूप कामाख्या में सती का एक कामांग गिरा तो जन श्रुति चल पडी कि पूरब की महिलाओं में जादू का आकर्षण है -यहाँ अकारण ही पूरब की बूढ़ी दादियाँ और स्त्रियाँ अपने बच्चों /पतियों को असम/बंगाल के सौन्दर्य से बच के रहने की चेतावनी नहीं देतीं ....
बिना पार्वती के संस्पर्श -साथ के शिव भी शव रूप ही हैं ....वे शिव तो शिवा के संयोग से ही हैं ....एक भक्त ने वामांग में पार्वती को बैठे देख हठ कर लिया कि वह केवल शिव रूप का ही अर्चन चाहता है तो शिव खुद अर्धनारीश्वर बन गए ...उस मूरख को कहाँ पता था कि वे अलग है ही कहाँ? वे तो शब्द और अर्थ की भांति जुटे हुए हैं ....वागर्थाविव संपृक्तौ ...पार्वती परमेश्वरौ .....शिव की बारात नगर की गलियों को गुलजार कर रही है -बच्चे बूढों सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुयी है ....चारो और हंसी और ठिठोली का माहौल है .....भला ऐसी भी कोई बारात होती है ....जस दुलहा तस बनी बराता....
इस संसार में जो कुछ भी मनोरम है, सौष्ठव और सामंजस्य लिए है विभिन्न विरूपताओं में भी संतुलन बनाए हैं वही शिव है -आप सभी का शिव पार्वती मंगल करें-यही कामना है !
लोकमानस में बसे शिव, और शिव बारात में झलकते उस अनुराग पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है आपने. महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंमहानगरों की बात ही दूसरी है यहां न सावन सूखे न भादों हरे, चाहे मौसम हों या त्यौहार :(
जवाब देंहटाएंउनको कोई तामझाम नहीं चाहिए , वे औढरदानी हैं.शिव मेरे सर्वकालीन ईश्वर हैं. बिना नियमित पूजन-भजन के भी वह मेरे ऊपर कृपा बनाये रखते हैं, ऐसा विश्वास है मुझे !
जवाब देंहटाएंशिव तुम सबके हो, कल्याणकारी हो !
भोलेनाथ की जय...
जवाब देंहटाएंजय भोलेनाथ !
जवाब देंहटाएंबम बम बोले...शिव बरात के बारे में अच्छी जानकारी..कभी देखने का अवसर नहीं मिला.
जवाब देंहटाएंbhole ki barat ka bada rochak vivran diya hai aapne.shivratri ki shubhkamnayen.
जवाब देंहटाएंमहापर्व की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबम बम भोले ...यहाँ तो कोई शोर नहीं है ...
जवाब देंहटाएंशिव का पर्व हो और शिव की नगरी में धमाल न हो,यह कैसे हो सकता है ?
जवाब देंहटाएंइस तरह की धार्मिक परम्पराओं का अपना महत्व है और क्षीण होती ,खत्म होती संस्कृति को बचाने,सहेजने के लिए भी !
Mahashivraatree ko aapko anek shubh kamanayen!
जवाब देंहटाएंहर हर हर हर महादेव!
जवाब देंहटाएंअनूठा दुल्हा, अनूठी बरात। बिलग बिलग होई चलहु सब, निज निज सेन समाज! :-)
रोचक विवरण ।
जवाब देंहटाएंसब श्रद्धा की बात है ।
सब भोले भक्तों को शिवरात्रि की शुभकामनायें ।
.एक भक्त ने वामांग में पार्वती को बैठे देख हठ कर लिया कि वह केवल शिव रूप का ही अर्चन चाहता है तो शिव खुद अर्धनारीश्वर बन गए ...उस मूरख को कहाँ पता था कि वे अलग है ही कहाँ? वे तो शब्द और अर्थ की भांति जुटे हुए हैं ....
जवाब देंहटाएंपौराणिक चरित्रों से जुडी ऐसी बातें मन में उतर जाती हैं..... सदैव प्रासंगिक से रहने वाले भाव ....
हार्दिक शुभकामनायें आपको भी....
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
जवाब देंहटाएंशिवरात्रि की शुभकामनाएँ।
सुंदर आलेख। कम शब्दों में बहुत कुछ समेटे हुए है। इस पर तो यही कहा जा सकता है..हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंभोलेशंकर कि कृपा बनी रहे.
जवाब देंहटाएंशिव की पूजा तो स्वयं राम ने भी की !!
जवाब देंहटाएंआसानी से उपलब्ध फल फूलों से ही संतुष्ट हो जाने वाले जिन्हें पूजा में कोई आडम्बर की आवश्यकता नहीं , जिसे कही ठौर नहीं mशिव के दरबार में जगह पाता है , भोलो के भोले की बारात तो अनूठी होनी ही होती है!
रोचक वर्णन...
जवाब देंहटाएंशिवरात्री की बधाईयाँ...
bam bam bhole
जवाब देंहटाएंआपका विषयजनित सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवलोकन ससंदर्भ प्रमाणिक विवेचन अपनी भाव धारा में बहाते हुए सामने सागर उपस्थित कर देता है . अब पाठकों की इच्छा कि वे कैसे और कितना या कब तक रस पान करें ...
जवाब देंहटाएंबिना पार्वती के संस्पर्श -साथ के शिव भी शव रूप ही हैं ....वे शिव तो शिवा के संयोग से ही हैं ....एक भक्त ने वामांग में पार्वती को बैठे देख हठ कर लिया कि वह केवल शिव रूप का ही अर्चन चाहता है तो शिव खुद अर्धनारीश्वर बन गए ...उस मूरख को कहाँ पता था कि वे अलग है ही कहाँ? वे तो शब्द और अर्थ की भांति जुटे हुए हैं ....वागर्थाविव संपृक्तौ ...पार्वती परमेश्वरौ .....शिव की बारात नगर की गलियों को गुलजार कर रही है -बच्चे बूढों सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुयी है ....चारो और हंसी और ठिठोली का माहौल है .....भला ऐसी भी कोई बारात होती है ....जस दुलहा तस बनी बराता....
जवाब देंहटाएंइस संसार में जो कुछ भी मनोरम है, सौष्ठव और सामंजस्य लिए है विभिन्न विरूपताओं में भी संतुलन बनाए हैं वही शिव है -आप सभी का शिव पार्वती मंगल करें-यही कामना है !
लोक मन के करीब विस्तृत मनोवैज्ञानिक वर्रण किया है आपने शिव के मंगल मनोहर तांडव रूप का .
बम बम भोले... बरसे भांग के गोले :)
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.
तुलसीदास जी के शिवपार्वती विवाह का वर्णन मानो प्रत्यक्ष सज गया । आदि देव हैं शिव ....विद्वानों के बीच उनके आर्य अनार्य होने की बहस छिड़ जाती हैं ..मैं तो यही मानता हूँ की वे मानव की चेतना की अनुपम अभिव्यक्ति हैं
जवाब देंहटाएंआप ने शिव के समस्त पक्षों को उजागर कर दिया। बहुत सुन्दर आलेख।
जवाब देंहटाएंआभार,
गिरिजेश
शिवोहं शिवोहं !
जवाब देंहटाएंभोलेनाथ की बारात
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